रणजीत होसकोटे की पाँच कविताएं
श्रेणी | रणजीत होसकोटे की पाँच कविताएं |
संस्करण | दिसंबर - 2019 |
लेखक का नाम | अनुवाद: सरबजीत गरचा |
कविता अंग्रेजी कविता
भारतीय अंग्रेज़ी कविता में एक जाना-माना नाम। कविताओं की छह, अनुवाद की दो, और कला एवं सांस्कृतिक समालोचना की अठारह किताबें प्रकाशित। देश-विदेश के कई साहित्यिक महोत्सवों में कविता पाठ। भाषा, शैली और विषय-वस्तु की विविधता के साथ-साथ उनकी कविता में विशिष्ट सौंदर्यबोध मिलता है। मुंबई में रहते हैं।
संस्कृत कवियों के लिए
पीछे कुछ छोड़ जाओ-थाल में बादल का एक अंश, क्रौंच का एक जोड़ा
जिसे शिकारी ने तीर मारा था, मरकत का एक जड़ाऊ पिन जिसे किसी झाड़ी ने एक भागती हुई राजकुमारी से छीना था
या धुनर्धर की अंतिम प्रार्थना, जो उसने की थी भाई के तीर से अपना गला बिंध जाने के कुछ ही पल पहले.
छोड़ जाओ हमारे लिए ये धागे ताकि हम इन्हें सुलझाएँ, काढ़ें- सफ़ेद स्याही के सफ़ेद काग़ज़ पर लिखे हुए
गुप्त संदेशों को पोस्टकार्डों और हवाई चिट्ठियों के अस्थिर सप्ताहों के नीचे जो मेलबॉक्स को ठूँस देते हैं जब हम घर पर नहीं होते। छोड़ जाओ हमारे लिए पिछले जन्मों की चित्र पहेली।
इंद्रियों की ईज़ाद मासाकी फूजीहाता के लिए
स्पर्श लाँघता है इस कमरे की छोटी-छोटी दूरियाँ, एक कंकड़ को सहलाते हुए, परदे की सिलवटों को मिटाते हुए। जब तुम एक आबनूस की मेज़ पर अपना हाथ रखते हो, एक किताब तैरती हुई आ जाती है सतह पर, खुल जाती है पहले पन्ने पर, जैसे ही तुम काग़ज़ पर, कोर पर, पुट्ठे पर फेरने लगते हो अपनी उंगलियाँ, कोने में रखा एक लैंप धीमे-धीमे दमकने लगता है।
स्पर्श खोल देता है बंद और निजी कोठरियों के ताले- आवाज़ के उलट, उसके किनारे दोस्ताना नहीं होते। अकेले ही खोजते-खोजते वह ले आता है घर वह सब जो तुमने खो दिया है। जैसे ही फैलाते हो तुम अपने हाथों की दस उंगलियों को एक उथले पंखे के आकार में, खट-से खुल जाता है एक दरवाज़ा, झाँकता है एक बच्चा।
डाकिये का चाँद के लिए आख़िरी गीत जीत थाईल के लिए
तुम सरकते हुए आ जाते हो ठीक आँखों के सामने, गुरुत्वाकर्षण के सबसे नज़दीकी ग़ुलाम, हमारी खिड़कियों के बाहर तैरते हुए, पहुंच के बस ज़रा-सा बाहर, गोया एक बर्फीला फल जिसे हम बहुत तोडऩा चाहते हैं आसमान की स्याह काली टहनियों से। रुक इसलिए जाते हैं कि हमें पता है कि अगर हम तोड़ेंगे तो लहरें गरजकर झपट्टा मारेंगी, तोड़ देंगी अपना इक़रार- दीवारों जितनी लंबी लहरें घरों और दूकानों में बहतीं, फाटकों पर मेहराब बनकर उन्हें लाँघतीं, डामर की डूबी हुई सड़क पर पागलों की एक फ़ौज की तरह नाचतीं।
बारिश में लिपटे, कोहरे में गुथे हम उन समुद्रों को कितनी आसानी से भुला देते हैं जो सूखकर सिमट गए हैं दर्रों में, जहाँ आँख कभी नहीं ठहरती, जहां अब दिल कभी नहीं जाता। जैसे नीरवता का सागर- इतना बेतहाशा यूटोपियाई कि हमने उसे तुम्हें दे दिया, गोद दिया उसे हामी भरती हुई तुम्हारी त्वचा पर, काँच और अपने फीके हरे-पीले परदों के पीछे महफूज़, हम उसे क़रीब से देखते हैं पूरे चाँद की रातों में तैरकर जाते हुए, और मुस्कुराते हैं।
