मराठी कविताएँ

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    अप्रैल २०१३
श्रेणी मराठी कविताएँ
संस्करण अप्रैल २०१३
लेखक का नाम प्रकाश जाधव





 


खेल


आओ
हम लोग देश-प्रदेश खेलें

आओ
हम लोग जात-पांत खेलें

आओ
हम लोग दंगे-वंगे खेलें

आओ
हम लोग लूट-पाट खेलें

आओ
हम लोग आग-फाग खेलें

आओ
ध्वस्थ कर दें असफलता के निराश बंगले

और
डाका डाल...
ग्रेज्युएशन से बेरोजगारी के दौर में
शिक्षा मंत्री को खूब दारू पीकर गाली दें

किसी-ना-किसी वजह से
पुलिस कस्टडी में आते-जाते रहें

थाने के इन्क्वायरी कमरे में सिकवा लें हाथ-पैर
और नाप लें
कोर्ट की अड़सठ पायरियां

डेअरींग है तो
किसी भी पार्टी का टिकिट हथिया लें

और हो जाएं मालामाल

 


जितने भी मुर्दे हैं

जितने भी मुर्दे हैं
एक सरकारी हुकुम से
उन्हें जीवित किया जाएगा
संविधान में संशोधन करके

मुर्दो ने सूचित किया
हमें फिर से मुठभेड़ करनी पड़ेगी-
अन्न-वस्त्र-आवास से

बेहतर होगा इससे
उगे ही न सूर्य
और न डूबे चांद
ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता
किया जा सकता है
ऐसा भी!
हमेशा के लिए कब्रस्तान चालू रखकर
और अघोरी लोग लग गए काम पर


कवि

तू मर करोड़ों की मौत
या मांगने लग भीख

    दारू के एक बूंद के लिए तरस
    या एक घूंट पानी के लिए

सज्जनों की महफिल से उठ
या चंडाल-चौकड़ी के चक्कर से

    फूलों की मासूम दुनिया से दूर हो जा
    या समुद्र की पवित्र किताब से

दूर हो जा गांव से
या मुल्क से

    खुद की देह से परे हो जा
    या आइने से

हे कवि
तेरे शब्दों का अपार पसारा है

हमारी
एकता को ताकत दे

हमारी
सड़ गई संगठना को मजबूती दे

और
हमें उम्मीद रोटी की...


पियानो

इस उदास शहर के पियानों पर
जिसने छेड़ी है धुन

व्यस्त है क्राईम ब्रांच
विस्थापितों का पता
और बेकसूरों से जबरन गुनाह कबूल करवाने में

व्यस्त है उल्लासनगर
जीवनावश्यक दवाईयों में साइनाइड मिलाने में

इस शहर की
यही है सबसे उंची नाक

रिस रहा खेत-मजदूरों का सस्ता खून
हस्तमैथुन की पहली तारीख से

यूनियन की एक दुकान से निकली सत्रह दुकानें
और मांग पत्र का निरपराध शव
मेंनेजमेन्ट के टेबल पर
बहुत दिनों से सड़ रहा है

यह भी इस शहर की
और एक नाक है

मंच के इर्द-गिर्द के
विशाल भीड़ के सामने
स्वतंत्रता के बाद-

झक्क उजाले की तरह भभककर
गुल हो जाने वाले करतबगिरी का खेल जारी है
बिजली के
बिल की दहशत की तरह लोग-बाग
यहां-वहां एकत्रित होते हैं
और बेमौत मर जाते हैं

गिर गया है कुत्तों की निगाहों से लेबर-कॅम्पस्

और मासूम बच्चों के भविष्य से दूर है
बंद-खिड़की-दरवाजे-दुकान-हॉटेल

यकायक भड़ककर उठने वाला वंशवादी वर्ग
चलनी सिक्कों की तरह प्रश्न उछालता है
पर्चों द्वारा,
घोषणाओं द्वारा,
इसके-उसके द्वारा
और छोड़ जाता है शनवारी चाल में

इन्क्रिमेंट बंद कर दिए गए हैं
और पे-स्लिप पर मजदूरों के औरतों-बच्चों के
टपकते हैं आंसू भूख की त्रासदी भरे दिनों के

