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जून-जुलाई 2015

हिन्दी का माहताब....

उमर अंसारी


नज़्म


हिंदी का माहताब थे मुंशी नवल किशोर
उर्दू के आफ़ताब थे मुंशी नवल किशोर
एक-एक हरूफ़ जिसका जहां पर हो आशकार
ऐसी खुली किताब थे मुंशी नवल किशोर
लाएं कहां से ढूंढ के उनकी मिसाल हम
आप अपना बस जवाब थे मुंशी नवल किशोर
इल्मो-अदब से क्यों ना इबारत हो उनका नाम
इल्मो-अदब का बाब थे मुंशी नवल किशोर
मुमकिन नहीं भुला सके उर्दूज़बां उन्हें
उर्दू का तो शबाब थे मुंशी नवल किशोर
लालो-गोहर से दामन-ए-उर्दू को भर दिया
वह आसमां जनाब थे मुंशी नवल किशोर
उर्दू के सहन-ए-बाग़ में फ़स्ले-बहार का
खिलता हुआ गुलाब थे मुंशी नवल किशोर
मक़बूल हो जो शेखो-बरहमन में एक साथ
ऐसी शराब नाब थे मुंशी नवल किशोर
मज़हब हो इल्म हो, वह अदब हो कि फ़लसफ़ा
हर बात का जवाब थे मुंशी नवल किशोर
किरदार के बलंद, हर इक दिल के दिल पसंद
ईमां में फ़ैज़याब थे मुंशी नवल किशोर
फिर देखने को जिसके तरसती रही नज़र
ऐसा हसीन  ख़्वाब थे मुंशी नवल किशोर

उमर अंसारी - नया दौर - नवम्बर-दिसंबर 1980 - मुंशी नवल किशोर विशेषांक




वे हमारे महान पूर्वज, प्रज्ञा पुरुष, कर्ता और निर्माता थे। हमारी वर्तमान दुनिया उनसे बनी, शुरु हुई पर नई पुरानी श्रेष्ठतम पत्रिकाओं ने भी कभी उनकी पर्याप्त खोज खबर नहीं ली। दो शताब्दियां बीतने को आईं, सत्ताओं, स्थानिकों और शताब्दी वर्षों की खोज खबर रखने वालों ने मुंशी नवल किशोर को लगभग भुला दिया जबकि उनका योगदान सुनहरी और चमकीला है। हमारी हस्ती छोटी सी है, पर हमारी कृतज्ञताएं भीतरी और निरंतर है। यही 'पहल' का असबाब है। हमारे साथी संपादक ने सेंचुरी अंक के लिये मुंशी नवल किशोर पर बहुल सामग्री मिहनत और आसक्ति से एकत्र की और उनकी सर्वोत्तम खूबियों का सार यहां दिया है। एक संतुलित समकालीनता के बीच मिर्जा ग़ालिब और मुंशी नवल किशोर की जरूरी टीपें भी इसमें है। और उनके एक दुर्लभ चित्र के साथ हम पहल का सौंवा अंक शुरु कर रहे हैं।


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