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अप्रैल 2017

जाना एक महान कोमल कवि का

प्रांजल धर

कवि डेरेक वालकॉट के लिए श्रद्धांजलिस्वरूप

 

 

 

 




डेरेक एल्टन वालकॉट (1930-2017) की कविताओं से मेरा परिचय कवि पंकज सिंह ने कराया था। यह बताते हुए नहीं कि डेरेक वालकॉट को साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला है, बल्कि यह बताते हुए कि डेरेक ऐसे कवि हैं, जिन्हें भारत से बहुत प्यार रहा है। यहाँ तक कि अपने अनेक व्याख्यानों में डेरेक ने 'एशियाई और अफ्रीकी' समाजों और भाषाओं के प्रति अपने गहरे भावनात्मक प्रेम को व्यक्त किया है। एक जगह उन्होंने कहा है, ''सजे-धजे अभिनेतागण पहुँच रहे थे। मुझे लगा ये राजकुमार और देवता होंगे। कितनी दुर्भाग्यपूर्ण स्वीकारोक्ति! 'मुझे लगा ये देवता होंगे' यही विस्मय हमारे अफ्रीकी और एशियाई प्रवासियों का प्रतीक है। मैंने रामलीला के बारे में अक्सर सोचा था लेकिन कभी देखा नहीं था, और कभी भी इस थियेटर को नहीं देखा था, एक खुला मैदान जहाँ गाँवों के बच्चे योद्धा, राजकुमार और देवता बनकर आए हुए थे। मुझे इस सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं थी कि महाकाव्य (रामायण) की कथा क्या है, इसका नायक कौन है, वह किन शत्रुओं के खिलाफ लड़ता है, फिर भी, हाल ही में इंग्लैण्ड में एक थियेटर के लिए मैंने 'ओडिसी' का रूपान्तर किया था, यह मानते हुए कि दर्शकों को एशिया माइनर के एक दूसरे महाकाव्य के नायक ओडीसियस के बारे में जानकारी होगी, हालाँकि राम, काली, शिव, विष्णु के बारे में ट्रिनिडाड में, भारतीयों के सिवाय, किसी को भी मुझसे ज़्यादा जानकारी नहीं थी, यह वाक्य मैं टेढ़ा-मेढ़ा करके इसलिए बोल रहा हूँ क्योंकि यह कुछ उस तरह की टिप्पणी है जिसे आप ट्रिनिडाड में अभी भी सुन सकते हैं : 'भारतीयों के सिवाय'।''
डेरेक वालकॉट का जन्म एक छोटे से कैरीबियाई द्वीप सेण्ट लूसिया में हुआ था। वे एलिक्स और वारविक वालकॉट के पुत्र थे। उनके पिताजी का असामयिक देहान्त महज़ इकतीस वर्ष की उम्र में ही हो गया। डेरेक का पूरा बचपन पिताविहीन ही बीता और उनकी माँ एलिक्स ने उनका पालन-पोषण अकेले ही किया। डेरेक का परिवार अल्पसंख्यक मेथोडिस्ट समुदाय से था। इस समुदाय पर सेण्ट लूसिया की वर्चस्वशाली कैथोलिक संस्कृति का दबदबा हुआ करता था। इस वर्चस्वशाली संस्कृति की स्थापना सेण्ट लूसिया में फ्रांसीसी औपनिवेशिक शासन के दौरान हुई थी।
स्नातक की पढ़ाई के बाद डेरेक सन् 1953 में ट्रिनिडाड आ गए और यहाँ उन्होंने एक आलोचक शिक्षक और पत्रकार की भूमिका सँभालने के साथ-साथ ट्रिनिडाड थियेटर वर्कशॉप की स्थापना की। कैरीबियाई इलाकों और समाजों के इतिहास का उन्होंने औपनिवेशिक और उत्तर-औपनिवेशिक सन्दर्भ में अध्ययन किया। यह गहन अध्ययन 1962 में प्रकाशित उनके काव्य संग्रह 'इन ए ग्रीन नाइट : कविताएँ (1948-60)' में झलकता है। इस कृति को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया। सन् 1969 में आई उनकी कृति 'द गल्फ एण्ड अदर पोएम्स' शैलीगत रूप से विविधता भरी कविताओं के लिए बेहद उल्लेखनीय है। इसमें अलगाव और नुकसान की बारम्बार विषयगत तरीके से पड़ताल की गई है।
