ब्रज श्रीवास्तव की कविताएं

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    अगस्त : 2019
श्रेणी ब्रज श्रीवास्तव की कविताएं
संस्करण अगस्त : 2019
लेखक का नाम ब्रज श्रीवास्तव





कविता

 

 

आसमान

एक मनचाही चीज़ जो नहीं मिली आसमान थी।

चाहते समय हृदय पुलक था

खुशी नहाकर आई थी उत्साह की नदी में

यह चीज़ एक देश ने देखी थी स्वप्न में

जैसे कि धरती का ख्वाब था आसमान

ऐसा आसमान

जिसमें अंतरिक्ष भी अपने निर्वात के साथ हो।

 

वहाँ तार टूट गये थे एक वाद्य यंत्र के

और वादत हतप्रभ था लगभग उदास

वहाँ आसमान एक प्रसाद था

वहां एक व्यक्ति राजा की तरह व्यवहार कर रहा था

वहाँ अंतरिक्ष एक दास की तरह खड़ा था

यह सब घट रहा था मन के ब्रह्मांड में

 

वायु एक पात्र थी रंगमंच पर

रंगों को बस यह काम दिया गया था कि

वे प्रकाश को व्यवस्थित करें अपने स्वभाव से

प्रासाद में कुछ अश्व थे

आसमान अब भी किसी के मन में बसी चाह से ज्यादा कुछ नहीं था

 

कुछ था वह अगर तो असीम था

जो भाव तो नहीं पर अभाव था किसी के लिये

नींद का एक दृश्य

और रंगों के लोक का कोई जीवित आकार था आसमान

किसी के लिये एक अवसाद का महाकाय रहा

किसी के लिए समुद्र की परछांईं

बादलों का प्रतिरूप होने का भ्रम पैदा करता हुआ

वह मनुष्य की आँखों के लिये सहारा था

मनचाहा जैसा कुछ एहसास कराने में इसका भी हाथ रहा।

 

पेड़ों से कोई रंग नहीं लिया इसने

जड़ों से कुछ नहीं सीखा

नदियों की तलहट ने उतारा था इसका अक्स चाँदनी रात की नीरवता में

तलहट की उलाहना देती रह गई

वह आत्ममुग्ध रहा इतना कि आइने में नहीं

खुद की ही हथेली में देखकर संवारता रहा

जुल्फें

यह धरती पर मौजूद कुछ लोगों का प्रतिदर्श हुआ,

जिनमें से दो चार को मेरी प्रेमिका भी पहचानती है।

 

हमारे दुख अनेक थे वे न हुए दूर और दुर्लभ

टीसें और कसकें धूसर रंग की हैं

पछतावों की चुभन

अतीत की भूलें हैं जो समूचे इतिहास में

फैली हैं आसमान की तरह

वर्तमान मनचाहा हासिल करने के लिये

कदम बढ़ा रहा है।

 

आधी दुनिया के लिये धरती ही इतनी दुर्लभ है जितना आसमान

सर आसमान की ओर है पर मन झुका हुआ है उनका रीतियों रिवाजों की तरफ

दुख अवसाद में बदल चुके हैं

बस कदम चल रहे हैं जिनमें ताकत भरने वाले उनके शुभचिंतक नहीं है।

रसायन से ज्यादा कुछ नहीं है हर आसमान

एक मंच है जहां इंद्रधनुष को और कुछ रंगों को मिलता है मौका अभिनय करने का

जहां नीला रंग सफेद रंग से करता है दोस्ती

कुछ कलाएं खुद से मिलने चली जाती है

 

पक्षियों के पास कोई कला नहीं है सिवाय उडऩे के

हमें तो बस बोलना आता है यानि आवाज़

से जाने जाते हैं हम जिसमें प्रतिरोध घुला है।

वहीं आसमान जो हमारा स्वप्न होता है हो सकता है साजिशगो

हम और पक्षी हर बार एक आसमान के धोखे में आए हैं

 

सोचता हूं

धरती पर कितना बोझ है,

कभी तो एक तिनका भी नहीं उड़ता

तेज़ हवा में भी

और बरसात में

पुल पर से कितना वज़न बह जाता है।

 

एक गुलाब का फूल ओस की बूंद का वज़न हंसकर सहता है

सोचता ही रहता है

 

दुआओं की इतनी बड़ी तादाद

उधर मनोकामना में कोई वज़न नहीं होता

उनकी कामयाबी के सफ़ र में

बहुत वज़न होता है

 

एक प्रेम संवाद से ज़्याद

भारहीन कुछ नहीं होता

पर इससे भी ज्यादा भारहीन होता है प्रेम भरा हृदय।

 

पौधे के लिए

एक पौध अंकुरित होता है

तो बताशे नहीं बंटते

मुंह मीठा नहीं कराते लोग

 

उनके माता-पिता कहीं दूर

वायु को साफ कर रहे होते हैं

छांव दे रहे होते हैं।

 

कोई उत्सव नहीं होता एक

पौधे के लिए

जब वह अपने काम पर होता है

गड़ रहा होता है मिट्टी में ।

जबकि उसके बारे में तय है

कि वह धरती पर अपने

हिस्से के काम को

पूरा करेगा।

 

प्रतिपक्ष में

उदार हुआ

तो कमजोर हुआ

कठोर हुआ

तो मुंह फेर लिया

 

मृदु बोला

तो कुटिल कहा

ख़रा खरा बोला

तो खडूस कहा

 

धीरे बोला

तो चालाक कहा

तेज बोला तो

अशिष्ट कहा।

 

वह था ही प्रतिपक्ष में

मैं भला और क्या करता

खुद पर भरोसा करने के अलावा

 

 

एक लंबे अंतराल के बाद ब्रज श्रीवास्तव की कविताएं यहां पढ़ी जा सकती है। विदिशा में रहते हैं।

संपर्क - मो. 9425034312

 

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