प्यार के संस्कार में बाजार की भाषा

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    मार्च - 2020
श्रेणी प्यार के संस्कार में बाजार की भाषा
संस्करण मार्च - 2020
लेखक का नाम अरुण कुमार





पंकज कौरव का उपन्यास 'शनि: प्यार पर टेढ़ी नज़र’

 

महानगरों के मध्यवर्गीय युवाओं में कैरियर की तरह ही प्यार और विवाह भी अब एक दीर्घकालिक एवं चरणबद्ध अभियान हो गया है। इस अभियान की सफलता दोनों पक्षों के प्रेमसम्बन्धी शिल्पगत् कौशल और भौतिक चमक पर निर्भर होती है लेकिन कई बार किसी कठिन मोड़ पर ग्रह नक्षत्रों को अपने अनुकूल बनाने की आवश्यकता भी अनुभव होने लगती है। पटकथाकार पंकज कौरव का सद्य प्रकाशित प्रथम उपन्यास 'शनि: प्यार पर टेढ़ी नज़र’ आधुनिक युवा समाज का ऐसा दिलचस्प वृतांत है जिसमें बाजार एवं टेक्नॉलॉजी के जरिए नए रुप में ढलती दुनिया की विडम्बनाएं और जटिलताएं प्रेम एवं ज्योतिष के सन्दर्भ में अभिव्यक्त हुई हैं।

इधर लोकरुचि के प्राय: सभी कलामाध्यमों में किसी न किसी रुप और अनुपात में ऊर्जा से भरे उन रचनाकारों ने दस्तक दी है जो आज की और काम की बात करना चाहते हैं। अक्सर प्रेम का विषय उन्हें अपनी बात करने के लिए उर्वर भूमि उपलब्ध कराता है। ऐसे समय में जब प्यार क्लोजशॉट में पीड़ा और लांगशॉट में प्रहसन प्रतीत होता है, पंकज कौरव ने सिनेमाई तकनीक के द्वारा एक ऐसी दृश्यकथा निर्मित की है जो लालच का डर के कारण ज्योतिष के दलदल में समाने से आगाह करती है।

इक्कीस उपशीर्षकों वाले मध्य आकार का यह उपन्यास लम्बी कहानी की शैली में मुम्बई की पृष्ठभूमि में उनतीस वर्षीय साफ्टवेयर इंजीनियर नीरवकांत की कथा दृश्यबद्ध करता है। कभी कालक्रम में तो कभी फ्लैशबैक में आगे-पीछे होती यह कहानी जितनी नीरवकांत की कथा है उतनी ही आज के समय की भी जो हमें बुद्धि-विवेक और सम्वेदना के अभाव का अभ्यस्त बनाता जा रहा है।

इस उपन्यास की कहानी अपनी सुदृढ़ प्रयोजनबद्धता के कारण एकरेखीय है। कथाकार ने शनि के भय की समाज पर पसरती छाया को हर कोण से दिखाने की कोशिश की है। यह छाया प्यार पर भी पड़ रही है इसलिए यह कहानी शनि की प्यार पर टेढ़ी नज़र की भी कहानी हो गई है। यों प्यार की पैथॉलॉजी समझानेवाले समाजविदों और मनोविश्लेषकों ने भी आज प्रचलित प्यार का वस्तुगत विश्लेषण करते हुए पाया है कि इस पर काल की टेढ़ी नज़र पड़ गई है। इस उपन्यास में शनि के बहाने ही प्यार के बदलते अर्थ को भी समझा जा सकता है।

कोरपोरेट कल्चर इस उपन्यास की कथाभूमि है। प्यार वहाँ कोई विरल घटना नहीं है और न ही उसमें अंधे हो जाने के लक्षण हैं। यह सामान्य और खुली आँखों का व्यापार है। टेक्नॉलॉजी का उजला पक्ष यह है कि वह चीजों के उपयोग और आस्वाद को सर्वजन तक पहुंचाता है जैसे शाकाहारियों के लिए सोयाबीन से माँस के स्वादवाले व्यंजनों का उत्पाद या गैरमद्यपों के एल्कोहलयुक्त बीयर का निर्माण। कारपोरेट संस्कृति में प्यार तक अधिक से अधिक लोगों की पहुंच के लिए एक टेक्निकल सोशल सिस्टम विकसित हो गया है। यह बेंचिंग, ब्रेड क्रम्बलिंग (जो-जो पसंद है सबको थोड़ा-थोड़ लुभाना) और कयिरमेंट की सीढिय़ों से गुजरते हुे रोमैण्टिक सहजीवन के फ्लोर पर पहुंचता है लेकिन इसके बाद इस प्रश्न का उत्तर ढूंढऩे में लग जाता है कि कमिटमेंट पारस्परिक प्रतिबद्धता है तो यह पराधीनता से किस अर्थ में पृथक है? फिर रिलेशन एक्सपर्टों,लाइफ कोचों और स्प्रिचुअल गुरुओं का बाजार मदद के लिए प्रस्तुत हो जाता है। ज्योतिषियों का धंधा इस बाजार के समानान्तर है।