बीसवीं सदी के सत्तर के दशक में उनके प्रसिद्ध नाटक 'ड्रीम ऑन मंकी माउण्टेन' का प्रकाशन हुआ और इस कृति पर उन्हें 1971-72 में प्रतिष्ठित ओबी पुरस्कार मिला। 'इलियड' के पात्रों को मोहक और हल्की धुन में प्रतिबिम्बित करने वाली उनकी महाकाव्यात्मक कविता 'ओमेरोस' सन् 1990 में प्रकाशित हुई थी। इस कविता को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित आलोचकों द्वारा 'वालकॉट की प्रमुख उपलब्धि' माना गया। इस कृति को 'द वाशिंगटन पोस्ट' और 'द न्यूयॉर्क टाइम्स बुक रिव्यू' जैसे प्रकाशनों द्वारा बहुत सराहना मिली और इसे 1990 की 'सर्वोत्कृष्ट कृति' का दर्ज़ा मिला। यह कविता विस्लावा सिम्बोर्स्का की वह बात याद दिलाती है कि ''कविता में तो केवल कविता के लिए ही जगह होती है, किसी भी दूसरी चीज़ के लिए नहीं।''
सन् 1992 में डेरेक को साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। नोबेल पुरस्कार पाने वाले वे दूसरे कैरीबियाई व्यक्ति थे। कैरीबियाई लोग इस बात पर बहुत गर्व करते हैं और आज भी कहते हैं कि प्रति वर्ग किलोमीटर के हिसाब से नोबेल पुरस्कार हासिल करने में हमारा देश प्रथम है। नोबेल पुरस्कार समिति ने डेरेक के कार्य का वर्णन इन शब्दों में किया है, ''महान प्रबुद्धता का एक काव्यात्मक आविष्कार, एक ऐतिहासिक विज़न द्वारा सम्पोषित, बहुसांस्कृतिक प्रतिबद्धता का एक परिणाम...।'' बाद में सन् 2011 में डेरेक को बहुत प्रतिष्ठित टी. एस. इलियट पुरस्कार भी मिला। डेरेक ने रेखांकित किया है कि ब्रॉड्स्की और आयरिश कवि शीमुस हीनी और वे खुद मिलकर ऐसा समूह निर्मित करते थे, जो अमेरिकी अनुभवों के दायरे से बाहर का था। सुखद है कि भारत के एक समर्थ और बेहतरीन अंग्रेजी कवि सुदीप सेन ने अभी एक-दो साल पहले आए अपने ताज़ा संग्रह 'फ्रैक्टल्स' को डेरेक को ही समर्पित किया है।
डेरेक एक उत्साही, परिश्रमी और बहुत समृद्ध कवि हैं, जिन्हें अंग्रेजी से पागलपन की हद तक प्यार था। उन पर टी.एस. इलियट और एजरा पाउण्ड जैसे आधुनिकतावादी कवियों का गहरा प्रभाव है। उनकी पहली कविता एक अख़बार 'द वॉयस ऑफ़ सेण्ट लूसिया' में तब प्रकाशित हुई थी, जब उनकी अवस्था महज़ चौदह साल की थी। उन्नीस साल की अवस्था तक डेरेक ने अपने दो कविता संग्रह अपनी माँ से पैसे लेकर खुद प्रकाशित करवाए थे और उन्हें गलियों में बेचा था। उन क्षणों को याद करते हुए एक साक्षात्कार में वे कहते हैं, ''एक दिन जब मुझे लगा कि मैंने पर्याप्त कविताएँ एकत्र कर लीं हैं, तो मैं अपनी माँ के पास गया, वे ऊपर खिड़की के पास सिलाई कर रही थीं। मैंने कहा कि मुझे दो सौ डॉलर की ज़रूरत है। यह एक बहुत बड़ी धनराशि थी, मुझे पता नहीं कि आज उस धनराशि का मूल्य कितना होगा। तो माँ ने सिर्फ इतना कहा कि ठीक है! बहुत मर्मवेधी! ...मैंने गलियों में अपनी किताबें बेचीं और वापस पैसे कमा लिए।'' यह कहते हुए डेरेक के भीतर का कोमल और महान कवि अश्रुपूर्ण हो जाता है।
