नये कवि
भीमबेटका
कभी भीमबेटका गये हैं आप इन गुफाओं के अँधेरे रहस्य की चादर ओढ़े आप की प्रतीक्षा कर रहे हैं बस एक ही कदम दूर रखे हैं यहाँ दस लाख वर्ष
गाईड चन्द्रशेखर दिखाता है कई चित्र लाल और सफेद रंगों के
एक हिरन जीवन और मृत्यु के संधि पल पर टिका पीछे मुड़ कर देख रहा है दस लाख वर्ष से एक आदमी हाथ में भाला लिए अपने शिकार का पीछा कर रहा है एक घोड़ा अपनी दोनों टाँगे हवा में उठाए अगली सभ्यता में छलांग लगाने को आतुर है
कुछ लोग दस लाख वर्ष से त्रिभुजाकार उदर लिए मृदंग और ढोलक पर भूख का उत्सव मना रहे हैं
दस लाख वर्ष बाद कुछ पर्यटक अचम्भे की आँखे फाड़े उस पीड़ा को ढून्ढ रहे हैं जिसके रंग में कूची डुबो चित्रकार ने भविष्य का ऐसा चित्र बनाया जो कभी अतीत नहीं हुआ इन्हीं पर्यटकों में मैं भी शामिल हूँ
चन्द्रशेखर गाईड कहता है यहाँ से देखिए खुला हुआ बाघ का जबड़ा जबड़े के भीतर बने चित्र मैं देखती हूँ वह बाघ के जबड़े में टिकी निडर सभ्यता को जो अपने सहजीवियों के साथ संतुलन की मुद्रा में थम गई है एक कुछआ है क्षितिज के पार कुछ खोजता हुआ एक स्त्री की आकृति है जिसके धड़ पर सर रखा है जो ज़रा सा हिलते ही टूट कर गिर पड़ेगा
मुझे लगता है ये हठयोगी हैं अपने तप में लीन कुछ प्रश्नों के उत्तर खोजते हुए इन गुफाओं की दीवारों पर कुछ प्याले नुमा गड्ढे हैं गाईड बताता है यहअव्नल हैं इन्हें हवा और पानी ने काट कर बनाया है तभी अव्न्लो में बसी बूढ़ी पीड़ा अपनी आँखे खोले देती है उसकी पीड़ा में अपनों से ही आघात पाने का मर्म है जो उसे दस लाख वर्ष से जीवित रखे हुए है
एक रिक्त सभा कक्ष है जिसके मध्य में एक ऊंचा पत्थर रखा है चन्द्रशेखर कहता है यह राजा के बैठने का स्थान था संभवत: यहीं पर बैठकर राजा अपनी सेनाओं को निर्देश देता था बैठिये बैठ कर देखिये मैं उस दस लाख वर्ष पुराने पत्थर पर बैठता हूँ और क्षण भर में सत्तावान बन जाता हूँ मेरे सामने अब अक्षोहिनी सेना है जिसे मैं कहता हूँ जाओ द्रौपदी को केश से पकड़ घसीटते हुए लाओ लाओ इसे सभाकक्ष में नंगा कर दो जाओ इशरत जहाँ को मार कर उसके शव के हाथ में बन्दूक रख दो जाओ नकली को असली बना दो असली को नकली जाओ सीरिया के तेल के नीचे दबे जैविक हथियार नष्ट कर दो इन हथियारों ने उनके 400 बच्चों को मार डाला जाओ शेष पर तुम अपने हथियारों का परीक्षण करो मेरी बड़बड़ाहट सुनकर चन्द्रशेखर मुझे झिंझोड़ता है मैं हड़बड़ा कर अपने सत्तावान होने पर शर्मिंदगी से उठ खड़ा होता हूँ
आते आते मेरी नज़र एक फूलदान के चित्र पर पड़ती है जिसमे से एक फूल दस लाख वर्ष से सजा हुआ झाँक रहा है और मुरझाया नहीं है
युद्ध
मैं युद्ध के बारे में कुछ नहीं जानती जब मेरा जन्म हुआ तब युद्ध खत्म हो चुका था माँ बताती थी कि मेरी बहन जो उस समय दो वर्ष की थी चिल्ला कर रो पड़ती थी वह जब भयंकर गर्जना करते हुए लड़ाकू हवाई जहाज हमारी छत के दो हाथ ऊपर से गुजरते थे मेरे पिता कौतुक से अपनी इंजीनियरी दृष्टि से उसके इंजन के तगड़े पन को तौल रहे होते थे तब वह नहीं सुन पाते थे उसकी चीखें और उसका डर से पड़ा सफेद रंग यूं भी छोटे बच्चे मौत के बारे में कुछ नहीं जानते वह नहीं डरते अँधेरे से खतरों से या मृत्यु से मृत्यु को भी वह एक खिलौना समझकर अपने हाथ में उलट पलट कर देखेंगे और मरने से पहले मौत का सर अपने दांतों से चबा डालेंगे लेकिन बच्चे डर जाते हैं खतरनाक आवाजों से युद्ध मेरी बहन के लिए खतरनाक आवाज़ था और माँ की बाहें दिलासा थी पिता तटस्थ रहे हमेशा दुनिया से युद्ध और शांति में एक सा भाव रहता था उनके चेहरे पर सिवाय रविवार के जिस दिन उनके घोड़े दौड़ते थे रेस कोर्स में उस दिन हम उनके सर पर बचे कुछ बालों के बारे में बात करते थे वह उस दिन हमसे पूछ लेते थे कि पढ़ाई कैसी चल रही है स्कूल में सजा तो नहीं मिलती हमारे दो कमरों के घर में उनका कमरा अलग था जिसमें हम उनकी अनुपस्थिति में ही प्रवेश कर सकते थे यह सिलसिला उनकी मृत्यु के बाद भी बना रहा उनके अनुपस्थित होने के बाद अब हम उनके जीवन में प्रवेश करते हैं जो हमारी स्मृतियों में बसा है हमारे अपराधबोध के वस्त्र पहने
