भिखारी का परचम

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    जून 2019
श्रेणी भिखारी का परचम
संस्करण जून 2019
लेखक का नाम पंकज स्वामी





कहानी

 

उस मौन बूढ़े को ट्राइसाइकिल में बैठे हुए देख कर सड़क से निकलने वाला प्रत्येक व्यक्ति भिखारी ही समझता है। लगभग 70 से 75 वर्ष की आयु। वह है तो भिखारी, लेकिन बहुत कम लोगों ने उसे भीख मांगते हुए देखा। कभी-कभार पास से गुजरने वाले राहगीर के सामने वह हाथ फैला लेता। किसी राहगीर की उसे कुछ देने की इच्छा हो भी, तो वह उसकी पाषाण गेहुंआ चेहरे पर बढ़ी हुई दाढ़ी, लम्बे-लम्बे बाल, मैले कुचेले सिल्ट लगे कपड़े और वर्षों से स्नान न किए हुए रूप को देख कर घबड़ा कर दूर हो जाते। लोगों ने उसे सड़क के आसपास की दुकानों-खोमचों से भी कभी खाने-पीने की वस्तुएं मांगते हुए नहीं देखा। प्रतिदिन सड़क से निकलने वाले लोग बूढ़े भिखारी को ट्राइसाइकिल में एकटक गुमसुम बैठे हुए देखते। ट्राइसाइकिल में ही उसका दिन व रात बीतते। देर रात में भी वह ट्राइसाइकिल में बैठे हुए दिखता। राहगीरों ने उसे कभी सोता हुआ नहीं देखा। लोग रात में दो या चार पहिया में बैठे हुए उस समय डर जाते, जब उनके वाहन की रोशनी उस बूढ़े की आंखों पर पड़ती। ऐसा लगता कि वह बिना पलक झपकाए उनकी ही ओर देख रहा हो।

शहर के आलीशान क्षेत्र और उससे सटी सैन्य कॉलोनियों की सड़क में बूढ़ा भिखारी लगभग एक किलोमीटर के दायरे में ही लोगों को दिखता। वर्षों पूर्व या कह लें कि लगभग 20 वर्ष पूर्व हड्डी के ढांचे की मानिंद बूढ़े भिखारी को लोगों ने सड़क पर घसिटते हुए देखा। सड़क पर वह गर्म धूप, तेज बरसात व कड़कड़ाती ठंड में पड़ा रहता। उस समय लोगों को महसूस हुआ कि वह ज्यादा दिन जिंदा नहीं बचेगा। सड़क से निकलने वाले लोगों की संभवत: संवेदना इसलिए नहीं जागी कि बूढ़ा भिखारी मरने वाला है, अब क्या प्रयास किए जाएं? कुछ दिन पश्चात् एक पुलिया के सहारे वह टिका हुआ दिखा। वह आसपास पड़ी प्लास्टिक की पन्नियों में भोजन की तलाश कर रहा था। घिनिया कर राहगीर रास्ता बदल कर गुजरते गए, लेकिन किसी ने उसकी फिक्र  नहीं की। सड़क के आसपास रहने वाले और वहां से नियमित गुजरने वालों को महसूस होता कि वह बूढ़ा भिखारी सौ मीटर की दूरी पर माता मरियम की मूर्ति के सामने अन्य भिखारियों की तरह बैठ जाए, तो उसकी जिंदगी बच जाए और अन्य भिखारियों की तरह उसकी जिंदगी ढर्रे पर चलने लगे। कुछ लोगों को पाषाण चेहरे में बढ़ी हुई दाढ़ी की वजह से उसमें यीशू मसीह का अक्स भी नज़र आता। वे कल्पना करते कि जैसे माता मरियम की मूर्ति के सामने यीशू मसीह बैठे हों। मरियम की मूर्ति के सामने बैठने वाले अधिकांश युवा व वृद्ध भीख मांगने वाले भिखारियों की तरह नहीं लगते थे। वे सुबह से नहा-धोकर तैयार हो कर मरियम की मूर्ति के सामने बैठ जाते। शनिवार को तो उनकी चांदी रहती। बूढ़ा भिखारी इस से बेखबर था। अन्य भिखारियों की तरह वह न तो मरियम के संबंध में कुछ जानता बूझता और न ही उसे शनिवार के दिन के महत्व की जानकारी थी। वैसे भी बूढ़े भिखारी को देख कर कोई भी उसकी जाति या धर्म के संबंध में कभी भी जानकारी नहीं दे पाया। राहगीरों ने बूढ़े भिखारी के भले के लिए सोचा जरूर, लेकिन किसी ने उसे माता मरियम की मूर्ति के सामने पहुंचाने की ज़हमत नहीं उठाई।

