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नवम्बर 2016

अमेज़न! अमेज़न!!

राजेश जोशी

यात्रा वृत्तांत


पेशे से पत्रकार और उन्मुक्त सैलानी राजेश जोशी काफी समय जनसत्ता के संपादकीय में रहे। लातीनी अमेरिका की भरपूर सैर की। वे एक वास्तविक पहाड़ी है, विचरण करने वाला। कभी हम उनकी क्यूबा यात्रा भी छापेंगे। इन दिनों बीबीसी हिन्दी में सेवारत है। अंग्रेजी आउटलुक में भी रहे और काफी समय लंदन में।




हवा की तेज़ सनसनाहट अब भी कानों में गूँजती महसूस होती है। इस सनसनाहट में बच्चों की किलकारियाँ घुलमिल जाती हैं। स्मृति के किन्हीं विस्मृत कोनों से आती हुई ये ध्वनि तरंगें कभी तेज़ तो कभी मद्धम हो जाती है, जैसे साँझ ढले पहाड़ी गाँव के किसी छोर पर धीमी आवाज़ में कोई रेडियो बज रहा हो।
ये ध्वनियाँ, आकाश में घुमड़ते बादलों का गहरा सलेटी रंग और उसके पीछे फैला उजास, अचानक टिन की छत पर आकर टकराने वाली मोटी मोटी बूँदों की दनदनाहट, मीलों दूर से अमेज़न नदी के विस्तार को पार कर आने वाली ऊँची ऊँची लहरें, फिर अचानक दबे पाँव पसर जाने वाली असीम शांति जिसमें सत्रह हज़ार क़िस्म की चिडिय़ों का चहचहाना ही सुनाई पड़े। बिना बताए शरमाती हुई सी निकल आई धूप, फिर उसका उग्र होता मिज़ाज और उस गर्म मिज़ाज को समझाती बुझाती अमेज़न के जंगलों से निकल कर आने वाली सरसराती, अच्छी हवा और इन जंगलों में आबाद अच्छे लोग।
अमेज़न के जंगलों से लौटे पूरे आठ बरस बीत चुके हैं, लेकिन ये स्मृति बिंब धूमिल नहीं पड़े हैं। डर है कि अमेज़न के ये बिंब कुछ सालों बाद कहीं सिर्फ़ स्मृति में ही बचे न रह जाएँ।
इन बरसों में अमेज़न के बारे में लगभग रोज़ाना बुरी ख़बरें छपती रही हैं। लंदन के गार्डियन अख़बार ने 2008 में ख़बर छापी कि सिर्फ़ अगस्त के महीने में अमेज़न के 756 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में जंगलों का सफ़ाया कर दिया गया। यानी सिर्फ़ एक महीनें में ही नैनीताल के जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क से लगभग डेढ़ गुना ज्यादा जंगल आरा मशीनों की भेंट चढ़ा दिया गया है। जंगल काटे जाने की ये रफ़्तार अगस्त 2007 के मुकाबले 228 प्रतिशत  ज़्यादा है। विडंबना ये है कि अमेज़न के बारे में जब जब बातें होती है तब तब लगभग सभी के दिमाग़ में वहाँ काटे जा रहे जंगलों और बरबाद हो रहे वन्य जीवन की चिंता होती है। वहां अपना अस्तित्व बचाने के लिए लड़ रहा आदमी कौतूहल का विषय तो होता है, चिंता का शायद नहीं। लेकिन दुनिया के बड़े और चमकदार बाज़ार के शिकार सिर्फ़ जंगल और जानवर ही नहीं हैं। इन जंगलों में सदियों से रहने वाले मूल निवासी धीरे-धीरे करके बाज़ार की बेदी पर काटे जा रहे हैं। (कृपया इस मुहारवे को अनावश्यक अतिरेक न समझा जाए। क्रूरता और अन्याय की पराकाष्ठा को प्रकट कर पाने में अक्सर डरावने मुहावरे भी नाकाम रहते हैं)। अमेज़न के आदिवासी भी ठीक उसी तरह अपने जंगल, अपनी नदियाँ और अपनी जीवन शैली को बचाने के लिए लगभग आख़िरी प्रयास कर रहे हैं, जैसे नर्मदा घाटी, झारखंड, छत्तीसगढ़ या नियामगिरि के मूल निवासी।
अमेज़न की सहायक शिंगू नदी पर ब्राज़ील की सरकार बेलो मोन्टे बांध बनाने जा रही है जिसे उस नदी पर निर्भर जुरूना आदिवासी अपने अस्तित्व के लिए ख़तरा मानते हैं। मात्तो ग्रोसो राज्य में आदिम जनजाति एनावेने नावे प्रगति और विकास के हमले से ख़ुद को बचाने के लिए आंदोलनरत है। पारा राज्य में मूल निवासियों को उनकी ज़मीन और उनके जंगलों से खदेडऩे के लिए बड़ी कंपनियाँ, बड़े एक्सपोर्टर, उनके विद्वान अर्थशास्त्री और उनके बंदूकधारी पूरी निर्ममता और एकजुटता के साथ काम कर रहे हैं। पिछले एक दशक में यहाँ जनजाति अधिकारों और उनकी संपदा के लिये लडऩे वाले कई लोगों की हत्याएँ की जा चुकी हैं। क्रिस्टोफ़र कोलंबस के नई दुनिया में  क़दम रखने के साथ लातीनी अमरीका की आदिम जनजातियों और इंडियन समुदाय के लोगों के व्यापक विनाश की शुरूआत हुई थी। ये विनाश आज पाँच सौ साल बाद भी जारी है। तरी क़े ज़रूर बदल गए हैं।
सीमाओं में बाँट दी गई इस दुनिया का सौभाग्य तो कुछ राष्ट्रों ने अपनी हदों में समेट लिया है लेकिन इसके दुर्भाग्य को सीमाओं में नहीं बाँधा जा सकता है। मौसम की मार, तूफ़ान, सूखा और बाढ़ किसी एक देश की सीमा में बँधे नहीं रह सकते। शायद इस वजह से भी अमेज़न हमारी चिंता का विषय भी होना चाहिए।
