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अप्रैल 2021

कुंदन सिद्धार्थ की कविताएं

कुंदन सिद्धार्थ

कविता

 

 

 

वसंत

 

वे वसंत के दिन थे

जब हम पहली बार मिले

 

पहली बार

मैंने वसंत देखा

 

फूल

 

धरती, आकाश को

लिख-लिखकर

भेजे जा रही प्रेमपत्र

अहर्निश

 

फूल

इन्हीं प्रेमपत्रों के

महकते हुए अक्षर हैं

 

पृथ्वी

 

चिडिय़ा उदास होती है

तो पृथ्वी के माथे पर पड़ती हैं लकीरें

एक पेड़ मरता है

तो सबसे ज़्यादा चिंतित होती है

पृथ्वी

जब स्त्री होती है

उस रात

पृथ्वी को नींद नहीं आती

 

बाहर-भीतर

 

मैंने फूल देखे

फिर उन्हीं फूलों को

मैंने अपने भीतर खिलते देखा

 

मैंने पड़े देखे

और उन्हीं पेड़ों के हरेपन को

मैंने अपने भीतर उमगते देखा

 

मैं नदी में उतरा

अब नदी भी बहने लगी

मेरे भीतर

 

मैंने चिडिय़ा को गाते सुना

गीत अब मेरे भीतर उठ रहे थे

यूँ बाहर जो मैं जीया

उसने भीतर

कितना भर दिया

 

अंतिम शरणगाह

 

दुख की एक नदी थी

जिसमें हम दोनों को उतरना था

 

हम प्रेम करने लगे

सुख का एक आकाश था

जिसमें हम दोनों को

उडऩा था

 

हम प्रेम करने लगे

 

अपने खारे आँसुओं से

हमने मीठे पानी की एक झील बनायी

और उम्र भर नहाते रहे

कोमल भरोसे से खड़ा किया

प्रेम का ऊँचा पहाड़

और शिखरों पर चढ़ इठलाते रहे

 

हमने उम्मीदों का

एक हरा-भरा जंगल लगाया

और भटकते रहे

बेपरवाह

बावजूद इसके

प्रेम को नहीं मिल पायी साबूत ठौर

कि हम आँख मूँद सुस्ता सकें

देह मिट जाने तक

 

हम सिर्फ़ सपनों में मिलते रहे

वहीं पूरी कीं सारी इच्छाएँ

 

हम प्रेम करते थे

 

सपने ही बने

हमारी अंतिम शरणगाह

 

 

कुंदन सिद्धार्थ नये कवि है। पहला संग्रह शीघ्र प्रकाश्य। पहल उनके आगमन पर शुभकामनाएं देता है।  बिहार से आकर जबलपुर में बस गये हैं। जीविकोपार्जन के लिए भारतीय रेल सेवा में कार्यरत।

संपर्क- मो. 7024218568

 


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