मु. का. अ. की दावत

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    जून 2019
श्रेणी मु. का. अ. की दावत
संस्करण जून 2019
लेखक का नाम राजेन्द्र श्रीवास्तव





कहानी

 

'पहल’ में पहली बार इस महत्वपूर्ण कहानीकार को प्रकाशित करते हमें खुशी हो रही है। वे हिन्दी की बड़ी पत्रिकाओं में छपे हैं और राजकमल और किताबघर में उनकी कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। वे वरिष्ठ हो रहे हैं क्योंकि उनकी कहानियां भूतपूर्व सारिका और धर्मयुग में भी आई हैं। बैंक में प्रबंधक हैं। यह कहानी पाठकों को नौकरशाहों के बेसमेंट में ले जाती है; बहुत दिलचस्प है। संपर्क : मो. 9604641228, पुणे

 

 

 

 

Half of the people in world are chronically hungry and the other half are overweight- Mark Bittman

बैठक का एजेन्डा सिर्फ एक ही था - सीईओ साहब का दिल्ली आगमन। मामला बहुत गंभीर था। कार्मिक अधिकारी श्रीमती चक्रवर्ती के शब्दों में - भीषोण गोम्भीर।

कंपनी के एरिया मैनेजर विश्वनाथन अपनी सांसों को संभालते हुए बोले - ''सीईओ का मतलब समझते हैं आप लोग? समझते हैं सीईओ का मतलब?’’

बोर्ड रूम में मौजूद तकरीबन सभी अधिकारियों ने हाथ उठा दिए।

''क्या समझते हैं...’’ सांस फूल गई उत्तेजना में विश्वनाथन की - ''क्या समझते हैं आलोक कुमार आप?’’

''जी, सीईओ का मतलब चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर’’ - मुस्कुराए आलोक कुमार।

''बस...! बस इतना समझते हैं...? हो गया?’’

''मैं बताता हूं साहब। 'सीईओ’ का मतलब - मु.का.अ. अर्थात मुख्य कार्यपालक अधिकारी’’ - राजीव रंजन ने कहा। राजीव रंजन ने इस अंदाज में सर नवाया कि 'मान गए न साहब?’

''मु.का.अ.? मु.का.अ....?? आप तो बस हिन्दी में अनुवाद करते रहिए। और अनुवाद भी ऐसा कि ''ब्लू लगून’’ का मतलब ''नीली हसीना’’ और ''लोडेड गन्स’’ का अनुवाद ''जवानी की बंदूक’’ - बिफर गए विश्वनाथन। फिर एकदम से उन्होंने देखा कि कार्मिक अधिकारी श्रीमती सौम्या चक्रवर्ती भी मीटिंग में मौजूद हैं, तो वे सकपकाकर माफी मांगने लगे। उन्हें याद आ गया कि एक बार बस एक मजाकिया मैसेज उन्होंने सहकर्मियों को भेज दिया था, जिसका श्रीमती चक्रवर्ती ने इश्यू बना दिया था। जबकि मैसेज केवल इतना भर था कि कस्मटर ने होटल रिसेप्शनिस्ट ने कहा कि हनीमून पर आया हूं, और कमरे में टी.वी. तक नहीं चल रहा। जवाब में रिसेप्शनिस्ट ने कहा कि टी.वी. तो ठीक करवाती हूं और यूनानी दवाखाने का नंबर भी देती हूं।

बस, इतने से मैसेज के कारण श्रीमती चक्रवर्ती ने बवाल मचा दिया था और हेड ऑफिस को शिकायत कर दी थी। खूब लेटरबाजी के बाद माफी-वाफी मांगकर बड़ी मुश्किल से निजात मिली थी। पता नहीं आजकल सेक्स हैरासमेन्ट और क्या-क्या कमीटियां बन गई हैं। एड्स भी हमारी समय में आना था और सारे नियम-कानून हमारे समय ही बनाए जाने थे। विश्वनाथन सोचने लगे। इस सोच में स्थायी दुख और अवसाद समाहित था।

फिर जब उन्होंने देखा कि श्रीमती चक्रवर्ती की तवज्जो उनकी तरफ नहीं है और वे मोबाइल पर कुछ टाइप करने में व्यस्त हैं, तो स्वामीनाथन फिर जोश में आ गए -

''अरे भई, सीईओ का मतलब होता है - हमारे परिवार का मुखिया, हमारी कंपनी का सर्वोच्च कार्यपालक, टॉपमोस्ट एक्जिक्यूटिव, हमारा कमांडर-इन-चीफ़ यानी कि... यानी कि... हमारा सब कुछ...’’

सब ध्यानपूर्वक सुन रहे थे।

''हां तो, पहली बार सीईओ साहब दिल्ली विजिट कर रहे हैं। वो भी सिर्फ सात-आठ घंटे के लिए। सुबह ग्यारह बजे की फ्लाइट से वे दिल्ली आएंगे और शाम सात बजे की फ्लाइट से वापस मुंबई। हमारे हाथ में केवल सात-आठ घंटे होंगे। ये सात-आठ घंटे हमारे लिए अहम हैं और निर्णायक हैं...’’

अब किसी नेता की तरह, बल्कि 'चक दे इंडिया’ फिल्म के नायक की तरह बोल रहे हैं स्वामीनाथन - ''हमारी ज़रा सी गलती हमें मुसीबत में डाल सकती है, क्योंकि आप सब जानते हैं कि सीईओ साहब कितने स्ट्रिक्ट हैं...’’

''हां स्वामीनाथन साहब...’’ - श्रीमती सौम्या चक्रवर्ती ने बात काटकर कहा - ''अपने तीन महीने के कार्यकाल में ही सीईओ साहब ने सोलह कर्मचारियों को सस्पेंड कर दिया है। और अभी पिछले सप्ताह ही कंपनी के नागपुर कार्यालय को उन्होंने भेंट दी थी और एरिया मैनेजर को ही बर्खास्त कर दिया। सस्पेंड नहीं, डिसमिस कर दिया डिसमिस। गौर कीजिए... नागपुर के एरिया मैनेजर को...’’

एरिया मैनेजर स्वामीनाथन जरा चिढ़ गए। कुछ घबरा भी गए, क्योंकि घटना सही थी। लेकिन ऑफिसवालों के बीच इस घटना का विवरण देने की क्या जरूरत थी भला? प्रत्यक्षत: वे बोले - ''सस्पेंड और डिस्मिसल का फर्क मैं भी समझता हूं मैडम चक्रवर्ती। बर्खास्त करने का मतलब डिस्मिस और विलंबित करने का मतलब सस्पेंड।’’

आलोक कुमार ने नाक घुसाई - 'विलंबित नहीं सर प्रलंबित। प्रलंबित।’’

''आप भी ग़लत बोल रहे हैं,’’ अब राजीव रंजन लपककर बीच में घुसे - विलंबित और प्रलंबित नहीं होता है... सस्पेंड का अर्थ है - निलंबित।’’

''कोई भी लंबित हो, पर अब आप बीच में नहीं बोलेंगे रंजन जी,’’ गरम हो गए विश्वनाथन - ''ये हिन्दी कार्यशाला नहीं चल रही है...’’

