सशक्तिकरण की फ्री किक - पवित्रा लामा
श्रेणी | सशक्तिकरण की फ्री किक - पवित्रा लामा |
संस्करण | जनवरी 2021 |
लेखक का नाम | अनु. बिर्ख खडका डुवर्सेली |
नेपाली कविता
सशक्तिकरण की फ्री किक
*भवानी! किसने रखा तुम्हारा नाम?
जब मैं घर की खिड़की के पास खड़ी होकर किसी को बताए बिना ही समय को निहार रही होती हूँ, तुम तो सीटी बजाकर समय की रणभूमि में ललकारती हो।
काँटेदार बूट पहनकर पाँव तले कलंक को कुचलकर सूरज के उजाले से तेज और तीव्र होकर मैदान में पहुँच चुकी होती हो।
जब मैं सिर से पाँव तक लाज और मान्यताओं से खुद को लपेटकर चूल्हा लिप रही होती हूँ, दीवार सजा रही होती हूँ, उज्जवल कर रही होती हूँ रीति के सामान चमका रही होती हूँ क्लश और लोटे... तब तुम हजारों बरसों से स्थापित दंभ को खदेड़ चुकी होती हो। मैदान के बीच दासत्व के मुखौटे को गेंद बनाकर उजागर बना रही होती हो।
उल्टी धारणाओं को बैक पास देते हुए एक पक्ष के दबाव की रक्षा करते हुए रेफरी बनकर बार-बार रेड-कार्ड दिखा रही होती हो पैरामीटरों को।
जब मैं सोलह श्रृंगार में खुद को सँवार रही होती हूँ अपनी उड़ान की क्षुद्रतम संभावनाओं को और जटिल और गठीला बनाकर मैं बाँध रही होती हूँ तब तुम पाउजेब, घूंघट, चुडिय़ाँ, झाँझर, मान्यताएं और ज़िंदगी की हजारों बाधाओं को ड्रिबल कर रही होती हो फाउल-प्ले को इनस्वींगर में बदलते हुए टचलाइन से गोललाइन की ओर ताककर दृढ़ता के साथ सेन्टर स्पॉट से सशक्तिकरण की डाइरेक्ट फ्री किक मार चुकी होती हो। एक से ग्यारह बनी हिम्मतें, साहस सीने में ढोकर ग्यारह अक्षर लिख चुकी हो समय की दीवारों पर।
(* भवानी मुंडा पश्चिम बंगाल के दुर्गम क्षेत्र डुवर्स के गरीब परिवार में जन्मी आदिवासी लड़की है जो अपने बलबूते पर महिला फुटबाल दल 'डुवर्स इलेवेन’ गठन करने में सक्षम और सफल हो चुकी है। उसके प्रयास और परिश्रम की प्रशंसा में रिलेयन्स फाउन्डेसन और सीएनएन-आईबीएन ने उसे 'रियल हीरो’ अवार्ड प्रदान किया था। लवोरियल पेरिस फेमिनावूमेन अवार्ड और बंग रत्न सम्मान (2015) से नवाजी गई है)
युद्ध की मोनालिसाएँ
अपनी वासभूमि के सपनों के साथ अंतिम युद्ध की लालिमा के साथ एकाकार होकर उसके आँगन में आ पहुँचा है एक निर्जीव शरीर जिसे देखकर भी वह नहीं रोती है, न चिल्लाती है नहीं मचाती है कोई उत्पात।
वह उंगली नहीं दिखाती है वर्तमान को दोष नहीं थोपती है इतिहास को श्राप नहीं देती है ईश्वर को
पहाड़ी नदी एकाएयक जमकर हिम बनी हो वह बन जाती है अनाम युद्ध की एक मनाम मोनालिसा।
मोनालिसा, जिसकी यात्री है पर पाँव तल नहीं है जिसका आईना है, चेहरा नहीं है न है टेकने के लिए भूमि न खड़ा होने के लिए आकाश न आँगन है, न नाली न भंडार है, न कूड़ादान।
कैलेंडर है, दीवार नहीं है विरह है, पर गीत नहीं है।
बेमौसम की बारिश है न भरने वाला गर्त है एक एक नीरस तमाशा है
सिसिस चट्टान को धकेलते हुए मोनालिसाएं ऊपर चढ़ रही हैं अंतहीन शिखर की जीवन यात्रा और पी रही हैं ज़िंदगी में मुफ़्त मिला एक प्याला नीला विष।
वेदा के अंतहीन कारावास में इतिहास के क्रूर प्रहार से घायल मोनालिसाएं मुस्कुरा रही हैं एक उपहासभरी मुस्कान जिंदा लाश बनकर समय पन्नों पर।
पवित्रा लामा पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी जिला अंतर्गत कालचिनी (डुवर्स) में 3 मार्च 1976 में जन्मी नेपाली की वरिष्ठ कवयित्री हैं। फिलहाल पश्चिम बंगाल सरकार के उच्च पदाधिकारी के रूप में सेवारत हैं। इनकी दो कविता संग्रह 'सभ्यता का पेण्डुलमहरू’ (2016 और 'म देह रातो रङ्गिन्छु’ (2019) प्रकाशित हैं। नेपाली साहित्य संस्थान, सिलीगुड़ी द्वारा आयोजित पहली धमारी कविता प्रतियोगिता में प्रथम हुई हैं। साहित्य अकादमी युवा महोत्सव, अगरतला (2016), उत्कल साहित्य महोत्सव, भुवनेश्वर, अखिल भारतीय नेपाली लेखिका सम्मेलन, गांतोक (सिक्किम) तथा बहुभाषी कवि गोष्ठी, कोलकाता जैसी गोष्ठियों में अंशग्रहण ले चुकी है। संपर्क- मो. 9933546416
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