पहल 104

 

कविता में कहने की आदत नहीं, पर कह दूं
वर्तमान समाज चल नहीं सकता।
छल नहीं सकता मुक्ति के मन को,
पूँजी से जुड़ा हृदय समाज को बदल नहीं सकता।
गजानन माधव मुक्तिबोध

 



आज का संकट ठीक इस बाद में निहित है कि जो पुराना है वह मर रहा है और नया पैदा हो नहीं सकता; इस अंतराल में रुग्ण लक्षणों का जबरदस्त वैविध्य प्रकट होता है।
अन्तोनिया ग्राम्शी (प्रिज़न नोट बुक्स)



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