''हिन्दी कार्यशाला के बारे में तो कम से कम आप तो कुछ न कहें सर, आप तो कार्यशाला को कामशाला भी बोलते हैं’’ - अब राजीव रंजन ने भी तेज आवाज में कहा।

तमतमा गए विश्वनाथन - ''मिस्टर राजीव रंजन, ये मत भूलिए कि मैं दिल्ली यूनिट का इंचार्ज हूं। और आपको सस्पेंड करने के लिए कांपिटेन्ट अथॉरिटी भी!’’

आलोक कुमार ने बात को संभालते हुए कहा - ''सर, हमें कल के इवेन्ट पर ध्यान देना है। हमें सीईओ साहब का मिनट-टू-मिनट कार्यक्रम तय कर लेना चाहिए। समय कम है तो हर चीज पक्की होनी चाहिए और परफेक्ट।’’

''ठीक। ठीक।’’ विश्वनाथन कहने लगे, ''ग्यारह बजे सीईओ साहब की फ्लाइट उतरेगी... अपन तो भइया अब फ्लाइट में भी रोटी-भाजी लेकर जाते हैं और पानी की बोतल दबाकर। क्यों बता रहा हूं ये... क्योंकि पहले एयरलाइन की हालत कितनी ही खराब हो... नाश्ता तो अच्छा मिलता ही था, मगर अब कोई गारंटी है क्या...? नहीं है। मिलेगा ही बोल नहीं सकते। वैसे सीईओ साहब तो बिज़नेस क्लास में रहेंगे, उसमें शायद पानी-वानी पिला दें और बीस-पचीस ग्राम कुछ खिला भी दें, लेकिन हमें रिस्क नहीं लेना है। तोऽऽऽ? (खुद ही आश्चर्य के प्रदर्शन के बाद)... तो फिर उनकी कार में मिनरल वाटर, कोल्ड ड्रिंग्स, ड्राई फ्रूट और कुछ नमकीन रख दिए जाएं। एयरपोर्ट से होटल लगभग दस किलोमीटर है।’’

इवेन्ट मैनेजर ने इंतज़ामात का ब्यौरा दिया। एयरपोर्ट पर एरिया मैनेजर स्वामीनाथन जी और सब-एरिया मैनेजर रजनीश कुमार सीईओ साहब को रिसीव करेंगे। एयरपोर्ट पर ऑचिड और लिली के फूलों का जम्बो गुच्छ उन्हें दिया जाएगा। सर को यह सब बहुत पसंद है... और उन्हें हर चीज हाई ग्रेड चाहिए। कार ट्रैवल एजेंसी से ली जाएगी। लेकिन ड्राइवर अपने ऑफिस का रहेगा - कामताप्रसाद। क्योंकि नए और अनजान ड्राइवर पर भरोसा नहीं कर सकते। कंपनी का पार्ट-टाइम ड्राइवर कामता प्रसाद अनुभवी भी है और स्थानीय रास्तों, दूकानों, होटलों की सारी जानकारियां उसे हैं। वो तो पैदा ही दिल्ली में हुआ है।

एयरपोर्ट से एरिया मैनेजर, सब -एरिया मैनेजर और सीईओ साहब होटल जाएंगे। मेरीडियन में उनका सुइट रूम बुक कर दिया गया है। रूम का एक-एक खर्च 'बिल टू कंपनी’ रहेगा। सीईओ साहब को पांच पैसा भी खर्च नहीं करना पड़ेगा।

''करना भी पड़े... तो पांच पैसा है भला किसके पास...’’ आलोक कुमार ने कहा।  किसी ने कोई प्रतिसाद नहीं दिया। सिर्फ टाइपिस्ट मीता ठाकुर आंख नीची कर हंसी। स्वामीनाथन ने इस हंसी के पीछे आलोक कुमार के परिहास बोध की बजाए मीता ठाकुर का कुछ निजी कारण महसूस किया।

अब इवेन्ट मैनेजर क्रमवार जानकारी दे रहा है - ''दोपहर बारह से एक बजे तक सर का रेस्ट समय रखा है। सर रूम में ही चाय-कॉफी-जूस... (फिर अर्थपूर्ण मुस्कुराकर) ...या और भी कुछ... जो मन चाहे पी सकते हैं। जो मन चाहे। सेवेन स्टार होटल है... रूम सर्विस को एलर्ट कर दिया गया है। होटल के जनरल मैनेजर व्यक्तिगत रूप से ध्यान देंगे कि हमारे सीईओ सर को किसी तरह की कोई कठिनाई न आए।

दोपहर एक से लेकर ढाई बजे तक सर का भोजन का समय होगा। सर के सम्मान में लंच में एरिया मैनेजर और सब-एरिया मैनेजर साथ रहेंगे। फिर होटल से अपने कार्यालय आएंगे। लगभग तीन बजे तक यहां पहुंच जाएंगे। एक अतिरिक्त वाहन उनके साथ चलेगा... किसी एमर्जेन्सी के लिए...’’

यहां उनका स्वागत होगा, जिसके बाद कॉन्फ्रेंस हाल में सीर्ईओ सर के सामने मार्केटिंग के सभी आठ यूनिट पॉवर प्वाइंट प्रेजेन्टेशन देंगे। शाम साढ़े चार बजे सीईओ सर सभी स्टाफ-सदस्यों को संबोधित करेंगे। इसके बाद हाई-टी की व्यवस्था होटल हयात से की गई है।

ईवेन्ट मैनेजर बता रहा है - ''लगभग साढ़े पांच बजे शाम को सीईओ सर वापस होटल जाएंगे। फिर होटल में कुछ देर रुककर चेक आउट करेंगे और होटल से एयरपोर्ट। साथ बजे रिपोर्टिंग समय है। उन्हें विदा करने के लिए वही टीम रहेगी, जो उनके आगमन के लिए जाएगी।’’

सभी ने सावधानीपूर्वक कार्यक्रम को नोट किया। स्वामीनाथन अभिषेक से संबोधित हुए, ''मिस्टर अभिषेक, आप कंपनी के इवेन्ट मैनेजर हैं, आपको नहीं लगता कि कहीं कुछ छूट रहा है...?’’

''मैं समझा नहीं सर.... ओ.के. ओ.के.। सीईओ सर के गिफ्ट की बात... अच्छा... हां... उसका इंतजाम हो गया है, जैसी अपनी बात हुई थी... उनका गिफ्ट होटल में उनके रूम पर पहुंचा दिया जाएगा... गुणवत्ता और ऊंचे दाम, दोनों का, पूरा ध्यान रखा गया है सर...’’