जिस पुलिया के सहारे टिक कर वह बूढ़ा अपने दिन गुजार रहा था, उसके नजदीक के घरों में रहने वाले लोग किसी अदृश्य भय से ग्रसित रहते। वे लोग अपने बच्चों को रात में निकलने या नई साइकिल सीखने वाले बच्चों को सतर्क रहने की सलाह दिया करते। घरों के लोगों को उस असहाय बूढ़े भिखारी से चोरी का डर भी सताता। लोग सामान लाने जब भी बाहर निकलते तो घर के भीतर के लोगों को हिदायत देते कि किवाड़ अच्छे से बंद कर लिए जाएं। एक-एक इंच सरकने को मजबूर बूढ़ा भिखारी शौच के लिए कहां जा पाएगा। उसकी इस हरकत पर नजदीक घरों के लोग आग बबूला हो गए। नगर निगम की हेल्पलाइन में सम्पर्क कर लोगों ने अपनी समस्या बताई। कुछ प्रभावशाली लोगों ने तुरत फुरत कार्यवाही करने का दबाव नगर निगम पर बनाया। कुछ ही क्षण में नगर निगम की एक सफाई गाड़ी वहां आ कर रूकी। दो सफाई कर्मी मल से सने हुए बूढ़े भिखारी को देख कर नाक सिकोडऩे लगे। किसी तरह उन्होंने मुंह पर कपड़ा लपेट कर, उसे कढ़ोरते हुए गाड़ी में पटक दिया। कचरा से पटी और बदबू से सराबोर गाड़ी में पटकने से बूढ़े भिखारी की हल्की चीख निकली। अर्ध बेहोशी में होने से कचरा व बदबू का उस पर कोई असर नहीं दिखा। आसपास के लोग आश्वस्त हो गए कि बूढ़ा भिखारी अब उनके आलीशान बंगलों के पास नहीं दिखेगा।

एक सप्ताह के पश्चात् बूढ़ा भिखारी मरियम चौक पर लोगों को फिर से घसिटते हुए दिखा। लोगों को आश्चर्य हुआ कि बूढ़े भिखारी के संबंध में उन्होंने क्या-क्या सोच लिया, लेकिन वह तो जीवित ही है। शहर के आलीशान क्षेत्र में वह वापस आ गया। आलीशान कोठियों वालों को उसकी वापसी रास नहीं आई। उनकी कोठियों के सामने घसिटता बूढ़ा भिखारी किसी धब्बे के समान था। कोठी में रहने वाले परिवार उससे भयभीत नजऱ आए। आलीशान क्षेत्र में ही क्षेत्रीय विधायक की कोठी भी थी। लोगों ने उनसे शहर के आलीशान क्षेत्र में भिखारी की उपस्थिति पर आपत्ति जताई। वे भी चितिंत हुए और उन्होंने क्षेत्रीय पार्षद के साथ नगर निगम के आला अफसरों को अपनी कोठी में हाजिर होने का फरमान दिया। पार्षद के साथ नगर निगम के आला अफसरों को स्वच्छता अभियान व सर्वे की दुहाई देते हुए विधायक ने कहा कि कचरा तो प्रतिदिन उठा लिया जाता है, फिर मल में लिपटा हुआ, मैले कुचेले कपड़ा पहना हुआ भिखारी क्यों नहीं हटा दिया जाता? विधायक की बात सुन कर पार्षद और नगर निगम के अफसर मौन ही रहे।आलीशान क्षेत्र के कोठी वाले उनके मौन से बमक गए। उन्हें महसूस हुआ कि वे तो सर्वशक्तिमान हैं। वे ही लोग कोई समाधान का रास्ता निकालेंगे।

