वसु गंधर्व की कविताएं

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    दिसंबर - 2019
श्रेणी वसु गंधर्व की कविताएं
संस्करण दिसंबर - 2019
लेखक का नाम वसु गंधर्व





पहल में दूसरी बार

कविता/आगमन

 

 

 

सांझ

 

यह अमित रेखाचित्र आत्मा पर

सांझ का है

यह उदासियों की बारीक सतहें हर चीज पर

यह परास्त थके पंछी की अंतिम उड़ान का गीत

जिसे किसी मर्सिये सा गाती है हवा

यह बूढ़े बाबा की

अंधेरी भोर से लौट आती ध्वनि धूल में

सांझ की है

 

यह सांझ का जंगली पुष्प है

जो किसी भी मौसम में

कहीं भी खिल जाता है

और सभी आवाजें समवेत

एक बड़े सन्नाटे का हिस्सा हो जाती हैं

 

यह उस का संगीत है

जो पहले बांस में से

पहली हवा के गुजरने से बना था

यह आकुलता उसे सुनने वाले

पहले मनुष्य की है

यह पीली सुबह की कल्पना

उस का स्वप्निल उन्माद है।

 

पुराना पेड़

 

वह बहुत पुराना पेड़ था

बड़बड़ाता रहता था अनवरत

उसके एकांत में धीरे से प्रवेश करते थे हम

और इतिहास में जो लकडिय़ां नहीं जलाई गई थीं योद्धाओं के अस्थि

शेष की चिताओं पर

उन्हें इकट्ठा करके

एक असंपूर्ण किंवदंती के धुएं के छल्ले में

गर्म रखते थे अपने स्वप्नों को

 

उसकी आत्मा खाली पीपी की तरह

आर पार जाने देती थी

अलग अलग मौसमों की हवाओं को

उसके वीतराग जितना ही पुराना संगीत

पाता था ठौर

उसकी पत्तियों से गिरते अंधकार में

 

उसी अंधकार में रहता था बंद

उसकी परछाईं सा फैला

शाश्वत निराकार पतझर।

 

जगता हूँ

 

मैं जगता हूँ

अपनी पाषाण अनिद्रा में

नदी में बहते अंधकार से

अपने हिस्से की रात ले जाने की प्रतीक्षा में

मैं जागता हूं सुबह की एक अलसाई कल्पना में

 

जैसे लिखती है कोई उदास दोपहर

धूप की दीवार पर

अपना अधूरा स्वप्न

जगता हूं डायरी में अंकित किए

सबसे बोझिल दस्तावेज़ में

 

जगता हूं जैसे इन पुराने पेड़ों में

जगता है अंधकार

जैसे शामों में जगता है

पक्षियों के वापस लौट आने का स्वर

 

मैं जगता हूँ

जैसे आकाश में जगती है रात।

 

बक्सा

 

इस बक्से को

नींद की भाषा में ही खुलना था

दूर से आती धीमी आवाजों का

ऐसी ही पीली शामों में होना था विलय

 

इसमें बंद असंख्य घोड़ों की टापें

अपने साथ ले जायेंगी मृतकों को किसी पुराने ग्रंथ में जहां से संभावित

हो सकेगा

किसी महाकाव्य का प्रारूप

 

इसमें कैद सबसे अबूझ रहस्य

बिखर जाएंगे हवा में

जैसे अंतश्चेतना में

तुम्हारी स्मृति के पलाश

और सांद्र हो जाएगा

तुम्हारी अनुपस्थिति का संगीत

और वीरान हो जाएगा

बूढ़े बाबा की आंखों में पसरा

पुरखों के घर का गलियारा

जहां बीता होगा उनका बचपन

और देह के किसी उलजलूल सुनसान जंगल में

भटकते खो जाएगा

सबसे प्रेमिल स्पर्श

 

इसमें से निकला इतिहास भी अस्तमित हो जाए

मिथकों में

हम इन पत्थरों की शिलाओं पर

लिखेंगे अपने नाम।

 

शोकगीत

 

अगर आकाश लोहा है

तो उसमें से झरझरा कर गिरती जंग है बारिश

 

इतिहास में मिट्टी का एक कतरा भी नहीं

ना ही तल में पैठे अंधकार का

वह एक तैयार किया गया पशु है

साफ चमकता सफेद

पानी की तरह पारदर्शी उसके रोएं

 

सिगरेट के सूखे टुकड़ों सा

जीवन यहां

 

सुबहें शामें रातें

सब की सब एक ही रूदन की बोझिल सिसकियां

 

धूल खाती इमारतों का पुरानापन

उनके बीच यह शहर

भुला दिए गए स्वप्न आ अपभ्रंश

 

एकांत की ध्वनियां सुनती

केवल चिंघाड़ती ट्रकें हैं यहां।

 

 

छत्तीसगढ़ में उभरते हुए सर्वथा नये कवि। रायपुर में रहते हैं। संगीत में गहरी रुचि। कविताओं की तबियत (मूड) अलग हैं।

 

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