स्वामीनाथन उसे घूर कर देख रहे हैं।

''और...और क्या रह गया सर?’’ सकपकाकर पूछा अभिषेक ने।

''...और उनके भोजन का इंतजाम? भोजन का इंतजाम सबसे ज़रुरी चीज है। आपको पता है कि सीईओ सर खाने-पीने के बहुत शौकीन हैं...’’

''सिर्फ खाने की बात कीजिए सर’’... आलोक कुमार ने कहा.. ''पीने का तो समय ही नहीं है सीईओ सर के पास...’’

सकपकाए स्वामीनाथन - ''ठीक है, ठीक है... सभी को पता है कि साहब किस्म-किस्म का भोजन पंसद करते हैं। जहां भी जाते हैं वहां का बेहतरीन भोजन पता करते हैं और बड़ा स्वाद लेकर खाना खाते हैं। नॉनवेज तो दीवानगी की हद तक पसंद करते हैं। चंद्रपुर के ताड़ोबा जंगल में गए थे। बताता हूं आपको। तो वहां एक देशी रेस्टॉरेन्ट में मुर्ग-मुसल्लम उन्हें इतना पसंद आया कि एक ही कौर के बाद उन्होंने रोटी-दाल-चावल-मीठा सब अलग कर दिया। मतलब हटा ही दिया सामने से। सिर्फ भरपेट चिकन खाया। देसी मुर्ग था भई... वो भी गावरानी हरे प्याज में बना हुआ।’’

''जी सर...’’ इवेन्ट मैनेजर ने नम्रता के साथ कहा, ''मैंने विचार किया था इस पर। लेकिन होटल सेवन स्टार है और लंच कांप्लिमेन्ट्री है। आप जानते ही हैं। निशुल्क बुफे लंच। नो चार्जेस। फ्री ऑप कास्ट। आप जानते ही हैं।’’

''मेरे जानने से क्या होता है? अरे, मिस्टर अभिषेक। होटल में यदि भोजन मुफ्त में उपलब्ध है, तो क्या सीईओ सर को वहीं खिलाएंगे। हमारे साहब क्या मुफ्त के खाने के मोहताज हैं...?’’

''नहीं... वो बात नहीं सर.. मेरीडियन का लंच है भी बड़ा लजीज़। कोई दस तरह के तो सलाद होते हैं। फिर कई किस्म के वेज और नॉनवेज सूप। शुरूआत में बारह शाकाहारी और आठ मांसाहारी स्टार्टर। आज ही सब पता कर के आया हूं सर... और मेन कोर्स के बारे में तो पूछिए ही मत... विविध प्रकार के व्यंजन... और अंत में डेज़र्ट की तो ख़ासियत है कि ठंडा और गर्म दोनों। आईसक्रीम और कुल्फियों का तो लाइव काउंटर है वहां...

''इसका मतलब मिस्टर अभिषेक कि आपको कुछ पता ही नहीं खाने के बारे में और खाने के तौर-तरीकों के बारे में...’’

''मुझे नहीं पता? मुझे?? क्षुब्ध स्वर में कहा अभिषेक ने - '', मैं तो आपको दुनिया के बेहतरीन फूड फेस्टिवल्स का पूरा ब्यौरा दे सकता हूं। हांगकांग का डंपलिंग फेस्टिवल, मिशिगन का राष्ट्रीय चेरी फेस्टिवल, फुकेट का वेज फेस्टिवल, स्कॉटलैंड का सालाना गोल्डेन स्पर्टल, जर्मनी के बीयर का... हां...हां... खुल्लमखुल्ला बोलता हूं पीने वाली बीयर का ऑटोबर-फेस्ट, कैलिफोर्निया का बैकॉन फेस्टिवल, टोबैगो का ब्लू फुड फेस्टिवल और... और यह भी बता सकता हूं कि यूरोप का सबसे बड़ा फूड शो सैन सेबेस्टियन...’’

''आपने होटल मैनेजमेन्ट में एमबीए किया है। हमें पता है। हमें पता है...’’ - बात काटकर विश्वनाथन बोले तेज आवाज में (ताकि रोका जा सके इवेन्ट मैनेजर को)... ''लेकिन  खाने-पीने में स्वाद भी चाहिए और परंपरा भी। आप बोले ही चले जा रहे हैं नॉन-स्टॉप...’’

''हां... स्खलित हुए बिना...’’ राजीव रंजन ने जल्दी से कहा।

सकपका गए विश्वनाथन और स्वाभाविक दिखने की कोशिश करते हुए बोले - ''आप नॉन-स्टॉप अपने जान का प्रदर्शन कर रहे हैं... आप... हंह... आप मुझे बताइए मिस्टर अभिषेक... इसमें दिल्ली की खासियत कहां है? दिल्ली है कहीं? आप बात कर रहे हैं पैलेस्टियन की... साहब हमारे आ रहे हैं दिल्ली और आप जा रहे हैं पैलेस्टियन...’’

''सैन सैबेस्टियन सर... सैन सैबेस्टियन... स्पेन के बास्क कंट्री के सैन सबेस्टियन में...’’

''अरे पता है... पता है...’’ गर्म हो गए विश्वनाथन, ''मैं पूछ रहा हूं दिल्ली कहां है इसमें?? जैसे जयपुर में दाल-बाटी और चूरमा है। जैसे हैदराबाद में दम बिरयानी है। लखनऊ में अवध के जायकेवाले कबाब हैं। जैसे राजकोट में उंदियो, जलेबी है। जैसे हमारे उडिपि में... अब हमारा कहां रहा... पचास साल से हम दिल्ली में हैं... जनम ही यहीं हुआ... तो जैसे उडिपि में इटली, वड़ा, दोसा, चटनी, सांबर और रसम है.. वैसा क्या है पैडिस्ट्रयन में... हंह...’’

''आप हमारे कोलकाता को भूल गए सर... श्रीमती चक्रवर्ती ने किंचित शिकायती स्वर में कहा - ''हमारा मिष्टी दोई, हमारा माछेर झोल और भात, रोशगुला... जिसको खाने के लिए दुनिया भर से लोग कोलकाता आता है... आप भूल गए... इतना मिठास है कि हमारा रोशगुला खाकर सीईओ साहब यदि आगबबूला होकर चिल्लाएंगे किसी पर, तो सबको लगेगा कि एप्रिशिएट कर रहे हैं उसको...’’

