कविता
''सृजन पीड़ा से मुक्त करता है, लेकिन खुद स्रष्टा का जन्म पीड़ा से ही होता है।''
- नीत्से नागराज मराठी सिनेमा, मराठी कविता परिदृश्य के युवा सशक्त, लोकप्रिय सर्जक हैं। उनका कविता-विश्व समय, समाज, धर्म, लोक, वर्ण, प्रेम, पीड़ा अवसाद जैसे जिन्दगी के हज़ारों शेड से विराट कैनवास पर स्मृति, गंध, बोली, ध्वनि और रंग को आधार बनाकर सुगढ़ आकार ग्रहण करता है। नागराज की कविताएँ चुप्पा किस्म की हैं। वे शब्दों के शोर से सुरक्षित दूरी बनाए रखती हैं। नागराज की कविताएँ वृक्षों, पौधों, फूलों की सहजन्मा हैं। नागराज की कविताएँ भीड़ में खोये व्यक्ति का चेहरा पहचानने की कोशिश करती हैं। नागराज का सृजनधर्मी मन पीड़ा की ही उपज है। रंगहीन बेपर्द दुनिया का अनुभव उनकी कविता का कायिक संसार बनता है। नागराज स्वयं उसे अपनी 'फटी चोली' की संज्ञा देते हैं। सच कहें तो ये कविताएँ 'फटी चोली' की तरह नहीं बल्कि मीठे आश्वासन की तरह पाठकों के संसार का हिस्सा बनती हैं, जैसे- पत्तों पर, शाखों पर, फूलों पर, घास पर, नि:शब्द ओस उतर आती है। नागराज की प्रस्तुत कविताएँ उनकी प्रतिनिधि कविताएँ नहीं कही जा सकतीं। इनका अनुवाद सहजता से हो पाया (बाकी अनुवाद की प्रक्रिया में है) इसीलिये ये पाँच छोटी कविताएँ यहाँ प्रस्तुत हैं। - शशिकला राय
'अ' और 'ब'
'अ' घर में नहीं थी, उसकी एक भी अच्छी तस्वीर दिया जा सके खोये व्यक्ति का विज्ञापन 'ब' नहीं मिलती जिनकी एक भी अच्छी तस्वीर क्यूँ खो जाते हैं ऐसे ही घरों से लोग हमेशा
मित्र
हम दोनों स्वभाव एक प्यार अद्वैत एक ही ध्येय एक ही स्वप्न जीने की सौगंध एक...
आगे... उसने आत्महत्या की मैंने कविता लिखी
तुम अब
तुम अब मेरे लिए मानो आत्महत्या की पुरानी चिट्ठी
छाया
उजड़ते हुए मेरे वीरान जीवन की छाया बन गई कविताएँ कौन जाने आत्मा में कैसे अँखुवाती हैं कविताएँ पृथ्वी की कोंख से कैसे जन्मते हैं वृक्ष
मैं किताब रखता हूँ
मैं अकेला इस निर्मम जगत में एकाकी रहने वालों को रखना चाहिए अपनी रक्षा के लिए कोई न कोई अस्त्र अपने पास इसीलिए मैं किताब रखता हूँ
रहूं कहीं भी किताब होती है साथ ही नहीं पढ़ रहा होता तब भी सीने से लगी रहती है प्रेयसी की तरह
समय कुसमय, निर्जन में स्वयं पर होने वाले घातियों के प्रहार के प्रतिकार में रख देता हूँ किताब तलवार की तरह मैं किताब रखता हूँ। |