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फरवरी 2014

कुछ पंक्तियां / सम्पादकों की राय

संपादक

इस अंक में, हाल ही में दिवंगत हुये मराठी कवि नामदेव ढसाल का चित्र हमने प्रकाशित किया है। इसलिये कि नामदेव ढसाल का 'पहल' से गहरा संबंध रहा था और उनकी धारा को हम एलेज गिंसबर्ग से लेकर, पाश, लाल सिंह दिल, तुलसी परब, नारायण सुर्वे, बाबूराव बागुल और नवारूण भट्टाचार्य तक जोड़ते रहे। राजकमल चौधरी और धूमिल भी साथ में थे। अनुज लुगुन तक आये हैं। इस बीच कई बेजोड़ हस्तियां चली गईं जिन्हें हम सादर नमन करते हैं पर हमने अपनी तरफदारी को रेखांकित करने के लिये नामदेव ढसाल और ओमप्रकाश बाल्मीकि से इस अंक की शुरूआत की है। यह दिलरुबा शोक धुन हम दिल से ही बजा रहे हैं। नामदेव अन्डर वर्ल्ड में विचरते, विवादास्पद सक्रियता से उबलते, अपनी कविताओं में एक तमंचे की तरह चलते रहे। वे बांसुरी की तरह नहीं बजे कभी, चीते की दहाड़ से उनकी कविताएं गूंजती रहीं। उनकी सुप्रसिद्ध 'गोलपीठा' 1973 में छप कर आई और उसी वर्ष 'पहल' की शुरूआत हुई। ढसाल ने 'पहल' को मराठी दलित समाज और जीवन के अनेक पहलुओं से परिचित कराया। तब उनके पास 10-12 सीटर एक वैन थी जिसमें हम रात-रात भर घूमते और मुम्बई का रात्रि संसार देखते थे। वह दलित सृजन का मराठी में स्वर्ण काल था। 1982 में अमरीका में 'ब्लैक पैंथर' अस्त हुआ पर भारत में दलित पैंथर का उदय काल बना। यही सूर्यास्त और सूर्योदय है। नामदेव के सभी साथी पहल पढ़ते थे, अभी भी पढ़ते हैं। नामदेव सदा विवादास्पद रहे और उनका एक मजबूत लम्बा साक्षात्कार पहल में छपा। मल्लिका अमर शेख भी पहल में छपीं। कुल मिलाकर बिलकुल नये जुडऩे वालों के लिये यह एक सूचना ही है कि स्थानीयता से विश्व और विश्व से स्थानीयता की हमारी पटरी आगे भी जारी रहेगी। नई डिज़ाइन इसी पुरानी डिज़ाइन का एक्सटेंशन है। नयी दुनिया के, पठन पाठन के, उसके सृजन और चिंतन के नये और सचेत लड़ाके हमसे जुड़ रहे हैं। हमारी परम्परा और प्रगतिमार्ग की यह कोशिश आज भी है। विभाजन की कथा, इक्कीसवीं सदी की लड़ाईयां, आठवें दशक के प्रमुख कवियों के ताज़ा संकलनों की क्रमश: चर्चा, नये कहानीकारों का धारावाहिक मूल्यांकन और मार्क्सवाद के नवीनतम अध्ययनों की कहानियां और पहल विशेष के अन्तर्गत गंभीर विमर्श हमारे स्तंभ हैं।
आगामी अंक से आलोचक रविभूषण आलोचना की एक सिरीज 'पहल' के लिये शुरू करेंगे। वे मधुरेश और सुरेन्द्र चौधरी पर अन्यत्र लिए चुके हैं। अब वे सर्वश्री नामवर सिंह, देवी शंकर अवस्थी, विश्वनाथ त्रिपाठी और विजय मोहन सिंह पर लिखेंगे। रोहिणी अग्रवाल भी आधुनिक कहानियों पर एक दिलचस्प और तुलनात्मक शुरूआत करेंगी। हमारे एक प्रतिष्ठित कवि-कथाकार देवी (देवी प्रसाद मिश्र) पर जितेन्द्र गुप्ता तैयारी कर रहे हैं। और अंत में पाठक आगामी अंक में तेजस्वी सुभाष गाताड़े का एक नवीनतम व्याख्यान भी पढ़ पायेंगे।


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