''समय की कमी मैडम... समय की कमी....’’ सकपकाकर बोले स्वामीनाथन - फिर थोड़ा हंसे झेंपकर... ''जितनी जगहें उससे ज्यादा किस्म के व्यंजन हैं हमारे देश में। समझ नहीं आता हम लोग जीने के लिए खाते हैं या खाने के लिए जीते हैं... मतलब अच्छी बात है, जीवन में हर चीज में ललक होनी चाहिए... खाने में भी। मैं पॉज़िटिव में बोल रहा हूं... लेकिन क्या है कि हम लोग आज गंभीर समस्या पर चर्चा कर रहे हैं, मतलब गंभीर इवेन्ट पर बात करने के लिए आज की मीटिंग है, तो समय कहां है अपने पास एक भी अतिरिक्त शब्द का...’’

मैडम चक्रवर्ती ने कुछ ऐसा मुंह बनाया कि 'मेरे ठेंगे पे...’

अभिषेक ने मुस्कुराने की कोशिश की - ''मैं वहीं कह रहा था सर के स्पेशलिटी ढूंढऩे की जरूरत क्या है... कांप्लिमेन्ट्री बुफे लंच है। एन्ड... नो चार्जेस... नो चार्जेस...’’

''नो चार्जेस... नो चार्जेस...’’ हाथ उठाकर नकल की स्वामीनाथन ने अभिषेक की (थोड़ा ज्यादा भी हो गया यह...) ... ''वाह... अगर सीईओ साहब ने कुछ फरमाइश की तो क्या कहेंगे... नहीं नहीं, साहब, यहां मुफ्त का खाना है, तो यहीं खाइए... खबरदार जो कुछ स्पेशल खाने का विचार भी मन में लाया आपने... वाह... कमाल करते हैं आप।’’

''आई एम सॉरी सर। मैंने ऐसा सोचा नहीं।’’

''मिस्टर रंजीत सिंह आप बताइए...’’ - स्वामीनाथन पीछे बैठे सरदार से संबोधित हुए - ''दिल्ली की विशेषता पूछें तो हम कहां लेकर जाएं उन्हें...?’’

''सर... मैं बताना ही चाह रहा था, पर आजकल का नया खून जो है वो बुजुर्ग की राय को अहमियत ही नहीं देता।’’

''नहीं... नहीं सर ऐसी कोई बात नहीं है...’’ - अभिषेक ने कुछ कहना चाहा पर रंजीत सिंह ने बात काट दी - ''मुझे किसी से कोई गिला-शिकवा नहीं है सर... असी तो सबकी मदद के वास्ते बैठे हैं। मेरी राय मानी जाए... अ... सुनी जाए तो करोलबाग़ में रोशन दा ढाबा है। वहां शुरु होता है आलू टिक्की और छोले से। फिर फ्रूट चाट। इसके बाद भटूरे। तवा पुलाव। दही भल्ले। मक्के दी रोटी। सरसों दा साग। पनतुए। खोए की जलेबी। कटी हुई इमरतियां।’’

''औरऽऽऽ?’’ राजीव रंजन ने पूछा।

''और क्या सिर काटकर चढ़ा दें अपना?’’ रंजीत सिंह कुढ़कर बोला।

''मतलब ड्रिंक्स... हड़बड़ाए राजीव रंजन... ''पीने के लिए क्या है...’’

''अरे मट्ठा है, शिकंजी है, जलजीरा है, बेल का शर्बत है। क्या नहीं है ये पूछिए... नहीं तो वही अपने होटल में बकवास कोल्ड ड्रिंक पिला दीजिए... कौन रोक रहा है... हंह... सेवेन स्टारऽऽऽ।’’

''ठीक है, ठीक है... तो ये बढिय़ा रहेगा सर...’’ आलोक कुमार ने कहा।

''अनुभव की बात करता हूं भई मैं तो...’’ रंजीत सिंह ने प्रसन्न होकर कहा - ''ये नहीं कि साल-दो साल हुए नौकरी में लगे और चले सारा इंतजाम करने अपने बूते पर...’’

स्वामीनाथन ने कहा - ''सो तो ठीक है। लेकिन सबको पता है कि अपने साहब फिश और प्रॉन्स बड़ी पसंद से खाते हैं... ये रोशन दा ढाबा में तो सारा कुछ घास-पत्ते का मामला है। और जगह थोड़ी छोटी है। मैं बताऊं साहब ने क्या कहा था अपने नागपुर ऑफिस में... सब खबर आती है भई... बोले - मैं मुंह से नहीं खाता...’’

सभी चौंके। ये कैसी बात???

''... साहब बोले मुंह से नहीं खाता। आंख, नाक, कान, मुंह - चारों से खाता हूं। पहले आंखों से देखता हूं कि माहौल कैसा है होटल का। एम्बिएन्स। सब कुछ खुशनुमा है या उदास। सजावट कैसी है। चमचमाहट है या नहीं। साफ-सफाई कैसी है। साफ-सफाई छोड़ो.. क्रॉकरी भी 'ओवन हॉट’ है या नहीं। फिर सुनता हूं कानों से वेटर क्या बात करते हैं, कैसे बात करते हैं, शेफ क्या कहता है। सर्व करने से पहले पूछने और बताने का अंदाज़, फिर इसके बाद खाना आने पर पहले... उसकी सुगंध... उसकी महक पर ध्यान देता हूं। तब मुंह का इस्तेमाल करता हूं।’’

राजीव रंजन ने कहा - ''फिर तो मेरी बात मानें सर कनाट प्लेस में भव्य होटल है ''काके दी हंडी’’। आप लोगों ने भी शायद खाया होगा वहां... हालांकि बड़ा महंगा है... मगर उम्दा और बेहतरीन है सामिष भोजन के लिए।’’

''सामिष...??’’

''जी, नान वेज। वैसे सामिष और निरामिष दोनों मिलता है वहां। वेज भी... नान-वेज भी। मुझे आश्चर्य है कि आपको नहीं पता...’’

''अच्छा... अच्छा.... वो बड़ा वाला होटल...’’ स्वामीनाथन बोले - ''पता है... क्यों नहीं पता? (बुदबुदाए धीमे स्वर से फिर) ...इतना महंगा होटल है कौन जाएगा वहां खाने के लिए ...अ... वैसे एक बार गया भी हूं... पता है भाई, पता है... खैर... अब आप बताएं कि 'काके दी हंडी’ साहब को क्यों पसंद आएगी...?’’

