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मार्च - 2020

मुम्बई की कविताएं

प्रफुल्ल शिलेदार

कविता

 

 

 

 

बम्बई की बू

 

...यार इस शहर की एक अजीब सी बू आती है

किस चीज की है यह बू

 

अरे यह समुन्दर की गंध हैं भाई

बहुत दुखी है वह

और समुन्दर में जो मछलियाँ है

उनके चीखने की गंध भी उसमें घुली हुई है

 

यहां की हवा में भी कितना पानी है देख

और इस पानी में है नमक

यहाँ के मेहनतकश इन्सान का पसीना

पसीने के नमक की गंध

 

इस शहर में लाखों लोग

जहाँ जगह मिले वहीं बसेरा कर लेते हैं

बस एक कब्र जितनी जगह मिल जाये

तो काफी है यहाँ

अपनी मिट्टी छोड़कर आये है यहाँ

उगने बढऩे के लिए

यह झाड़ी देख कितनी बढ़ गयी है

एक दूसरे से मिलते है

तब महकने लगती है यादों में खोयी मिट्टी की गंध

पेट्रोल की डीज़ल की नुक्कड़ के चाय की

तड़के की मच्छी की रोटी की गंध

शरीर के आधे पेट में भड़की

भूख की गंध भी सरसराती रहती है

इस शहर की हवा में

भूखे पेट में न जाकर

फेंके हुए सड़े अन्न की

पुराने चोक हुए गटर की

करीब से महकती पावडर की सेंट की

खुले में मूतने की

कचरे में मरे हुए चूहे की

 

अधजले सपनों की गंध

अनजाने में ही घुल जाती है इसी में

अजीब दास्ताँ है

इस शहर के बू की

 

महम्मद अली रोड की गंध घुल जाती है गिरगांव की गंध में

पेडर रोड की गंध फैलती है कुलाबा कोलीवाडा में

फाउंटन से तेज हवा सीधे घुसती है

गेटवे की नाक से आरपार सांय सांय

 

यह शहर सजधज कर चमकीली मालाएँ पहिनकर

एक पाँव समुन्दर में डुबो कर

ग्राहक की ओर नजर लगाए बैठा

दूसरा पाँव गैंग्रीन से ग्रस्त

फँसा हुआ कीचड़ गाद में

 

इसके एक मुलायम सुघड़ पाँव पर

फ़िदा है दुनिया

दूसरे सड़े पाँव से आ रही है बू

दोनों पाँवों के बीच आसरा लिए है

लाखों रहगुजर

रातभर कराहती चीखती कालिख की

बू झरती है इस शहर के रग रग से

सूरज उगने से पहले ही आने लगती है

घड़ी की चाकू जैसी नुकीली सुई से हुए

जख्मों से रिसते खून की गंध

 

बंद पड़ी हुई मिल की कम्पौंड के वीराने में बैठकर

ललचाये नज़रों को नजरअंदाज़ करते हुए

काई भरे खंडहरों के बीच

दिनरात ताने बाने बुनने में डूबे हुए कबीर ने

इस शहर का वस्त्र कौन से धागों से बुना है

 

बार बार यहाँ आओगे

तो इस शहर के गंध का नशा आने लगेगा देखना

यह बू यहीं की है

बस... पूरी दुनिया में यहीं मिलेगी

इसी की दीवानगी में

लाखों लोग यहाँ चले आते हैं।

 

बंबई में बिजली क्यों नहीं जाती भैय्या

 

खानदेश से कोकण से गड़चिरोली से गाँव देहात से

एक दोस्त आया बम्बई में

और चौंक कर पूछने लगा

बम्बई में बिजली क्यों नहीं जाती कभी

 

पानी कभी ख़त्म नहीं होता यहाँ का

कितना अजीब सा लगता है ना

हम गाँववालों के नसीब में तो नहीं है इतना भाग्य

पता होता तो सूखे कुंए से पम्प उठाकर ले आता यहाँ बगल में  दबाकर

और खेती का बचाखुचा टुकड़ा सिर पर ढो कर ले आते यहीं

 

क्या मामला है भाई यह

बिजली चले जाने से ये

अंधाधुंद दौड़ती लोकल ट्रेन पलभरके लिए रुक नहीं सकती पटरी पर

जैसे रुक जाती है यह धुंवाधार बारिश के डर से

मुख्यमंत्री जी को पसीना छूटेगा बिजली चली जाने से

उनका जाकिट गीला हो जायेगा

 

अरे यहाँ क्या अरबी समुन्दर जैसा

बिजली का समुद्र है छिपा हुआ कहीं

कितना भी निकालो

ख़त्म होने का नाम तक नहीं लेता

 

यहाँ के लोगों को भी

भीतर की ऊर्जा कम पड़ रही होगी

इसलिए बाहर से बिजली की जरुरत पड़ती है क्या

इतनी दौड़धूप इतनी मगजमारी करने के लिए

 

बस्स... इस शहर का तो पलड़ा ही भारी है

इतना झुका हुआ है की

तराजू के दूसरे कोने को

हम कितने भी लोग फंदा बाँधकर लटक क्यों न जाय

इसके कान से तो जू तक नहीं रेंगती

बताओ ना बाबा क्या राज है इस के पीछे

 

हैरान होकर मैं उसका मुंह दबोचकर

आजूबाजू के लोगों से पूछने लगा

अरे, कोई बताओ... बंबई में बिजली क्यों नहीं जाती भैय्या...