डेरेक के बचपन के एक दोस्त ने कहा है, ''अंग्रेज़ लोग डेरेक को इतना प्यार करते हैं, कि उनके जैसे नकचढ़े लोग एक ही साँस में डेरेक और शेक्सपियर की बात करते हैं...क्या आप कल्पना कर सकते हैं!'' डेरेक का सबसे प्यारा यह दोस्त कहता है कि छोटे-से सेण्ट लूसिया के दो मामूली बच्चे... और उनमें से एक बच्चे को नोबेल पुरस्कार मिला...मेरी खुशी की आप कल्पना नहीं कर सकते...मेरे पिता कविता हैं, मेरी माँ कविता है...मेरा परिवार कविता है। डेरेक ने अपने इस सबसे प्राचीन दोस्त पर बहुत बढिय़ा लिखा है। यह दोस्त कहता है, ''अगर एक मामूली लेखक ने मेरे बारे में लिखा होता, तो मैं मामूली होता; पर चूँकि एक महान आदमी ने मेरे बारे में लिखा है, मैं कविता बन गया हूँ।'' महान कवि की महान दोस्ती तो देखिए, दोस्त ने यह नहीं कहा कि मैं महान बन गया हूँ, बल्कि यह कहा कि मैं कविता बन गया हूँ। ऐसी ही संवेदनशीलता हमें डेरेक की अनेक कविताओं में स्पष्ट अनुभूत होती है।
भाषा और मातृभूमि के प्रति डेरेक का प्यार बहुत गहरा रहा है। इसी सन्दर्भ में लीलाधर मंडलोई की एक कविता याद आती है, ''अगर कविता में/ न आए मेरी मातृभूमि/ मैं कवि नहीं।'' कविता की जैसी भाषा होनी चाहिए, लगभग उस आदर्श स्थिति तक पहुँचे हुए कवि डेरेक वालकॉट को पढऩा बहुत सटीक भाषा के उपवन से गुज़रने जैसा है। कविता की भाषा बहुत सक्षम होनी चाहिए। इस सम्बन्ध में कवि पंकज सिंह ने ठीक ही लिखा है कि झूठ-मूठ के उजाले से कविता नहीं पैदा होती - ''भाषा में भरा छिपाव ही छिपाव/ कुटिल बाजीगरों संग निबाह की मजबूरी/ जितना झूठ-मूठ का उजाला।'' डेरेक के नोबेल स्वीकृति भाषण की इन पंक्तियों में अपनी भाषा और अपनी माटी से प्रेम को देखा जा सकता है - ''जो सम्मान आप मुझे दे रहे हैं, वह भले मेरे एक नाम की शक्ल में स्वीकार किया जाता है, लेकिन उसमें कैरीबियन की सभी टूटी-फूटी भाषाएँ समाहित हैं। इस पल वे सारी भाषाएँ एकजुट हो जाती हैं, एक पल जो उनकी कोशिशों को पहचानता है और जिसे मैं उनकी तरफ से गर्व और विनम्रता के साथ स्वीकार करता हूँ। एण्टीलियन लेखकों के निरन्तर संघर्ष का गर्व, अपनी अस्थिर छवि के ज़रिये उनका प्रतिनिधित्व करने की विनम्रता।''
'ए फार क्राइ फ्रॉम अफ्रीका' नामक कविता में वे लिखते हैं, ''जानवरों (क्रूर व्यक्तियों) की जानवरों पर हिंसा को/ प्राकृतिक कानून के रूप में पढ़ा जाता है.../ हमारी करुणा का ऐसा सर्वनाश, जैसा स्पेन के साथ हुआ/ मामूली गुरिल्ला सुपरमैन के खिलाफ लड़े/ मैं दोनों के रक्तों के ज़हर से ग्रस्त हूँ/ शिराओं में विभाजित मैं मुड़ूँ किस ओर?/ मैंने बहुत कोसा था/ ब्रितानी शासन के उस शराबी अधिकारी को/ कैसे चुनूँ किसी एक को/ इस अफ्रीका और उस अंग्रेजी के बीच, जो मुझे बहुत प्यारी है।''
कभी-कभी लगता है कि नियति को कुछ और ही मंजूर होता है। डेरेक को चित्रकार बनने के लिए प्रशिक्षित किया गया था, लेकिन वे कवि हुए, महान कोमल कवि! उन्होंने स्वीकार किया है कि कविता और लेखन की तरफ से उनके लिए एक बुलावा आता था कहीं भीतर से। अपनी कविता 'मिडसमर' (1984) में उन्होंने लिखा है, ''टापू पर मेरे बचपन के चालीस बरस चले गए, मुझे लगा कि/ कविता के उपहार ने मुझे चुनिन्दा लोगों में से एक बनाया/ कि समस्त अनुभव मनन करने की मेरी ज्वाला को दीप्त कर रहा है।''