''क्यों पसंद नहीं आएगी? जरुर पसंद आएगी। ऐसा लजीज खाना है। बेमिसाल। लेकिन पहले साहब को आंखों से खिलाने की बात करेंगे। इतना बड़ा और भव्य। तीन-चार एकड़ तो जगह होगी ही। दो सौ लोगों को एक साथ खाना परोसा जा सकता है और वह भी उच्च गुणवत्ता का। हाई क्वालिटी! और इसकी बनावट। बनावट ही तो इसको दूसरों से अलग करती है। यह थीम रेस्तरां है और पेशावरी अंदाज में मेहमाननवाजी होती है। इसके मालिक तो विभाजन के समय पेशावर से दिल्ली आ गए। पहले इधर-उधर जगह लेकर कुछ तंदूरी भोजन खिलाते रहे। फिर सत्तर के दशक के अंत में कनाट प्लेस में जगह मिली थी। आज कोई जगह लेकर दिखाए कनाट प्लेस में इतनी बड़ी... हंह... अब उनके बच्चों ने इसको इतना बढ़ाया है। होटल के अंदर ए.सी. हॉल हैं और खुली जगहें भी हैं। शहर भूल जाएंगे... बस गांव में आ गए हैं... ऐसा समझिए। कुआं है... रहट है... रहट समझते हैं सर रहट..., खटिया, हैण्डपंप, बरगद के पेड़, खपरैल वाले... हां... हां... अंदर उगे हुए असली पेड़... खैर... साहब के कान पर बात करते हैं कान पर। स्टाफ उनका इतनी मनुहार से खिलाता है कि क्या कहें.... आदमी भूख न हो तो भी खुराक से दुगुना खा जाए... जिसकी घर में पूछ न हो, वो तो रोज वहां जाए खाने... लेकिन... हा... हा...’’ राजीव रंजन हंसे - ''लेकिन रोज जाने के लिए अंटी में नावां भी होना चाहिए... हा... हा...

''... और नाक की बात करें तो पहली बात यह है कि वहां तेल का इस्तेमाल किया ही नहीं जाता। सिर्फ शुद्ध घी और वहीं बनाए गए ताजे मक्खन का उपयोग होता है। खाना उबाला नहीं जाता... उबाला नहीं जाता... पकाया जाता है। पंचमेल दाल वहां आठ से नौ घंटे में पकती है। खड़े मसाले डाले जाते हैं या खड़े मसाले ही पीसकर डाले जाते हैं। कुछ मसालची तो वहां पेशावर के ही हैं। जिन जगहों का व्यंजन है उन सूबों के कितने ही खानसामे हैं। तो इनकी खुशबू ही साहब को दीवाना बना देगी। जी भर कर खाएं नाक से। और अब मुंह से खाने के लिए बचता ही क्या है। बेशुमार व्यंजन। उनके व्यंजनों की रेसिपी गोपनीय रखी जाती है। इसीलिए वैसा स्वाद पूरी दिल्ली में कहीं नहीं। पेशावरी और अफगानी भोजन के साथ शुद्ध वैष्णव और जैन खाना भी मिल जाएगा। जिस खाने के लिए लोग फ्लाइट पकड़कर दुबई जाते हैं या किसी तरह बलूचिस्तान... वो तो खास दिल्ली में उपलब्ध है...’’

तय किया गया कि इन सभी होटलों में बात कर ली जाए और जहां सीईओ साहब जाना चाहे, बल्कि खाना चाहें, वहां उन्हें ले जाया जाए।

फिर बाकी तैयारियों पर चर्चा की गई। इसमें कंपनी की दो महिलाओं द्वारा अक्षत, रोली से साहब का परम्परागत स्वागत और दीप प्रज्जवलन से लेकर उनके विदा तक की एक-एक बात पर विचार किया गया। यहां तक कि स्वागत के लिए दोनों महिला कर्मचारी लहंगा-चोली या बंगाली साड़ी में कार्यालय आएंगी - यह भी तय किया गया। स्वामीनाथन को अपेक्षा थी कि बंगाली साड़ी वाली बात से सौम्या चक्रवर्ती प्रसन्न हो जाएंगी, लेकिन उन्होंने ही मुंह बना लिया और बोलीं कि ये सारे काम महिलाएं ही क्यों करेंगी। कार्यालय के पुरुष, भी ये सब काम कर सकते हैं। आजकल स्त्रियोचित और पुरुषोचित शब्दों का कोई अर्थ ही नहीं रहा। चर्चा के उपरांत सभी को उनके हिस्से का काम सौंपा गया। जरूरी सूचनाओं को नोट किया गया। साहब बहुत कठोर हैं और उतने ही खतरनाक - तो ऐसे में जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है।

गहन चिन्ता और अनिश्चितता के साथ बैठक सम्पन्न हुई।

* * *

सीईओ साहब के आगमन के बाद से सब कुछ ठीक चल रहा था। साहब की उम्र पचास से कुछ अधिक थी। रंग लाली लिए हुए गोरा था और बाल कुछ कम। चेहरा बड़ा और गोल। बदन पर चर्बी नज़र आ रही थी। मध्यम डील-डौल के थे, लेकिन पेट निकला हुआ था, जो कि उच्च गुणवत्ता के ब्लेजर से भी छिप नहीं रहा था। अमूमन जैसा होता है... कपड़े और जूते और घड़ी और पेन बहुत ऊंची ब्रांड के थे।

साहब ने मेरीडियन में चेक इन कर लिया था और अपने सुइट रूम की सुविधाओं से बहुत संतुष्ट थे। सुइट रूम बड़ा था। छोटे फ्लैट जैसा। अब भूख लग गई है भूख। साहब को भूख लग गई है। पर अभी कुछ खाएंगे नहीं। कुछ देर बात सीधे लंच करेंगे। भूख और बढ़े, ताकि खाने का मज़ा उसी अनुपात में अधिक जाए।

साहब को कमरे में छोड़कर सब नीचे आ गए थे। साहब कपड़े बदलकर आएंगे, अत: एरिया मैनेजर और साथ में आए बाकी के लोग नीचे होटल की विशाल लॉबी में लगे सोफों पर इंतजार कर रहे थे। इवेन्ट मैनेजर के इशारे पर सबको लीची का शरबत दिया गया। भूख लग गई है भूख। सॉफ्ट ड्रिंक एक स्कर्ट पहनी हुई बला की खूबसूरत वेट्रेस ने स्कल्पचर्ड ट्रे में करीने से लाकर दी। किसी का ध्यान इन चीजों पर नहीं है। एक बार साहब का दौरा ठीक प्रकार निपट जाए फिर बाकी सब सोचेंगे। उफ...!! नागपुर के एरिया मैनेजर को डिसमिस कर दिया गया था डिसमिस।

