ज्ञान प्रकाश विवेक की ग़ज़लें

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    पहल - 114
श्रेणी ज्ञान प्रकाश विवेक की ग़ज़लें
संस्करण पहल - 114
लेखक का नाम ज्ञान प्रकाश विवेक





गज़ल

 

 

 

 

 

 

मैं हादसों से बहुत लड़-लड़ा के आया हूं

कि अपनी मौत से शर्तें लगा के आया हूं

 

तमाम लोग समझने लगे हैं राम मुझे

मैं एक काज़ी रावण जला के आया हूं

 

लतीफेबाज़ मुझे देख के परीशां है

मैं अपने होंठ पे आंसू सजा के आया हूं

 

मैं टूट-फूट के बैठा हूं इस तरह यारो

कि अपने आपको जैसे हरा के आया हूं

 

नए समय के कई लोग घर में आएंगे

तमाम मिट्टी के बर्तन छुपा के आया हूं

 

                                                                             * * *

 

मुझको ये इल्हाम हुआ है

जद्दोजहद भी सरमाया है

 

इक मेहनतकश सुबह सबेरे -

पानी पीकर निकल पड़ा है

ज़रदारों ने प्रेम के बदले

दो और दो को चार किया है

 

पूछ ज़रा मुलिस आंखों से

अश्कों का कितना रकबा है

 

सुख है शोर मचानेवाला

दुख, ख़ामोशी का बस्ता है

 

घर की चौखट ऊंघ रही है

नन्हा दीपक जाग रहा है

 

वापिस आए नहीं परिन्दे

$कब से पेड़ उदास खड़ा है

 

कंगालों की इस बस्ती में

फेरीवाला भटक रहा है

 

इस भूखी नगरी के अन्दर

फाकाकश हर शख्स हुआ है

 

                                                                                    * * *

 

ये तूने कैसी मुझे ज़िम्मेदारियाँ दी हैं

कि मुझको ख़ाली जाने की चाबियाँ दी हैं

 

पुराना पेड़ बहुत मज़दा-सा लगता है

किसीको आपने शायद कुल्हाडिय़ाँ दी हैं

 

ये रेडियो पे बर आज खुद सुनी मैंने

कि इक मशीन से बच्चे को लोरियाँ दी हैं

 

गिरा गया है वो दस्ताने अपने हाथों के

न जाने किने मेरे दर पे थपकियाँ दी हैं

वो फूल प्रेम की भाषा को फूल बैठा है

कि आपने जिस काज़ की तितलियाँ दी हैं

 

                                                                               * * *

 

कितना बेचैन है घर छोड़ के जानेवाला

दूर तक कोई नहीं उसको मनानेवाला

 

लौटकर फिर न कभी आएगा इन गलियों में

कच्ची मिट्टी के खिलौनों को बनानेवाला

 

आपके जश्न में शामिल मैं नहीं हो सकता

दोस्तो! मैं तो हूँ थोड़ा-सा कमानेवाला

 

इसलिए घूम रही है ये हवा बनठन के

कोई आया है पतंगों को उड़ानेवाला

 

मेमने पर भी इनायत की नज़र रखता है

वो कोई शेर है सर्कस का पुरानेवाला

 

रंज इस बात का मुझको भी बहुत है यारो

मेरा अपना था कोई मुझको गिरानेवाला

 

ऐसा लगता है कि ये दिन जो अभी गुज़रा है

एक बच्चा था बहुत शोर मचानेवाला

 

घूमता रहता हूं मैं डाल के मैने कपड़े

मेरा कोई भी नहीं मिलने-मिलानेवाला

 

 

 

 

 

जाने माने शायर ज्ञानप्रकाश विवेक बहादुरगढ़ हरियाणा में रहते हैं।

संपर्क- मो. 09813491654

 

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