मुझे माफ करना डॉक्टर... डॉ. नरेन्द्र दाभोळकर के लिए
मुझे माफ करना डॉक्टर तुम्हारे जाने के बाद मैं मोर्चे में गया नहीं श्रृद्धांजलि सभा में भी नहीं गया अपराधी मन लिए सोचता रहा तुम्हारी अट्ठारह वर्षों की लड़ाई में मैं कहीं भी शामिल नहीं था!
तुम लगातार चीत्कार करते रहे उस क्रंदन करती टिटहरी की तरह, जिसके शिशुओं को लहरों ने लील लिया मैं समुद्र के सौंदर्य में भीगता रहा, लेखों की तो छोड़ों डॉक्टर एक सादा पत्र भी कहाँ लिखा? जब भी तुमसे मिला मौसम की जानकारी लेने की तरह ही पूछता रहा, तुम्हारे काम को सरकार विरोधी अनिस1 के संघर्ष को और क्रिकेट मैच को एक ही भाव से देखता रहा, घिरी हुई भीड़ में भी तुम अकेले ही रहे डॉक्टर!
अपनी लड़ाई हरएक को खुद ही लडऩी पड़ती है क्या? अपनी सलीब खुद ही ढोना, प्रत्येक ईसाई की यही नियति है यही सत्य 'संघर्ष' का भी है आज सड़क पर उतरी भीड़ों का एक दशांश भी तब उतरा होता, तो तुम्हारी तड़प कुछ कम हो जाती, चाहिए थे तुम हमें, सिर्फ व्याख्यानों के लिए तुम्हारी मित्रता भी थी, मेरी प्रगतिशील छवि को प्रगाढ़ करने के लिए। तुम्हारे संघर्ष से मेरा नाता कहां था? मंत्रालय की सीढिय़ां चढ़ते हुए तुम अकेले थे, हर अधिवेशन के खत्म होते ही सीढिय़ां उतरते तुम अकेले ही रहे मैं वर्ष पर वर्ष गिनता रहा क्रिकेट के स्कोर की तरह! आज हम कह रहे हैं, गोलियों से विचार खत्म नहीं होते बढ़ते हैं, कहना ही पड़ता है सांत्वना के लिए
जीते जी तुम्हारी उपेक्षा करने वाले हम तुम्हारी मौत की ब्रेकिंगन्यूज़ खत्म होने के बाद भी लड़ेंगें क्या? अच्छा नहीं लगेगा फिर भी... ऐसा ही कहा था हमने गांधी की हत्या पर ऐसा ही, सफदर की हत्या के समय ऐसा ही शंकरगुहा नियोगी के चले जाने के बाद, कितना सहेजा हमने विचारों को डॉक्टर... गांधी को गुजरात में कहाँ खोजूँ... सफदर हाशमी को राजनीति के गलियारों में किन नुक्कड़ नाटकों के बीच खोजा जाए नक्सलवाद और पूंजीवाद के बीच बँटे छत्तीसगढ़ में नियोगी को कहाँ खोजूँ तुम्हारा स्मृति-दिन, तुम्हारे नामों से पुरस्कार, तुम्हारा स्मारक, ये सब स्वाँग होगा, महाराष्ट्र भूषण से तुम्हें सम्मानित करते उन्हीं लोगों के मुँह से तुम्हारा गुणगान सुनना पड़ेगा जिन्होंने पिछले अट्ठारह वर्षो से तुम्हें अपमानित किया पर डॉक्टर मैं शर्मिंदा हूँ, तुम अट्ठारह वर्ष तक लड़ते रहे और मैं निष्क्रिय जीवित था तुम अभिमन्यु की तरह असहाय मारे जा रहे थे डॉक्टर तब भी मैं जिंदा था। * * 'अनिस - अंधश्रृद्धा निर्मूलन समिति
हेरंब कुलकर्णी प्राथमिक शिक्षा के लिए जूझनेवालेअपने किस्म के कार्यकर्ता है। मराठी भाषा में उन्होंने अनेक पुस्तकें शिक्षा विषयक लिखी है जो भारतीय साहित्य में मील का पत्थर साबित हो सकती है। (शालाआहे शिक्षण नाही!)हेरंब कुलकर्णी बड़े संवेदनशील और जनप्रिय कवि हैं उनकी कविताएं पारदर्शी, ईमानदार और बुद्धिजीवियों की भूमिका को प्रश्नचिन्हित करने वाली है। |