भग्नावशेष

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    अप्रैल - 2019
श्रेणी भग्नावशेष
संस्करण अप्रैल - 2019
लेखक का नाम वीरू सोनकर





लंबी कविता

 

 

(भग्नावशेषों को इतिहास के पूर्वकथन की तरह देखो

जिन्हें न सुनने की गलती

एक गुम हो चुकी सभ्यता ने की थी)

 

पृथ्वी की देह

चूना-पत्थरों को दरकने या नदियों का किनारों को तोड़ भागने का

आख्यान भर नहीं है

 

असंख्य पुकारों से बनी है यह पृथ्वी

असंख्य छायाएँ प्रार्थनारत रहती हैं यहाँ

अनगिनत इच्छाफल गिरते रहते हैं यहाँ-वहाँ

 

औचक धावा मारती मृत्यु

पृथ्वी पर अंतरालों का एक निरंतर प्रवाह है

 

जिससे हर बार थोड़ा थर्राती है इसकी देह

 

पृथ्वी किसी शोध का विषय नहीं

खुद को बचाये रखने की इच्छाओं का अद्भुत जमघट है।

 

एक

 

पृथ्वी के तमाम जीवित उत्खनन प्रेमी थे

यात्राओं की विराटता से घबराने पर वह ऊपर देखते थे

ऊपर देखते देखते उन्होंने प्रार्थनाओं की देह रची

और उन्होंने देखा भी

कि एक दिन उसी देह से ईश्वर बोला

और फिर बहुत अजीब ढंग से

उन्होंने प्रार्थनाओं के समूचे इतिहास को जानने के लिए धरती को

खोदना शुरू किया

 

वह जितना ऊपर देखते थे इस पृथ्वी पर उतना ही शून्य उतर

आता था

जितना खोदते जाते वह

यह पृथ्वी उतना गहरी हो जाती।

 

उन्हें कई बार बताया गया

कि वह थकने और थक कर मर जाने के लिए ही पैदा हुए हैं

 

पर तब तक एक देह के तौर पर उन्होंने ईश्वर ढूंढ लिया था

उसके बाद वह किसी की नहीं सुनते थे।

 

दो

 

मैं सभ्यता का सबसे पहला असभ्य हूँ

मुझे भाषाएं नहीं जानती,

मौसमों की पाठशाला में रटा है मैंने संसार का सबसे पहला

विचार।

 

मैं पूर्वजों में प्रथम हूँ

मेरी हत्या संसार की सबसे पहली क्रूर कार्यवाही थी

मैं प्रकृति का प्रथम पाठ हूँ

मुझे संसार के सबसे आखिरी सबक की तरह लो।

 

तीन

 

उनके पास हँसने की बेशुमार जगहें थीं जहाँ वह हँसने का

अभिनय करते थे

बुक्का फाड़ कर रोने के कोने इस धरती पर बहुत कम थे वहाँ

कभी अभिनय नहीं होते थे

*

हँसी दुख पर लगा दी गयी एक मानवीय घात हैं

दुख के भग्नावशेष सीमित हो जाते हैं

आंखों में

*

आगे, पानी, धुआं और बादल

इनके भग्नावशेष नहीं मिलते

 

एक दिन स्मृति के दृश्य धुंधलके में डूब ओझल हो जाते हैं

*

बारिश हो चुकने के बाद भी बची रहती है वृक्ष के पत्तों पर

 

हवा बारिश को याद करते हुए बहुत तेज दौड़ती है।

फिर बारिश के भग्नावशेष गिरते हैं भूमि पर

*

नींद जीवन का भग्नावशेष है

 

नींद के पहले एक जाग थी

चल रही स्वांस आश्वस्त करती है कि नींद का चक्र पूरा होगा

और देह अपने भग्न रूप को तोड़ती हुई

एक दिन का निर्माण करेगी।

 

चार

 

इस संसार की हर आंख से मैंने देखा है।

हर दृश्य के भीतर रहा हूँ मैं

 

मेरे पुरखों की सारी प्यास अटकी है मेरे गले मे

 

मेरा जन्म संसार की सबसे गोपनीय छापेमारी है

मैं आज तक ढूंढा जा रहा हूँ

आज तक जारी है मेरी हत्या की कोशिशें

 

व्याकुलता गोत्र है मेरा

देश-निकाला के आदेश पर देश नहीं

देह से निकाला है मुझे

 

यह पृथ्वी मेरा पहला घर है

यह पृथ्वी मेरा अंतिम घर नहीं है।

मेरा सबसे पहला दुख है कि मेरी स्मृति में दर्ज नहीं है

संसार की सबसे पुरानी आवाज

सबसे पहली ली गई स्वांस

सबसे पहला फूटा हुआ संगीत

सबसे पहला किया गया प्यार

 

सबसे अंतिम दुख के रूप में मेरे पास आंखे हैं

मैं पुरानी पड़ चुकी चीजो के जंगल मे एकदम अकेला हूँ

 