माँ ने उनके और हमारे बीच एक पुल बनाया था जिस पर घृणा की सीढिय़ां चढ़ कर जाना पड़ता था माँ की मृत्यु के बाद वह सीढिय़ां टूट गई और मैंने स्वयम को उस पुल पर खड़े पाया जिसके एक सिरे पर पिता थे दूसरे पर माँ तब मैंने ये जाना कि पुल पर मेरे कदमों के नीचे नहीं था बल्कि मेरे कदम ही थे पुल जो उनकी तरफ बढ़ सकते थे जब उनकी टाँगे फूल कर पायजामे जितनी मोटी हो गई थी तब उनके मौन के नीचे एक आशा ने दम तोड़ा था जब मेरा भाई उन्हें घसीटते हुए अस्पताल ले गया था क्योंकि वह दुखी था कि उसके पैसे खर्च हो रहे थे तब भी वह चले गये थे शायद उन्हें अच्छा लगा था कि इस दु:ख के समय उनका हाथ उनके बेटे के हाथ में है
अब मैं अपनी बहन से युद्ध के बारे में बात करती हूँ तो वह कहती है इससे तबाही होगी हम सब शांति से क्यों नहीं रह सकते उसकी बातों में प्रश्न हैं जिनका उत्तर मेरे पास नहीं है क्योंकि मैं जानती हूं युद्ध की युद्धभूमि कई बार अदृश्य रहती है कई बार तो युद्ध भी विराम लगने के बाद पता लगते हैं शायद पिता इस बारे में बहुत विस्तार से बात कर सकते थे जीवन का बड़ा वितान पिता से ही मिला पीड़ा को समेटने का हुनर माँ से मेरी बहन और मैं कई बार उस पुल पर खड़े रहते हैं हमारे पैर एक दूसरे से उस वक्त बदले जा सकते हैं और हृदय भी कुछ नहीं करना पड़ता उस वक्त वह सब सुनने के लिए जिसके शब्द न उनके पास हैं न मेरे पास
आषाढ़ का एक दिन बरस रहा है आषाढ़ का एक दिन
वैसे नहीं जैसे बरसा था मल्लिका और कालिदास के बीच में जिसमें पानी का बरसना भी एक ज़रूरी पात्र था कालिदास की महत्वाकांक्षा और मल्लिका के प्रेम जितना ज़रूरी शहर में पानी का बरसना इसलिए ज़रूरी है ताकि बारिश दौड़ते शहर के पांवों में बेडिय़ाँ पहना सके लोग ढून्ढ सके खोई हुई दिशाएं पूछ सके अपना हाल कि कैसे हो भाई देख सकें कि फूल किस रंग के खिले हैं
वृक्ष धुएं से भरे अपने फेफड़ों को फुलाकर भत्र्सिका कर ले अपने पत्तों की हथेलियों को फैला कर समेट सके बारिश की चहचहाहट प्रेम में भीगी हुई लड़की अपने गैर ज़रूरी छाते को खोले चलती रहे किसी और दुनिया में मोटर साईकिल अपनी दोनों बाहें फैलाए घुटनों तक डूबी सड़क को बलात्कार के सदमे से मुक्त करके गुदगुदा दे उसके पहिये पानी उड़ाते हुए खिलखिलाते रहें और उसकी ऊंची आवाज़ इस भयभीत शहर को यह दिलासा दे कि यह सन्नाटा टूटेगा बरसता हुआ आषाढ़ का एक दिन भय और रोमांच की जुगल बंदी है सड़क अपने खड्डों को पानी के नीचे यूं छिपाती जैसे गरीबी के हस्ताक्षर को छिपाती है गृहणी
फ्लाईओवर के नीचे बैठे लोगों की आँखों का पानी खतरे के निशान से ऊपर बह रहा है जिसमें डूब गये हैं खेत जिसमें वह धान रोप रहे हैं अबके होगी जो फसल उससे वह एक सपना खरीद लायेंगे इस सफेद शहर में प्लास्टिक की पन्नी ओढ़े हुए एक छोटा बच्चा चौराहे पर नंगे बदन भीख मांग रहा है उसकी माँ ने उससे कहा है नहा लो फिर कब बरसे पता नहीं बारिश में भीगते बच्चे को एक कुत्ता हाँफते हुए देख रहा है और खग अपने भीगे पंखों को सिकोड़ पर उदासी का सन्नाटा रच रहा है अपने कैमरे को बचाता एक फोटोग्राफर माईक के साथ बारिश की तड़प की गूँज को दबाता चिल्ला रहा है ये है राजधानी की बारिश ट्रैफिक जाम!
लीला मल्होत्रा रॉव का पहला और एक मात्र कविता संग्रह 'मेरी यात्रा का जरूरी सामान' बोधि प्रकाशन जयपुर से 2012 में प्रकाशित हुआ है। दिल्ली में रहती है। |