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पाँच मई दो हज़ार आठ की शाम को साँओ पालो हवाई अड्डे से तीन घंटे की उड़ान के बाद मनाऊस पहुँचा। अमेज़न के जंगलों के विस्तार का अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि इस दौरान  ज़्यादातर समय जहाज़ सिर्फ़ जंगलों  के ऊपर ही उड़ता है। मनाऊस के बारे में पहले से ही बताया गया था कि अमेज़ोनिया प्रांत का ये शहर ठीक जंगल के बीच बसा हुआ है और यहाँ हर तरह की आधुनिक सुख सुविधा मौजूद हैं - शॉपिंग मॉल्स से लेकर कारों के शो रूम और नाइट क्लब वगैरह। लेकिन फिर भी जंगल के बीच बस्ती की मेरी कल्पना में मनाऊस एक ऊँघता सा  क़स्बा था जहाँ  ज़्यादा से  ज़्यादा एक मुख्य सड़क, कुछ छोटी दुकानें और जंगल के किनारे दूर दूर बने कुछ छोटे छोटे घर होंगे। रात गहराई हवाई अड्डे से होटल तक पहुंचने में ये भ्रम थोड़ा बहुत बना रहा। दूसरे दिन तड़के उठकर दस मंज़िले होटल की छत पर गया तो भौंचक रह गया। साफ़ सुधरी चौड़ी सड़कों पर कारों के काफ़िले, बीस-बीस मंज़िला इमारतें, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दफ़्तर - यानी मेरे चारों ओर एक अत्याधुनिक शहर था मौजूद जिसे मैं अपनी कल्पना में एक ऊँघते  क़स्बे की तरह देख रहा था। कोई डेढ़ सौ साल पहले मनाऊस वा क़ई एक ऊँघता हुआ  क़स्बा रहा होगा जब पुर्तगाली औपनिवेशक शासकों ने यहाँ के जंगलों से रबड़ का दोहन शुरू किया। यहां से रबड़ को जहाज़ों के ज़रिए विदेशों में लेजाकर बेचा जाता था। कुछ ही वर्षों में मनाऊस अमेज़ोनिया प्रांत के सबसे बड़े व्यापारिक केंद्र के तौर पर उभरा, तय कार्यक्रम के मुताबिक बीबीसी की टीम को रियो नेग्रो यानी काली नदी के तट पर पहुंचना है। मनाऊस शहर के पहलू को छूती हुई बहने वाली रियो नेग्रो का पानी वास्तव में काला है। कुछ मील बाद जब रियो नेग्रो अमेज़न से मिलती है दोनों नदियों की धाराएं बिना घुलेमिले बहुत दूर तक साथ साथ बहने वाली काली सफ़ेद सामानांतर पट्टियों जैसी दिखती हैं। रियो नेग्रो के तट पर खड़ी है सात छोटे छोटे चेम्बरों वाली हमारी मोटरबोट दोम नोस्त्रे, जो अपने आप में एक छोटा मोटा संयुक्त राष्ट्र है। वियतनाम और इंडोनेशिया से लेकर चीन, यूक्रेन, पर्तगाल, पाकिस्तान और भारत सहित कम से कम बारह देशों के लोग अगले कई दिन तक इस नाव में साथ साथ सफ़र करने वाले हैं। खाने, पीने, सोने और यहाँ तक कि रेडियो प्रसारण और इंटरनेट के लिए ख़बरें भेजने का तकनीकी इंतज़ाम भी मोटरबोट में ही मौजूद है।
दोम नोस्त्रे के कप्तान फ़र्नादो साबीनो अपने सफ़ेद बालों की तरफ़ इशारा करते हुए कहते हैं कि मैंने बचपन से इस नदी को देखा है और अब मेरे बाल सफ़ेद हो चुके हैं। यात्रा शुरू करने से पहले फ़र्नान्दो एक प्रार्थना गीत गाते हैं जिसमें ईश्वर से नाव को बचाए रखने की दुआ की जाती है:

सेंग्योर!
स्टो ज़ियाँची ज़िमाइस उमा वियाज़ी।
एओ पैसो असुआ प्रोते साँउ,
पारा केनादा अकाउंतेसा, से ज़ो
ओ सेंग्योर।
अज़ी रिज़ीर ओबार्को कोमीगो। आमोन।

हे ईश्वर
मैं एक नई यात्रा शुरू कर रहा हूँ।
मैं प्रार्थना करता हूँ कि हम सुरक्षित हों,
हे ईश्वर, मेरे साथ तू भी ये नाव चला। आमीन!
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मोटरबोट का इंजन अचानक बहुत तेज़ी से भकभकाता है और एक हलके झटके के साथ हम तट छोड़ देते हैं। रियो नेग्रो में पानी का पारावार नहीं है। गहरे काले-कत्थई रंग की लहरों को चीरते हुए नाव बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रही है। उसकी रफ़्तार का अंदाज़ा तभी लगता है जब पीछे छूटती हुई मनाऊस की इमारतों पर नज़र पड़ती है। आगे दूर दूर तक पानी का विस्तारऔर दूर क्षितिज में जंगलों के झुरमुट का बस आभास मात्र।
अगर नाव डूबने लगे तो क्या करना होगा? तैरना तो थोड़ा बहुत आता है लेकिन इतना नहीं कि सागर जैसी नदी पार करके किनारे लग सकें। सुरक्षा की ज़िम्मेदारी कॉलिन परेरा की है। कॉलिन ने अपनी बात को बिना नाटकीय अंदाज़ में एक सपाट बयान की तरह पेश किया जिससे लोग आश्वस्त होने की बजाए थोड़ा और सजग और संजीदा हो गए हैं। सबको बताया गया कि सेफ़्टी जैकेट्स कहां हैं और उनका इस्तेमाल कैसे किया जाए। अगर गए रात नींद में आसपास पानी पानी महसूस हो तो कैसे लाइफ़ जैकेट पहनी जाए, आग लग जाए तो सबसे पहले क्या करें आदि। फिर कमान सँभालते हैं पत्रकार एडसौं पोर्तो। वो ख़ुद ब्राज़ील के रहने वाले हैं और पहले भी अमेज़न की यात्रा कर चुके हैं।