आलीशान क्षेत्र में अगली सुबह राहगीरों ने देखा कि सड़क पर भिखारी कहीं नज़र नहीं आया। सुबह बच्चों को स्कूल छोडऩे जाती बड़ी कारों को चलाने वाले और उसमें बैठे बच्चे संतुष्ट दिखे कि उनके क्षेत्र से बूढ़ा भिखारी दूर कर दिया गया। एक सप्ताह के अंतराल के बाद लोगों को बूढ़ा भिखारी आलीशान क्षेत्र की दूसरी सड़क की एक ओर बैठा फिर दिखा। पहली सड़क के लोगों ने सोचा कि चलो अच्छा हुआ बूढ़ा उनकी सड़क से दफा हो गया।

बदलते मौसम का बूढ़े भिखारी पर कोई असर नहीं दिखा। अलबत्ता बदलते मौसम का प्रभाव आलीशान कोठियों में रहने वालों पर ज़रूर दिखता था। कोठियों में मरम्मत के साथ नवीनीकरण की प्रक्रिया जारी रही। बदलते मौसम के साथ एअर कंडीशन्ड और कन्वेक्टर में रहने वाले अधेड़ और बुजुर्गों की शवयात्रा उन सड़कों से गुजरती रहीं, जहां बूढ़ा भिखारी चौबीस घंटे यहां-वहां डोलता था। एक दिन क्षेत्रीय विधायक के दिल की धड़कन रूक गई। उनके निधन के बाद बेटा विधायक बन गया। बेटे के विधायक बनने से आलीशान क्षेत्र के लोग खुश हो गए कि पहले की तरह उनका क्षेत्र सुरक्षित व स्वच्छ बना रहेगा।

राहगीरों की नज़र प्रतिदिन सुबह एक बार बूढ़े भिखारी पर ज़रूर पड़ती, बल्कि उसे खोजती। लोगों ने एक दिन देखा कि बूढ़ा भिखारी सड़क पर घसिट नहीं रहा, बल्कि एक ट्राइसाइकिल पर बैठा हुआ है। ट्राइसाइकिल में किसी सामाजिक संस्था या एनजीओ का नाम नहीं लिखा था, इसलिए लोग समझ नहीं पाए कि बूढ़े भिखारी पर किस की दया दृष्टि पड़ गई। बूढ़े भिखारी के हाथ में ट्राइसाइकिल के पेडल चलाने की शक्ति नहीं थी, इसलिए वह उसमें पहले की तरह मौन बैठा हुआ था। शुरूआत में तो ट्राइसाइकिल में सिर्फ बूढ़ा ही था, लेकिन कालांतर में उसमें बचाव की दृष्टि से सड़क पर पड़े कपड़े व बोरे का उपयोग छत के तौर पर हो गया। ट्राइसाइकिल के बावजूद बूढ़े भिखारी की गति में कोई फर्क लोगों को नहीं दिखा। फर्क इतना ही था कि पहले बूढ़ा सड़क पर घसिटता था और अब ट्राइसाइकिल रेंग रही है। ट्राइसाइकिल में बैठा बूढ़ा भिखारी अब पहले से ज्यादा सौम्य और आत्मविश्वास से भरा दिखने लगा है। सड़क से नियमित रूप गुजरने वाले कुछ लोग, जिनमें अधिकांश अधेड़ या बुजुर्ग होते, उसमें निरंतर हो रहे बदलाव को देख कर कुछ क्षण रूक कर सोचने को मजबूर होते, लेकिन फर्राटा मारती युवा पीढ़ी अपनी दुनिया में मस्त थी।

