चीनुआ एचेबे की याद \ चीनुआ एचेबे की याद

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    दिसम्बर 2013
श्रेणी नाइजीरिया से
संस्करण दिसम्बर 2013
लेखक का नाम अनु. सुरेश सलिल






एक कविता के जरिये

अफ्रीकी अस्मिता और मानव मुक्ति के अथक योद्धा नाइजीरियाई साहित्यकार चीनुआ एचेबे (1930-2013) का एक दुष्काल में जाना मनुष्यहित की एक बड़ी क्षति है। अपनी कलम से वे जीवन-भर उपनिवेशवाद, नस्लवाद और सैन्यवाद से लड़ते रहे। उनकी प्रमुख कृतियां हैं : - (उपन्यास) 'थिंग्स फाल एपाई', 'नो लांगर एट इज़', 'ए मैन ऑफ द दि पीपुल', 'एंटहिल ऑफ दि सवाना', (कहानी संग्रह) 'गल्र्स एट वार', (कविता संग्रह) 'बिवेट सोल ब्रदर'।

इतिहास की एक 'अगर'

जरा सोचो, हिटलर अगर अपनी जंग जीत जाता
हमारी इतिहास की क़िताबें आज धपड़चपड़ होतीं,
फतह के फैसले से लबालब अमरीकियों ने
एक जापानी कमांडर को, युद्ध अपराधी के बतौर
सूली पर चढ़ा दिया,
एक पीढ़ी बाद एक बेचैन उँगली उनकी पसलियों में धंसी हुई,
हमें अपने अमरीका को, वियेतनाम में उसके
हत्यारे खूनी कारनामों के लिए सूली पर चढ़ाना होगा।

मगर आज हरेक को जानना होगा कि सूली
एक पीडि़त से बढ़कर, प्रत्यक्ष अपराध के बोझ से
लदी होने के बावजूद, बहुत कुछ निगल जाती है,
क्योंकि एक विवेकहीन हत्या के लिये भी
जरूरी है - एक विजेता।
जरा सोचो, हिटलर अगर जुए की बाजी जीत जाता
कैसी अफरातफरी दुनिया में मच जाती!
चैनलवार के उसके कट्टर शत्रु को
युद्ध अपराधों के लिए मरना होता,
और जहां तक हैरी ट्रुमेन का सवाल है,
हिरोशिमा का वह खलनायक...
हाँ, हिटलर अगर अपनी जंग जीत जाता, तो
द' गाल पर दोबारा मुकदमा चलाने की जरूरत न होती
उसे पहले ही पेरिस ने फ्रांस के साथ दगाबाजी के लिए
मौत की सजा नहीं सुना दी थी!
अगर हिटलर जीत जाता
बिडकुन किस्लिंग नार्वे के प्रधानमंत्री के पद पर
काबिज हो गया होता -
अगर हिटलर जीत जाता...

अनु. सुरेश सलिल

कॉमनवेल्थ पोइट्री एवार्ड संग्रह से

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