यद्यपि एक नाटककार के रूप में भी डेरेक ने बहुत काम किया है, कई नाटक लिखे हैं और दुनिया की कई जानी-मानी अभिनेत्रियों को अपने थियेटर ग्रुप में उन्होंने शुरू-शुरू में मौका भी दिया था। फिर भी, उनकी सार्वजनिक प्रतिष्ठा एक कवि के रूप में है। नस्लीय, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक चेतना का अन्वेषण और परीक्षण करने वाले एक महान और कोमल कवि के रूप में वे अद्वित्तीय हैं, हालाँकि पश्चिमी सिनेमा की एक बहुत बड़ी अभिनेत्री के शब्दों में कहें, तो इतने कोमल होते हुए भी वे अपने काम को लेकर बहुत सख्त हुआ करते थे, समय के बेहद पाबन्द, अत्यधिक अनुशासनप्रिय! कुछ आलोचकों ने आरोप लगाया है कि अंगरेजी भाषा में डेरेक की अभिव्यक्ति इतनी अधिक परिष्कृत और तकनीकी रूप से जटिल है कि वह स्वयं अपने अर्थ को अस्पष्ट, धुँधला और आच्छादित कर सकती है।
डेरेक खुद को पार-सांस्कृतिक कलाकार और टिप्पणीकार मानते थे और उनकी इस स्व-परिभाषित स्थिति ने भी तथाकथित रूप से विभाजित दोनों प्रकार की संस्कृतियों से आलोचनाओं को आमन्त्रित किया। एक तरफ अफ्रीका-केन्द्रित (एफ्ऱोसेण्ट्रिक) कुछ आलोचकों ने उन्हें ज़रूरत से ज़्यादा पश्चिमी बताया तो दूसरी तरफ यूरोप-केन्द्रित (यूरोसेण्ट्रिक) कुछ आलोचकों ने उन पर ज़रूरत से अधिक एफ्ऱो-कैरीबियाई होने का आरोप लगाया। हालाँकि जब डेरेक की अन्तरराष्ट्रीय साहित्यिक हैसियत बढ़ी, तो इस तरीके की आलोचनाएँ अपने-आप नरम पडऩे लगीं। समय के साथ डेरेक ने जो साहित्यिक प्रतिष्ठा अर्जित की, वह कई तरीके से उन्हें बहुत चुनिन्दा समकालीन महान लेखकों के बीच में खड़ा कर देती है।
कैरीबियाई और पश्चिमी सभ्यता के विरोधाभास पर फोकस करना डेरेक की कविता का केन्द्रीय थीम रहा। इस थीम को उन्होंने उत्तर-औपनिवेशिक नस्लीय सम्बन्धों और पार-सांस्कृतिक अस्मितामूलक मुद्दों के प्रिज़्म से देखा है। डेरेक का निजी जीवन बहुत अस्थिर रहा। चौबीस साल की उम्र में डेरेक वालकॉट का विवाह फे मोस्टन से हुआ, जिनसे उन्हें एक पुत्र भी पैदा हुआ। लेकिन यह विवाह महज़ दो साल ही चल सका और उनका अपनी पत्नी से तलाक हो गया। उनका दूसरा विवाह मारग्रेट मैलार्ड से हुआ, जिससे उनकी दो पुत्रियाँ- एलिजाबेथ और एना - पैदा हुईं। सत्तर के दशक में इस विवाह का समापन भी तलाक से ही हुआ। डेरेक का तीसरा विवाह नोर्लीन मेटीवियर से हुआ, परन्तु यह भी चल नहीं पाया।
डेरेक वालकॉट दुनिया में अनेक देशों के भ्रमण के लिए विख्यात रहे, उन्हें घूमना बहुत पसन्द था। दुनिया भर के सभी कवियों की प्रेरणा बन चुके डेरेक ने कहा है कि जगह-जगह भ्रमण के कारण मेरे बहुत सारे दोस्त बने हैं, मुझमें बदलाव आए हैं, परन्तु कैरीबियन (यानी अपनी मातृभूमि) के मामले में मैं बदला नहीं हूँ। हालाँकि वे बहुत भ्रमणशील थे, परन्तु उनके बेहद करीबी लोग उनकी भटकती और भ्रमणशील आँखों का जि़क्र करते हैं, जो चीज़ों को बारीकी से स्कैन करने की क्षमता रखने वाली आँखें थीं, काव्यात्मक आँखें! कविता के एक बड़े आलोचक विलियम लोगन ने डेरेक की कविताओं की आलोचना 'न्यूयॉर्क टाइम्स बुक रिव्यू' में करते हुए उनकी कृति 'द सी ग्रेप्स' की प्रशंसा की थी, किन्तु मोटेतौर पर उन्होंने डेरेक की कविताओं के बारे में नकारात्मक टिप्पणी ही की थी। उन्होंने 'ओमेरस' को एक 'अनाड़ी (क्लम्सी)' और 'एनदर लाइफ' को 'कपटी (प्रिटेंशस)' रचना बताया था। यह दुखद है कि 17 मार्च 2017 को सत्तासी वर्ष की अवस्था में वे भौतिक रूप से इस धरती को छोड़ गए। अपनी अन्तिम साँसें उन्होंने सेण्ट लूसिया में ही लीं।


संपर्क- मो. 09990665881


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