 

आउटसायडर

 

यहाँ आते ही एक दिन

अचानक मल्लिका मिल गयी

जहाँगीर में

चमचमाते गहने

लाल साड़ी पहिनी

सर्र से गई बाजू से

जैसे मैंने आवाज दी

तो झर्र में मुड़कर देखा

अरे, कैसे हो

तुम अब आ गए हो न यहाँ

कैसा लग रहा है बम्बई में अब

 

मैं बोला 'आउट सायडर’

क्या कर रहे हो फ़िलहाल

'बस... कविता लिखता हूँ’

अरे बम्बई यहाँ आये किसी भी शख्स को

आउट सायडर नहीं रहने देती

अपने आप में समां लेती है

अपना लेती है

खुद उस में समां जाती है

कोई भी पराया नहीं रहता यहाँ...

मिलना जरूर

 

सामने के बहुत बड़े से सूने चौराहे को लाँघ कर

निकल गयी झोंके जैसी

मैं धीरे धीरे सीढिय़ां उतरते हुए देखने लगा

इस महाकाय महानगर की देहऋतु

 

फास्ट लोकल

 

यात्रीगण कृपया ध्यान दे

 

यह गाड़ी अंत तक जाने वाली

फास्ट लोकल है

 

यह लोकल बचपन से जवानी

जवानी से बुढ़ापा

इस दरमियाँ

किसी भी स्टेशन पर नहीं रुकेगी

 

पैसेंजर्स योर अटेंशन प्लीज..

 

दादर स्टेशन प्लेटफॉर्म क्रमांक चार

 

मैं पुल पर जाने के लिए

दुखते कंधे गर्दन उँगलियाँ घुटने

सब की गठरी बांध कर

भरी लोकल से हड़बड़ाते हुए उतर कर

प्लेटफार्म पर उतरे सैकड़ों लोगों के साथ

सीढिय़ों की ओर चलने लगता हूँ

 

भीड़ की लहरों के साथ सीढिय़ों के पायदान पर पहुँचकर

पुल से उस पार जाने के लिए सीढियाँ चढऩे लगता हूँ

चलती गाड़ी में कूद कर खिड़की के पास की जगह झपट कर

हलकी नींद लेकर फ्रेश हुए मुस्टंडे भी

मेरे साथ सीढिय़ाँ चढऩे लगते है

फस्र्टक्लासवाले सेकंडक्लासवाले

लगेज डिब्बे से उतरी कोली औरतें, टिफिनवाले, समानवाले

हैंडीकॅप डिब्बे से उतरे अपाहिज, गर्भवती औरतें

उसी डिब्बे में घुसे हुए हट्टे कट्टे

भीड़ में जगह बनाते पाकिटमार उचक्के लफंगे

लुच्चे गर्दुले नौकरदार धन्देवाले दुकानदार एजेंट

सिनेमा में सीरियल में चैनेल में अख़बार में विज्ञापनों में काम ढूंढने वाले

जिन्हें काम पर जाना है, जिन्हें कुछ काम नहीं..बेकार फालतू

थके हुए बूढ़े हिंजड़े कच्चे बच्चे

मर्दों के साथ साथ चलती औरतें

सभी एकाग्र होकर सीढिय़ाँ चढऩे लगते हैं

सीढिय़ों के पायदान पर बराबर पाँव रखने लगते है

एक एक पाँव भीड़ के धक्के से अगली पायदान पर डालते हुए

नि:शब्द होकर एक लय में सीढिय़ाँ चढऩे लगते है

कुछ क्षणों के लिए सीढिय़ां चढऩे का एक भव्य म्यूरल बन जाता है

 

जी को मानों सदियों से प्यास लगी हो

इसी तरह सभी सीढिय़ों की ओर चले आते है

सीढिय़ाँ चढऩा सब के लिए साधना होती है विपश्यना होती है

प्रेअर होती है इबादत होती है

अंतर्मुख होकर लिया हुआ आत्मशोध होता है

 