राहगीरों की नज़र एक दिन बूढ़े भिखारी की ट्राइसाइकिल में लटके हुए चमचमाते ट्रांजिस्टर पर पड़ी। किसी की पूछने की हिम्मत नहीं हुई कि नया ट्रांजिस्टर उसके पास कहां से आया। कुछ ने यह भी देखा कि वह ट्रांजिस्टर कान के पास सटा कर सुन रहा है। उसके ट्रांजिस्टर से निकलने वाली ध्वनि अन्य लोग सुन नहीं पा रहे। इसका अहसास करने वालों को अचरज हुआ कि वह ट्रांजिस्टर बंद कर के सिर्फ कान के पास रखे हुआ है या उसका ट्रांजिस्टर अनोखा है कि सिर्फ वही उसकी आवाज़ सुन पा रहा है।

एक दिन दोपहर के वक्त बूढ़ा भिखारी जोर-जोर से चिल्ला कर गा रहा था - ''बीवी बच्चों की खैर मांगे पुन्नू फ़कीर... बीवी बच्चों की खैर मांगे पुन्नू फ़कीर।’’ वह एक ही लाइन बार-बार गाए जा रहा है। एम्पायर नाके के आसपास के दुकान व खोमचे वाले मौन बूढ़े भिखारी की फूटती आवाज़ को सुन कर चकित हो गए। उसको वर्षों से जानने-पहचानने वाले दुकानदारों और वहां सवारियों का इंतजार करते साइकिल रिक्शा वालों के लिए उसकी आवाज़ सुनना अद्भुत अनुभव था। वे आपस में बतियाने लगे कि शायद बूढ़ा बौरा गया। एक खोमचे वाले ने कहा कि बौराने से आदमी की आवाज़ आ जाए, तो इससे अच्छी बात क्या होगी?

बसंत ऋतु के बाद सड़क के किनारे लगे आम के पेडों के बौर गहगहा गए। ऋतु परिवर्तन के साथ बूढ़े भिखारी की ट्राइसाइकिल दाएं ओर सैन्य आवास की ओर लगे हुए आम के पेड़ों के नीचे पहुंच गई। सेना के जवानों को सड़क पर ट्राइसाइकिल पर रेंगता हुआ बूढ़ा भिखारी संदिग्ध नज़र आने लगा। बूढ़े भिखारी को वहां खड़े होने पर कई बार खदेड़ा गया। बूढ़ा भिखारी उनके मंतव्य को समझ नहीं पाया।

बूढ़ा भिखारी पूर्व की तरह सड़क के बाएं ओर ट्राइसाइकिल सरका कर ट्रांजिस्टर को कान में सटा कर सुनने लगा। उसका यह क्रम काफी दिनों तक जारी रहा। शाम को सड़क से राहगीरों के साथ मजदूर भी दिन भर पसीना बहा कर काम से घर वापस लौट रहे हैं। बूढ़े भिखारी ने कान में ट्रांजिस्टर सटाया हुआ है। प्रतिदिन शाम को राह से घर लौटने वाले मजदूरों को यह अज़ीब लगा कि उस दिन वह पहली बार बूढ़े भिखारी के ट्रांजिस्टर से आवाज़ सुन पा रहे हैं। बूढ़ा भिखारी ट्रांजिस्टर को कान से सटा कर ध्यान मग्न मुद्रा में है। वहां से गुजरने वाले राहगीरों व मजदूरों ने ट्रांजिस्टर से आ रही आवाज़ को ध्यान से सुना, तो उन्हें जानकारी मिली कि देश में लोकसभा के आम चुनाव होने वाले हैं।