हमारी रातों और दिनों के रेहन पर कितनी जल्दी दावा कर लिया जाता है। तुम साँस मापते हो उन सदियों में जो एक ग़मगीन इलिप्स को अंतरिक्ष में उकेरने के लिए लग जाती हैं। संदेशों के पहुँच जाने के बाद, तुम फफूँद-लगे बादलों के नीचे डुबकते हो या अनचाहे हार मान लेते हो एक ऐसे ग्रहण के सामने जिसका रहस्य आधे से ज़्यादा कभी उधड़ नहीं पाया, चमकते-चमकते तुम छिपाए रखते हो अपना अंधेरा पहलू, जो पूरी तरह खुली आँख में चक्कर काटती हुई एक पहेली है।
ओ फ़सल के हँसिया, हमारे आख़िरी कमरों की लालटेन! जनवरी की रातों के हरे चाँद, तुम भौंकोगे हमारी खिड़की के बाहर हमारे चले जाने के बहुत देर बाद, बोटी माँगते हुए एक कुत्ते की तरह। जवाब देने की लिए जाग उठेंगी दूसरी आवाज़ें नींद की बारूदी सुरंगों वाले इलाक़ों के उत्तरजीवी करेंगे तुम पर लानतों की बौछार, कर देंगे तुम्हें स्मृति में निर्वासित।
थीब्स जाने वाले मुसाफ़िरों एक लिए आठ नियम
पहाड़ों के किनारे छोड़े हुए, छिदे पैर वाले शिशुओं से बचकर रहना। जहाँ तीन सड़कें एक-दूसरे को काटती हों, वहाँ बूढ़ों से मत लडऩा। अपने से दोगुनी उम्र की रानी से विवाह मत करना। भविष्य वक्ताओं से उनकी बातों का मतलब मत पूछना। ज़मीन पर गिरे हुए जड़ाऊ पिनों को मत छूना। पनाहगारों की सूची को बग़ल में दबाए रखना। पहेलियों को फटाफट बूझने की कोशिश से बचना। सबसे मुश्किल सवालों को स्फिन्क्स अंत के लिए बचाकर रखती है।
कवि का जीवन
उसने चिडिय़ों की चहचहाहट से विवाह किया। वह जहाज़ से काले द्वीप को रवाना हुआ। वह बंदूक की गोलियाँ खाकर भी बच गया। उसने अपनी लिनेन की जैकेट के नीचे स्वेटशर्ट पहनी। उसने तोतों से यूनानी भाषा में बात की। उसने रात में प्रकाशस्तंभों की खुदाई की। उसने नक़द में ही भुगतान लेना पसंद किया। उसने रात के भोजन से पहले दिन के शब्दांशों को गिना। उसने चाहा कि गोदियों के ऊपर मंडराते हुए गुब्बारे चीनी लालटेन हों। उसने डूब चुके जहाज़ियों की रूहों को पुकारा। वह शहर के मछुआरों से साथ चलते-चलते समंदर तक गया। उसने समंदर के किनारे उनके सलेटी जालों को दानेदार सुनहरी रंग से रंगा। उसने धारीदार बैंगनी सींपियों को उठाया और उनमें जमी गीली रेत को फूँक मारकर निकाला। वह गर्मी की सुबहों में लाल और सफ़ेद धारी वाले परदों से दूर रहा। वह गर्मी की दोपहरों में ईंटों की इमारतों के अगवाड़ों से दूर रहा। उसने देखा कि फलों की दूकानों में रखे संतरे सिकुड़ रहे हैं। उसने रेल की पटरियों के किनारे बसे हुए उस शहर को बारीक़ी से याद किया जहाँ उसका जन्म हुआ था। उसने पुराने पड़ते हुए धातुओं की सतह पर जमे हुए ज़ंग और परछाइयों को इकट्ठा किया। उसने डाक-टिकटों पर अपनी जीभ फेरी और लिफ़ाफ़ों पर हरी स्याही से पते लिखे। उसने चॉकलेट के रंग की केतली से टूट चुकी टोंटी को गोंद से चिपकाया। उसने घर के पिछवाड़े लकड़ी के बरामदे का दरवाज़ा खोला और दुआ माँगी की पेड़ सेबों से लद उठे।
संपर्क- मो. 9540896736, गाज़ियाबाद
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