एडसौं सबसे पहले ये ग़लतफ़हमी दूर करने की कोशिश करते हैं कि अमेज़न में सिर्फ़ जंगल हैं और कुछ नहीं। वो बताते हैं कि इन जंगलों के बीच में ज्ञात अज्ञात जातियों-जनजातियों के कुल मिलाकर ढाई से तीन करोड़ लोग आबाद हैं। बीच बीच में हमें छोटी छोटी बस्तियाँ मिलेंगी, तैरते बाज़ार मिलेंगे और उन बाज़ारों में ज़िंदा जंगली जानवर बेचने वाले भी होंगे। हमें हिदायत दी गई है कि घडिय़ाल के बच्चे, कछुए, सुंदर चिडिय़ाएं बेचने वालों से कुछ न ख़रीदा जाए क्योंकि ऐसे ही छोटे छोटे कामों से भी अमेज़न में जीवन की विविधता खत्म हो रही है। हालाँकि अमेज़न के गले में दाँत गड़ाने के लिए असली जिम्मेदार हैं अरबों डॉलरों वाली राष्ट्रीय और बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, सोयाबीन के दानवाकार फ़ार्म, माँस उत्पादन करने के लिए जंगल काटकर हज़ारों हेक्टेअरों में गाय बैल पालने वाले गोमांस निर्यातक और आरा मशीनों के मालिक। ये सब बिना रुके, दिन रात अमेज़न को खोखला कर रहे हैं।
बहुत साल नहीं बीते हैं जब अमेज़न के जंगल पूरे पचास लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए थे। ये आँकड़ा सन् 2001 का है। यानी पूरे भारत के क्षेत्रफल से डेढ़ गुना  ज़्यादा इला क़े में यहाँ जंगल मौजूद थे। सन् 2008 आते आते इसका 13 प्रतिशत जंगल इंसान निगल चुका है। जितने क्षेत्रफल में फ्रांस और जर्मनी फैले हैं उतने जंगल इस दौर में साफ़ कर दिए गए हैं। जब जब इस दुनिया के मौसम को लेकर चिंतित लोगों की ओर से दबाव पड़ता है, ब्राज़ील की सरकार तमाम तरह की योजनाओं-परियोजनाओं का ऐलान कर देती है। सरकार लगातार ये दावा भी कर रही है कि अमेज़न के वर्षावनों के कटने की रफ्तार कम हुई है। फिर भी 2007 के शुरुआती सिर्फ़ पाँच महीनों में ही पाँच हज़ार वर्ग किलोमीटर जंगलों का और सफ़ाया कर दिया गया है। और इसी साल अगस्त का आँकड़ा तो आप ऊपर पढ़ ही चुके हैं कि इन तीस दिनों में साढ़े सात सौ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के वर्षावनों को काटकर समतल किया जा चुका हैं।
किसके पेट में जा रही है  क़ुदरत की ये नेमत? और क्यों?
वैज्ञानिक और पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वालों ने इसका गहरा अध्ययन किया है। वो बताते हैं माँसाहार की बढ़ती आदत इसका एक बड़ा कारण है। बाज़ार में अगर रोज़ाना टनों माँस सप्लाई न हो तो हाहाकार मच जाए। बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अमेज़न के ख़ज़ाने का स्वाद चख लिया है। उनकी आरा मशीनें जंगलों में घुसकर टीबी के कीटाणुओं की तरह बहुत तेज़ी से धरती के इन फेफड़ों को कुतर रही हैं। कई जंगलों पर बेतहाशा खनन चल रहा है ताकि बड़े-बड़े शहरों और  क़स्बों में रहने वालों की ज़रुरतें पूरी की जा सकें। उनकी माँग को पूरा करने के लिए माँस कहाँ से आएगा? शहरों में जानवर नहीं पाले जा सकते। इसलिए बरसों से खड़े निरीह वर्षा वनों को काटा जाता है ताकि ख़ाली जमीन पर पशुफ़ार्म बनाकर जानवरों को छोड़ा जाए। सोयाबीन की खेती का बढ़ता चलन और बाज़ार में उसकी बढ़ती  क़ीमत इसका दूसरा कारण है। ये सोयाबीन गाय बैलों और सुअरों की खिलाया जाता है और फिर उन्हें काटकर माँस निर्यात किया जाता है। बाज़ार की बहती गंगा में हाथ धोकर मोटा मुनाफ़ा कमाने वाले सोया-राजा अमेज़न के जंगलों पर कुल्हाड़ी चला रहे हैं और सोया उगाने के लिए खेत बना रहे हैं। हज़ारों हज़ार हेक्टेयर जंगल लगातार कट रहे हैं। हर क्षण। इस वक़्त भी जब आप पहल के इस अंक को पढ़ रहे हैं।
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आकाश लगभग साफ़ है। चटख धूप निकली हुई है और दोम नेस्त्रो पर लगाया गया ब्राज़ील का झंडा अमेज़न की हवाओं में फरफरा रहा है। भारत में अमेज़न के विस्तार की तुलना सिर्फ ब्रह्मपुत्र नदी से हो सकता है, वो भी चौमास की बाढ़ से लबालब भरी ब्रह्मपुत्र जो कुछ जगहों पर सागर सा रूप धर लेती है। अमेज़न में सफ़र करने पर ये महसूस नहीं होता कि आप किसी नदी में जा रहे हैं। मीलों चौड़ी नदी में कई बार लगता है कि आपकी नाव जैसे चारों ओर से जंगलों से घिरे किसी सागर में तिर रही हो।
