पहल 98

बहुत गहरी होती हैं गूँगे की आँखें

    गूँगा जब उदास होता है/रोता है आकाश की तरफ मुँह उठाकर

गूँगा जब क्रोधित होता है
भरभराकर जल उठते हैं
उसके अंदर के अधजले कोयले

    गूँगे की इच्छा है
    दो ऊँचे खोखले पहाड़ों के बीच
    पूरी ताकत से
    अपनी प्रेमिका का नाम लेकर चिल्लाए

    गर्म रेत से झुलसकर
    बोलने की कोशिश करता हुआ गूँगा
    छटपटाता है/प्रसव वेदना से तड़पती स्त्री की तरह

तुम हिचक-हिचक कर रोओ
गूँगा बता सकता है
तुम्हारी किस आंख में तरलता है - और किसमें सूअर का बाल

- मोहन डेहरिया की गूंगा श्रृंखला की कविताओं की कुछ पंक्तिया

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