दुख इस मायने में सुख है कि वह जल्दी छिनता नहीं

 

संसार के असंख्य पुस्तकालयों से मूल्यवान हैं मेरी आँखें

मेरे पैरों में सोई है संसार की सबसे लंबी यात्राएँ

*

मैं बहुत धीरे से जागता हूँ कि हवा का बारूद सोता रहे

इतना धीमे बोलता हूँ कि सबसे कमजोर आवाज को भी भरोसा

रहे अपने ताकत पर

सच को इतने सधे हाथों से छूता हूँ कि वह गवाही तक जीवित रहे।

*

मेरी परछाई मेरी देह का मौन है

मैं मौन में संवादों का सबसे मधुर संगीत सुनता हूँ

 

पर्वत पर चढ़ते हुए इच्छाएं पीठ पर लदी रहती हैं मेरी

उतरते हुए संसार की सबसे हल्की आत्मा का वास होता है मेरे

भीतर

 

इस संसार के सभी झरने मुझमें गिरते हैं

सभी ध्वनियाँ जानती हैं मेरे कानों का पता

 

बादलों को अपना वाहन बनाया है मैंने

नींद के पैरों में बंधे स्वप्नों के पहिये उस नदी तक जाते हैं

जहाँ पिछली बार मैं और हवाएं

एक साथ रोये थे

*

इस संसार की सबसे पुरानी भाषा है रंग

पेड़ की हरी हथेलियाँ अपना दुख बाटती हैं मुझसे

*

मेरी हथेलियों में असंख्य छिद्र हैं

मैं जितना बांधता हूँ इन्हें

निकल भागती है एक भाषा

उड़ जाता है सारा प्रकाश

चिडिय़ा इसे अपना सबसे सुरक्षित घोंसला समझती हैं

 

मेरी बंद मुट्ठियों में कैद है

संसार के सबसे पहले जुआरी का तुक्का

 

पांच

 

हम सब कुछ ठीक करने की कोशिश में हमेशा एक अंतहीन रेस

में बने रहे/सारे प्रशिक्षण इसीलिए हैं/समस्त पूर्वाभ्यास इसी की

तैयारी हैं/समस्त आशीष और अनंत शुभकामनाएं इस कभी न

खत्म हो रही सुरंग में धकेलती हैं हमें

 

जो अपूर्ण है/अविकसित है

जो यूँ ही धरा है जैसे का तैसा

जिसे धूप हर रोज पिघला कर कर देती है टेढ़ा-मेढ़ा

बारिश जिसके पैरों में रोज बांधती है सीलेपन से भरा एक भय

वह सब कुछ जो यहाँ अपने सच के साथ माजूद है और

स्वीकारता है कि कुछ भी ठीक करने या बिगाडऩे के सारे अधिकार

इस पृथ्वी के हवाले हैं

 

भग्नावशेष मुँह चिढ़ा कर बताते रहते हैं हमें

 

छ:

 

हमारी आँखों से मृत स्वप्नों के भग्नावशेष झाँकते हैं

मृत स्वप्नों की ओर देखना

उन्हें एक तरह से जीवित कर देना भी है

हम उन्हें कामना से देखते हैं

करुणा से देखते हैं

मृत स्वप्न सोई हुई आत्माएं हैं

हम उनकी अतृप्त देहों से बच कर निकलते हैं

 

पर यह ऐसे जीवाश्म हैं जो हल्की सी आहट भर से जी उठते हैं

और पृथ्वी की सबसे व्याकुल पुकार में अपने वापस आने की

सूचना दे देते हैं

 

सात

 

बिछड़ गए प्रेमियों के भग्नावशेष

भागने में ठिठक गयी प्रेमिकाओं के चेहरे पर मिलते थे

और किसी भी मेकअप से नहीं छुपते थे।

 

आठ

 

(सारे रंग बूढ़े होकर पीले पड़ जाएंगे

सारी अनंतताएँ नाप ली जाएंगी एक दिन)

 

देह की मृत्यु तय है

देह के बाहर भी जो कुछ है बनाया हुआ

सब ढह जाएगा

 

अपने आप बनी हर चीज का शोर चला आता है परछाइयों की

मौन सभा में

छायाएँ पहले विस्मित होकर

फिर करुणा से

फिर वात्सल्य से भर चूमती हैं पृथ्वी की सबसे कुआँरी ध्वनि-

पंखुडिय़ों को

छायाएं जानती हैं

पृथ्वी पर सबसे हल्की चीज को छू लेने का यह महान अनुभव

उन्हें लौटा लोगा फिर से इसी पृथ्वी पर

 

पृथ्वी पर जगहें कम होती जा रही हैं

पर आरक्षित है यहाँ परछाइयों की चहलकदमी की जगहें

 

छायाओं के घर यहाँ सुरक्षित हैं

ध्वनियों के बहुत भीतर मौन के घर सुरक्षित हैं

 

नौ

 

हम शिनाख्तों से गुजरते हैं यह जानते हुए कि 'बीत गए’ के भीतर

आने वाले समय की पुकार दबी है

यह भूलते हुए हर चीज की योजना बनाते हैं कि अंतत: सब बीत

जाना तय है

हमने भग्नावशेषों को कभी भी एक सच की तरह नहीं देखा - जब

भी देखा, विदा हो चुकी तमाम चीजो की वापसी के प्रयास के तौर

पर देखा।

 

दस

 

हवा अपनी नरम सहलाहट से बर्फ की देह तोड़ती है पानी की पीठ

पर निकलती है कठोरता की शवयात्रा!

