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अप्रैल 2021

महेश वर्मा की कविताएं

महेश वर्मा

कविता

 

 

गुड्डन बी के नाम चिट्ठी

 

गुड्डन बी बेंगलोर जाके मैं क्या करूँगा?

मेरा कोई काम ही नहीं वहाँ

 

बहुत हुआ तो मल्लेस्वरम जाऊँ

किसी पुराने घर की ओर देखते देखते

किसी पुरानी मोटर से कुचला जाऊँ

हाथ पैर झोले में समेट के

वापस दुरंतो एक्सप्रेस में बैठ जाऊँ,

चने खाऊँ, कविता पढ़ूँ

रोना आये तो हमसफ़र का मुँह देखने लगूँ

कि कितनी ठोकरें भाई ने ज़माने की खाई होंगी,

यही सोचते-सोचते दिल को बहला लूँ

 

क्या करूँगा दिल्ली दरभंगा जाके-

हरयाना पंजाब जाके क्या करूँगा गुड्डन बी-

 

मिदनापुर जाके क्या करूँगा

भले वहाँ भानु मुखर्जी का प्रेमगीत गूँजता रहता हो-

चीनी गो चीनी तोमारे...

मुझे तो कोई नदी नहीं चीन्हेगी ना

पुल चुपचाप हो जायेंगे

 

तुम तो उधर मुल्तान बस गईं जाकर

उधर कैसा है मुल्तान में?

डाकिये आते तो हैं बारिश होती, तो है?

पुरखे मिलते तो हैं?

सपने आते तो हैं?

 

जब मेरी नज़्मों की किताब आएगी

ये चिट्ठी भीतर रखकर भेजूँगा

 

बचपन के सपने मिलें तो सहेज रखना

 

इधर कोई जगह ही नहीं बची बी

पता नहीं किसकी रुलाई बजती रहती है भीतर

बदन में लौटकर क्या करूँगा बी,

क्या करूँगा मुल्तान जाकर?

 

आमी* चीनी गो चीनी तोमारे इसे हमारे नगर के टैगोर द्वारा लिखित बांग्ला गीत है... अद्वितीय कवि और गायक भानु प्रकाश मुखर्जी बड़े भाव से गाकर सुनाया करते हैं।

 

पता पूछता है

(सी सुनील और अमरदीप की मित्रता के लिए)

 

सुनील कब आएगा,

आजकल कहाँ घर किया है?

रोज़ पूछता है

और उत्तर से निरपेक्ष थोड़ी देर ठहरकर

चला जाता है

 

कोई नहीं पलटकर पूछता: कौन सुनील?

 

किस सुनील के बिछडऩे पर बाल में,

दाढ़ी में लट किये हो रे भाई?

मैं भी तो उसी धरती का ख़ून हूँ

कितने तो लोग बिछड़े सब से,

ऐसे तो कोई नहीं घर का पता भूलता,

ऐसे तो कोई नहीं धुंधलाता पुरानी आवाज़?

किसी दिन दर्पण की तरह, प्राण की तरह

नहीं खड़े हो पाओगे सम्मुख,

अशुभ में धड़क पड़ेगा हृदय

गले में प्यास फुसफुसायेगी: पानी दो!

देह ढूँढेगी बैठने भर जगह

 

एक पुकारे उठेगी भीतर से: कौन सुनील?

                               सुनील कौन?

 

पहला हर्फ़

 

उम्र के आखिरी बरस

नई ज़ुबान सीखने में

पहला हर्फ़ वो लिखना चाहिए

जिससे कोई नाम शुरू होता हो

और पहला लफ्ज़

वो नाम लिखना चाहिए

 

ये वही नाम है ना

जहाँ तुम्हारी नींद और तुम्हारी जाग का हिसाब रखा है?

 

ये उसी नाम के मनके हैं ना भिक्षु तुम्हारे हाथ में?

 

इसे हर ज़ुबान में लिखना सीख लेना चाहिए

ताकि दुनिया की किसी भी जगह इसे देखो

अगर ये कहीं लिखा हुआ है

तो इसे पढ़ सको और तुम्हें लगे

कि अकेले नहीं हो

 

अधूरा

 

अधूरी चीजें पूरी होंगी

दूसरे अधूरेपन की शिराओं से

बहता ख़ून तलवों पर चिपचिपाएगा

 

अधूरी कहानी पूरी होगी

कल्पना में उठी कुल्हाड़ी गिरकर

सही जगह घाव करेगी।

 

घुट रहा अधूरा शाप

बान की तरह छूटेगा और

सुख का सीना छेद देगा।

 

अधूरा गान होठों से बाहर आएगा

तो एक आँसू उसको अपने में सोख लेगा

 

आँख भर सोने की इच्छा पूरी होगी

अंधेरा सपनों को मूँद लेगा।

 

दबे पाँव

 

विस्मरण ऐसे ही आता है: दबे पाँव

 

गर्मियों में धूल आती है जैसे कमरे में,

सर्दियों में उदासी, ऐसे ही आती है भूल

 

विस्मरण दृश्य और हमारे बीच

कोहरे की तरह आता है

और पलकों पर अपनी ठंडक छोड़ जाता है

 

एक बार दबे पाँव मैं

अपनी चुप के नज़दीक पहुँच गया

वह लेकिन चुप थी, उसने

फिर भी सुन ली पदचाप

और मुझको सज़ा दी

 

दबे पाँव आती है उदासी

डर आता है।

 

ठंडा हाथ

 

ठंडा हाथ ठंडा स्पर्श छोड़ जाता है

 

अभी ठीक है तबीयत

इस आवाज़ की गूँज ख़त्म हो चुकी

और अब वह कहना कहीं दूर

इकहरे धागे की तरह हिलता है

 

ठंडी मुस्कान ठंडे हाथ से कम ठंडी

वह एक स्थायी चित्र है

उसे मोड़कर बटुए में नहीं रख सकते

 

ठंडा हाथ अँधेरा खोजता है

ठंडा हाथ अँधेरा खोलता है

वह अनिच्छा से आगे बढ़ता है

उसे तुम्हारी हार्दिकता नहीं चाहिए

उनकी उँगलियाँ सिगरेट भी अनिच्छा से पकड़ती होंगी

 

अपनी स्त्री का स्पर्श भूल चुका है।

 

 

 

30 अक्टूबर 1969 को अंबिकापुर छत्तीसगढ़ में जन्म। शिक्षा- स्नातकोत्तर (वाणिज्य) कवितायें। कहानियाँ और रेखाचित्र सभी महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में प्रकाशित। ब्लॉग्स और वेब पत्रिकाओं में कविताओं का नियमित प्रकाशन। पाकिस्तान की साहित्यिक पत्रिका दुनियाज़ाद और नुकात में कविताओं के उर्दू अनुवादों का प्रकाशन। कविताओं का मराठी, अंग्रेजी और क्रोएशियाई में अनुवाद भी प्रकाशित। चित्रकला में गहरी रुचि। कविता संग्रह-धूल की जगह (रज़ा फाउंडेशन की मदद से राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित)। उर्दू के महान अफसानानिगार नैयर मसूद की कहानियों का हिंदी अनुवाद 'गंजीफ़ा’ के नाम से प्रकाशित।

संपर्क: मो. 9425256497

 


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