गोविंद माथुर की कविताएं

  • 160x120
    जनवरी 2021
श्रेणी गोविंद माथुर की कविताएं
संस्करण जनवरी 2021
लेखक का नाम गोविंद माथुर





कविता

 

 

 

नागरिक

 (एक)

 

मैं विस्थापित नहीं हुआ

रहा इस ही देश में

शहर भी नहीं बदला

 

बनवाता रहा राशन कार्ड

मतदाता कार्ड, पैन कार्ड

और आधार कार्ड भी

 

मेरा जन्म इस ही शहर में हुआ

शहर के हर मौसम से

वाकिफ हूँ, हर रंगत देखी है

 

प्रेम, भाईचारा और

नफरत भी महसूसी

 

इस शहर का हर पर्व

मनाया है

हर रिवाज अपनाया

अपनों से ही

धोखा भी खाया

 

इस शहर की खूशबू

मेरे बदन में है

इस शहर की छवि

मेरे मन में है

 

इस शहर की खूशबू

मेरे बदन में है

इस शहर की छवि

मेरे मन में है

 

इस शहर की

हर गली, बाजार से गुजरा हूँ

हर दरों-दीवार से

तआरुफ़ है मेरा

 

यकायक अजनबी हो गया

शक होने लगा मुझे

क्या है वही शहर है

 

(दो)

 

ढाई सौ वर्ष पुराने घर के

तहखाने में

दस्तावेज तलाश रहा वह

धूल से अटी, कबाड़ से भरी

गठरियाँ जिन्हें

अब कोई नहीं खोलता

 

वह तलाश रहा है

कोई बही, कोई कागज, पुर्जा

जिसमें लिखी हो

उसकी पहचान

 

शहर का घर उसने

एक व्यापारी को किराये पर

दे दिया था, अपने कब्जे में

रखी थी एक कोठरी

जिसमें तहखाना था

 

घर अब एक गोदाम था

शहर की गलियां, बाजार में

मकान, दूकान में

तब्दील हो गए थे

शहर अपनी पहचान

खो रहा था, वह अपनी

 

बाजार में उसे

कोई नहीं पहचानता था

पुराने घर के तहखाने में

अपनी पहचान

तलाश रहा था वह

 

ईश्वर

 

ईश्वर सर्वत्र है

और गरीबी भी

 

गरीबों के घर में

कम ही पाया जाता है ईश्वर

रहता है उनसे मन में निराकार

 

अमीरों के घर के

हर कोने में बैठा है ईश्वर

कहीं सचित्र कहीं शिल्पकार

गरीब ईश्वर से मांगते हैं

अन्न, वस्त्र, झोंपड़ी

पीने को जल

सांस लेने को हवा

 

अमीर ईश्वर के लिए बनवाते हैं

संगमरमर के देवालय

सिलवाते हैं रेशम की पौशाकें

चढ़ाते हैं स्वर्ण आभूषण

भोग लगाते हैं स्वादिष्ट व्यंजन

 

अमीर ईश्वर के नाम का

उपयोग करते हैं

सुख-सम्पति प्राप्त करने के लिए

 

गरीब ईश्वर के नाम का

उपयोग करते हैं - सिर्फ

सौगंध उठाने के लिए

 

अमीर संतुष्ट नहीं होते

सुख-संपत्ति-वैभव

प्राप्त हो जाने पर भी

 

गरीब ईश्वर का

धन्यवाद करते हैं - सिर्फ

दो वक़्त की रोटी मिल जाने पर

 

अपने विषय में

 

अपने विषय में

कम जानते हैं हम

 

कभी कभी तो लगता है

बिल्कुल नहीं जानते

जबकि लोग

कितना जानते हैं

हमारे विषय में

 

हम आश्चर्य में पड़ जाते हैं

जब किसी तीसरे व्यक्ति से

सुनते हैं, दूसरा व्यक्ति हमारे

विषय में क्या कह रहा था

 

दूसरा व्यक्ति जानता है हमें

हम दूसरे व्यक्ति के विषय में

जानते हैं, न ही तीसरे व्यक्ति के

 

तीसरा व्यक्ति दूसरे व्यक्ति पर

विश्वास करता है, हम पर नहीं

क्योंकि हम नहीं जानते

अपने विषय में कुछ भी

 

मेरी हथेलियां

 

मेरी हथेलियां नर्म और गर्म

रहा करती थीं युवावस्था में

अंगुलियां पतली और लंबी थीं

 

अंगुलियों की लम्बाई तो नहीं घटीं

किन्तु हथेलियां खुरदरी हो गईं

 

मुझ से हाथ मिलाने वाले कहते

गर्म हैं आपकी हथेलियां

कहीं हरारत तो नहीं

कहीं तबियत नासाज तो नहीं

मैं मुस्करा कर कहता

नहीं, ऐसी कोई बात नहीं

कुछ मेरी नर्म हथेलियों और

लम्बी अंगुलियों के कारण कहते

लगता है आप कोई कलाकार हैं

मैं नम्रता से कहता, नहीं

मैं कविताएं लिखता हूँ

 

हथेलियों में खींची आड़ी-तिरछी

लकीरें देखा करता था मैं

कुछ हस्तरेखा विशेषज्ञों ने भी

की थीं भविष्यवाणियां

 

आज भी खुरदरी हथेलियां

देखा करता हूँ

न भविष्यवाणियां सच हुई

न ही कवि होना

 

 

राजस्थान के प्रमुख कवि। जयपुर में निवास।

संपर्क - मो. 9828885028

 

Login