यदि यह उपन्यास लम्बी कहानी के रूप में न होकर औपन्यासिक कथा रूप में होता तो कहानी के पाश्र्व विस्तार के लिए व्यापक भूमि उपलब्ध हो सकती थी लेकिन लेखक ने कथा के रेखीय विस्तार का विकल्प चुना ताकि शनि के प्रभाव की सघन को संकेंद्रित किया जा सके।

उपन्यास ज्योतिष के धंदे की नाटकीयता को तो दृश्य में रखता है लेकिन उसके वैज्ञानिकता के नाटक का बौद्धिक प्रतिवाद नहीं करता। वह कहानी को शनि के आंतक से बाहर खुशनुमा मंजिल तक पहुँचा कर ज्योतिष से सावधान रहने की भावात्मक अपील करता है। सुखांत की ओर स्वाभाविक रूप से बढ़ती हुई कथा की विशेषता पर है कि वह उत्सुकता को भी बनाए रखती है आरै प्रवाह का लय भी साधे रहती है।

नीरव आई.टी. सेक्टर की अपनी कम्पनी के प्रोजेक्टों में जी-जान से जुटा रहता है। वह चाहता है कि उसका बॉस उसे प्रमोशन दिला दे जिससे उसके सिरे से जीवन में कुछ गति आए। गति की चाहते में ही वह अपने पिता केतनकांत से जिन्हें वह नापसंद करता है, से पैसे लेकर बाइक खरीदता है लेकिन रघु उसे शनिवार होने के कारण डिलीवरी लेने से मना करता है। नीरव इसे अंधविश्वास मानते हुए शनिवार को ही गाड़ी ले लेता है। इसके तुरंत बाद रघु को बड़ी कम्पनी का आफर मिलता है और नीरव को लगता है कि रघु को अपने काम से खुश रखने की सालों की मेहनत पर पानी फिर गया है। अब वह पाता है कि जीवन में सफल वे ही लोग हैं जिनकी उंगलियाँ ज्योतिषियों की सलाह पर नगोंवाली अंगूठियों से भरी है। वह रघु के कहने पर एक ज्योतिषी से मिलता है जो उसे बताता है कि वह शनि की महादशा में है और कुछ कीमती रत्नों के जरिए न केवल महादशा से बाहर आ सकता है बल्कि उसके जीवन में आनेवाली लड़कियों से भाग्योदय भी हो सकता है। फिर यह कहानी ज्योतिषियों के कारोबार का सच दिखाती हुई पिता के प्रति नीरव की गलतफहमी को दूर करती हुई सहकर्मी अर्पिता के साथ उसका प्यार पक्का करते हुए और पिता के दोस्त अन्ना अंकल से होटल के बिजनेस में पार्टनरशिप का प्रस्ताव प्राप्त करते हुए इस धारणा पर समाप्त होती है कि ज्योतिष के चक्कर में व्यर्थ ही आशंकाओं में खौफ़ खाते रहने की कोई तुक नहीं है बल्कि सम्भावनाओं को प्रयास से ही वास्तविकता में बदला जा सकता है।

यह विस्मयजनक है कि प्रेम के प्रतीक भगवान कृष्ण और पुरुषार्थ के प्रतीक भक्त हनुमान के होते हुए युवा अपने जीवन में किसी की रोमानी सहभागिता के प्रसंग को परिणति तक पहुंचाने के लिए या 'भाग्योदय के लिए यथावहता के प्रतीक शनि की शरण में चले जाते हैं। सम्भवत: अलौकिक शक्तियों की कृपा के बाजार में प्रेम और भक्ति की अपेक्षा भय का सिक्का ज्यादा चलता है। शनि यहाँ बड़ी हैसियत वाले देवता हैं। उपन्यास शनि और ज्योतिष के असर और कारोबार को बहुत प्रभावशाली ढंग से चिंतित करता है:-

''शनिवार है न। मैं तो आज अपनी कार में पेट्रोल तक नहीं डलवाता और तू सीधा मोटर सायकिल की डिलीवरी लेगा, स्टुपिड? देख जमीन के नीचे से निकलनेवाले पेट्रोलियम प्रोडक्ट मेटल, गैस और स्टोन्स जैसी तमाम चीज़ें शनि से प्रभावित होती हैं।’’1

