किरण अग्रवाल की कवितायें

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    जनवरी 2016
श्रेणी किरण अग्रवाल की कवितायें
संस्करण जनवरी 2016
लेखक का नाम किरण अग्रवाल





गणेश

अचानक गणेश की बाढ़ आ गई थी बाज़ार में
वैसे तो सारे भगवानों की थोड़ा कम या थोड़ा ज्यादा
मांग बनी ही रहती थी सालों-साल
लेकिन इस बार गणेश ने तो माँग और पूर्ति के
पुराने सारे रिकार्ड तोड़ डाले थे

अचानक गणेश की बाढ़ आ गई थी बाजार में
थोक के भाव बन और बिक रहे थे गणेश
कंट्री मेड और इम्र्पोटेड भी
जैसे देशी तमंचा और विदेशी रिवाल्वर

थोक के भाव बन और बिक रहे थे गणेश
भिन्न-भिन्न डिजाइन-भिन्न-भिन्न मटेरियल
प्लास्टिक के गणेश, पीतल के गणेश, लोहे के गणेश
चाँदी के गणेश, सोने के गणेश, ताम्बे के गणेश
शीशे के गणेश, मिट्टी के गणेश, कागज के गणेश
और पता नहीं किन-किन पदार्थों के गणेश
भिन्न-भिन्न रंगों में
भिन्न-भिन्न रूपों में

अचानक गणेश की बाढ़ आ गई थी बाजार में
और बाढ़ का यह जलवा अब तो घरों में भी करतब करने लगा था धड़ल्ले से
आलम यह था कि एक कमरे से दूसरे कमरे में
जाने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता था
मेरे खुद के घर में ही कम-अज-कम
बीस-पच्चीस रुप-रंगों में तो विराजमान थे ही गणेश ठीक आँखों के सामने
अगर शादी के कार्डों से ताकते, कीरिंग में लटपटाते, किताबों से बाहर
उचकते,
अचार, पापड़, अगरबत्ती, मिठाई आदि के रैपरों और डिब्बों में आसीन
गणेश को जोड़ लें
तो यह संख्या कहाँ पहुंचेगी कह नहीं सकती
बहरहाल एक गणेश तो बिल्कुल हरे थे गोल-गोल से, किसी जादुई सपने से
            दमकते
ड्राइंगरूम की साइड टेबुल पर सजे हुए
जिन्हें बॉल की तरह ऊपर उछाला जा सकता था
और एक दिन तो वाकई
नन्हू ने उन्हें उछाल दिया बॉल समझकर
वे खन्न से नीचे गिरे जमीन पर
और टुकड़े-टुकड़े हो गए जैसे 'मेरा नाम जोकर' में राजू का दिल
ओह! यह हृदय विदारक दृश्य। भगवान अपने को बचा नहीं पाए
तब बात खुली
वे गणेश मेड इन चाइना थे
और कांच के बने थे

ऐसे हादसे अक्सर होते रहते थे घरों में
फिर भी गणेश का बुखार उतरने का नाम नहीं लेता था
ऊपर से बाजार हर दिन, आँख पूरी तरह खुलने से पहले ही,
एक नई स्कीम लेकर चला आता था
मसलन एक गणेश के साथ एक गणेश फ्री
या दो गणेश के साथ एक लक्ष्मीजी फ्री
या दो गणेश के साथ एक कोल्ड ड्रिंक या एक चिप्स का पैकेट फ्री
(कोल्ड ड्रिंक और चिप्स की कम्पनी का नाम नहीं ले रही कि क्या पता कहीं वे अदालत में कोई केस ही न ठोक दें मेरे विरुद्ध सच बोलने के ढेरो लपड़े हैं बल्कि सच बोलने के ही लपड़े हैं)

एक स्कीम और आयी थी बाज़ार में
छह/बारह गणेश के सेट के साथ निश्चित उपहार
और अगर आप भाग्यशाली हैं तो
दो ग्राम/पांच ग्राम गोल्ड का गणेश पेंडेल मय चेन भी आपका हो सकता है
लाजमी है घरों की छतों में छेद हो जाते
और बरसने लगते गणेश झमाझम
अगर आप बहुमंजली इमारत के किसी फ्लैट में रह रहे हैं
तो गणेशों की झपास से
भर जाती अपार्टमेंट की बालकनियाँ
जहां से उन्हें सिर पर लादकर
कमरे के भीतर लाया जाता
उन्हें दिखायी जाती अगरबत्ती, धूप और लोबान
ओम गणेशाय नम: का जाप करते हुए खोले जाते सारे बंडल छोटे और बड़े
लेकिन गणेश मय सोने की चैन
हँसते हुए कहीं और जाकर बैठ जाते अपनी सूंड फटकारते हुए
गृहणियां पसीना पोंछती माथे का
गृह स्वामी बरसते गृह स्वामिनी पर
बच्चे पैर पटकते मचलते हुए, 'ये क्यों ले आए पापा!हमें सुपरमैन चाहिये'
'ये सुपरमैन ही तो हैं... ये जो चाहें कर सकते हैं', मम्मी समझातीं
'नहीं! नहीं! हमें असली वाला सुपरमैन चाहिये', बच्चों की जिद जारी रहती