पूरे सात घंटे तक सफ़र करने के बाद कप्तान फ़र्नादो बताते हैं हम एक फ़्लोटिंग मार्केट (तैरते बाज़ार) पर रुकने जा रहे हैं। कुछ ही समय बाद मोटरबोट की रफ़्तार पहले कम हुई और फिर वो बीच धारे से किनारा काटने लगी। दूर नदी किनारे बस्ती साफ़ दिख रही है। हमें बताया गया कि ये स्थानीय लोगों के लिए सुपरमार्केट है। लोगों ने इस जगह का नाम रख दिया है हार्ट ऑफ जीसस - यीशु का दिल। यहां लकड़ी की छोटी छोटी नावों में पीछे एक सस्ती सी मोटर लगाकर उन्हें यातायात के सबसे सस्ते और सुलभ साधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। शहरों में जैसे लोग बड़ी दुकानों के सामने अपनी कारें या स्कूटर आदि पार्क कर देते हैं, उसी तरह ख़रीदारी करने पहुँचे लोग अपनी अपनी नावें किनारे बांधकर यहां के एक तैरते स्टोर से ज़रूरत का सौदा सुलफ़ ख़रीदते हैं और नाव में रखकर मोटर की तेज़ रफ़्तार से अमेज़न की सहत पर फिसलते से अपने घरों को लौट जाते हैं। अमेज़न यहाँ का हाईवे है और उसके साथ साथ बहने वाली सैकड़ों छोटी छोटी धाराएँ जैसे गली-कूचे।
पूरे अमेज़न के वनों में कई जगहों पर नदी के किनारे किनारे लोगों ने घर बसा लिए हैं। घने जंगलों के अंदर रहने वाली जनजातियों का अपना अलग पूरी तरह आत्मनिर्भर समाज है। कई ऐसी जनजातियाँ इन जंगलों में रहती हैं जिनका आज तक बाहरी दुनिया से कोई संपर्क नहीं हुआ है। लेकिन जब कानूनी-गैर क़ानूनी तरीके से खनन के लिए कंपनियाँ जंगलों में भीतर तक रास्ते बनाती हैं, मशीनें ले जाती हैं तो उनके कर्मचारी अपने साथ कुछ ऐसे कीटाणु भी ले जाते हैं जो अमेज़न की इन जनजातियों के लिए घातक साबित हो सकते हैं।
फ़िलहाल शाम ढलने को है और गुरु गंभीर अमेज़न शांत भाव से बह रही है। जैसे कि वो युगाब्दों में बहती आ रही है। पीने वालों ने अपने हाथों में कापिरीन्या (ब्राज़ील की सफ़ेद रम, नीबू और चीनी मिलाकर बनाया गया पेय) के जाम या बीयर के टिन ले लिए हैं। सब लोग काम ख़त्म करके अपनी अपनी तरह से अमेज़न के लगातार बदलते और गहराते रंगों को देख रहे हैं।
रात से ही आकाश मेघाच्छादित था। अमेज़न की मीलों फैली पनीली सतह पर लगातार मेह बरसता रहा। दूर दूर तक बारिश के रेले पर रेले उड़ते रहे, इस धरती के गहरे हरे रंग को सलेटी मटियाली चादर में लपेटते से। इस सलेटी चादर के पार दूर जंगलों में भाप उठती सी दिखाई देती है। नाव का इंजन तेज़ आवाज़ करते हुए भकभका कर ख़ामोश हो गया है। इंज़न की आवाज़ सुनते हुए सोने की आदत पड़ चुकी है इसलिए उसके शोर से नहीं बल्कि इंजन बंद होने पर अचानक पसरी ख़ामोशी से नींद खुल गई। हमें अमेज़न के आरक्षित इला क़ों में जाना है जहाँ सरकार ने जंगलों के बीच में लोगों को बसाया है। इन जंगलों की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी उन्हीं लोगों पर होती है। जंगल न काटने के एवज में सरकार यहां बसे परिवारों को कुछ पैसा भी देती है। ये आरक्षित इला क़े अमेज़न की मुख्य धारा से दूर अंदर हैं जहाँ छोटी नावों के ज़रिए ही पहुँचा जा सकता है। इसलिए हमें अपनी बड़ी मोटरबोट अमेज़न में ही छोडऩी होगी।
जिस जगह हम पहुंचे हैं वहां का नाम उवा टुमा है। ये आदिवासी इंडियन भाषा का शब्द है। सरकार ने 2004 से इस इला क़े में वनरक्षण परियोजना शुरू की। इस परियोजना को ब्राज़ीली भाषा में बोल्सा फ़्लोरेस्ता कहते हैं। इससे जुड़े सुपरवाइज़र रुडनी संताना हमारी नाव में आ चुके हैं ताकि सरकार की योजना के बारे में कुछ जानकारी दे सकें। वो बताते हैं कि इस इला क़े में बीस अलग अलग समुदायों के 280 परिवार आबाद किए गए हैं। लेकिन ये एक जगह नहीं बल्कि अमेजन नदी के दोनों किनारों पर एक काफ़ी विस्तृत इलाके में बसे हुए हैं। लाइफ जैकेट बाँधकर सभी लोग दो छोटी छोटी नावों पर सवार होते हैं और ये नावें नदी की मुख्यधारा छोड़कर छोटी धाराओं की ओर मुड़ती हैं। हमारे दोनों तरफ़ कुछ झाडिय़ां सी हैं। पूछने पर पता चलता है कि ये झाडिय़ाँ नहीं बल्कि पानी में डूबे हुए ऊँचे पूरे पेड़ हैं। हमारे दोनों ओर उनकी फुनगिया दिख रही हैं। पानी की गहराई जानकर रूह काँप उठती है हालाँकि लाइफ़ जैकेट देखकर कुछ राहत मिलती है।
पंद्रह बीस मिनट के बाद नदी किनारे जंगल के बीच सिर्फ़ एक घर नज़र आता है। बियाबान में ठहरा हुआ सा अकेला घर। आसपास कहीं बस्ती का दूर दूर तक कोई नाम निशान नहीं। यही हमारी मंज़िल है। नाव किनारे लगाकर लकड़ी और छप्पर के बने इस घर तक पहुँचने के लिए हम ऊपर चढ़ते हैं। घर में पति पत्नी और उनके चार बच्चे रहते हैं। शहरों में रहने के आदी पत्रकारों के लिए अजूबा है कि आख़िर कोई इस वियाबान में अपनी इच्छा से क्यों रहना चाहेगा? वो पूछते हैं - डर नहीं लगता? बच्चे जंगल में खो तो नहीं जाते? नीचे नदी है, बच्चों के डूबने का डर नहीं होता? इतनी गर्मी और उमस में यहाँ मच्छर नहीं काटते? क्या आपने कभी शहर में बसने के बारे में सोचा ही नहीं? जंगली जानवरों से डर नहीं लगता?
