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मार्च - 2020

नवनीता देवसेन और रामायण का पुनर्पाठ

कल्लोल चक्रवर्ती

स्मृति

 

बांग्ला की विख्यात लेखिका और आधिकारिक चिंतक नवनीता सेन का पिछले वर्ष नवम्बर में निधन हुआ। उनके प्रमुख क्रियाकलाप को ध्यान में रखते हुए यहां यह विशेष टिप्पणी

 

 

'सबसे पहले मैं एक कवि हूं’, नवनीता देवसेन ने वर्षों पहले एक इंटरव्यू में कहा था। वह बांग्ला में कथा और कथेतर साहित्य की प्रखर हस्ताक्षर थीं, तो तुलनात्मक साहित्य की आधिकारिक शख्सीयत और प्रखर नारीवादी चिंतक भी थीं। साहित्य उनके खून में था। उनके पिता नरेंद्र देव और मां राधारानी देवी, दोनों साहित्यिक थे। नरेंद्र देव ने उमर खैयाम का अनुवाद किया था, तो अपराजिता नाम से क्रांतिकारी कविताएं लिखने वाली विधवा राधारानी देवी ने नरेंद्र देव से शादी की थी। रवींद्रनाथ भी राधारानी की कविताओं से प्रभावित थे और उन्होंने ही उन्हें देवसेन कहा था। नवनीता देवसेन में प्रखर नारीवादी होने के बीच बचपन में ही पड़ चुके थे। साहित्य और कविता में दिलचस्पी के साथ-साथ तैराकी और बैडमिंटन में भी उनकी उतनी ही रुचि थी। प्रेसीडेंसी कॉलेज से अंग्रेजी में बीए करने के बाद नवनीता देवसेन जाधवपुर विश्वविद्यालय के उस तुलनात्मक साहित्य विभाग के पहले बैच की छात्रा बनी, जिसकी शुरुआत चर्चित बांग्ला कवि बुद्धदेव बसु ने की थी।

यह कहना कठिन है कि अमर्त्य सेन से विवाह न होने की स्थिति में नवनीता देवसेन को अमेरिका और ब्रिटेन में उच्च अध्ययन और अध्यापन करने का मौका मिलता या नहीं, लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है कि बाहर रहने के मौके का उन्होंने भरपूर लाभ उठाया। 1964 में उन्होंने इंडियाना यूनिवर्सिटी से पीएच.डी. की, और बारह साल बाद 1976 में उन्होंने जाधवपुर यूनिवर्सिटी के तुलनात्मक साहित्य विभाग में न सिर्फ अध्यापन शुरू किया, बल्कि दो बेटियों की सिंगल मदर की भूमिका का भी कुशलता से निर्वाह किया। दुनिया घूमने की दुर्दमनीय इच्छा इस अकेली महिला को कुंभ मेले से मैकमोहन लाइन तक ले गई थी। अपनी आसन्न मृत्यु की आशंका को वह पीड़ा या करुणा के साथ नहीं, बल्कि व्यंग्य के साथ देखती थीं। बांग्ला दैनिक 'प्रतिदिन’ को लिखे अपने आखिरी कॉलम में भी उन्होंने कैंसर जैसी बीमारी पर व्यंग्य किया था, जो उन्हें रोज मृत्यु के निकट ले जा रही थी। 

लेकिन उससे भी अधिक आश्चर्यजनक यह था कि अमेरिका और ब्रिटेन में वर्षों बिता चुकीं, अंग्रेजी में लिखने वाली इस नारीवादी लेखिका ने रामायण को विषय बनाया। नवनीता देवसेन को श्रद्धांजलि देते हुए अमर्त्य सेन ने भी शोधार्थी के तौर पर उनकी भूमिका को अलग से रेखांकित किया है। उन्होंने लिखा है कि दुनिया भर में लोगों के बीच प्रचलित महाकाव्यों और खासकर वाल्मीकि रामायण के अनछुए पक्षों की खोज नवनीता की खासियत थी। हालांकि अमर्त्य सेन ने यह भी लिखा है कि एक कवि के रूप में बेहद समादृत और कथा तथा कथेतर लेखन में निष्णात नवनीता के लिए शोधार्थी की भूमिका के साथ न्याय कर पाना कठिन था, इसलिए उन्होंने उसकी उपेक्षा की।       

