मुखपृष्ठ पिछले अंक विमर्श गहन चेतना का स्वप्निल संसार
अप्रैल - 2019

गहन चेतना का स्वप्निल संसार

सरिता शर्मा

विमर्श/बावन चिट्ठियाँ/दो

 

 

बाबुषा कोहली

 

 

गेटे के अनुसार- 'एक सच्ची कविता अंदर से शांत और बाहर से हल्की भी होती है ताकि ज़िन्दगी के बोझ से ऊपर उठ सके। वह एक ऐसे गुब्बारे की तरह होती है जो जमीन से बहुत ऊँचा तो होता है लेकिन डोर से बंधा हुआ ताकि ऊंचाई से धरती का अवलोकन कर सके।’ बाबुषा कोहली के गद्य कविता संकलन 'बावन चिट्ठियाँ’ पढ़ते हुए हमें लगातार यही महसूस होता है। उन्हें कविता-संग्रह 'प्रेम गिलहरी दिल अखरोट’ के लिए भारतीय ज्ञानपीठ का दसवाँ नवलेखन पुरस्कार और अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस-2015 के विशिष्ट प्रतिभा सम्मान से सम्मानित किया गया है।  'बावन चिट्ठियाँ’ की रचना प्रक्रिया के बारे में बाबुषा कोहली बताती हैं- 'कहीं तो मैं इंद्रजाल रचती रही तो कहीं भ्रमजाल तोड़ती रही। इन चिट्ठियों को लिखते हुए निरंतर मैं किसी अदृश्य चेतना के साथ संवाद करती रही, इन चिट्ठियों में वे गीत आये जो मैं गाती थी।’ पुस्तक में अवचेतन मन की गतिविधियों को दर्ज किया गया है। यथार्थ पृष्ठभूमि में रह जाता है। इन चिट्ठियों में जीवन के इन्द्रधनुषी रंग झलकते हैं। सम्पूर्ण पुस्तक एक प्रकार की यात्रा की तरह आगे बढ़ती है। उनकी पहली कविता 'एक दिन मैं सूर्य बन कर जल उठूँगी’ में अपनी रोशनी से अंधियारा दूर करने का संकल्प है - 'रात के पैरों पर जब लोहे के बाट बंधे हों और उसका चेहरा कोयले से भी ज़्यादा काला हो, तब दिन उगने की राह नहीं तकना होता, तब स्वयं सूर्य बन कर जलना होता है।’ उसके बाद की चिट्ठियों में संघर्ष दर्शाया गया है। अंत तक यह महसूस होता है कि वह प्रकाश प्राप्त कर लिया गया है। 'मैं जान चुकी थी कि सूर्य के महज़ चमकने से सुबह नहीं हो जाती। सुबहें उग आती हैं परिक्रमाओं से, परीक्षाओं से, प्रेम से।’

नेरुदा ने कहा है- 'प्रेम दु:ख के बाद दु:ख उठा कर अपने द्वीपों को पार करता हुआ जड़ें जमाता है जिन्हें आँसुओं से सींचा जाता है।’ प्रेम प्यास है, वह समर्पण मांगता है। सुन्दरतम पलों का अहसास कराता है। फिर क्षणिक जादू की तरह जीवन से चला जाता है। हम प्रेम का मूल्य दु:ख से चुकाते हैं। इस पुस्तक का उपशीर्षक है 'ब्रह्माण्ड नाम के महाजन से शून्य का हिसाब है प्रेम।’ इसमें अपने भीतर की दुनिया की सैर करके प्रेम को समझा गया है- 'प्रेम उम्र भर का रतजगा है/ मृत्यु वाली गोली है प्रेम।’ 'मौन की लय में गीत प्रेम का’ में मौन हावी है- 'मैं तुम्हारे कंठ में घुटी हुयी सिसकी हूँ। तुम मेरे श्वास से कलप कर निकली हुयी आह हो।’ प्रेमिका की कथा सुन कर सूखे कुएं के आँसू बह निकलते हैं और वह लबालब भर जाता है। 'जब रुलाई फूटे’ में रुदन मृत्यु के द्वार तक ले जाता है। कृष्ण स्वप्न में आते हैं तब भी लड़की रोती ही जाती है। 'घुट-घुट कर रोना सहमे तालाब में हौले से पाँव भिगो लेना है। एकान्त में रोना ईश्वर के पाँव पसारना है।’ 'इंतज़ार के ज में जो नुक्ता है’ में प्रेमिका प्रेमी की राह में इंतज़ार बिछाए हुए है। मगर निश्चित समय और तारीख के निकल जाने के बाद भी वह नहीं आता तो प्रेमिका की आंखें पथरा जाती हैं। औरतें सब्र की इबारत और वेटिंग रूम में बदल जाती हैं। 'कुछ औरतें कभी बूढ़ी क्यों नहीं होतीं/ और सीखना/ बचपने की क्लास में बुज़ुुर्ग होने का हुनर।’        