अब हालत यह थी कि गणेश की यह अवांछित बाढ़
दैनन्दिक कार्यों में भी बाधा उत्पन्न करने लगी थी
रसोईघर में गृहणियां दाल निकालने के लिये खोलतीं डिब्बा
तो डिब्बे में गणेश सिंहासीन होते
वे चाय बनाने के लिए गैस पर रखतीं पानी
तो पैन में पहले से गणेश सोए रहते
और वे डरकर गैस बंद कर देतीं
कि कहीं गणेश चाय के साथ उबल न जाएँ
जब वे स्नानागार में नहाने के लिए उतारतीं अपने वस्त्र
तो टब में घुसे गणेश अपनी सूंड से भर-भरकर उछालने लगते पानी
और वे घबड़ाकर जल्दी से वापस कपड़े पहन
बिना नहाए ही चली आतीं स्नानागार से बाहर
शाम को जब पति लौटते घर
अपने प्रमोशन की या कोई दूसरी खुशखबरी सुनाते हुए
और शयनकक्ष में बाहों में भरने को होते अपनी अद्र्धागनियों को
तो दीवार पर पंक्तिबद्ध गणेश अपने लम्बे-लम्बे दाँत निकाल हँस पड़ते जोर से
और पति दूर छिटक जाते पानी-पानी होकर
रात में प्रेम करना तक छोड़ दिया था अब तो उन्होंने

बच्चों की हालत भी कोई कम दयनीय नहीं थी
घर तो घर वे जब बैग खोलते स्कूल में
तो किताबों के साथ गणेश निकल आते बाहर डेस्क पर फुदककर
और टीचर बच्चों के कान मरोड़ उन्हें सजा सुना देतीं
दोपहर भर क्लास से बाहर धूप में खड़े रहने की

स्थिति की गंभीरता को देखते हुए
तत्काल एक आपातकालीन मीटिंग हुई घर भर की
जिसमें आम सहमित से यह निर्णय लिया गया कि चूंकि गणेश भगवान हैं
और इससे पहले कि उनका अनादर हो जाए
किसी भी तरह जाने या अंजाने ही सही
खतरे के निशान से ऊपर बह रहे समस्त गणेशों को
जल्द से जल्द घर से रुखसत कर दिया जाए सम्मान पूर्वक

निर्णय लेने की देर भर थी कि इस दिशा में
शुरू हो गया काम युद्ध के पैमाने पर
और इसमें मिलती गई आशातीत सफलता
देखते ही देखते जल-स्तर घटने लगा
और गणेश अपनी परिधि में समा गए

अब गणेश के आतंक से मिली इस मुक्ति को
सेलीब्रेट करने के लिए
योजना बनी एक ग्रैण्ड पार्टी की
विवाह की सालगिरह के बहाने

एक यादगार आयोजन था वह
कम से कम एक जीवनकाल तक शहर भर की जबान पर रहने वाला
जब देर रात चले गए बहकते-लहकते संतुष्ट अतिथिगण
घर भर आ जुटा खोलने
चमचमाते गिफ्ट रैपरों में लिपटे उत्सुक उपहारों को
लेकिन लोऽऽ! दो को छोड़कर हर पैकेट में गणेश विराजमान थे
अलग-अलग रूप, रंग, टैक्सचर में
इनमें से अधिकतर वे ही गणेश थे
जो हमने गिफ्ट किये थे लोगों को समय-समय पर
पानी अब हमारे सर के ऊपर बह रहा था

भरी हुई मेट्रो में

भरी हुई मेट्रो में
एक भरा हुआ रिवॉल्वर
सनसनी दौड़ा देता है जिस्मों में

मेट्रो कितनी भी भरी क्यों न हो
एक रिवाल्वर आने की गुंजाइश
हमेशा बची रहती है उसमें
तमाम सिक्योरिटी चेक के बावजूद
जैसे अंधेरा कितना भी घना क्यों न हो
एक किरन आने की गुंजाइश
हमेशा बची रहती है उसमें
तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद

रिवॉल्वर भरी-पूरी जिन्दगी में घोल देता है अंधेरा
किरन अंधेरे को पी एक कंठ विषपायी हो जाती है।


किरण अग्रवाल - 23 अक्टूबर 1956 को पूसा बिहार में जन्मी हैं। आपकी शिक्षा वनस्थली में हुई। स्वतंत्र लेखन करती हैं और जी.बी. पंत विश्वविद्यालय परिसर पंतनगर में रहती हैं। उल्लेखनीय कविता संग्रह दो हैं। 'धूप मेरे भीतर' और 'उगते उगते घूमती एक नाव'। पहल में पहली बार। कथाकार संजीव के एक उपन्यास 'चांद तले की दूब' का अंग्रेजी में अनुवाद किया है। मो. 09997380924

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