मेरा गाँव गज़ा पट्टी में सो रहा था
वह आकाश की ओर देखती थी गाँव की छत पर लेटी एक छोटी बच्ची दो हरी पत्तियों और एक नन्हें से लाल गुलाब की उम्मीद में जब कि एक बड़ा सा नीला मिज़ाईल जिस पर बड़ा सा यहूदी सितारा बना है गाँव के ठीक ऊपर आ कर गिरा है जहाँ 'इरिगेशन' वालों का टैंक है (यह मेरा ही गाँव है) धमक से उस की पीठ के नीचे काँपती है धरती (यह मेरी ही पीठ है)
अब क्या होगा? उस बच्ची ने उम्मीद छोड़ दी है वह इंतज़ार करती है
दस.... नौ.... आठ.... कच्चे डंगे सड़ी हुई बल्लियाँ ज़ंग लगी चद्दरें टीन की ढह जाएंगी भरभरा कर पल भर में, उम्मीदें (मैंने ही छोड़ दी थीं तमाम उम्मीदें) जब कि एक और मिज़ाईल आया है लहराता हुआ सफेद सफेद सा वह नदी की ओर चला गया है जहाँ आई.टी.बी.पी.1 का कैम्प है
और एक और, जिस पर बहुत सारे सितारे और धारियाँ हैं वह केलंग के पीछे कक्र्योक्स2 के उस पार गिरा है जहाँ बहुत बड़ा डैम बन रहा है चारों ओर सन्नाटा है न कम्पन है न धमाका है सुनसान फाट पर इकलौती झाड़ी हिलती है/तूफान में कल्याष3 का एक सूखा डंठल टिका खड़ा है गाँव के नीचे हाईवे नम्बर इक्कीस पर बड़ी बड़ी टर्बो इंजन निस्सान गाडिय़ाँ घसीट ले जा रहे हैं बड़े बड़े बोफोर्ज़ हॉविट्ज़र जब कि गाँव की छत पर अभी भी एक छोटी सी उम्मीद सोती होगी मिज़ाईलें बरसाता होगा गाँव का आकाश अभी भी और एक छोटी बच्ची अपने कलर बॉक्स में मिलान करती होगी ऑलिव, मेटालिक, पर्पल, सिल्वर मिज़ाईलें और पेंसिलें एक सी हैं
सात... छह... पांच... चार... मेरे मन में उल्टी गिनती चल रही है जब कि अभी तक कोई मिज़ाईल नहीं फटा है अभी तक गाँव में ब्लैक आऊट नहीं हुआ फिर भी वह बच्ची छटपटा रही है सपने से बाहर आने के लिए प्यारी बच्ची, मैंने तेरे लिए कितने खराब सपने बुन लिए हैं!
1. आई.टी.बी.पी (इंडो तिब्बत बॉर्डर पुलिस) : भारत तिब्बत सीमा पर नज़र रखने के लिए यह भारत सरकार के गृह मंत्रालय से सम्बद्ध एक पेरा मिलेट्री फोर्स है। इस के कैंप्स सीमांत हिमालय क्षेत्र के संवेदशील स्थलों पर स्थापित किए गए हैं। मेरे गाँव सुमनम के नीचे भी एक ऐसा एक कैंप है। 2. कक्र्योक्स : केलंग के ऊपर ज़ंस्कर पर्वत श्रृंखला पर स्थित ऊँची चोटी। जिसके पीछे तोद घाटी में भागा नदी पर एक मेगा हाईडल प्रोजेक्ट प्रस्तावित है। तोद घाटी के स्थानीय जन इस बाँध का विरोध कर रहे हैं। 3. कल्याष : एक कड़वी एवम कड़ी वनस्पति, जो पशु चारे में प्रयुक्त नहीं हो सकती। सितंबर के बाद जब घासनियों से सारी नरम घास काट कर समेट दी जाती है तब ढलानों पर इसके इक्के दुक्के डंठल खड़े दिख जाते हैं।
'उत्सव' देखने के बाद उदास था शूद्रक
वह घूमता रहा था मिट्टी की गाड़ी में रात भर जासूस की तरह गणिकाओं के आभूषण खोजता थेरियों की कलाईयों पर भारी सोना टनक रहा था डाकिनियों की फीरोज़ी आँखें रह रह कर चमक रहीं थीं
चन्ना! यह रथ फुली लोडेड है क्या? पार्थ! क्या निकट भविष्य में एक और महाभारत लड़ा जा सकता है? मुझे एक गाँडीव दो, मिट्टी का और एक सुदर्शन चक्र, मिट्टी का और मेरी दाहिनी भुजा में थोड़ा सा पुंसत्व भर दो, मिट्टी का चारु दत्त! ये रही तुम्हारी बाँसुरी तुम छिपा लो इस में सब से बड़ा चन्द्रहार और वसंत सेना को सशरीर तुम मुझे उस पोखर तक ले चलो जिसे कोक और पेप्सी की फैक्ट्रियों ने सोख लिया था जहां सुजाता बाँट रही है लाल चावलों से बनी हुई खीर मैं परिव्राजक न रहा मुझे घर लौटना है बताना मत किसी को देवदत्त को भी नहीं यशोधरा या राहुल को भी नहीं...