उठो... उठो... खड़े हो जाओ... लिफ्ट का दरवाजा खुला है और साहब बाहर आ रहे हैं। सधी हुई चाल। अब ब्लेजर के स्थान पर बहुत ही हल्के मरून रंग का सूट। बिलकुल फॉर्मल। लगभग सफेद दानेदार कमीज पर गाढ़ी नीली टाई। मानना पड़ेगा। आदमी स्टाइलिश है। अभी ऑफिस जाना है साहब को... प्रेजेन्टेशन देखने हैं, पूरे स्टाफ से मिलना है। उन्हें मार्गदर्शन देना है... संबोधित करना है सबको। बड़ी आत्मीयता से मुस्कुराए साहब। लेकिन रिस्क नहीं लिया जा सकता। एक दूरी बनाए रखनी है। बनी हुई है। साहब हमारे कंधे पर हाथ रख सकते हैं, हम नहीं। सब लोग कार में आ बैठे थे। जैसी कि अपेक्षा थी, साहब ने लंच में कुछ खास खाने की बात की। कुछ अलग हटकर। उम्दा। कुछ नायाब। स्वाद जो याद रह जाए। भूख कसकर लग आई थी उन्हें भी और बाकी सभी को भी। वैसे साहब को अंदाजा था कि खाने का खास इंतजाम किया गया है। स्वामीनाथन ने लिस्ट निकाली - वह पूछना चाहते थे कि साहब क्या खाना पसंद करेंगे। शहर से दस किलोमीटर दूर हरियाणा के रास्ते पर जो ढाबा है, वहां समुद्री खाना। काके दी हंडी का खाना। रोशन-दा-ढाबा पर मक्के की रोटी और सरसों का साग या फिर मेरीडियन में ही बुफे नाइन कोर्स लंच। लेकिन उनके कुछ पूछने से पहले ही ड्राइवर कामताप्रसाद ने उत्साह स्वर में कहा - ''कुछ अलग खाना है, तो साहब - ए ग्रेड खाइए... परखी जागह पर खाइए...’’

सीईओ साहब चौंक गए। कार में मौजूद अन्य सभी लोग एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे।

''रजवाड़ों की रसोई से भी उम्दा... ए ग्रेड...’’

ये क्या हो गया कामताप्रसाद को।

कामताप्रसाद कहे जा रहा था - ''अरे साहब... बगल में है फ्रंटियर होटल। यहां से दो-ढाई किलोमीटर। फ्रंटियर होटल। उफ्फ! क्या होटल है... उंगलियां चाटते हैं साहब लोग वहां पर। पूरी दिल्ली फीकी है उसके आगे।’’

''इज़ इट...!’’ मुस्कुराए सीईओ साहब।

''अरे कामताप्रसाद आप गाड़ी कनाट प्लेस ले लो... 'काके दी हंडी’ जा रहे हैं अपन।’’ निर्णायक स्वर में कहा स्वामीनाथन ने।

''नहीं, ये कौन सा होटल बता रहे हैं देखिए’’ - सीईओ साहब ने मुग्ध स्वर में कहा - ''क्या के.पी.?’’ अर्थात कामता प्रसाद। कामताप्रसात का संक्षिप्त रूप।

''क्या के.पी.? काके दी हंडी से भी अच्छा होटल है??’’

''अरे फूट गई काके दी हंडी फ्रंटियर के सामने। कहां फ्रंटियर और कहां काके दी हंडी’’ - हंसा कामताप्रसाद। कूपमंडूकों को कोई क्या समझाए, इस हंसी में यह भाव था।

स्वामीनाथन घबरा गए। काके दी हंडी स्टार रेस्टारेन्ट है और बेहिसाब महंगा भी। कामताप्रसाद ने कभी वहां खाना खाया भी होगा, उन्हें संदेह था। फिर तुलना कैसे कर रहा है। बेवकूफ।

''भई, भूख तो लग गई है कस के..’’ - सीईओ साहब बोले, ''बढ़ाओ गाड़ी आपके फ्रंटियर होटल... दो किलोमीटर तो दूर नहीं है।’’

''अरे इतनी बड़ी गाड़ी तो फंस जाएगी साब। अभी तो यहां करोलबाग का बाज़ार का समय है। नजदीक ही है सर, पैदल चलना पड़ेगा।’’

''खाना इ..तऽऽना अच्छा है, तो चल सकते हैं पैदल भी...’’ - सीईओ साहब ने उत्साह से कहा।

मरा दिया इस बेवकूप ने - स्वामीनाथन मन ही मन बोला। फिर कहा - ''सर, मेरा ख्याल है कि आज रहने दें। अगली बार फ्रंटियर में खा लेंगे। इस बार काके दी हंडी जा सकते हैं, नहीं तो रोशन-दा-ढाबा तो पांच मिनट के रास्ते पर है। आपको भूख भी तो लग आई है। है कि नहीं सर?’’

''अरे, अच्छे खाने के लिए तो मैं कई बार बीस-बीस किलोमीटर दूर चला जाता हूं। मुंबई में वाशी में एक औरत है, जो थाली खिलाती है। समुद्र के किनारे। रेत में टेबल एंड चेयर्स। थाली में होती है आलणी - मतलब क्लीयर मटन सूप सिर्फ हल्दी-नमक डालकर। एक कटोरी ग्रिल्ड चिकन। फार्म-फ्रेश चिकन, मछली के दो सूखे टुकड़े। कौन सी मछली? पता है - ओमेगा थ्री प्लस फिश। इसके बाद मेन-कोर्स में प्रॉन्स और ऑरेन्ज फिश। उस लडी ने एमआईटी, मणिपाल से कलनरी स्टडी की है। भीड़ बहुत होती है उसके पास। एक दिन पहले बताना पड़ता है। ऐसे वाक-इन ऑर्डर नहीं लेती। कोई मुंह उठाए चला आए और खाकर चला जाए - ऐसा नहीं होता। एक दिन पहले नंबर लगाओ। और ऐसा स्वाद। आप समझ रहे हैं ना मिस्टर स्वामीनाथन... तो मुझे लगता है कि के.पी. तो हमें सिर्फ दो किलोमीटर दूर ले जा रहे हैं... बहुत लंबा नाम है कामताप्रसाद... के. पी. अच्छा है...’’

ड्राइवर कामताप्रसाद जोश और उत्साह से करोलबाग़ के बाज़ार के बीच रास्ता बनाता हुआ बढ़े जा रहा था। इतने बड़े व्यक्ति ने कंपनी के प्रमुख ने उसकी बात को सम्मान दिया था। इस एक घटना को याद करके तो पूरा जीवन गुजारा जा सकता है। इस घटना का स्वाद पूरे जीवन भर लिया जा सकता है। कामताप्रसाद के बाल एकदम रूखे थे और बिखरे। दाढ़ी कुछ बढ़ी हुई थी। दाढ़ी के बाल बेतरतीब थे, आधे सफेद और आधे काले। खाकी पैंट। आधे बाहों की फैली हुई कमीज। साफा कंधे पर लटक रहा था जैसा कि स्टेशन पर कुली रखते हैं। लाल रंग का साफा। गर्मी हो तो पसीना पोंछ लिया और ठंड अधिक हो तो कान पर लपेट लिया। सब कुछ अव्यवस्थित। रबड़ की मोटी चप्पलें चटकाता चल रहा था कामताप्रसाद। खुश था कामताप्रसाद। बहुत खुश। पीछे-पीछे सीईओ साहब, स्वामीनाथन और रजनीश कुमार। स्वामीनाथन को अचानक एहसास हुआ कि ड्राइवर के कपड़ों और हुलिए पर भी उन्हें आज ध्यान रखना चाहिए था। और ज़रूरत ही क्या थी कंपनी का ड्राइवर रखने की। क्या ज़रूरत थी...? अच्छा-खासा ट्रैवल कंपनी का स्मार्ट ड्राइवर रहता... सफेद झक्क यूनिफार्म में। ये तो बड़ी गलती हो गई... बहुत बड़ी गलती।

