हे राम, जीवन एक कटु यथार्थ है और तुम एक महाकाव्य
तुम्हारे बस की नहीं उस अविवेक पर विजय जिसके दस बीस नहीं अब लाखों सर-लाखों हाथ हैं और विभीषण भी अब किसके साथ है इससे बड़ा क्या हो सकता है हमारा दुर्भाग्य एक विवादित स्थल में सिमटकर रह गया तुम्हारा साम्राज्य
स्व. कुंवर नारायण अयोध्या : 1992 |