पूरे देश के साथ शहर में आम चुनाव की सरगर्मी शुरू हो गई। प्रतिदिन मुद्दे तय होने लगे। कई बार तो एक ही दिन में कई मुद्दे उछलते और रात होने तक दूसरा मुद्दा उसे धराशयी कर देता। सड़क पर ट्राइसाइकिल पर बैठा बूढ़ा भिखारी और उस सड़क पर काम-धंधों पर निकलने वाले लोग मुद्दों से बेखबर दिखते। बूढ़े भिखारी के पास न तो वोटर पहचान कार्ड था और न ही आधार कार्ड। पहले की तरह सड़क पर चुनाव की कोई सरगर्मी नहीं दिखी। सब कुछ आभासी है। जैसे-जैसे मतदान की तिथि नजदीक आने लगी राजनैतिक दल आभासी दुनिया से बाहर निकल कर जमीन पर आ गए। देश की तरह शहर में राजनीति का ध्रुर्वीकरण दो बिन्दुओं सत्ता व सत्ता विरोधी में बंट गया।

आलीशान क्षेत्र की सड़क पर चुनाव का कोई प्रभाव नहीं दिखा। राहगीर पहले की तरह अपने-अपने काम-धंधों के लिए यहां से वहां जाते दिखे। मतदान का दिन नजदीक आते-आते कुछ हलचल हुई। बूढ़े भिखारी के विचरने वाली सड़क के नज़दीक ही एक ऐसा विशाल मैदान है,जहां पर सत्ता व सत्ता विरोधी दोनों उम्मीदवार के पक्ष में राष्ट्रीय नेताओं की दो चुनावी सभाएं हुईं। दोनों चुनाव सभाओं में सत्ता व सत्ता विरोधी उम्मीदवारों की प्रचार सामग्री के साथ झंडों का बहुतायत से उपयोग हुआ। बूढ़ा भिखारी ट्राइसाइकिल में बैठे हुए दूर सड़क से सभाओं को देखता रहा। सभाओं के दौरान बूढ़े भिखारी को कई बार सड़क से अति विशिष्टि नेताओं की आवाजाही के कारण पुलिस ने खदेड़ा।

मतदान से ठीक दो दिन पूर्व सड़क के राहगीरों ने पूर्व ट्राइसाइकिल पर बैठे बूढ़े भिखारी में एक नया परिवर्तन देखा। बूढ़े भिखारी ने ट्राइसाइकिल के दाएं ओर हाथ से चलाने वाले पेडल के पास सत्ता विरोधी झंडे को एक लकड़ी की सहायता से बांध लिया। अप्रैल-मई की तेज गर्मी में जब तेज गति से हवा चलती तो वह झंडा लहराने लगता। सड़क से निकलने वाले तमाम लोगों ने सोचा कि क्या बूढ़ा भिखारी सनक गया है? अज़ीब खब्त सवार हो गई क्या बूढ़े को? पूरा देश सत्ता के साथ है, तो इसको विरोध की क्यों सूझ रही? क्या किसी ने बूढ़े भिखारी के साथ मज़ाक तो नहीं कर दिया?

सत्ता विरोधी झंडा लगाए बूढ़े भिखारी के भीतर कहां से इतनी शक्ति आ गई कि वह हाथ से तेज गति से पेडल चलाते हुए आलीशान क्षेत्र की सड़कों पर घूमने लगा। उसके लिए दिन व रात का कोई अंतर नहीं रह गया। रात में तो जब तेज गति से हवा चलती तो ट्राइसाइकिल में बैठे बूढ़े भिखारी के भावहीन चेहरे व निस्तेज आंखों को देख कर राहगीर और खासतौर से चार पहिया वाहन वाले पहले से ज्यादा भयभीत हो जाते। आलीशान क्षेत्र की कोठी व बड़े बंगलेवाले रात में झंडा लगी ट्राइसाइकिल में तेज गति से घूमते बूढ़े भिखारी को देख कर डरने लगे। कोठी वाले उसे आता देख कर झट से भीतर घुस कर फाटक लगा लेते।