अँधेरे में सिद्धार्थ सा भटकता हुआ जहाँ पहुंचा था शूद्रक वह पाटलिपुत्र या राजगृह का कोई नुक्कड़ रहा होगा उसे न कोई उजास मिली होगी न ही वह बुद्ध हो पाया होगा और वह आर्यक, जिस के साथ रात भर चाय पीता रहा कुल्हड़ भर भर के ज़रूर नेपाल से भागा हुआ कोई माओवादी रहा होगा
आप के भीतर से सच्ची आवाज़ें आतीं रहतीं हैं
कुछ आवाज़ें आप की छाती में जमी रहतीं हैं संभव है वे इतनी मरियल हों कि संदेह होता हो उन के होने पर और इतनी पस्त हालत कि आप कह भी दें कि वे हो ही नहीं सकतीं
फिर भी इन आवाज़ों को आप सुन रहे हैं जब कभी, जहाँ कहीं क्यों कि आप इन्हीं आवाज़ों को सुनना चाहते हैं लगातार आप हैरान हो जाते हैं एक दिन अचानक जब वे आप की त्वचा पर फोड़े-फिंसियों सी फूट आती हैं शर्म से आप उन्हें ढकते हैं अपने इन हाथों से पर ये आवाज़ें यहाँ ढाँपों तो वहाँ निकल आती हैं वहाँ ढाँपो तो कहीं और निकल आती हैं जब कभी निकल आती हैं हर कहीं निकल आती हैं वहाँ भी निकल आती हैं जहाँ आप के ये ताकतवर शातिर हाथ नहीं पहुँच सकते आप पाएंगे कि ये दबाई छिपाई जा सकने वाली चीज़ नहीं
अलबत्ता आप चाहें तो इन आवाज़ों को अपने जेबों में भर सकते हैं
या एक पेंसिल पकड़ें और उन्हें छोटी छोटी पर्चियों में लिख लें बाँटें लोगों में ये गुप्त ताबीज़ तहे दिल से मान लेते हुए कि आप कमज़ोर थे अपनी इन कमज़ोर आवाज़ों के साथ अभी आप तैयार न थे
बाँटें ये बीजमंत्र इस सदेच्छा के साथ कि कहीं न कहीं कभी न कभी बेहद ऊँची बड़ी असरदार और निहायत ही ज़िन्दा हो कर पूरी आज़ादी से गूंज उठें ये सच्ची आवाज़ें बिना किसी डर और हिचक और हकलाहट के किसी भी छाती में
सपने में गाँव
गाँव में पोलिंग पार्टी उतर रही है सशस्त्र सुरक्षा में पोस्टर चिपक रहे हैं बैनर चमक रहे हैं झंडे लटक रहे हैं भगवा, तिरंगा और इक्के दुक्के फीके फीके से लाल गाँव की खेतों में सड़कें घुस रही हैं गाँव की जड़ों में एक सुरंग खुद रही है गाँव की नदी बाँध ली जाएगी गाँव से उस के खेत छुड़वा लिए जाएंगे गाँव को मुआवज़ा मिलेगा
कम्पनी दफ्तर के बाहर गाँव इकट्ठा हो रहा है और वहाँ काफी सारी धुन्ध भी इकट्ठी हो रही है
थका हुआ मैं आशंकित सा एक पेड़ की छाँव में सो रहा हूँ वहाँ एक चिडिय़ा आती है जिस के पीछे मैंने चालीस साल पहले भागना शुरु किया था वहाँ एक बच्चा आता है मीठी दही की कटोरी लिये खासा गहरा गेहुँआ इंसानी चेहरा लिए कहता है मुझे खेलना अच्छा लगता है और नाचना भी और मैं शील्ड जीतूँगा और मैं 'स्टेट' खेलूँगा बड़ा आदमी बनूँगा...
जागने पर मेरी आँखें नम हैं गाँव के सपने में अभी तक ज़िन्दा था मैं और मेरे सपनों में गाँव |