इन सभी सवालों को घर के मालिक ओज़ीमार ब्रूनो वियेरा शांति से सुनते हैं और फिर जवाब देते हैं, ''जंगल में नहीं शहरों में रहने वाले आदमियों से डर लगता है। वो  ज़्यादा ख़तरनाक होते हैं। बच्चों को मालूम है कि जंगल में कहाँ तक जाना सुरक्षित है। सभी बच्चों को अच्छी तरह तैरना आता है इसलिए नदी से भी कोई डर नहीं। सरकार ने जंगल उपज का इस्तेमाल करने की अनुमति दी है और हम जहाँ तक चाहें वहाँ तक जंगल में जा सकते हैं।''
पर्यावरण की चिंता ब्रूनो के लिए कुछ ख़ास मायने नहीं रखती। वो कहते हैं कि मैं एक लकड़हारे के परिवार में पैदा हुआ और बचपन से मैंने लकड़ी काटना ही सीखा है। पर अब सरकार कहती है कि जंगल मत काटो।  क़ानून बना दिए हैं। उन्हें इस बात का बहुत पता नहीं है कि ऐसे  क़ानून क्यों बनाए गए हैं लेकिन अब वो इन  क़ानूनों का पालन करते हैं क्योंकि उन्हें और उनके परिवार को इसी जगह पर रहना पसंद है।
जंगल बचाने के लिए किया जा रहा ये प्रयोग क्या सफल होगा? जहाँ बड़े बड़े जंगल माफ़िया भारी आरा मशीनों से जंगल के अंदर तबाही मचाते हों, जहाँ जंगल के अंदर पेड़ काटकर उनके तख़्ते चीरकर गोदाम भरे जाते हों, जहाँ सरकारी छापा पडऩे पर असली लकड़ी व्यापारी कभी हाथ न आता हो बल्कि छोटा मज़दूर सब काम करता हुआ पकड़ा जाए, वहां ऐसे प्रयोग कितने कारगर हो सकते हैं? ये सवाल बहुत सारे लोग उठाते हैं। इस प्रयोग को निरर्थक बताने वाले भी कई हैं।
दोपहर ढलने से पहले हमें ऐसी ही एक और बस्ती सेंटा लूसिया पहुंचना हैं। अभी तो आसमान साफ़ है, धूप है और उमस है मगर पता नहीं अमेज़न के मौसम का मिज़ाज कब बदल जाए। हमारी नावें एक बार फिर से महानद की ओर लौट रही हैं। वियतनामी सर्विस के पिंग कैमरे की तस्वीरें अपने लैपटॉप पर डाउनलोड कर रहे हैं और स्पानी सर्विस की विलेरिया अपने वीडियो फ़ुटेज को लैपटॉप पर एडिट कर रही हैं। सेंटा लूसिया पहुँचते पहुँचते धूप की तुर्शी थोड़ा और बढ़ गई है। मोटरबोट किनारे लगा दी गई है और हम सभी लोग नदी किनारे बनाए गए दस-बारह घरों की इस बस्ती में दाख़िल होते हैं।
एक बड़े से शेड के नीचे दो बड़ी बड़ी भट्टियों पर कड़ाह चढ़े हुए हैं जिनमें कई आदमी और औरतें मिलकर बेसन की तरह का कोई पिसावन भून रहे हैं। नये मनयोका कहा जाता है और ये अमेज़न में मिलने वाली शकरकंदी जैसी एक जड़ को पीसकर बनाया जाता है। आदमी थक जाते हैं और औरतें और लड़कियाँ बड़ी बड़ी लकडिय़ाँ थाम लेती हैं और मनयोका को उलटने पलटने लगती हैं। तभी एक लड़का बहुत ही सुर में एक उदास गीत गाने लगता है। मुझे बाद में इसका अर्थ बताया गया:

आज मैं अपनी नाव
समुद्र में ले जा रहा हूँ
पतवार चलाते हुए....
मैं हरे क्षितिज में
सूरज की रोशनी को देखना चाहता हूँ।
मैं एक टापू पर नाव रोकूँगा और चट्टानों से कूदूँगा...
वहाँ जहाँ मेरा दूसरा मन रहता है।

देखते ही देखते अमेज़न के आसमान पर फिर बादल घिरने लगे हैं। गहरे सलेटी रंग के उमड़ते घुमड़ते बादल, जिनके पीछे से आसमान रहस्यमय ढंग से आलोकित हो रहता है। ठीक वैसे ही जैसे आषाढ़ की पहली फुहार पडऩे से पहले भारत का आकाश आलोडि़त और बेचैन होने लगता है और रह रहकर घनगर्जना सुनाई पडऩे लगती है। पहले कुछ हिचक सी दिखाते हुए और फिर अचानक एक तीखी कड़क के साथ बादलों से पीछा छुड़ाकर बारिश की मोटी मोटी बूँदें प्यासी धरती की ओर दौड़ पड़ती हैं। बारिश की बूँदें पडऩी शुरू ही हुई हैं कि लोग - छोटे बच्चे, नौजवान और यहाँ तक कि पकी उम्र के लोग भी - चटख रंगों की टी-शर्ट, निक्कर पहने फ़ुटबॉल के मैदान में पहुँच गए हैं। ऐसा लगता है कि ब्राज़ील के लोग ऑक्सीजन के बिना रह सकते हैं लेकिन फुटबॉल के बिना नहीं। अमेज़न के घने जंगलों के बीच नदी किनारे बसी सैंटा लूसिया नाम की इस छोटी सी बस्ती में पहुँचकर मुझे झारखंड के गाँवों की याद क्यों आई थी?
राँची से कुछ ही किलोमीटर दूर मॉनसून से धुले हरे हरे जंगलों के बीच बसे आदिवासी गाँवों में जगह जगह पर फ़ुटबॉल मैच होते नज़र आते हैं। लेकिन फुटबॉल खेल रहे नौजवानों से कुछ ही देर बात करने पर पता चला है कि उनके भीतर अपने संसाधनों की लूट को लेकर कितना ग़ुस्सा दबा हुआ है। ठीक वैसा ही जैसे बारिश की बूँदों में भीगते हुए फ़ुटबॉल के पीछे भागते अमेज़न के लोगों के भीतर। झारखंड के लोग शिकायत कर रहे हैं कि दुनिया के सबसे अमीर उद्योगपति लक्ष्मी मित्तल की मित्तल-आर्सेलर कंपनी उन्हें उनकी ज़मीन से बेदख़ल करना चाहती है। क्योंकि उनकी धरती के भीतर अथाह खनिज संपदा दबी हुई है। अमेज़न के लोग कारगिल जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं क्योंकि ये कंपनियाँ उनके जीवन के आधार को ही ध्वस्त किए दे रही हैं। हम सेंटा लूसिया के प्राइमरी स्कूल के बाहर खड़े हैं। मेरे सामने अमेज़न का विस्तार है और उसके पार से दौड़ती आ रही हैं - पागल, मदहोश हवाएँ। पूरे परिदृश्य को एक सलेटी चादर बहुत तेज़ी से ढँकती आ रही है। हरे, मटियाले, नीले और आसमानी सभी रंग धूसर पड़ रहे हैं और गहरे सलेटी रंग का झीना परदा उन पर पड़ गया है। छोटे छोटे स्कूल के बच्चे तेज़ हवाओं से विपरीत दिशा में बढ़ते हुए चिल्लाते हैं और उनका उनमुक्त शोर दूर दूर तक गूँज उठता है। मेरे एक हाथ में रिकॉर्डर है लेकिन मैं अचानक सब कुछ भूलकर ख़ुद अपने भीतर की पूरी ऊर्जा जैसे फेफड़ों से बाहर ले आता हूँ। अब बच्चों की आवाज़ों में मेरी गूँज भी शामिल है। अमेज़न की हवाओं के तिलस्मी शोर के सामने हमारी आवाज़ों के पाँव उखड़ उखड़ पड़ते हैं। बहुत देर से मुझे ख़याल आता है कि ये तमाशा देखने बीबीसी की पूरी टीम आसपास जमा हो गई है।