ठंड बहुत अधिक थी इसलिए धूप में चलना सुखकर प्रतीत हो रहा था। कोट पहनने के बावजूद सीईओ साहब को नर्म धूप सुखद लग रही थी।

कम से कम चार किलोमीटर का रास्ता तय हो चुका था। अब तो बाज़ार भी दूर हो गया था... बस्ती शुरू हो गई थी। बीस-पचीस मिनट जाने किस झोंक में चल चुके थे। शायद भूख की अधिकता में। भूख लग गई है भूख। सीईओ साहब कुछ चकित थे। और कितना दूर के.पी....? ऐसा पूछा भी एक बार उन्होंने।

बाकी सभी चिंतित थे। लेकिन स्वामीनाथन भयभीत थे। भयभीत। सही ग़लत कहां नहीं होता। गलती किससे नहीं होती। कैसा निर्दयी आदमी है। नागपुर के एरिया मैनेजर को डिसमिस कर दिया डिसमिस। सफाई का मौका तो देना चाहिए। गऽऽलत है... गलत। अन्याय है। अनीति है। निष्ठुर। निष्ठुर। मन में दो बार निष्ठुर कहा उन्होंने। पहले वे हंसते थे विनायक कश्यप पर। आज सहानुभूति उपजने लगी उनके मन में। बेचारा नागपुर का एरिया मैनेजर। उफ! कितना सीधा और कितना भोला... कितना भला... और मैं उस पर हंसता था। मैं!!

गलियां, नालियां, संकरे रास्ते, बाजार की भीड़। इसके बाद एक गंदी बस्ती को पार करते हुए एक छोटे से दूकान या कहें रेस्टॉरेन्ट (...या कुछ न कहना ही अच्छा) के सामने कामताप्रसाद रुक गया।

कामताप्रसाद की आवाज में रोमांच था। खुशी से थरथरा रही थी उसकी आवाज - ''ये आ गया सर आपका फ्रंटियर होटल...’’

सभी चिहुंक गए। ये क्या है? होऽऽटल?? होटल क...हां है यह। भूख से सभी की अंतडियां कुलबुला रही थीं। भूख लग गई है भूख।

''वापस चलते हैं सर...’’ डरते-डरते कहा स्वामीनाथन ने।

''वापस जाएंगे, तो गिर जाएंगे रास्ते में...’’ सीईओ साहब कुढ़कर बोले- मर जाएंगे भूख से।’’

''आएं... साहब आप लोग अंदर आएं।’’ कामताप्रसाद जोर से बोला। उसकी खुशी रोके नहीं रुक रही थी।

अंदर लकड़ी की टूटी मेजें अैर बेंचें लगी थीं। एक कपड़े से बेंचों को रगड़ा गया। झाड़कर बेंचों को बैठ गए सभी। स्वामीनाथन ने अपना रुमाल निकालकर मेज को रगड़-रगड़कर साफ किया। कामताप्रसाद ने आंख से लड़के को इशारा किया। पहले सीईओ साहब के सामने प्लेट रखी गई। प्लेट गीली थी। कामताप्रसाद ने अपना साफा निकालकर उसकी थाली को पोंछ दिया। विचित्र स्थिति थी। सीईओ साहब हतप्रभ थे। स्वामीनाथन विस्फारित नेत्रों से देख रहे थे। फिर हकलाकर कहा... ''सर, जिन्हें बहुत इज्जत बख्शनी होती है, उनकी थाली को अपने साफे से पोंछते हैं ये लोग। आपके सम्मान में सर... साफा एक तरह से पगड़ी ही है। और पगड़ी सम्मान का प्रतीक। मतलब सिम्बल।’’

बाकी सभी के सामने भी एक-एक प्लेट रख दी गई। ''मिनरल वाटर नहीं मिलेगा? - सीईओ साहब ने धीरे से पूछा। फिर दबे स्वर में कहा - ''कोई बात नहीं... पानी कार में जाकर पी लेंगे।’’ प्यास लगी है प्यास।

''अरे साहब, आपके लिए सब इंतजाम किया जाएगा, आप बोलिए तो। बोतलवाला पानी चाहिए ना, वैसे ये पानी भी इतना साफ है... क्या बताऊं... जमुना का है साहब जमुना का... हम तो हमेशा पीते हैं... और आज पचास साल में भी कोई बीमारी नहीं... न चीनी की प्रॉब्लम, न नमक की प्रॉब्लम... कोई दवा नहीं... हूऽऽट... (हूट में यह भाव था कि बीमारियों की ऐसी की तैसी, आकर तो दिखा डायबटीज़ या ब्लड-प्रेशर) अभी लड़के को दौड़ाता हूं, पास की किसी किराना या मेडिकल दूकान से ले आएगा। यहां कहां बस्ती में बोतलवाला पानी।’’

''क्या बनाया है भई आज...?’’ - आवाज दी किसी को कामताप्रसाद ने। अधिकारपूर्ण स्वर। पता चला कि आज चपातियां और आलू-गोभी की लटपट भाजी बनी है।

''दाल?’’ सीईओ साहब ने पूछा। उम्मीद भरा स्वर।

दाल... दाल... हल्ला मचा दिया कामताप्रसाद ने। दाल नहीं है बनी।

कोई बात नहीं। अगली बार आप पहले से बताकर आना साब... दाल भी बनवा देंगे। दाल भी बनवा देंगे और तड़का भी लगवा देंगे। यहां की चना दाल खाएंगे तो आपकी मां के हाथ की बनी दाल की याद आ जाएगी। लेकिन हर किसी की किस्मत में सब कुछ नहीं होता। आज दाल नहीं बनी है। अगली बार आपको भी मिलेगी। अगली बार किस्मत आप पर भी मेहरबान होगी। पहले से बताकर आना होगा बस। दाल खास बनवाई जाएगी आपके लिए।

''कोई बात नहीं... रोटी भाजी सही... कोई बात नहीं... जल्दी लगा दे चार जगह।’’ कामताप्रसाद आदेश दे रहा है। बाकी सभी चुप हैं।

