केवल कला, साहित्य, संगीत,नाटक और नाच ही नहीं, खेती करघा या हस्तशिल्प भी संस्कृति का हिस्सा है। जीवन-दृष्टि और समग्रता बोध से निकली विचारधारा इंसानी समाज का खास आयाम है। तर्क नहीं, अनुभूति ने इंसान को इंसान बनाया है। सारे स्तनपायी जीवों में मादा बुद्धि में श्रेष्ठ होती है, लेकिन पुरुषों ने शारीरिक शक्ति के बल पर उसे दबाना चाहा है। एक नई संस्कृति ही इन हालातों को बदल सकती है।
सच्चिदानंद सिन्हा मूर्धन्य समाजवादी चिंतक |