और फिर बिना चेतावनी दिए लाखों करोड़ों पानी की बूँदें हमारी ओर दौड़ी आती हैं। सभी लोग भागकर प्रायमरी स्कूल की इमारत के अंदर पहुंचते हैं। टिन की छत पर बारिश बेतहाशा सिर पटक रही है। एक दूसरे से बात करने के लिए हम लोग लगभग चिल्ला रहे हैं। पता नहीं कितनी देर तक उहापोह और उत्साह का मिलाजुला भाव हमें घेरे रहता है। अचानक लगा कि सभी थक गए हैं। सब कुछ शांत हो चला है। लेकिन ये मौसम का ठहराव है। बारिश बंद हो चुकी है और अमेज़न के वर्षा वनों के ऊपर बादल छँट गए हैं। फिर से सूरज चमकने लगा है और फिर से उमस हमें कसमसाए दे रही है।
घूप, छाँव और बारिश का ये चक्र यहाँ लगातार चलता रहता है और इसी मौसम चक्र के कारण हज़ारों तरह के जीव-जंतुओं के जीवन चक्र चलते हैं। कहा जाता है कि अमेज़न के जंगलों की एक झाड़ी में जितनी क़िस्म की चींटियां मिलती हैं, उतनी पूरे ब्रिटेन में भी नहीं मिलेंगी। जितनी जैव विविधता इन जंगलों में पाई जाती है उतनी पूरी दुनिया में कहीं नहीं है। यहां 17 हज़ार क़िस्मों की चिडिय़ाँ मिलती हैं, पांच से सात सौ क़िस्मों के साँप और पशु पाए जाते हैं। पेड़ पौधों की ही पचास हज़ार से  ज़्यादा क़िस्में इन जंगलों में मौजूद हैं। वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि सिर्फ़ एक वर्ग हैक्टेअर जंगल में 480 से  ज़्यादा तरह के पेड़ यहाँ मौजूद हैं। प्रकृति की इस अकूत दौलत के आधार यानी पेड़ पर जब आरे चलते हैं तो सिर्फ़ पेड़ ही नहीं कटता बल्कि इस जीवन चक्र पर कुठाराघात होता है। बारिश-धूप-बारिश का चक्र टूटता है। ये जंगल शिव की तरह अपनी जटाओं में कार्बन डाई ऑक्साइड को उलझाए हुए रहते हैं। जंगल कटेंगे तो ये कार्बन हवा में घुलेगा, जीवन और दूभर होगा। कार्बन के वातावरण में घुलने का अर्थ है मौसम का असंतुलन बढऩा, धरती का तापमान बढऩा। दिसंबर के महीने में ही अगर उत्तराखंड के पहाड़ों के पेड़ पौधों के अंखुए फूटने लगे हैं तो इसका सीधा संबंध अमेज़न के जंगलों से हैं।
पिछले सप्ताह दो दशकों से वैज्ञानिक इन जंगलों और वातावरण के बीच के संबंध का अध्ययन करने में लगे हुए हैं। मनाऊस शहर से 84 किलोमीटर दूर घने जंगलों के अंदर 54 मीटर ऊँचे एक टॉवर में मशीनें लगाकर इस संबंध का अध्ययन किया जाता है। और वैज्ञानिक अब उस प्रक्रिया को समझ चुके हैं जिसके ज़रिए अमेज़न के जंगल बारिश होने में मदद करते हैं। इसी टावर पर नेशनल इंस्टीट्यूट फ़ॉर अमेज़न रिसर्च की ओर से वातावरण पर अमेज़न के जंगलों के प्रभाव का अध्ययन कर रहे वैज्ञानिक फ़्लावियो लुइज़ाउँ से हुई मुला क़ात कई मायनों में आँखें खोलने वाली थी। फ़्लावियो लुइज़ाउँ ही नहीं संतारेन की यात्रा और फिर मनाऊस लौटने पर तमाम लोग हमें मिले जिन्होंने बताया कि अमेज़न को बचाने की लड़ाई दरअसल आसान और भ्रष्ट तरी क़े से  ज़्यादा से  ज़्यादा पैसा कमाने की होड़ के ख़िलाफ़ लड़ाई है। ये जलवायु परिवर्तन की लड़ाई नहीं बल्कि जंगलों पर निर्भर आदमी और जानवरों को बेदख़ल करने की साज़िश का प्रतिकार है। इसे कोई एक समुदाय या एक संगठन नहीं लड़ रहा है बल्कि मीडिया, पुलिस न्यायालय और सरकारों की नज़रों से दूर जंगल के वह दावेदार लड़ रहे हैं, जिनकी ज़मीनें आज भी बंदूक के ज़ोर पर छीनी जा रही है और उनका  क़त्ल किया जा रहा है।
अमेज़ोनिया के पड़ोस वाले पारा राज्य में ये संघर्ष सबसे मुखर रूप में सामने आया है। हमारी मोटरबोट अब इसी पारा राज्य के संतारेन शहर की ओर बढ़ रही है। ये अमेज़न और तापाजोस नदियों के संगम पर सोयाबीन सप्लाई करने के लिए बनाया गया दानवाकार पोर्ट नज़र आता है। अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनी कारगिल ने 2003 में इस पोर्ट का निर्माण कार्य पूरा किया। इसके ज़रिए हर साल लाखों टन सोयाबीन जहाज़ों  में लादकर बाहरी मुल्कों में बेचा जाता है। ग्रीनपीस और कुछ स्थानीय संगठनों का कहना है कि इस पोर्ट के बनने के बाद पूरे इलाके में सोयाबीन की पैदावार में ज़बरदस्त उछाल आया। मुनाफ़ा देखकर बड़ी कंपनियों ने ख़तरनाक पैमाने पर वर्षा वनों का विनाश शुरू किया और साफ़ की गई ज़मीन पर पहले मांस के लिए जानवर पाले गए और फिर इस ज़मीन को सोया फ़ार्मों  में बदल दिया गया। कारगिल में तापाजोस नदी के किनारे कई कई फ़ुटबॉल मैदानों के बराबर बड़े बड़े वेयरहाउसेज़ बनाए हैं और इन वेयरहाउसेज़ से दिन रात चलने वाली चलनपट्टी के ज़रिए सोयाबीन चार-पांच सौ मीटर दूर नदी में खड़े जहाज़ों के टैंकरों तक पहुँचाा जाता है। पूरा काम कंप्यूटर के ज़रिए होता है और ख़ुद कारगिल कंपनी के एक प्रवक्ता ने बताया कि इतने बड़े प्रोजेक्ट में सिर्फ़ 78 स्थानीय लोगों को रोज़गार मिल पाया है। जबकि पहले कारगिल ने बड़े पैमाने पर स्थानीय लोगों को रोज़गार देने का वायदा किया था।