लोगों ने देखा कि सुबह पार्क से खेल कर वापस आते कुछ बच्चे बूढ़े भिखारी की ट्राइसाइकिल में धक्का देते हुए चल रहे हैं। बच्चों को भिखारी की ट्राइसाइकिल में धक्का देने में आनंद आ रहा है। उन्हें जर्जर स्थिति में लहरा रहा झंडा आकर्षित कर रहा है। तेज गति से ट्राइसाइकिल जैसे ही दुकान व खोमचों वालों के सामने पहुंची तो वहां सवारियों का इंतज़ार कर रहे कुछ पैर रिक्शा वाले भी बच्चों का साथ देने लगे। सड़क से गुजरने वाले राहगीरों के लिए पूरा दृश्य प्रतिदिन की अपेक्षा नया व रोमांचित करने वाला है। मैं भी उस सड़क से प्रतिदिन सुबह की सैर कर के घर वापस आता हूं। बूढ़े भिखारी और उसकी ट्राइसाइकिल में धक्का देते बच्चों व रिक्शा वालों को देख कर स्वयं को रोक नहीं पाया। मैं अचानक दौडऩे लगा और बच्चों के साथ बूढ़े भिखारी की ट्राइसाइकिल को पूरी ताकत से धकेलना शुरू कर दिया। मैं कभी सीधे सड़क की ओर देखता, तो कभी सड़क की दोनों ओर और तो कभी आकाश की ओर। मुझे महसूस हुआ कि आभासी दुनिया से बाहर निकल रहा हूं। कुछ जानने-पहचानने वाले मुझे अचरज से देखने लगे। मैंने सभ्यता की परवाह छोड़ दी। मुझे किसी की परवाह नहीं और न ही किसी का भय। तेज़ गति से ट्राइसाइकिल कभी सड़क पर तो कभी पगडंडी पर आ-जा रही थी। पगडंडी पर आने से धूल उडऩे लगी। तेज उल्टी चल रही हवा के विरूद्ध ट्राइसाइकिल धकेलते समय शरीर के भीतर एक नई शक्ति महसूस होने लगी। पगडंडी में साइकिल को धकेलने से पैर धूल धूसरित हो गए। सड़क का खुरदरापन म जे देने लगा। महसूस होने लगा वर्षों पूर्व जो प्रतिरोध की भावना कहीं गुम हो गई थी, वह वापस समाने लगी। चवालीस वर्ष पूर्व बचपन के दिन याद आने लगे, जब चुनाव प्रचार के रिक्शे में लटक कर अधिनायकत्व का विरोध किया था। सामूहिक धक्कों से ट्राइसाइकिल आलीशान क्षेत्र में प्रविष्ट हो गई। ट्राइसाइकिल में धक्का मारने में कॉलेज के विद्यार्थी भी जुट गए। इतने लोगों के धकेलने से प्रतिदिन रेंगने वाली ट्राइसाइकिल सड़क के किनारे नहीं बल्कि मध्य में दौडऩे लगी। ट्राइसाइकिल में लगे परचम को हवा में लहराता देख कर हम लोग ज़ोश में आ कर ट्राइसाइकिल को ज़ोर से धक्का देने लगे।

 

 

पंकज स्वामी की कई कहानियां उल्लेखनीय पत्रिकाओं में छप कर चर्चित हुई हैं। कहानी की दुनिया में उनका प्रवेश काफी नया है। पहल के संपादक मंडल में रहने के कारण वे अभी तक 'पहल’ में वंचित थे पर इस कहानी के साथ हम अपनी बंदिश तोड़ रहे हैं। वे ऐसे पत्रकार हैं जो घमासानों के बाहर हैं और उन जंगलों तक पहुंचते हैं जहां सूरज की रोशनी नहीं पहुँचती, बाजार भी नहीं पहुंचता। इस प्रकार वे अपना वैकल्पिक मीडिया बना लेते हैं। पंकज स्वामी का पहला प्रेम नाटक और फिल्म है, जिसके बारे में वे कभी कभार लिखते रहते हैं।

संपर्क - 9425188742, जबलपुर ईमेल pankajswamy@gmail.com

 

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