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फरवरी 2014

लीना मल्होत्रा रॉव की कवितायें

लीना मल्होत्रा रॉव

नये कवि

 

भीमबेटका

कभी भीमबेटका गये हैं आप
इन गुफाओं के अँधेरे
रहस्य की चादर ओढ़े आप की प्रतीक्षा कर रहे हैं
बस एक ही कदम दूर रखे हैं यहाँ दस लाख वर्ष

गाईड चन्द्रशेखर दिखाता है कई चित्र लाल और सफेद रंगों के

एक हिरन जीवन और मृत्यु के संधि पल पर टिका पीछे मुड़ कर देख रहा है दस लाख वर्ष से
एक आदमी हाथ में भाला लिए अपने शिकार का पीछा कर रहा है
एक घोड़ा अपनी दोनों टाँगे हवा में उठाए अगली सभ्यता में छलांग लगाने को आतुर है

कुछ लोग
दस लाख वर्ष से
त्रिभुजाकार उदर लिए मृदंग और ढोलक पर भूख का उत्सव मना रहे हैं

दस लाख वर्ष बाद
कुछ पर्यटक अचम्भे की आँखे फाड़े उस पीड़ा को ढून्ढ रहे हैं
जिसके रंग में कूची डुबो चित्रकार ने भविष्य का ऐसा चित्र बनाया
जो कभी अतीत नहीं हुआ
इन्हीं पर्यटकों में मैं भी शामिल हूँ

चन्द्रशेखर गाईड कहता है यहाँ से देखिए खुला हुआ बाघ का जबड़ा
जबड़े के भीतर बने चित्र
मैं देखती हूँ वह बाघ के जबड़े में टिकी निडर सभ्यता को
जो अपने सहजीवियों के साथ संतुलन की मुद्रा में थम गई है
एक कुछआ है क्षितिज के पार कुछ खोजता हुआ
एक स्त्री की आकृति है
जिसके धड़ पर सर रखा है
जो ज़रा सा हिलते ही टूट कर गिर पड़ेगा

मुझे लगता है ये हठयोगी हैं
अपने तप में लीन
कुछ प्रश्नों के उत्तर खोजते हुए
इन गुफाओं की दीवारों पर कुछ प्याले नुमा गड्ढे हैं
गाईड बताता है यहअव्नल हैं इन्हें हवा और पानी ने काट कर बनाया है
तभी अव्न्लो में बसी बूढ़ी पीड़ा अपनी आँखे खोले देती है
उसकी पीड़ा में अपनों से ही आघात पाने का मर्म है
जो उसे दस लाख वर्ष से जीवित रखे हुए है

एक रिक्त सभा कक्ष है
जिसके मध्य में एक ऊंचा पत्थर रखा है
चन्द्रशेखर कहता है यह राजा के बैठने का स्थान था
संभवत: यहीं पर बैठकर राजा अपनी सेनाओं को निर्देश देता था
बैठिये बैठ कर देखिये
मैं उस दस लाख वर्ष पुराने पत्थर पर बैठता हूँ
और क्षण भर में सत्तावान बन जाता हूँ
मेरे सामने अब अक्षोहिनी सेना है
जिसे मैं कहता हूँ
जाओ द्रौपदी को केश से पकड़ घसीटते हुए लाओ
लाओ इसे सभाकक्ष में नंगा कर दो
जाओ इशरत जहाँ को मार कर उसके शव के हाथ में बन्दूक रख दो
जाओ
नकली को असली बना दो असली को नकली
जाओ
सीरिया के तेल के नीचे दबे जैविक हथियार नष्ट कर दो
इन हथियारों ने उनके 400 बच्चों को मार डाला
जाओ शेष पर तुम अपने हथियारों का परीक्षण करो
मेरी बड़बड़ाहट सुनकर चन्द्रशेखर मुझे झिंझोड़ता है
मैं हड़बड़ा कर अपने सत्तावान होने पर शर्मिंदगी से उठ खड़ा होता हूँ

आते आते मेरी नज़र एक फूलदान के चित्र पर पड़ती है
जिसमे से एक फूल दस लाख वर्ष से सजा हुआ झाँक रहा है
और मुरझाया नहीं है

युद्ध

मैं युद्ध के बारे में कुछ नहीं जानती
जब मेरा जन्म हुआ तब युद्ध खत्म हो चुका था
माँ बताती थी कि
मेरी बहन जो उस समय दो वर्ष की थी
चिल्ला कर रो पड़ती थी वह
जब
भयंकर गर्जना करते हुए लड़ाकू हवाई जहाज हमारी छत के दो हाथ ऊपर से गुजरते थे
मेरे पिता
कौतुक से अपनी इंजीनियरी दृष्टि से उसके इंजन के तगड़े पन को तौल रहे होते थे तब
वह नहीं सुन पाते थे उसकी चीखें और उसका डर से पड़ा सफेद रंग
यूं भी
छोटे बच्चे मौत के बारे में कुछ नहीं जानते
वह नहीं डरते अँधेरे से
खतरों से या मृत्यु से
मृत्यु को भी वह एक खिलौना समझकर अपने हाथ में उलट पलट कर देखेंगे
और मरने से पहले मौत का सर अपने दांतों से चबा डालेंगे
लेकिन बच्चे डर जाते हैं खतरनाक आवाजों से
युद्ध मेरी बहन के लिए खतरनाक आवाज़ था
और माँ की बाहें दिलासा थी
पिता तटस्थ रहे हमेशा दुनिया से
युद्ध और शांति में एक सा भाव रहता था उनके चेहरे पर
सिवाय रविवार के जिस दिन उनके घोड़े दौड़ते थे रेस कोर्स में
उस दिन हम उनके सर पर बचे कुछ बालों के बारे में बात करते थे
वह उस दिन हमसे पूछ लेते थे कि पढ़ाई कैसी चल रही है
स्कूल में सजा तो नहीं मिलती
हमारे दो कमरों के घर में उनका कमरा अलग था
जिसमें हम उनकी अनुपस्थिति में ही प्रवेश कर सकते थे
यह सिलसिला उनकी मृत्यु के बाद भी बना रहा
उनके अनुपस्थित होने के बाद
अब हम उनके जीवन में प्रवेश करते हैं
जो हमारी स्मृतियों में बसा है हमारे अपराधबोध के वस्त्र पहने