संतारेन पहुँचने के अगले दिन हमें फ़ादर एलबेर्तो सेना से मुला क़ात करने जाना था। फ़ादर सेना कैथलिक पादरी हैं और दूसरे पादरियों की तरह वो सिर्फ धर्म और आध्यात्म को ही अपनी जिम्मेदारी नहीं मानते। पहली मंज़िल के उनके छोटे से दफ़्तर में मेरी नज़र सबसे पहले उनकी मेज़ पर रखी महात्मा गांधी की पीतल की मूर्ति पर पड़ी। छोटे कद और मुस्कुराते हुए चेहरे वाले फ़ादर सेना आम लोगों की तरह पैंट  क़मीज़ ही पहनते हैं, हालांकि मैं किसी लंबे चोग़ाधारी ईसाई पादरी से मिलने की कल्पना किए हुए था। उनके पहुंचने पर मैंने पहला सवाल यही किया - भारत से हज़ारों मील दूर यहाँ अमेज़न के इस शहर में गाँधी की मूर्ति कैसे? फ़ादर सेना ने कहा, ''मेरे तीन हीरो हैं - ईसा मसीह, चे ग्वेवारा और महात्मा गाँधी।''
एलबेर्तो सेना बार बार पहले से ही इस बात के लिए माफ़ी मांगते रहे कि इंटरव्यू के दौरान वो अपने ग़ुस्से को छिपा या दबा नहीं पाएंगे। उन्होंने कहा अमेज़न के जंगलों और यहाँ के लोगों का सवाल उनके लिए कोई अकादमिक सवाल नहीं बल्कि अस्तित्व का सवाल है। इस काम के लिए वो ''अमेज़ोनियन डिफ़ेंस फ्रंट'' नाम का एक संगठन चलाते हैं जो स्थानीय लोगों को एकजुट करता है और जंगल माफ़िया के ख़िलाफ आंदोलन भी चलाता है। उनके बग़ल वाले कमरे में एक छोटा सा स्टूडियो बनाया गया है जिससे स्थानीय एफ़एम रेडियो पर फ़ादर सेना रोज़ाना अमेज़न से जुड़े विषयों पर संपादकीय टिप्पणी का प्रसारण करते हैं। लगभग डेढ़ घंटे से  ज़्यादा समय तक उन्होंने हमारे सवालों के जवाब दिए। उन्होंने कहा कि अमेज़न के पाँच बड़े दुश्मन हैं - सोयाबीन फ़ार्मर, जंगल काटने वाली कंपनियाँ, खनिज कंपनियाँ, पशु फ़ार्मों के मालिक और केंद्र सरकार जो अमेज़न के अंदर छोटी छोटी नदियों के पानी को बाँधकर दस बड़ी पनबिजली योजनाएं बनाने पर बज़िद है। फ़ादर सेना ने इस तंत्र को बहुत आसान शब्दों में समझाया। उन्होंने बताया कि सबसे पहले टिम्बर कंपनियाँ जंगलों में घुसती हैं और महोगनी जैसे बेश क़ीमती पेड़ों को ग़ैर क़ानूनी तौर पर काटकर इमारती लकडिय़ों का व्यापार करती है। साफ़ की गई हज़ारों हेक्टेअर ज़मीन पर फिर पशु पाले जाते हैं, जिनके माँस का निर्यात पूरी दुनिया में किया जाता है। जब ये ज़मीन उनके काम की भी नहीं रहती तब इसमें सोयाबीन उगाया जाता है। अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनी कारगिल स्थानीय बड़े किसानों को सोया उगाने के लिए प्रोत्साहित करती है।
बिना घुमाए फिराए अपनी बात कहने के  क़ायल फ़ादर सेना कहते हैं कि उनका मुख्य निशाना कारगिल कंपनी है। उसने सन 2000 में संतारेन में  क़दम रखा और नदी पर विशाल पोर्ट बनाया। फ़ादर सेना कहते हैं, ''इसे मैं नदी वाला राक्षस कहता हूँ। क्यों मैं ऐसा कहता हूँ? क्योंकि इस पोर्ट के बनने के बाद मातो ग्रोस्सो जैसे ब्राजील के दूसरे राज्यों से सोयाबीन उगाने वाले यहाँ हमारे जंगलों में आए और उन्होंने जंगलों का सर्वनाश शुरू कर दिया''। कारगिल के दानवाकार वेयरहाउसों के अंदर घुसकर हमने सोयाबीन के ऊँचे ऊँचे पहाड़ देखे। सैकड़ों हज़ारों वर्ग किलोमीटर जंगलों का सफ़ाया करके उगाई गई ये सोयाबीन यूरोप और चीन के बाज़ार में खपेगी। गाय और बैलों को खिलाई जाएगी ताकि वो हृष्ट पुष्ट हों और  ज़्यादा माँस बाज़ार में बेचा जा सके। फ़ादर सेना बताते हैं कि समस्या तब आती है जब इन जंगलों को बचाने के लिए यहाँ बसे लोग सामने आते हैं।
अगर ज़रूरत पड़ी तो ऐसे लोगों का क़त्ल करके उन्हें रास्ते से हटा दिया जाता है।
संतारेन में ऐसे लोगों के तलाशना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं था जो जंगल माफ़िया के डर से अपने गाँव छोड़कर शहर में रह रहे हैं। ऐसे बेदख़ल किए गए लोगों के जनसंगठन का नेतृत्व करती हैं 49 साल की मारिया एवैच बास्तुस द्विसैंतुस। ये संगठन कामगारों की लड़ाई लडऩे वाले चीको मेंदेस ने शुरू किया था जिन्हें अस्सी के दशक में अमेज़न के जंगल माफ़िया ने मार डाला था और न्यूज़वीक पत्रिका ने उन्हें अमेज़न का गाँधी कहा था। मारिया को जंगल माफ़िया से कई बार जान से मार डालने की धमकी दी गई है। लंबी लड़ाई लडऩे के बाद पुलिस ने उनकी सुरक्षा के लिए चौबीस घंटे हथियारबंद गार्ड तैनात किए हैं। अपने साधारण से दफ़्तर के दालान में उन्होंने हमसे बात की। उन्होंने कहा, ''हमारा संगठन लोगों को उनकी ज़मीन से बेदख़ल किए जाने से रोकता