बांग्लादेश के मैमनसिंह में, जो नीरद सी चौधुरी और तस्लीमा नसरीन के लिए प्रसिद्ध है,  16 वीं सदी की एक कवयित्री चंद्रावती द्वारा लिखी गई रामायण की नवनीता देवसेन ने पुर्नव्र्याख्या की और उसके जरिये नारीवाद को नई दिशा दी। चंद्रावती का समय 1500 से 1600 ईस्वी बताया जाता है। वह मैमनसिंह के किशोरगंज स्थित एक गांव की रहने वाली थीं। कहा जाता है कि ठीक उसकी शादी के दिन उसके होने वाले पति ने एक दूसरी औरत के लिए उसे धोखा दिया। विध्वस्त चंद्रावती ने आजीवन शादी न करने की प्रतिज्ञा की और शिव की पूजा करने लगी। बेटी की धर्म में रुचि बढ़ते देख पिता ने, जो खुद कवि थे और जिन्होंने 'मनसा मंगल’ काव्य लिखा था,  उससे रामायण लिखने को कहा। चंद्रावती ने रामायण लिखने की ठानी। लेकिन वह वाल्मीकि रामायण का बांग्ला तर्जुमा नहीं थी। उन्होंने सीता को केंद्र में रखकर रामायण लिखी और इसे स्त्रियों की तकलीफों पर आधारित ग्रंथ बना दिया।

वाल्मीकि रामायण के विपरीत चंद्रावती रामायण की शुरुआत सीता के जन्म से होती है। चंद्रावती ने सीता के साथ-साथ मंदोदरी की भी कहानी कहनी शुरू की, जो रावण की पत्नी और उपेक्षिता थीं। मंदोदरी का जीवन दुख भरा था, क्योंकि रावण उन्हें मर्यादा देने के बजाय दूसरी स्त्रियों में रुचि रखता था। चंद्रावती ने मंदोदरी और सीता के जीवन को एक दूसरे से जोड़ दिया और उन्हें मां और बेटी के रूप में चित्रित किया। उन्होंने यह भी बताया कि रावण की लंका का विनाश मंदोदरी के अभिशाप से सीता ने किया। चंद्रावती रामायण के पहले खंड में सीता के बाद राम का जन्म दिखाया गया है। जबकि दूसरे खंड में रावण की कैद में सीता की यातना शुरू हो जाती है। इस खंड में चंद्रावती आषाढ़ की बारिश को सीता की बरसती आंखों से जोड़ती हैं। तीसरा खंड  सीता के वनवास से जुड़ा है, जिसकी शुरुआत राम के इस संशय से होती है कि रावण की कैद में सीता पवित्र थीं या नहीं। यहां चंद्रावती सीधे-सीधे राम को निशाना बनाते हुए कहती हैं कि एक अन्य आदमी की बातों के आधार पर सीता को दंडित करने का फैसला लेकर आपने खुद के अविवेकी होने का ही परिचय दिया है (राम तोमार बुद्धि होइलो नाश)।

