चले गये पिता के लिए
बेपरवाह सी इस दुनिया में मसरूफ़ दिन बीत जाने के बाद तुम्हारा याद आना पिता तुम मेरे बहुत अच्छे दोस्त थे
हम दोनों तारों को देखा करते आँगन में लेटे हुए बताया था तुम्हीं ने कई रंगों के होते है तारे और तुम भी एक दिन बन गए सफ़ेद तारा देखना छोड़ दिया मैंने तारों को
पिता होने के रौब और खौफ़ से दूर काँधे पर बैठा कर तुमने दिखाया था आसमान वो आज भी इतना ही बड़ा और खुला है
सर्वहारा वर्ग का संघर्ष कसता शिकंजा पूँजीपतियों का व्यवस्था के खिलाफ नारे लगाते और लाल झंडा उठाये लोगों के बीच मुझे नज़र आते हो तुम
समुंद्र मंथन से निकले थे चौदह रत्न एक विष और अमृत भी देवताओं ने बाँट लिया था अमृत शिव ने विष को कंठ में रख लिया
जहाँ खड़ा था कभी मनु खड़ा है वहीं उसका वारिस भी पिता तुम्हारी उत्तराधिकारी मैं ही तो हूँ
ढोल
मंदिर में भजन गाती हैं स्त्रियां हर शाम होती है पूजा और धीरे-धीरे बजता ढोल
धार्मिक कार्यक्रम हो विवाह, या हो कोई त्योहार वो कमज़ोर लड़का अपनी पूरी ताकत से बजाता है- ढोल
उसकी काली रंगत और उसके पहनावे का अक्सर ही बनता है मज़ाक कहते है उसे 'हीरो ज़रा दम लगा के बजा' खबरों से बाहर के लोगों में शामिल नफ़रत और गुस्से में पीटता है वो ढोल
नहीं होते हैं इनके जीवन में बलात्कार, आत्महत्या और कत्ल या कोई दुर्घटना जो हो सके अखबारों में दर्ज नहीं है इनका जीवन मीडिया के कवरेज के लिए इनके साथ कुछ भी हो कोई फ़र्क नहीं पड़ता
गंदे लोगों में है इनका शुमार रहती है गाली इनकी ज़ुबान पर पीते हैं शराब, करते हैं गैंग वार मान लिया गया है इन्हें हिंसक
ज़मीन नहीं/पैसा नहीं राजनीतिक विमर्श से कर दिया गया है बाहर ड्रम बीट्स और आर्टिफिशियल वाद्ययंत्रों में भूलते गये हम ...ढोल
फेंके गये सिक्कों को खाली जेबों के हवाले कर चल देता है अँधेरी और बेनाम बस्ती की ओर
हमारी मसरूिफयत से परे है इसका होना घसीटता चलता है अपने पैरों को गले में लटका रहता खामोश और उदास ढोल।
पुरस्कृत होते चित्र
रोटी की ज़रूरत ने हुनरमंदों के काट दिए हाथ उनकी आंखों में लिखी मजबूरियाँ
बसी हैं इंसानी बस्तियां रेल की पटरियों के आस-पास-
एन.जी.ओ. बोर्ड संकेत देते है मेहरबान अमीरों के पास इनके लिए है जूठन, उतरन कुछ रूपये
यही पैतृक संपत्ति है यही छोड़ कर जाना है तुम्हे बच्चों के लिए तुम्हारे लिए गढ़ी गई हैं कई परिभाषाएं
देख कर ही तय होती है मज़दूरी वो खुश होते है झुके हुए सरों से
इनकी व्याख्या करते हैं कैमरे के फ़्लैश और पुरस्कृत होते हैं चित्र।
सरकारी पाठशाला
गाँव में सरकारी पाठशाला खुलने से गांव वाले बहुत खुश थे पाठशाला में बच्चों का नाम दर्ज कराने का कोई पैसा नहीं लगेगा किताबें, यूनिफॉर्म, दोपहर का भोजन सब कुछ मुफ़्त मिलेगा
तीन कमरों की पाठशाला दो कमरे और एक शौचालय प्रधान अध्यापिका, अध्यापक और चपरासीन सरपंच जी ने चौखट पर नारियल फोड़ा दो अदद लोगों ने मिलकर राष्ट्रीय गीत को तोड़ा-मरोड़ा
सोमवार से शुरु हुई पाठशाला पहले हुई सरस्वती वन्दना भूल गए राष्ट्रीय गान से शुरु करना
अध्यापक जब कक्षा में आये रजिस्टर में नाम लिखने से पहले बदबू से बौखलाये बच्चों से कहा ज़रा दूर जाकर बैठो में जिसको जो काम दे रहा हूँ उसे ध्यान से है करना नहीं तो उस दिन भोजन नहीं है करना रजिस्टर में नाम लिखा और काम बताया
रेखा, सीमा, नज़्मा तुम बड़ी हो तुम्हे भोजन बनाने में मदद करना है चम्पा (चपरासिन) की झाडू देना है और बर्तन साफ करना है अहमद, बिरजू गाँव से दूध लाना कमली, गंगू पीछे शौचालय है मल उठान और दूर खेत में डाल कर आना तुम बच्चों इधर देखो छोटे हो पर कल से पूरे कपड़े पहन कर आना
सब पढ़ो छोटे ''अ'' से अनार बड़े ''आ'' से आम भोजन बना और पहले सरपंच जी के घर गया फिर शिक्षकों का पेट बढ़ाया जो बचा बच्चों के काम आया
दिन गुजरने लगे रेखा, नज्मा, का ब्याह हो गया अब दूसरी लड़कियाँ झाडू लगाती है अहमद, बिरजू को अब भी अनार और आम की जुस्तजू है कमली, गंगू मल लेकर जाते है खेत से लौट कर भोजन खाते कभी भूखे ही घर लौट जाते छोटे बच्चे अब भी नंगे है छुपकर अक्सर बर्तन चाट लेते हैं कोई देखे तो भाग लेते हैं चम्पा प्रधान अध्यापिका के यहां बेगार करती है कुछ इस तरह गाँव की पाठशाला चलती है।
शाहनाज़ इमरानी - पुरातत्व विज्ञान में स्नातकोत्तर शिक्षा पूरी करने के बाद भोपाल में अध्यापिका हैं। पहली बार कविताएं 'कृति ओर' में छपीं। अब्बू जनवादी कवि थे, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के सक्रिय सदस्य। मो. 09753870386 |