पहल -121

''शुद्ध आर्य रक्त का दावा करने वालों, दिन रात प्राचीन भारत की महानता के गीत गाने वालों, जन्म से ही स्वयं को पूज्य बताने वालों, भारत के उच्च वर्गों, तुम समझते हो कि तुम जीवित हो! अरे, तुम दस हजार साल पुरानी लोथ हो... तुम चलती फिरती लाश हो, माया रूपी इस जगत की असली माया तुम हो, तुम्हीं हो इस मरुस्थल की मृगतृष्णा... तुम हो गुजरे भारत के शव, अस्थिपिंजर... क्यों नहीं तुम हवा में विलीन हो जाते, क्यों नहीं तुम नये भारत का जन्म होने देते?’’

 

- स्वामी  विवेकानंद, कम्पलीट वर्क

(खण्ड-7) पृष्ठ-354

 

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