मुखपृष्ठ पिछले अंक कुछ पंक्तियां
अक्टूबर - 2019

कुछ पंक्तियां

ज्ञानरंजन

 

 

पाठकों को जरूरी खबर देनी हैं। कुछ अगली बार के लिए है। रचनाकारों से गुजारिश है कि वे संपादकों में से किसी से भी बातचीत करके ही रचनाएं भेजें। पहल के हर अंक की एक पूर्व नियोजित व्यवस्था होती है। कई बार अच्छी रचनाएं भी हमारे लिए मिसफिट होती हैं। हमारा प्रयास है कि हर बार कम से कम एक चौथाई दुनिया नयों की हो।

अगली बार अपनी सिरीज को जो बार-बार बाधित होती है, रविभूषण जी बढ़ाएंगे। वे साठ के दशक के एक बड़े आलोचक के रचना कर्म कर लिख रहे हैं। कर्मेन्दु शिशिर पहल की दुनिया में बहुत समय बाद लौटे, इस बार पुरुषोत्तम अग्रवाल पर और अगली बार ओमप्रकाश बाल्मीकि के गद्य पर लिखेंगे। और अच्युतानंद रघुवीर सहाय, श्रीकांत वर्मा पर अपनी जिम्मेदारी पूरी करने के बाद हमारे आग्रह पर विजय देव नारायण साही पर लिखने को राजी हो गए हैं। अंक 120 का एक जरूरी हिस्सा राजेन्द्र लहरिया की लंबी कहानी 'नाट्यवृत’ होगी जिसे हम एक अनूठा वृतांत मानते हैं।

हमारा देशांतर पाठकों के लिए विशेष है। अरबी साहित्य की लगभग पहली आधुनिक कहानी 'ट्रेन’ आप पढ़ेंगे जो मशहूर कथाकार मोहम्मद तैमूर की है। अरबी-मूल की प्रसिद्ध इराक़ी-अमरीकी कवि दूनिया मिखैल की 12 कविताएं अंक का विशेष हिस्सा होंगी जिसे हम अंग्रेजी-हिन्दी समांतर पाठ की तरह छाप रहे हैं। इनका अनुवाद अमरीका में सक्रिय रूप से काम कर रही कल्पना सिंह (चिटणीस) ने किया है।

सूरज पालीवाल के स्थायी स्तंभ के अतिरिक्त, अलका सरावगी के पिछले वर्ष प्रकाशित उपन्यास 'एक सच्ची-झूठी गाथा’ का आकलन युवा आलोचक नीरज खरे ने किया है। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ के एक नये उभरते आलोचक का आलेख 'हाशिये की विडम्बना’ भी अंक में होगा।

यह बहुत संभव है कि अगले अंक में आप दो सुप्रसिद्ध रचनाकारों को पढ़ सकें। एक है रवीश कुमार और दूसरे हैं इरशाद कामिल। अंतराल के बाद देवी प्रसाद मिश्र की छोटी कहानियों को हम प्रस्तुत करेंगे। और अंत में क़ैफी आजमी की जन्म शताब्दी के अवसर पर हमारा फर्ज दो लेखक निभाएंगे। एक दिनेश श्रीनेत जो गर्म हवा के पीछे जो बड़े मुद्दे थे उन्हें प्रकट करेंगे और युनूस खान क़ैफी पर अपनी बात।

अंत में यह कि पिछले अंक में हमने सुभाष गाताड़े का गांधी पर एक लम्बा दस्तावेजी लेख छापा था जिसका अनेक हलकों में स्वागत हुआ है। गांधी मले भेटला लंबी मराठी कविता भी पहल ने ही छापी थी। जिनके कवि को जेल यात्रा करनी पड़ी। इस बार हमने फिर गांधी को भारत की आधुनिक कविता में देखा। यह चित्र पंकज चतुर्वेदी ने बनाया है। हमारी गांधी की एकेडमिक्स की चिंता कम है, वर्तमान खौफनाक समय में गांधी का पाठ, वैचारिक निराशा को दूर कर सके इसलिए हम गांधी को जीवित देखना चाहेंगे।

 


Login