चंद्रावती रामायण के प्रचलित न होने का एक कारण यह बताया गया कि यह सुगठित न होने के अलावा अपूर्ण भी है। लेकिन 16वीं सदी के इस बांग्ला रामायण के चर्चा में न आने का उससे भी बड़ा कारण यह था कि यह पारंपरिक रामायण नहीं थी। यह एक स्त्री द्वारा लिखी गई स्त्री केंद्रित कृति थी। इसके केंद्र में सीता थीं। और दूसरे अर्थ में यह चंद्रावती की और पुरुषवर्चस्ववादी समाज के हाशिये पर रहने वाली हर स्त्री की कहानी थी। नवनीता देवसेन ने कदाचित पहली बार चंद्रावती रामायण को न सिर्फ बांग्ला साहित्य और समाज के सामने, बल्कि अंग्रेजी दुनिया के सामने समूची आधिकारिकता के साथ रखा। वह चंद्रावती रामायण के संपर्क में भी अचानक ही 1989 में आईं। 1991 में चंद्रावती रामायण पर नवनीता देवसेन के लेख ने ए के रामानुजन का ध्यान खींचा, और उन्होंने देवसेन को तेलगु महिलाओं के रामायण पर प्रोफेसर नारायण राव की अप्रकाशित कृति के बारे में बताया। नवनीता देवसेन स्त्रियों द्वारा लिखी गई रामायण की खोज में आंध्र प्रदेश से लेकर बांग्लादेश में चंद्रावती के गांव तक गईं। और इस प्रक्रिया में वह मराठी और मैथिली में महिलाओं द्वारा लिखी गई रामायणों तक भी पहुंचीं।

स्त्रियों द्वारा लिखी गई रामायणों की खोज करते हुए नवनीता देवसेन ने पाया कि अगर पितृसत्तात्मक समाज ने सीता के मिथक के जरिये स्त्रियों को खामोश करने का काम किया, तो ग्रामीण महिलाओं ने सीता के मिथक का इस्तेमाल अपनी आवाज उठाने के लिए भी किया। चूंकि ग्रामीण महिलाओं की मौखिक संस्कृति पर पहरा और दंड संभव नहीं था,  इसलिए पुरुषवर्चस्ववादी समाज के समानांतर चले ग्रामीण विमर्श में सीता के जरिये नारीवाद और नारी विमर्श का व्यापक प्रसार हुआ। चूंकि सीता दुख की प्रतीक हैं, ऐसे में किसी भी सदी में और भूगोल व भाषा की किसी भी चौहद्दी में सीता स्त्रियों के दुखों की प्रतीक हैं। यही कारण है कि नवनीता देवसेन को चंद्रावती रामायण और दूसरी स्त्रियों द्वारा लिखी गई तेलगू रामायण में अनेक समानताएं दिखीं। ग्रामीण भारत में सीता से संबंधिक गीत वस्तुत: इसी नारीवादी सोच से उपजे। खेतों में बीज बोते हुए, आंगन में अनाज फटकते हुए या धार्मिक समारोहों की तैयारी करते हुए महिलाओं के कंठ से सीता से संबंधित यही दुख भरे गीत निकलते आए हैं। महिलाओं द्वारा लिखी गई रामायणों में जिस तरह युद्ध, वीरता और तड़क-भड़क की उपेक्षा है, ग्रामीण भारत में स्त्रियों द्वारा गाए गए रामायण गीतों में भी पुरुषोचित वीरता के प्रति वैसी ही उपेक्षा है। वहां रामायण का अर्थ है सीता यानी दुख। नवनीता देवसेन ने पाया कि ग्रामीण महिलाओं के रामायण गान छह मुद्दों पर केंद्रित हैं-सीता का जन्म, उनका विवाह, उनका अपहरण, उनका गर्भधारण, राम द्वारा उन्हें परित्याग करना तथा सीता द्वारा बच्चों का लालन-पालन करना।

नवनीता देवसेन ने अलग-अलग भाषाओं के गीतों में सीता के वर्णन में आए फर्क को जिस तरह रेखांकित किया है, वह भी ध्यान देने लायक है। उदाहरण के लिए, मराठी रामायण में सीता के अपनी ससुराल में यातना के विशद ब्योरे हैं, तो तेलगू रामायण में इसका वर्णन है कि सीता के वनगमन के समय परिवार की सभी महिलाएं उसके साथ खड़ी होती हैं। मैथिली में इसका वर्णन है कि राजा जनक अपनी बेटी सीता के ब्याह के लिए कितने व्याकुल हैं। सीता चूंकि मिथिला की नारी हैं, इस कारण मैथिली में सीता के दुख पर काफी लिखा गया। ऐसे ही, बांग्ला में खासकर चंद्रावती रामायण में राम के विवेक पर सवाल उठाए गए हैं। नवनीता देवसेन ने यह भी रेखांकित किया है कि वृहत भारतीय समाज में वाल्मीकि रामायण से जुड़े जो गीत प्रचलित और लोकप्रिय हुए, वे बालकांड और उत्तरकांड से हैं, और यह संयोग नहीं है कि ये दोनों ही अध्याय रामायण मर्मज्ञों की दृष्टि में उतने महत्वपूर्ण नहीं हैं।