इनमें से कई चिट्ठियाँ स्वप्न में लिखी गयी प्रतीत होती हैं। 'सलामी कुबूल करो’ में स्वप्न में स्वप्न पिता मंटो से मुलाकात में उनके घोर यथार्थवादी होने पर  उलाहना दिया जाता है। 'मैं उसे लगातार नहीं पढ़ सकती। वह मुझे सन्न छोड़ जाता है। मुझ जैसों को जिंदा रहना हो, तो उस जैसे से छह-आठ महीने में एक बार मिलना ही ठीक रहता है। इससे ज्यादा मुलाकातें सेहत के लिए खतरा हैं।’

स्वप्नों से गुजरती हुई प्रेम पातियां नींद और जाग के बीच पुल का काम करती हैं। मार्केज़ की कहानी 'नीले कुत्ते की आंखें’ में नायिका नायक से केवल स्वप्न में मिलती है। 'हरियाला बन्ना आया रे’ में धरती से अंतरिक्ष तक फैला हुआ प्रेम स्थान और समय की सीमाओं से परे है। अन्तरिक्ष एक छोटा सा रूमाल बन जाता है। प्रेमिका की आत्मा पर प्रेम का हरा रंग चढ़ा है जिससे धरती भी हरी हो गयी है। 'हाइड्रस नक्षत्र के तारे उस दिन आपस में कानाफूसी कर रहे थे- जैसे अन्तरिक्ष के ओर-छोर तक विस्तार था उस खेल के मैदान का। कलाई के निशान तो कब के मिट गए पर मन पर चढ़ा हरा रंग छूटता नहीं। ये कोई नौ सौ साल पुरानी बात है।’ 'कच्ची नींद का पक्का पुल’ में लड़का भारी मन लिए यादों को दोहराता हुआ पुल पर भटक रहा है। 'ऐसा लगता है जैसे उसकी आँखें नदी की देह के भीतर जल रही आत्मा की लौ खोज रही हैं। फिर पुल के ऐन बीचोबीच ठहर कर वो नदी में पत्थर फेंकने लगता है। स्वप्न तुम्हारी और मेरी आँखों के बीच बना पुल है।’ 'स्किजोफ्रेनिया’ में प्रेम के आत्मिक और वासनामय रूपों में विरोधाभास है। सुन्दर सपना दुस्वप्न में बदल जाता है जहां प्रेम की पुकार चीखें बन जाती हैं। 'स्वप्न तुम्हारे कितने मंहगे नींद हमारी चिल्लर’ में मैना के पंखों की फडफ़ड़ाहट प्रेमिका के लहुलुहान मन की प्रतीक है। 'लड़की की नब्ज़ कट गयी तो किसी ने आकर पट्टी बांध दी पर उसके स्वप्न की नब्ज़ कटी तो टूटू को भी समझ न आया कि पट्टी कहाँ बांधी जाय।’

अनुसार- 'यह जीवन एक अस्पताल है जिसमें हर कोई अपना बिस्तर बदलना चाहता है।’ 'हॉस्पिटल’ में माहौल में पसरी हुई उदासी और ख़ामोशी को एक पीली तितली तोड़ती है जो उम्मीद की किरण बन कर उभरती है। 'वह एक जाँबाज़ सिपाही लग रही थी जो वहां की हवा के भारीपन को अपनी तलवार से काट देने पर आमादा हो। मैं देर तक तितली की जीत का नाच देखती रही। मुस्कराहट ख़ुद ब ख़ुद आकर होंठों के किनारों पर झूल गयी।’ 'ऑपरेशन थियेटर में प्रेम’ में यादों का घमासान मचा है। मगर दर्द के अहसास को सुन्न कर दिया जाता है। 'परमात्मा का स्वाद अदरख जैसा है’ में दु:ख हाथों की पहुंच से बाहर है। एक्स-रे रूम में एक्स-रे वाले लड़के के मोबाइल पर उसकी प्रेमिका का फोन आता है तो लगता है मरीज के सिवाय सबकी ज़िन्दगी सामान्य चल रही है। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा है- 'सबसे उत्तम बदला क्षमा कर देना है।’ पुस्तक में अंतत: सबको क्षमा करके भीतर प्रेम ही बना रहता है। मुक्त और निर्मल प्रेम। 'जइसे पात गिरे तरुवर के’ में मृत्यु का दर्शन है। मृत्यु के अटल सत्य के कारण ही क्षमा भाव उपजा है। 'इस दैवीय बन्दोबस्त के चलते ही मैंने उन लोगों को सजा नहीं दी, जो मुझे दु:ख पहुंचाते रहे। आखिर में तो सबको मर ही जाना है।’ '2015 में नेपाल भूकम्प के बाद’ में गहन मृत्युबोध है। स्कूली साथी की असमय मृत्यु की खबर आहत करती है मगर हर ओर होने वाली मौतों से समभाव आ जाता है। पेशावर के स्कूल में बच्चों को मारे जाने से भी बेहद पीड़ा पहुंचती है। जीवन के रैम्प पर कैटवाक करती रूहों की गति अचानक रुक जायेगी।