माँ ने उनके और हमारे बीच एक पुल बनाया था
जिस पर घृणा की सीढिय़ां चढ़ कर जाना पड़ता था
माँ की मृत्यु के बाद वह सीढिय़ां टूट गई
और मैंने स्वयम को उस पुल पर खड़े पाया जिसके एक सिरे पर पिता थे
दूसरे पर माँ
तब मैंने ये जाना कि पुल पर मेरे कदमों के नीचे नहीं था
बल्कि मेरे कदम ही थे पुल
जो उनकी तरफ बढ़ सकते थे
जब उनकी टाँगे फूल कर पायजामे जितनी मोटी हो गई थी
तब उनके मौन के नीचे एक आशा ने दम तोड़ा था
जब मेरा भाई उन्हें घसीटते हुए अस्पताल ले गया था
क्योंकि वह दुखी था कि उसके पैसे खर्च हो रहे थे
तब भी वह चले गये थे शायद उन्हें अच्छा लगा था कि इस दु:ख के समय उनका हाथ उनके बेटे के हाथ में है

अब मैं अपनी बहन से युद्ध के बारे में बात करती हूँ तो वह कहती है इससे तबाही होगी
हम सब शांति से क्यों नहीं रह सकते
उसकी बातों में प्रश्न हैं जिनका उत्तर मेरे पास नहीं है
क्योंकि मैं जानती हूं युद्ध की युद्धभूमि कई बार अदृश्य रहती है
कई बार तो युद्ध भी विराम लगने के बाद पता लगते हैं
शायद पिता इस बारे में बहुत विस्तार से बात कर सकते थे
जीवन का बड़ा वितान पिता से ही मिला
पीड़ा को समेटने का हुनर माँ से
मेरी बहन और मैं कई बार उस पुल पर खड़े रहते हैं हमारे पैर एक दूसरे से उस वक्त बदले जा सकते हैं
और हृदय भी
कुछ नहीं करना पड़ता उस वक्त
वह सब सुनने के लिए जिसके शब्द न उनके पास हैं न मेरे पास

आषाढ़ का एक दिन
बरस रहा है आषाढ़ का एक दिन

वैसे नहीं जैसे बरसा था मल्लिका और कालिदास के बीच में
जिसमें पानी का बरसना भी एक ज़रूरी पात्र था
कालिदास की महत्वाकांक्षा और मल्लिका के प्रेम जितना ज़रूरी
शहर में पानी का बरसना इसलिए ज़रूरी है
ताकि बारिश दौड़ते शहर के पांवों में बेडिय़ाँ पहना सके
लोग ढून्ढ सके खोई हुई दिशाएं
पूछ सके अपना हाल कि कैसे हो भाई
देख सकें कि फूल किस रंग के खिले हैं

वृक्ष धुएं से भरे अपने फेफड़ों को फुलाकर भत्र्सिका कर ले
अपने पत्तों की हथेलियों को फैला कर समेट सके बारिश की चहचहाहट
प्रेम में भीगी हुई लड़की अपने गैर ज़रूरी छाते को खोले चलती रहे किसी और दुनिया में
मोटर साईकिल अपनी दोनों बाहें फैलाए घुटनों तक डूबी सड़क को बलात्कार के सदमे से मुक्त करके गुदगुदा दे
उसके पहिये पानी उड़ाते हुए खिलखिलाते रहें
और उसकी ऊंची आवाज़ इस भयभीत शहर को यह दिलासा दे कि यह सन्नाटा टूटेगा
बरसता हुआ आषाढ़ का एक दिन भय और रोमांच की जुगल बंदी है
सड़क अपने खड्डों को पानी के नीचे यूं छिपाती जैसे गरीबी के हस्ताक्षर को छिपाती है गृहणी

फ्लाईओवर के नीचे बैठे लोगों की आँखों का पानी खतरे के निशान से ऊपर बह रहा है
जिसमें डूब गये हैं खेत जिसमें वह धान रोप रहे हैं
अबके होगी जो फसल उससे वह एक सपना खरीद लायेंगे इस सफेद शहर में
प्लास्टिक की पन्नी ओढ़े हुए एक छोटा बच्चा
चौराहे पर नंगे बदन भीख मांग रहा है
उसकी माँ ने उससे कहा है नहा लो फिर कब बरसे पता नहीं
बारिश में भीगते बच्चे को एक कुत्ता हाँफते हुए देख रहा है
और खग अपने भीगे पंखों को सिकोड़ पर उदासी का सन्नाटा रच रहा है
अपने कैमरे को बचाता एक फोटोग्राफर
माईक के साथ बारिश की तड़प की गूँज को दबाता चिल्ला रहा है
ये है राजधानी की बारिश
ट्रैफिक जाम!




लीला मल्होत्रा रॉव का पहला और एक मात्र कविता संग्रह 'मेरी यात्रा का जरूरी सामान' बोधि प्रकाशन जयपुर से 2012 में प्रकाशित हुआ है। दिल्ली में रहती है।


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