सुभाष राय की कविताएं
कविता
ईश्वर
जब मैं बहुत खुश था मैंने ईश्वर को पुकारा मैं कहना चाहता था यह खुशी तुम्हारी वजह से है वह खामोश रहा
जब मेरी बेटी जन्मते ही मुझे देख मुस्करा उठी मैंने ईश्वर को पुकारा मैं कहना चाहता था इस हंसी के पीछे तुम हो वह खामोश रहा
जब सैकड़ों बच्चे मर रहे थे पुकार लगा रही थीं मांएं कुछ नहीं कर पा रही थी सरकार, खामोश थे डाक्टर मैंने ईश्वर को पुकारा मैं जानना चाह रहा था बच्चों के साथ ही कहीं वह भी तो नहीं मर रहा वह खामोश रहा
जब पूरी ट्रेन नदी में गिर पड़ी थी चीखें डूब रही थीं काले जल में मैंने ईश्वर को आवाज दी मैं पूछना चाहता था इसमें तुम्हारा कितना हाथ है वह खामोश रहा
जब शहर में दंगे हो रहे थे मेरे चेहरे में खून टपक रहा था मैं चिल्लाया, हे ईश्वर! सच-सच बताओ क्या तुम यहीं चाहते हो कि लोग आपस में ही कट मरें वह खामोश रहा
जब एक बच्ची से बलात्कार हुआ कुछ वहशियों ने उसे निर्ममता से रौंद दिया मैंने ईश्वर को आवाज दी मैं जानना चाहता था बच्ची का दोष क्या है वह खामोश रहा
जब मैं बूढ़ा हुआ बीमार पड़ा और मर गया तब भी मैंने ईश्वर को पुकारा मैं जानना चाहता था दुख की वजह क्या तुम्हीं हो वह खामोश रहा जब हद हो गयी और एक दिन मुझे ईश्वर के होने पर शक हुआ मैं पागल की तरह चिल्लाया अस्वीकार करता हूँ तुझे मैंने सोचा शायद इस तरह अस्वीकार किया जाना वह स्वीकार न कर सके लेकिन तब भी वह खामोश रहा
मैं हर किसी से पूछ रहा हूँ क्या वेदना के किसी पल में कभी ईश्वर ने तुम्हारी माथे पर हाथ रखा तुमसे कुछ कहा कोई बोलता ही नहीं
शिव
सागर तट पर बेचारे शिव रोज डूब जाते हैं लहरों में डूबते ही रहे हैं वे सदियों से उनके गण देखते रहते हैं चुपचाप समा जाने देते हैं उन्हें जल में उन्हें बनाया ही गया है रोज डूबने के लिए
लहरें आती हैं तो शिव के माथे पर डाल जाती हैं कचरा
पुजारी भगतों से कहता है नहीं देखा सदियों ने इतना बड़ा चमत्कार वरुण देव आते हैं शिव के चरण पखारने प्रति दिन दो बार जब पानी उतर जाता है जी जान से जुट जाते हैं भगत बाबा को नहलाने में उनके कीचग्रस्त सिर पर मारते हैं बौछार, लगातार स्नान के बाद एक भक्त लाता है सिरस्राण शिव का लोहे का सांप
शुरू हो जाता है अभिषेक दुग्ध, जल, बिल्व और धतूरे के फूल से कलुष की, अधर्म की क्षय भगवान स्तम्भेश्वर की जय
जिसने भी रचा इसे जानता रहा होगा समुद्र विज्ञान भली-भांति यह भी कि भविष्य में जो भी आयेंगे यहां मानेंगे इसे शिव का चमत्कार
आज देश के कोने-कोने से चले आ रहे हजारों लोग सिर पर लादे अपने स्वार्थ-प्रस्ताव
सब कुछ देखकर भी चुप रह जाते हैं भगवान बोलें तो पुजारियों की पोल खुल जाये बोलें तो सब पाखंडी मिलकर उन्हीं की बोलती बंद कर दें
अपनी ही मुक्ति के लिए जो नाकारों पर निर्भर रहेंगे ऐसे असहाय शिव आखिर बोलें तो क्या बोलें
भविष्य
भविष्य के गर्भ में कुछ बेहतरीन सपने हैं तो कुछ भयानक दुर्घटनाएं भी
जिन्हें भविष्य से अपने लिए कुछ नहीं चाहिए दुनिया के लिए सब कुछ चाहिए उन्हें मिलते हैं सपने
जिन्हें भविष्य से दुनिया के लिए कुछ नहीं चाहिए मगर अपने लिए सब कुछ चाहिए उन्हें मिलती हैं दुर्घटनाएं
जीवन और मौत, दोनों ही बांहें पसारे हर किसी का इंतजार करते रहते हैं भविष्य में
2.
अक्सर तानाशाह जानना चाहते हैं अपना भविष्य
जो दुनिया को जीतना चाहते हैं वही हार से सबसे ज्यादा डरते हैं वे डरते हैं अपने रक्षकों से अपनी पत्नियों, प्रेमिकाओं से
वे धूप से डरते हैं अपनी छाया से डरते हैं अंधेरे कमरों में बैठते हैं आईनों से डरते हैं
वे जानता चाहते हैं कि कौन उन्हें मार सकता है कोई फंदा तो नहीं तैयार हो रहा उनके लिए वे जानना चाहते हैं कि उनकी पत्नियां, बेटियां या नौकरानियां किसी से प्यार तो नहीं करने लगी हैं
वे हर उस शख्स के बारे में जानना चाहते हैं जिनके साथ कभी अन्याय हुआ है जिनके संबंधी मारे गये हैं बिना वजह
तानाशाहों के टुकड़ों पर पलने वाले दुनिया भर के अपराधी और हत्यारे खुद बनना चाहते हैं तानाशाह वे भी जानना चाहते हैं अपना भविष्य
अक्सर खून से खेलने वालों को बार-बार भ्रम होता है कि कहीं उनके हाथ का खंजर उनके ही सीने में तो नहीं उतर जायेगा
वे जानना चाहते हैं कि जिनका भी हक मारा उन्होंने
जो भी उनके हमले से बच निकले उनके जख्म भर तो नहीं गये
वे जानना चाहते हैं कि जिनकी हत्याएं की हैं उन्होंने उन्होंने कहीं फिर से जन्म तो नहीं लिया
तानाशाहों की ही तरह दुनिया भर के नाकारे भी जानना चाहते हैं अपना भविष्य उन्हें तानाशाह से, उनके अन्याय से कोई मतलब नहीं उन्हें इस बात से भी कोई मतलब नहीं कि उनके जीने का क्या मतलब है
कवि लखनऊ में रहते हैं और प्रसिद्ध जनसंदेश टाइम्स के संपादक है।
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