इन चिट्ठियों में अद्भुत किस्सागोई है। 'पाँच फ़ीट सात इंच का काँटा’ में सुल्तान बंजारा जाति की जिस लड़की से मुहब्बत करता है उसे वह जादू- टोने से  मछली बना देता है। मछली फिर भी खुश है मगर सुल्तान का मन उससे ऊब जाता है। एक दिन वह उसे भून कर भोजन बना देता है। 'आगे यूँ हुआ कि सुलतान जब शौक़ से मछली जान के टुकड़ों से पेट भर रहा था तभी उसके सीने में एक काँटा जा फँसा। जानती हो मनवा! वो पाँच फ़ीट सात इंच का काँटा था। $िकस्सा, दरअसल यहाँ से शुरू होता है’... 'समंदर खारा होने की कथा’ में प्रेम में डूबी लड़की प्यार के मौसम रचती है। प्रेमी उससे विमुख हो जाता है। लड़की दुनिया से रुखसत हो जाती है। 'लड़की मर के भी उसके सीने में जिंदा रहती है और वो जीते जी मर चुका था।’ बरसातों को बहुत काव्यात्मकता से व्यक्त किया गया है। 'यूँ तो बारिशें बंजारा जात की औरतें हैं। जीवन और उल्लास के गीत गातीं, फिर शाम के धुंधलके में गुम हो जातीं। ...इन घाटियों में चलने वाली पछुआ हवाओं के बस्ते में बारिशें भरी हुयी हैं।’ हीर और उदास लड़कियों की आँखों में बूँदों का नमक है। मन की गीली मिट्टी में यादों की खुरपी चलती है। बरसात वह सौतन भी है जो प्रेमी को मिलने के लिए आने से रोकती है। 'चोट खाये मेघ हो जाते हैं थोड़ा उदार’ में बहुतायत से भरा मूसलाधार जीवन आतंकित करता है क्योंकि सब मिथ्या लगता है। 'रूखा-रूखा सा मन है/ कागज के सावन वावन/ सब झूठ- मूठ की बदरी है।’ सिंड्रेला के गुम हुए जूते का किस्सा प्रेम के लिए उठाये गए कष्टों का रूपक बन गया है। 'हे हठयोगी! तुम ध्यान धरो, हम तो सन्तूर बजायेंगे’ में भगवान के साथ बहुत सहज और दोस्ताना रिश्ता है। कहीं कहीं खिलन्दड़ापन भी झलकता है। 'भोगे बिन भोग नहीं, जागे बिन जोग नहीं’ में जीवन दर्शन है। 'ज़िन्दाबाद मत करो, ज़िन्दाबाद बनो’ में भीड़ का हिस्सा न बनकर अपनी अलग पहचान बनाने पर जोर दिया गया है।’ 'तन तितली मन स्याही में’ ईश्वर द्वारा संसार की रचना को आश्चर्य से देखा गया है। 'शुक्रिया दुनिया! में गहरी शांति है। मृत्यु से पहले दुनिया के प्यारे लोगों का शुक्रिया किया गया है। ईश्वर सबसे बड़ा लेखक भी है जो 'दिन’ और 'सुबह’ जैसे शब्द लिखता है। प्रेम ही दुनिया को बचाता है। 'पृथ्वी की गोलाई का प्रमाण है/ लौटता हुआ प्रेम।’ 

बाबुषा की गद्य कविताएं भावनाओं के संवेग के काव्यात्मक प्रवाह से बेठोस हो जाती हैं। गहन संवेदनशीलता वाली इन चिट्ठियों में नया मुहावरा गढ़ा गया है। बीच- बीच में कविताओं का भरपूर इस्तेमाल किया गया है। इनमें विषयों की विविधता है। समाज में असली भावनाओं पर हावी होते गजट्स हैं। असली की नक़ल करते उत्पाद और महानता का मुखौटा ओढ़े हुए लोग हैं। निरर्थक नारे लगाते इंसानों की टोलियाँ है। सब वादों और महानता से बढ़ कर मनुष्यता की हिमायत की गयी है। प्रेम की मरीचिका है और जीवन की क्षणभंगुरता का दर्शन भी। मनीष पुष्कले के अमूर्त श्वेत श्याम रेखाचित्र सराहनीय हैं। उनका मानना है- 'रेखा अपने अन्तस में सारे भावों को समग्रता के साथ लिये हुए रहती है।’ रेखाचित्रों में गद्य कविताओं के मनोभावों को बखूबी प्रकट किया गया है। चिट्ठियों की सूक्ष्म शैली पाठक को अनायास गहन अनुभूति से जोड़ देती है। इन्हें पढ़ते हुए कभी वह उदास हो जाता है, तो कभी गहन चिन्तन में डूब जाता है। 

 

सम्पर्क - 137, सेक्टर-1, आई. एम. टी. मानेसर, गुरुग्राम-122051. हरियाणा


Login