भीड़ में मेरे अपने एकांत से

सैकड़ो लावारिस एकांत लागलपट करने लगते है

सीढियाँ चढऩे का दृश्य भव्य कोरस बनकर

मेरे एकांत को पाश्र्व संगीत देने लगता है

किसी भी निर्देशक की सूचनाओं के बगैर

सीढिय़ाँ चढऩे की क्रिया

सभी लोग निपुणता से करते रहते है

 

सीढिय़ाँ चढऩा पायदान ख़त्म होने तक ही रहना है

सीढिय़ाँ चढ़ते समय साथ देनेवाली बेजुबान आवाजें

सीढिय़ाँ ख़त्म होते ही दुभंगने वाली है

सीढिय़ाँ ख़त्म होते ही यह सब लोग

बायी और जायेंगे या दाहिनी और मुड़ेंगे

इस बात से मैं सीढियाँ चढ़ते वक्त बिलकुल बेख़बर हूँ

 

बंबई का नक्शा

 

मैं बम्बई में आकर

बम्बई का नक्शा मांगता हूँ

नक्शेवाला हँसकर पूछता है

कौन सा नक्शा दूँ भाई?

 

बम्बई के बड़े अनोखे नक्शे है मेरे पास

क्या ढूंढते आये हो यहाँ?

नक्शे से कौनसी मुंबई दूँ तुम्हे?

इस शहर के नीचे गड़े सात द्वीपों की मुंबई दूँ?

समुन्दर पर चढ़ाई कर के

उस के नीचे डूबी हुई धरती

झपट लेनेवाली मुंबई दूँ?

दूर-दूर तक फैलकर गावों को कस्बों को निगलने वाली बम्बई दूँ

आसमान चढऩे वाली बम्बई दूँ या

जमीन के नीचे से बहने वाली मुंबई दूँ

कबूतर खाना दूँ या काला घोड़ा दूँ

धारावी दूँ या भायखला दूँ या कोलीवाडा दूँ

भाऊ का धक्का दूँ या घडिय़ाल गोदी दूँ

धड़धड़ करती दौड़ती लोकल की मुंबई दूँ या

खिलखिलाती समुन्दर किनारे की मुंबई दूँ

भुलाने वाली मुंबई दूँ या घुमाने वाली मुंबई दूँ

पसीना बहाने वाली मुंबई दूँ या ठंडे एसी वाली मुंबई दूँ

 

गावों से देहात से शहरों से

विदर्श से कोंकण से यूपी बिहार से

देश से परदेस से

कहाँ से आकर बसे हुए लोगों की मुंबई दूँ?

बम्बई में बसी दुबई दूँ या बम्बई में बसी अमरीका दूँ

बम्बई का इस्राइल दूँ या बम्बई का ईरान दूँ

 

भाषा की खिचड़ी बनी बम्बई दूँ

या भाषा पर गला घोंटने वाली मुंबई दूँ

या नई भाषा को जन्म देनेवाली मुंबई दूँ

किस रंग का नक्शा दूँ इस मुंबई का

हरा नक्शा लाल नक्शा

नीला नक्शा केसरिया नक्शा

 

मैं बोला अरे अरे अरे... रुको जरा

इतने सारे नक्शे नहीं चाहिए मुझे

रख तू अपने पास ही

 

एक नक्शा मैं ही लेकर आया हूँ

आते वक्त मेरे साथ मेरी बैग में भरकर

लगता है यही नक्शा काम आयेगा मेरे

बम्बई का यह नक्शा मैं ही देता हूँ तुम्हें

 

इस में भाऊ पाध्ये है नामदेव ढसाल है

अरुण कोलटकर है कालसेकर है बसंत गुर्जर है

भुजंग मेश्राम है जयंत पवार है

हुसेन है सबावाला है कोलते है पटवर्धन है

बड़़े गुलाम अली खां है देवधर मास्टर है

दुबे है सुर्वे है

 

स्ट्रैंड है किताबखाना है पीबीएच है

रिदम हाउस समोवर वे साइड इन है

चर्चगेट के सामने की फुटपाथ से

अब गुमशुदा हुए किताबें बेचनेवाले हैं

बंद हो चुकी लेकिन यादों में अब भी खुली

किताबों की दुकानें हैं

बहुत छोटासा नक्शा है यह

इस शहर से कोई मायने नहीं रखता

 

यह नक्शा तुम रखो तुम्हारे पास

यह कभी बेचा नहीं जायेगा

कोई कभी भी इस नक्शे के बारे में तुम से नहीं पूछेगा

फिर भी तुम रखो इसे अपने पास

 

आगे कभी कभार भूला भटका

मेरे जैसा कोई कवि

खोयी सी आँखों से इस शहर में आता है

और तुम से मांगता है इस शहर का नक्शा

तो यह नक्शा उसे देना

उसकी उदास आँखों में चमक आयेगी

वह निराश होकर कभी नहीं लौटेगा

इस शहर से

 

संपर्क - नागपुर, मो.  9970186702

 


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