एक दलित युवती के साथ हुए बलात्कार के बाद
चूतियों जैसे लोग
और
संसद मौन है

यह इस शहर की कटी हुई नाक है

जिसने इस शहर के उदास पियानों पर छेड़ी है धुन
उसे समझ लेना चाहिए
राग-अनुराग की सिसकियाँ और चीखों को
अगर बजाना आया
तो सुनेगें
करोड़ों-करोड़ों लोगों का रोना
पियानो पर

भय और उम्मीद के बीच

एक ओर बंदूक से तने हुए रास्ते हैं
दूसरी ओर
विद्रोही मजदूर, बच्चे-बूढ़े अऔर व्हिएतनाम-

झठके से उठ गया सपने में
और गश्त लगाते
पुलिस के हाथों में लग गया

मेरे पास न पहचान पत्र
और न लास्ट शो की टिकिट
पहचान के लिए
एकाध कागज दिखाने के लिए
डाला हाथ अंडरवेअर में
जेब ही नहीं था

बज गया है रात का एक
और उसके ओठों पर
जलती सिगरेट की रोशनी से
मेरी आंखों में ठहरी हुई रात
उजली होती चली गई

इशारा

प्रस्थापितों के विरोध के संघर्ष का
रक्तरंजित इतिहास है
कितने मारे गए
कितने हुए जख्मी
और कितने जेल में ठंूसे गए?

और पूछते हो हिसाब

एक जलता हुआ शहर है
एक जलता हुआ घर है
एक उजड़ी हुई हरियाली है

और गवाह है वर्ग-युद्घ का
एक खंदक

देश-देश के हुकुमरानों को
मेरी आंख करती है-

एक इशारा।

स्वंय - रचित नक्शे में

इस स्वंय-रचित नक्शे में

एक से बढ़कर एक बीमारू मगरूर सांमतशाह है

दिल ही दिल में घुटकर मरने वाले मजदूर, आदि -
किस झाड़ की पत्ती हैं

वेश्याओं की चमड़ी के एक्सरे हैं

केवल एक चादर मैली सी है :

- अल्ला-हू-अकबर
और हरहर महादेव की
और लगातार उठ रहा है
हमारे दिल की गहराई से

विद्रोह...

संशय - गुनाह और कानून

तेरे हाथ में जो चना-पुड़ी है
एक बंदी लगाई पुस्तक के कागज हैं
सिर्फ इतना ही सबूत बहुत है
संशय : गुनाह और कानून के लिए

तू लाख तर्क दे ले
भैय्या, उतने कम चने
हमेशा ऐसी ही पुड़ी में बांधकर देते हैं
जिसमें कबीर के दोहे या
फक्-इज-अ-आर्ट से संबंधित लेख या
तुकाराम के चुभने वाले अभंग होते हैं

इसे नज़रअंदाज करते हुए
उन्होंने जांच के लिए
जंगल को ताबे में ले लिया
और दंगों में जलकर
राख हो गए घर को

गेट से घर के बीच ही में
तूने ले लिया था
एक चाकू और
पांच लिटर मिट्टी का तेल

रेल्वे में
इन दो चीजों के ले जाने में पाबंदी है
हुकुम तोडऩे के जुर्म में
तेरे जैसे एक नेक बंदे को
कानून की खूंटी में टांग दिया जाएगा
घंटे भर के अंदर

कानून के नज़र में
जिस देश का नागरिक है तू
उसका कानून
वेश्या और ग्राहक के बीच के
दलाल जैसा है

वह एक कटोरी दही जमाने के लिए
बोतल भर दूध की बलि लेने के लिए
नहीं देखता
आगे-पीछे

लेनिन

मंजिल-दर-मंजिल
थक गए हैं मजबूत रिश्ते-नाते
जुल्म सहते-सहते
और बना लिया है
मेरी पसलियों के अंदर घर
मेरी सांस दूषित हो गई है
लेनिन

टिकिट पाने के लिए
पागलों की तरह आपसी समझौता कर रहे हैं
इस हृदय से फूटकर निकलता रुदन
मुझे
मेरे पैरों के नीचे की ज़मीन इतनी
लगती है आश्वासनें
बनावटी केवल
वोल्गा में उठी आग की लपटें
पहुंच गईं हैं मेरे इर्द-गिर्द

लेकिन मेरा देश
विश्व का एक प्रचंड हिजड़ों का घर है

मुझको कबूल है कि दीवारों पर
लगाया जा सकता है रंग
दीवार - दीवार होती है
संस्कार
नहीं हो सकती
लेनिन

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