कुमार अम्बुज की कविताएं

  • 160x120
    अगस्त : 2019
श्रेणी कुमार अम्बुज की कविताएं
संस्करण अगस्त : 2019
लेखक का नाम कुमार अम्बुज





शेष कविताएं

 

 

कवि व्याकरण

 

महज संज्ञा नहीं, सर्वनाम नहीं,

विशेषण या कोई अलंकार नहीं,

                  कवि क्रिया है

 

जब तुम उससे बात करते हो

तो अनेक लोगों से बात करते हो

तुम्हें लगता है वह कोई निजी बात कह रहा है

लेकिन वह बहुवचन है, अव्यय है, समास है, संधि है

तुम गलत दस्तावेज पेश करते हो

तो सबसे पहले वह ठीक करता है उसका व्याकरण

और शब्दों को रखता है सही जगहों पर

कि उनका मतलब वैसा रहे जैसा दरअसल तुम्हारा इरादा है

यह काम वह बार-बार करता है

पुनरुक्ति है, शब्द-विचार है, क्रिया है

 

तुम चाहते हो कवि क्रोध न करे, वह चाहता है

तुम ऐसी हरकत न करो कि कवियों को गुस्सा आए

वह तुम्हारे आगे चलता है लेकिन तुम पर निगाह रखता है

प्रत्यय है, उपसर्ग है, तीनों काल है, प्रश्नवाचक है

बुहारता है तुम्हारी भाषा के झूठ और कचरे को

कारक है उभयलिंग है कवि है

                                    वह क्रिया है।

 

दृष्टांत

 

उस पुस्तक में उपदेश थे, नैतिक कथाएँ और चेतावनियाँ भी। जिसमें एक बात खत्म भी नहीं होती थी और दूसरी नयी बात शुरू हो जाती थी। अर्धविराम की जगह पूर्णविराम थे। पूर्णविराम जहाँ होना थे, वे जगहें खाली छूट गईं थीं। क्रम संख्याएँ थीं और अनेक अध्याय। कई बिंदु और सर्ग एक-दूसरे के खिलाफ थे। विज्ञान में गति थी लेकिन पहिये का ज़िक्र नहीं था। कई बातें प्रभु के मुँह से इतनी बार कहलवाई गईं थीं जैसे भरोसा नहीं था कि ईश्वर की एक बार ठीक से कह दी गई बात को लोग उतना ही ठीक से समझ भी लेंगे। इसलिए जो सीख क्रमांक 18 में दी गई थी, वही क्रमांक 96 में, फिर 145 में और फिर 212 में भी दे दी गई थी। इस तरह उस पर इतना जोर पड़ा कि क्रमांक 320 तक आते-आते वह सीख टूट गई थी।

हास्यास्पद हो गई थी ऐसा कहना ठीक नहीं होगा।

पढ़ते हुए उसने एक बार सोचा कि इस अलौकिक किताब को, जो बरसों से ऐसी ही ऊबड़-खाबड़ चली आती है, थोड़ा संपादित कर दूँ। कुछ वाक्य प्रासंगिक भाषा में लिख दूँ। सही जगह विराम-चिन्ह लगा दूँ और गलत जगहों से हटा दूँ। दोहराए गए वाक्य किसी एक बिंदु पर इक ठ्ठे कर दूँ। स्फीति दूर करूँ और रफ्तार के संदर्भ में आपाधापी,भागदौड़ और पहिया भी लिख दूँ। विरोधाभासों को दूर  हटा दूं और जहाँ कुछ ऐसी अश्लीलताएँ हैं कि ध्यान मूलपाठ से भटक जाता है, उन्हें भी कुछ इस ढंग से लिख दूँ कि मन की भटकन कम हो।

भला इस बात के लिए कोई बुरा क्यों मानेगा।

लेकिन घर में ही सबने कहा ऐसा सोचना भी पाप है। कुविचार है। दोस्तों ने कहा यह खुराफात है। बल्कि ऐसी हरकत है कि परिणाम में होगी हत्या और कहलाएगी आत्महत्या। यही है दखलंदाजी। इस तरह पता चला कि संपादन, प्रूफ रीडिंग, संशोधन या अद्यतन के पर्यायवाची पाप, कुविचार, हस्तक्षेप, खुराफात और ईशनिंदा भी हो सकते हैं। फिर पड़ोसी ने अखबार में तस्वीर दिखाकर प्यार से चेताया कि देखो, ऐसी हरकतों की वजह से ही भीड़ किसी आदमी को घेरकर रोजाना मारती है। और जो पापी होते हैं वे ही मारते हैं पहला पत्थर। लेकिन अंत में पापी तो वही कहलाता है जो मारा जाता है।

 

साधारणता

मैं साधारणता हूँ

एक दिन सभी मेरी तरफ लौटते हैं

यह पूरी दुनिया साधारण चीजों से बनी है

सिर्फ उनके नाम असाधारण रख दिए गए हैं

मेरे पास जो भी आता है विशेष हो जाता है

                           मैं साधारणता हूँ।

 

स्थगित अभिव्यक्तियाँ

शब्द भी प्रतीक्षा करते हैं और राह तकते हैं

अकसर उन्हें अभिवादन करते हुए

मुझे जुटना पड़ता है रोजमर्रा के दूसरे क्रियाकलापों में

 

काम की जगहों पर, यात्राओं में, बाजार में

हर जगह वे साथ चलते मेरे करीब दिखते हैं

घर लौटता हूँ तो सीढिय़ों पर

रास्ता देते हुए रेलिंग से सट जाते हैं

पीछे-पीछे कमरे में आते हैं

एक कोने में घुटने मोड़कर बैठते हैं निशब्द

कभी कभी देखते हैं इस तरह

कि मैं उनके साथ साझा कर लूँ कुछ वक्त

 

एक लेखक हजार पन्ने लिखता है

एक लाख कोरे पन्नेे उसके अंत में साथ जाते हैं

अनलिखे की कब्र में देह के साथ उन्हें  कीड़े खाते हैं

अनलिखे के नरक में उसके साथ आग में जलते हैं।

 

कलागत सच्चाई

कई चीजें होती हैं जीवन में इतनी अवास्तविक और कलापूर्ण

कि गैलरी में लटकी सच्ची पेंटिंग्स की तरह लगती हैं।

 

संपर्क - मो 9424474678

 

Login