कामताप्रसाद भी बाईं की तरफ की बेंच पर बैठ गया। भूख लगी है भूख। एक लड़का रोटी और भाजी परोस गया। साथ में प्याज और मूली के कटे हुए बड़े-बड़े टुकड़े। न कांटा, न चम्मच। सभी ने लालसा और लालच से देखा और हाथ से खाने लगे। खाने क्या लगे लगभग निगलने लगे। बड़े-बड़े कौर। मानों कोई श्राप उतर रहा हो।

''बचपन से मैं आ रहा हूं साहब! मेरे पिताजी लेकर आते थे। हमारा घर यहीं था न... बावड़ी के पीछे। सौ कदम भी नहीं होगा। अरे साहब... यहां आने के लिए हम तरसते थे। सुबह कचौड़ी-भुंजिया बनाता था सुखदेव। अब न सुखदेव रहा न हमारा घर। लेकिन मज़ा आ जाता था साहब मज़ा। गुड़ का सेव बनाता था सुखदेव। अब उसके बच्चे चला रहे हैं। उसकी विरासत को संभाल भी लें तो बहुत। हम चार भाई-बहन थे। यहां आने के लिए मिन्नतें करते थे पिताजी से। दो-दो आने दिए जाते थे। दो आने में चार चपातियां और मन भर कर तरकारी। खाने के बाद गुड़़ मिलता था।’’ खुशी और उत्तेजना से थरथरा रहा है कामताप्रसाद।

बगल की मेज पर एक मक्खी दिखाई दी। जान सूख गई स्वामीनाथन की। रोटी खाते हुए चुपके से मक्खी को उड़ाने की कोशिश करने लगे। मक्खी बगल की बेंच पर आ गई। कुछ टेढ़ा होकर पैर से हटाने की कोशिश करने लगे। अधलेटी स्थिति। जिस बात का डर था वही हुआ। सीईओ साहब ने देख लिया। कलेजा हलक में आ गया। नहीं... सर... दू..ऽऽर... दूसरे टेबल पर है... अपनी टेबल तो साफ-सुथरी है।’’ निश्चिंत भाव चेहरे पर लाने का अभिनय किया स्वामीनाथन ने।

कामताप्रसाद ने देख-सुन लिया और जोर से हंसकर बोला - ''मक्खी का क्या है सर... हुश्श कर दो तो उड़ गई। मगर अचूक इलाज है। अचूक। कभी मक्खी फटक ही नहीं सकती। सौ फीसदी गारंटी। कभी नहीं बैठ सकती खाने पर। कभी नहीं... हंहऽऽ।’’

''अच्छा... क्या है ऐसा??’’ सीईओ साहब ने अचानक हाथ रोककर उत्सुकता से पूछा। हाथ रुक गया लेकिन मुंह का चलना जारी था।

''नहीं, मैं बताता हूं... जब भी खाने बैठो... दाएं हाथ से खाना खाओ और बाएं हाथ से मक्खी भागाओ। हो गया। छोटा सा नुस्खा है पर सौ फीसदी गारंटी। मेरे पिताजी ने बताया था।’’

''हंह... अच्छा।’’ - सीईओ साहब ने कहा और पता नहीं किस भावना के वशीभूत वे जल्दी-जल्दी मुंह चलाने लगे।

गर्म चपातियां एक के बाद एक आती गई।

''छोटी बहन अब नहीं है। रामरती। दो साल पहले हमें छोड़ गई। दो साल से ऊपर ही हो गया। उसे भी यहां आना अच्छा लगता था... बताया तो कि पिताजी बचपन में हम सभी को यहीं लेकर आते थे। बीस साल की घोड़ी हो गई थी बहन, पर यहां पालथी मारकर खाने बैठ जाती थी। शादी के बाद भी यहां आई। अब कभी जिद नहीं करेगी कि फ्रंटियर का गुड़ का सेव खाना है। क्या कहूं साहब और आप ही बताओ क्या करूं साहब... मेरी बहुत लाड़ली थी। ये इधर देखिए... मेरी तरफ... दिल का टुकड़ा।’’ कामताप्रसाद ने सीने पर बाईं तरफ हथेली रखी। उसकी आंखों में सब कुछ खत्म हो जाने का भाव था। एक विचित्र किस्म की निस्तब्धता।

लग रहा था जैसे कोई नशे में प्रलाप कर रहा है - ''बड़े अरमान से रामरती की शादी की थी। ये पुुरानी बात है। फिर उसके दो साल बाद आई थी घर। घर मतलब शाहदरा में किराए का, यहां वाला थोड़े ही। यहां वाला तो कब का बिक-बिका गया। जमाई आए साथ में। साब खुशी बता नहीं सकता... क्या करूं... सारी दुनिया उसके लिए खड़ी कर दूं... और जमाई के लिए क्या करूं... इतना मानता हूं उसको। साड़ी दिया बहन को - जमाई को कपड़ा दिया। ये सब तो ब्यौहार की बात हो गई। असली बात तो ये है कि खाने के लिए जमाई और बहन को लेकर यहीं आया। यहीं। फ्रंटियर। कटहल की सब्जी थी उस दिन साब। पहले से बता दिया था गुरदास को... सुखदेव का लड़का है... तो उसने गुड़ का सेव भी मंगा दिया था। हम लोग तृप्त हो गए। ये होटल तो कामधेनु गाय है हमारे लिए... कल्पवृक्ष है साहब कल्पवृक्ष।’’ रो रहा है कामताप्रसाद सब चुप हैं।

तश्तरी में लगा भाजी का रसा रोटी से पोंछ-पोंछकर सीईओ साहब खा रहे थे। लग रहा था जैसे उन्हें पूरी दुनिया की कोई परवाह नहीं है।

कामताप्रसाद रो रहा है। बिना आवाज किए रो रहा है। फिर संबोधित हुआ वह दूकान के भीतर किसी से - ''अरे सुन... प्लेट में गुड़ तो दे जा... हमारे बड़े साहब आए हैं...’’

जरा फुर्ती दिखा भई।

तब तक एक बच्चे ने नाक पोंछते हुए बोतलवाला पानी कहीं से लाकर धर दिया।

भर पेट खाने के बाद पानी पीया गया। गुड़ खाया गया।

''दाम ठीक लगाना गुरदास। बड़े साहब का मान रख...’’ - बड़े अधिकार से बोल रहा है कामताप्रसाद। आवाज में अभी भी आद्र्रता घुली हुई है।

पैदल चार किलोमीटर वापस कार तक जाने तक कोई कुछ नहीं बोला। नहीं, एक शब्द भी नहीं।

फिर बाकी के कार्यक्रम व्यवस्थित रूप से संपन्न हुए।

कार्यालय से जाने से पहले सीईओ साहब ने कार्यालय की विज़िटर्स बुक में बस इतना लिखा - भूख मीठी या भोजन मीठा?

 

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