पहल 102

संघर्ष के उत्तराधिकारियों
हस्त-दीर्घ बातों पर अन्न देने वाले
मनुष्य को ही तूने बना दिया पारदर्शी
हम देखते हैं प्रत्येक मनुष्य से परे
वे समझते हैं मनुष्य को फक़त अंधा
वे समझते हैं मनुष्य को नीच
वे समझते हैं मनुष्य को लाचार
वे मनुष्य की छाया से ही घबराते हैं
वे कवच पहनकर बैठते हैं अपने आसपास
वे अपने ही शरीर पर चढ़ा लेते हैं बांबी
हाँफते हैं, छटपटाते हैं, ज़हर उगलते हैं।

अब इसके बाद कुछ भी दुर्बोध नहीं लिखना है,
मटियामेट कर देना है उन सबको
इक्वलिटी फॉर आल
और डेथ फॉर इंडिया
और हृदय पर अंकित है
अम्बेडकर : 1978

- नामदेव ढसाल (मराठी दलित कवि)
की लम्बी कविता का अंश

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