रामायण पर अपने महत्वपूर्ण लेख में नवनीता देवसेन यह भी बताती हैं कि महिलाओं ने रामायण के इन्हीं दो अध्यायों को तरजीह क्यों दी। वह कहती हैं कि रामायण के जो अध्याय पुरुषों को अच्छे लगते हैं, जरूरी नहीं कि वे स्त्रियों को अच्छे लगें। महिलाओं को राम की महिमा, युद्ध के वर्णन और ब्राह्मणों द्वारा किए जाने वाले अनुष्ठान रोचक नहीं लगते। रामायण में उन्हें राम और सीता का जन्म, उनका विवाह, फिर सीता का परित्याग, उनके दुख और लव-कुश को पालने के वर्णन आदि अच्छे लगते हैं, क्योंकि स्त्रियों की दुनिया इसी से जुड़ी है। इसीलिए वे राम-सीता के रोमांस और शादी पर खुश होती हैं, मिथिला में आयोजित स्वयंवर में रावण द्वारा धनुष न उठा पाने पर हंसती हैं, तो राम द्वारा सीता के परित्याग पर फूट-फूटकर रोती हैं, क्योंकि वे इसे अपना दी दुख समझती हैं। 

नवनीता देवसेन बताती हैं कि रामायण की सीता वस्तुत: भारतीय उपमहाद्वीप की मूक स्त्रियों का ही प्रतिरूप हैं। वह परिश्रम करने वाली एक आम भारतीय स्त्री ही हैं, जिनके साथ उनके ससुराल के लोगों ने दुव्र्यवहार किया, तो उनके पति का व्यवहार भी उनके प्रति उचित नहीं था। सीता को शोषित और कमतर बताने के लिए नवनीता देवसेन एक तेलगू गीत का संदर्भ देती हैं : 'लंका में युद्ध खत्म हो चुका है। सीता को राम के पास ले जाया जा रहा है कि रास्ते में वह एक विशाल और खूबसूरत पत्थर देखती हैं। वह हनुमान से यह पत्थर उखाड़ देने के लिए कहती हैं, ताकि अपने साथ अयोध्या ले जा सकें। हनुमान उस पत्थर को उखाडऩे लगते हैं, तभी जामवंत हनुमान को काम रोकने के लिए कहते हैं। जामवंत कहते हैं, एक पत्थर उखाड़ कर साथ ले जाने का लालच एक रानी को शोभा नहीं देता। सीता शर्म से गड़ जाती हैं।’   

रामायण पर अपने लेखन में नवनीता देवसेन ने बार-बार यह तथ्य रेखांकित किया कि पुरुषवर्चस्ववादी ब्राह्मणवादी समाज ने आदर्श पुरुष की छवि सामने रखने के लिए राम का मिथक तैयार किया था, तो सीता उसी के अनुरूप आदर्श नारी का प्रतिरूप थी। एक अध्येता के तौर पर नवनीता देवसेन का उल्लेखनीय योगदान यह है कि उन्होंने रामायण और सीता को ग्रंथ से बाहर निकालकर भारतीय जीवन की समग्रता में देखा। रामायण के अपने अध्ययन के जरिये उन्होंने भारतीय संस्कृति की मौखिक परंपरा को जिस तरह बल प्रदान किया, वह भी उतना ही उल्लेखनीय है।

 

 

कल्लोल चक्रवर्ती प्रथमत: कवि हैं। पेशे से पत्रकार।

संपर्क- अमर उजाला, नोएडा, मोबाइल-9873498474

 


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