रंजना मिश्र की कविताएं
कविता
प्रेम कहानियाँ मुझे प्रेम कहानियाँ पसंद हैं उनके पात्र कई दिनों, हफ्तों और महीनो मेरे साथ बने रहते हैं फिल्मों की तो पूछिए मत प्रेम पर बनी फिल्में मुझे हँसाती हैं रुलाती हैं और स्तब्ध कर जाती हैं मैं अपनी पसंदीदा फिल्में कई बार देख सकती हूँ और हर बार उनमें नया अर्थ ढूँढ लाती हूँ। यह भी एक वजह है कि मेरे दोस्त मुझे ताने देते हैं और घर के बच्चे कनखियों से मुझे देख मुस्कुराते हैं मुझे लगता है यह दुनिया अनंत तक जी सकती है सिर्फ प्रेम की उंगली थामकर पर इन दिनों मेरा यकीन अपने काँपते घुटनों की ओर देखता है बार बार हम एक दूसरे की आँखों से आँखें नहीं मिला पाते सचमुच- अपनी उम्र और सदी के इस छोर पर खड़े होकर प्रेम कहानियों पर यकीन करना वाकई संगीन है, ख़ासकर तब- जब आप पढ़ते हों रोज़ का अख़बार भी!
दूसरी दुनिया से पहले सारी किताबें लिखी जा चुकी थीं सारा संगीत सुना जा चुका था सारी यात्राएँ की जा चुकी थीं सारा विज्ञान पढ़ा जा चुका था सारे आविष्कार किए जा चुके थे खोजने वाली हर चीज़ खोजी जा चुकी थी दर्शन उनकी जीभ की नोक पर बैठा था इंसान अपने पाँव से धरती नाप चुका था और यह साबित हो चुका था कि ईश्वर नहीं है दूसरी दुनिया बसाने की सारी तैयारियाँ पूरी थीं ठीक तभी पता नहीं किस सरफ़िरी औरत ने पूछा बलात्कार क्या दूसरी दुनिया में भी होंगे? उनके पास कोई जवाब न था!
उस शहर की वह रात रेत से घिरे शहर के बस स्टॉप पर उस फ़ कीर औरत का अचानक मिलना उस रात शहर से गुज़रते मेरे दिन का एक हिस्सा भर था सामने ज़मीन पर एक चिथड़ा फैलाए कुछ गाती हुई वह एक अधेड़ और रूखी औरत थी जिसकी आवाज़ रेतीली धरती के उस हिस्से में उग आई थी जैसे धूसर उदासी में केक्टस के फूल खिलते हैं
वह कुछ गा रही थी कोई प्रेम गीत जिसमें उसका प्रेमी लौट कर नहीं आया पानी, ढोरों, उजाड़ रेतीली धरती या ईश्वर की प्रार्थना का कोई गीत जो कुछ भी था वह शब्दों और धुन में न समाता था जो उसके कंठ से फूटता और धरती पर बादल की तरह छा जाता था आते-जाते लोगों के मुड़कर देखने जैसी कोई खासियत भी न थी उसमें आखिर वह उनके रोज़मर्रा के दृश्य का एक हिस्सा ही थी मेरे ठहर जाने में शायद मेरा अजनबीपन काम आया या कोई दु:ख जो कई जन्मों से साथ चलता आया था कानों से होती दिल के रास्ते गुज़रती वह आवाज़ मुझे लिये जा रही थी उन अकेली रातों तक जो अक्सर मेरी बगल औंधे मुंह पड़ी होती थीं उन सुबहों के इंतज़ार में जो अक्सर नहीं आती थीं उस रात और आने वाली कई रातों के निचाट सूनेपन में वह आवाज़ मेरे साथ रही समय के साथ मैं भूल गई उस औरत को जीवन के दूसरे दुखों के साथ
वह दृश्य ठहरा है वैसा का वैसा अब भी उस शहर के उस बस अड्डे की उस अँधेरी रात में कोई आवाज़ अक्सर मेरा हाथ थामकर ख़ुद तक छोड़ जाती है मुझे अब भी रेत से घिरे उस शहर की वह रात मेरी खुद से मुलाकात की एक रात थी
अंजुम के लिए (1)
कितने दिनों से याद नहीं आया गली के मोड़ पर खड़ा वह शोहदा सायकिल पर टिककर जो मुझे देख गाने गाया करता था कुढ़ जाती थी मैं उसे देखते ही हालांकि आगे जाकर मुस्कुरा दिया करती थी उसकी नज़र से परे सुना है रोमियो कहते हैं वे उसे मेरे लिए था जो मेरी नई उम्र का पहला प्रेमी
(2) तुम लौट जाओ अंजुम मेरे युवा प्रेमी अपनी सायकिल के साथ तुम मुकाबला नहीं कर पाओगे उनका जो बाइक पर आएँगे और तुम्हें बताएँगे कि अब अच्छे दिन हैं तुम तो जानते हो प्रेम बुरे दिनों का साथी होता है जब कोई प्रेम में होता है बुरे दिन खुद ब खुद चले आते हैं बुरे दिनों में ही लोग करते है प्रेम भिगोते हैं तकिया खुलते हैं रेशा रेशा और लिखते हैं कविताएँ बुरे दिन उन्हें अच्छा इंसान बनाते हैं मेरी एक बहन बोलने लगी थी धाराप्रवाह अंग्रेज़ी प्रेम उसका लॉयला में पढता था एक मित्र तो तिब्बती लड़की के प्यार में पड़कर बनाने लगा था तिब्बती खाना
(3) जानते हो भीड़ प्रेम नहीं करती समझती भी नहीं प्रेम करता है अकेला व्यक्ति जैसे बुद्ध ने किया था वे मोबाइल लिए आयेंगे और कर देंगे वाइरल तुम्हारे एकांत को तुम्हारे सौम्य को वे देखेंगे तुम्हें तुम्हारा प्रेम उन की नज़रों से चूक जाएगा
(4) जैसे ही उस पार्क के एकांत में तुम थामोगे अपनी प्रिया का हाथ सेंसेक्स धड़ से नीचे आएगा मुद्रास्फीति की दर बढ़ जाएगी किसान करने लगेंगे आत्महत्या अपने परिवारों के साथ और चीन डोकलम के रास्ते घुस आएगा तुम्हारे देश में देश को सबसे बड़ा खतरा तुम्हारे प्रेम से है तुम्हें देना ही चाहिए राष्ट्रहित में एक चुम्बन का बलिदान इसलिए ज़रूरी है पार्क के एकांत से तुम अपने अपने घरों में लौट जाओ और संस्कृति की तो पूछो ही मत बिना प्रेम किये भी तुम पैदा कर सकते हो दर्जन भर बच्चे दिल्ली का हाश्मी दवाखाना तुम्हारी मदद को रहेगा हमेशा तैयार
रंजना मिश्रा का सत्तर के दशक में जन्म। वाणिज्य और संगीत की शिक्षा। संगीत पर लेखन। चाल्र्स बुकोवस्की और तारा पटेल की कविताओं के अनुवाद, अब सत्यजीत राय पर लिख रही हैं। पहल में पहली बार। संपर्क - मो. 7875626070, पुणे
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