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अक्टूबर-2017

प्रतिक्रिया

सुधीर विद्यार्थी

पवन विहार, बरेली-243006
मो-9760875491, 8439077677
21/8/2017

आदरणीय भाई,

12/8 को आपसे फोन पर संक्षिप्त चर्चा 'पहल' 108 में छपे मधुरेश के संस्मरण आलेख 'मंच उनका सच नहीं था' पर हुई जो बदायूं के मोहदत्त पर लिखा गया है। आपने पत्रिका के इस अंक के अंतिम पृष्ठों में रचनाकारों के परिचय में मधुरेश के सम्बन्ध में लिखते हुए यह भी कहा है कि, 'उत्तर प्रदेश के पश्चिमी अंचल में मधुरेश, प्रदीप सक्सेना, मोहदत्त, उर्मिलेश, ब्रजेन्द्र अवस्थी, प्रभात मित्तल और सव्यसाची आदि अनेक धुरंधर वामपंथी लेखक, पत्रकार, अध्यापक पैदा हुए, उसमें मधुरेश और प्रदीप सक्सेना अभी सक्रिय हैं।' मेरी आपत्ति इस बात को लेकर अधिक है कि ऊपर दिए गए नामों में दो मंचीय कवि उर्मिलेश और ब्रजेन्द्र अवस्थी जैसे दक्षिणपंथियों को आपने 'धुरंधर वामपंथी लेखकों' में शुमार किया है जो नितान्त असुविधाजनक है। इसे आप सुभाष वशिष्ठ, प्रेम कुमार और मूलचन्द गौतम जैसेे इस इलाके में रहे लोगों से भी दरयाफ्त कर सकते हैं। मेरी चिंता यह है कि यह परिचय आपकी ओर से लिखा गया है जिसे एक सबूत के तौर पर देखा-चीन्हा जाएगा।
एक बात और--क्या 'पहल' जैसी प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका के लिए रचनाओं का इतना टोटा पड़ गया है कि उसमें अन्यत्र प्रकाशित रचनाओं को भी खपाया जाने लगे। मधुरेश का यही आलेख इसी शीर्षक से शब्दश: अमीरचन्द वैश्य के संपादन में बदायूं से प्रकाशित होने वाली 'कृति ओर' पत्रिका के अंक: 83-84, जनवरी-जून, 2017 में पहले ही छापा जा चुका है। मधुरेश प्राय: अपने एक आलेख को कई जगहों पर छपवा लेते रहे हैं। अभी ही उनका एक आलेख जो 'अक्षर पर्व' में प्रकाशित हुआ है वह 'दोआबा' में भी छापा गया है।
सादर।
सुधीर विद्यार्थी


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