है। हम भूमि सुधार के लिए काम करते हैं।'' एक लंबे इंटरव्यू के दौरान मारिया ने बताया कि संतारेन इला क़े के सोयाबीन की खेती करने वाले बड़े फ़ार्मर ग़रीब लोगों को बंदूक के ज़ोर पर उनके घरों और उनकी ज़मीनों से बेदखल कर रहे हैं। पारा राज्य के सिर्फ़ संतारेन इला क़े में ही हज़ारों  परिवारों को उनकी ज़मीन से बेदख़ल किया जा चुका है। उन्होंने कहा कि ज़मीन सुधारने के इस आंदोलन के सभी नेताओं का जीवन ख़तरे में है। मारिया के 11 भाई बहिन हैं और वो कहती हैं कि आंदोलन के कारण उनका पूरा परिवार उनके बारे में चिंतित रहता है। ''कई लोग मारे गए हैं। चीको मेंदेस की हत्या कर दी गई। मैं चाहती हूँ कि ऐसा न हो और मैं इस बारे में चिंतित भी हूँ। लेकिन मैं मरने को तैयार हूँ।'' मारिया एक अनिश्चित सी आडंबरविहीन मुस्कुराहट के साथ कहती हैं। उन्हें और फ़ादर एलबेर्तो सेना को पिछले साल नवदान्या संगठन की वंदना शिवा ने भारत आमंत्रित करके पुरस्कृत किया था। पुरस्कार में उन्हें महात्मा गांधी की वह मूर्ति दी गई थी जिसे फ़ादर सेना की मेज़ पर देखकर मैं अचकचा गया था।
आज इतने बरसों बाद मुझे नहीं मालूम कि मारिया कहां हैं और किस हाल में हैं। लंदन से प्रकाशित होने वाले अख़बार द गार्डियन ने 2011 में लिखा कि अमेज़न में जल, जंगल और इंसानों के अधिकारों के लिए लडऩे वाला औसतन एक कार्यकर्ता हर हफ़्ते मारा जाता है। पिछले ही महीने ग्लोबल विटनेस नाम के संगठन ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि दुनिया भर में जंगल और ज़मीन को बचाने की लड़ाई लडऩे वाले 185 लोग 2015 में कत्ल कर दिए गए और इनमें सबसे  ज़्यादा 50 लोग ब्राज़ील में मारे गए।
मेरे शरीर में झुरझुरी सी होती है और ज़ेहन में बार बार मारिया एवैच बास्तुस द्विसैंतुस के शब्द गूंजते हैं - ''लेकिन मैं मरने को तैयार हूं।''
मारिया से मुलाकात के बाद लौटते हुए हम सभी लगभग खामोश थे। इतना सबकी समझ में आ चुका था कि अमेज़न का संकट सिर्फ़ पर्यावरण या जलवायु का संकट नहीं है। इसके पीछे बहुत बड़ा व्यापार और बहुत सारी दौलत लगी है।
* * *
मनाऊस लौटकर हम एक बार फिर उसी नदी रियो नीग्रो के तट पर आ गए जहाँ से चले थे। एक बार फिर से नाव पर सवार होने को तैयार। जेम्स बाण्ड की फ़िल्मों से मशहूर हुई  क़ातिल पिरान्हा मछली से मुला क़ात अभी बा क़ी है। यूँ तो पिरान्हा सिर्फ सात-आठ इंच लंबी होती है लेकिन ये मिनटों में एक पूरे के पूरे इंसान को अपने नुकीले दाँतों से कुतर कुतर कर चट कर सकती हैं।
इसी पिरान्हा मछली पकडऩे के अभियान पर निकले एक दर्जन पत्रकार नदी में काँटा डाले दम साधे, ऊबते हुए इंतज़ार कर रहे थे कि कब काँटे में हरकत हो और कब माँसखोर पिरान्हा पकड़ में आए। लेकिन कुमाऊँनी कहावत है कि 'चोरनाक कैले जै मोर मरना, भाबरैकि जसि रीति नि है जानि?' अगर चोर ही मोर मार सकते तो भाबर की रीति सही साबित न हो जाए। यानी कलमघिस्सू पत्रकार अगर पिरान्हा मारने लगे तो मछुआरे क्या झख मारेंगे?
साँझ के झुटपुटे में लिपटी शांत रियो नेग्रो की हवा में अचानक एक तेज़ चीत्कार गूँजी। इससे पहले मैं य क़ीन कर पाता कि ये चीत्कार मेरी ही है, मेरे हाथ का मछली पकडऩे वाला कांटा आसमान में था और उसकी डोरी में सात इंच लंबी मछली लटकी थी। मैंने आसपास देखा और पाया कि साथियों के मुँह लटके थे। हमारे नाव वाले ने तुरंत मछली को अपने हाथ में लिया और घोषणा की कि ये पिरान्हा नहीं है। मैंने तुरंत उसे काँटे से निकालकर फिर से  नदी में छोडऩे का फ़ैसला किया।
अमेज़न और उस पर आश्रित जीवन क्या पहले ही कम संकट में है?

कुछ तथ्य :
1. अमेज़न के वर्षावनों का इला क़ा सत्तर लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इसका 65 प्रतिशत हिस्सा ब्राजील में पड़ता है।
2. अनुमान है कि पाँच सौ साल पहले इन वर्षा वनों में एक करोड़ इंडियन आदिम जातियाँ बसती थीं।
3. अब इन आदिवासियों की संख्या अब सिर्फ ढाई लाख बची है। बाकी लोग बाहर से जैसे दक्षिण ब्राज़ील से आए हैं।
4.  क़रीब ढाई से तीन करोड़ लोग अमेज़न के जंगलों में बसे हैं। इनमें से  ज़्यादातर दूसरे इलाकों से आकर बसे हैं।
5. एक से डेढ़ एकड़ वर्षा वन हर क्षण काटा जा रहा है।
6. कभी धरती के 14 प्रतिशत हिस्से को वर्षा वन ढँके हुए थे। अब ये सिर्फ छह प्रतिशत रह गया है। अगले चालीस साल में ये जंगल भी काट दिए जाएंगे।
7. वर्षा वन काटे जाने से हम रोज़ाना 137 किस्म की वनस्पतियों, जानवरों और कीट पतंगों की क़िस्में खो रहे हैं। यानी हर साल पचास हज़ार क़िस्में मिट जाती हैं।
8. मित्शुबिशी कॉरपोरेशन, जॉर्जिया पैसिफ़िक, टैक्साको और यूनोकल जैसी विशालकाय बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ चेनसॉ या मशीनी आरे से पेड़ काटते हैं और  क़ीमती लकड़ी बाज़ार में बेच दी जाती है।
स्रोथ : http://www.rain-tree.com/facts.htm


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