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''एकबारगी किसी नेता या व्यापारी के हाथ में अँगूठियाँ नज़र आतीं, तब भी ठीक था। यहां तो बतौर चीफ़ जस्टिस दूसरों की िकस्मत का फैसला सुनाते आये माथुर साहब खुद किस्मत पलटने को रत्नजडि़त अंगूठियों की नुमाइश कर रहे थे।’’2

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''.... आई.टी. वाले हो,आपको यह साइंटिफिक बात जरूर समझ आएगी, जिस तरह कम्प्यूटर को उसके पाटर्स बदल कर अपग्रेड करते हैं, उसी तरह आप भी अपने रत्नों को बाद में बदलकर अपग्रेड कर सकते है। अभी आपके बजट का वाइट सफायर और सच्चा मोती डालकर अँगूठी बनवा देते हैं, बाद में और पैसे मिलाकर ज़्यादा महँगा स्टोन ले लेना... या फिर ऐसा भी कर सकते हो कि फ़िलहाल मोती चाँदी में, और पुखराज की अंगूठी पीतल में बनवा लो। पैसेहोने पर अँगूठियाँ सोने की बनवा लेना। असर में बस उन्नीस-बीस का फ़र्क रहेगा...?’’3

 

''कांग्रेट्स केतन। फ्स्ट सेटर्न रिटर्न ने नीरव की लाइफ सेट कर दी। अच्छा ये बताओ आर यू 58 बोर्न?’’4

 

निकट तात्कालिकता और घनघोर निकटदर्शिता की प्रवृत्ति हड़बड़ाहट और आशंकाओं में जी रहे लोगों का समाज निर्मित कर रही है। आधुनिकता का अर्थ एवं परिप्रेक्ष्य अदृश्य है लेकिन नए जमाने का रंगरोगन कराने की होड़ लगी है। इसमें प्यार जैसा भाव भी नफे और नुकसान की नज़र से देखी जाने वाली चीज हो गई हैं। मनोहर श्याम जोशी ने सिनेमा जैसी शैली में ही जब अस्सी के दशक में 'कसप’ शीर्षक से एक औपन्यासिक कथा प्रस्तुत की थी तब वहाँ प्यार का मतलब था, ''जिन्दगी की घास खोदने में जुटे हुए हम जब कभी चौंक कर घास, घाम णौर खुरपा तीनों भुला देते हैं, तभी प्यार का जन्म होता है। या शायद इसे यों कहना चाहिए कि वह प्यार ही है जिसका पीछे से आकर हमारी आँखें गदोलियों से टिका देना हमें चौंका कर बाध्य करता है कि घड़ी-दो-घड़ी घास, गाम और कुरपा भूल जायें।’’ 5 जबकि 'शनि: प्यार पर टेढ़ी नज़र में नीरव ज्योतिषी की बात पर यकीन करते हुए कि उसके जीवन में भाग्योदय कराने वाला सितारा प्यार अभी आने को है, अर्पिता के प्यार से मुक्ति पाना चाहता है। वह उसे आहत और स्तब्ध करते हुए कहता है, ''प्यार गया तेल लेने। मैं इधर उँगली दिखाता हूँ, तुम हाथ पकडऩे लग जाती हो। हर बात की एक हद होती है। देखो, एक बार अच्छे से समझ लो। हम दोनों सि$र्फ कॉॅन्यीग्स है। अण्डरस्टैण्डिग अच्छी रही तो ज्यादा-से-ज्यादा अच्छे दोस्त हो सकते हैं, लेकिन उससे आगे कुछ भी नहीं।’’6

पंकज कौरव का यह उपन्यास ऊर्जस्वी और अग्रगामी माने जाने वाले आधुनिक युवा समाज की शनि के बहाने पड़ताल करता है। यद्यपि यह ज्योतिष की कथित वैज्ञानिकता को प्रश्नांकित नहीं करता परन्तु उसके प्रति ललक के नुकसान का गहराई से अहसास करता है. इसी से कथा अंत तक बाँधे रहती है और कथा पूरी होने के बाद इसके पात्र पाठक के संग-साथ विचरने लगते हैं।

 

संदर्भ:

1. शनि: प्यार पर टेढ़ी नजर, पृष्ठ 12

2. वही, पृष्ठ 33

3. वही, पृष्ठ 69

4. वही, पृष्ठ 136

5. कसप, मनोहर श्याम जोशी प्रथम संस्करण 1982, पृष्ठ 9

6. शनि: प्यार पर टेढ़ी नज़र, पृष्ठ 72

 

संपर्क :- मो. 9893452438, जबलपुर

 

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