 

हवा और पानी की जुगलबंदी ने ही इतिहास के सबसे कठोर और

अभेद किलों को ध्वस्त किया है।

 

हवा और पानी इन दोनों के समुच्चय से बना है मेरा रक्त और

मज्जा

 

मैंने दुनिया के इन सबसे खतरनाक हथियारों को पचाया है

दुनिया की सबसे निरापद जगहों पर सेंध लगाऊंगा मैं

 

मेरे पास आग की सबसे पहली स्मृति है।

 

ग्यारह

 

एक ही जगह मौजूद वस्तुओं के बीच

एक साथ पुराने पड़ते जाने की अद्भुत साझेदारी थी

कई बार लगता है कि ऐसा करके वह चिन्तनशीलों की एक पूरी

प्रजाति को एक साथ चिढ़ाते थे

 

क्योंकि इतिहास में कई बार प्रमाण मिले हैं

कि एक ही समय में एक ही जगह ठहरे हुए जीवित मनुष्यों औ

निर्जीव वस्तुओं के बीच व्यवहारिक साम्यता थी।

 

बारह

 

खिड़कियां मकानों की दीवार पर चढ़ गई छिपकलियां हैं

मकान अपने हिस्से की सांस खिड़कियों से लेता है

 

'देखना’ अगर एक कला है तो इसे बचाये रखने को कृत-संकल्पित

खिड़कियों की चौखट पर बीत गए तमाम दृश्य बैठे रहते हैं।

 

बहुत बार आने से पहले ही एक दृश्य घट जाता है खिड़की से

बाहर झांकती आँख में

 

अपनी बारी आने की प्रतीक्षा में कुछ दृश्य संसार के सबसे एकाग्र

मौन के भीतर बैठे बैठे ही बदल देते हैं

दिख रहे सभी दृश्यों को भग्नावशेषों में

 

तेरह

 

चिडिय़ा के उड़ जाने के बाद मुंडेर की स्मृति में जगह बची रहती है

मुंडेर की शक्ल भग्नावशेष में बदल जाती है

 

चौदह

 

तुम्हारी उदंडताओं में घुली है धरती के सबसे प्राचीन विजेताओं की

हुंकार

 

ऊर्जा से खौलते उनके रक्त इस मिट्टी में घुल गए

सबसे विशाल हड्डियाँ, सबसे पैने दाँत और पँजे,

शिकार को उत्सुक चौकन्नी आँखों से इस धरा के समस्त दृश्यों

को घूरते हुए

वह इस दुनिया के रुखसत हुए

*

उसके पास संसार का सबसे बड़ा पेट था

संसार की सबसे भयानक भूख से वह व्याकुल रहते थे

*

कहते हैं कि जाने से पहले वह अपनी पागल साँसे पृथ्वी की हवा

में घोल गए

उनकी सांसों का कुछ हिस्सा पी कर दीवानाकार हुआ अलेक्जेंडर

दौड़ पड़ा था धरती को जीतने के लिए

 

हवा में घुली उनकी अभाषिक फुसफुसाहट सुनी थी लोर्का ने

और उसने भाषा के भीतर छोड़ दिये वैचारिकता के सबसे जिद्दी

वाक्य!

 

हत्या की हर हद फिर उनसे पीछे छूटती थी।

 

धरती पर जब भी आग भड़कती हैं मुझे वह याद आते हैं

 

तुम्हारे हाथों में डायनासौर की हड्डी ही आएगी

होमोसेम्पियस की सबसे आधुनिक औलादों

 

पंद्रह

 

चंकी पांडे मर क्यों नहीं जाता!

 

माफ कीजियेगा मैं कुछ क्रूर हो रहा हूँ

चंकी पांडे की मृत्यु नहीं चाहता हूँ पर हिंदी के बड़े कवि उदय

प्रकाश की कविता 'चंकी पांडे मुकर गया है’ को पढ़ कर तत्क्षण

उपजे भाव से इनकार भी नहीं है मुझे

 

बॉलीवुड की सबसे बेशर्म हँसी हँसने वाले चंकी पांडे को लंबी आयु

मिलनी चाहिए

 

लंबी आयु सलमान खान को भी मिले, और संजय दत्त को भी

मुकरने के 'अंत: स्वीकार’ को ढोती हुई एक लंबी आयु इन्हें और

अधिक विनम्र बनाएगी

 

बेशर्म हँसी की चर्चा चलती है तो बताता चलूं

कि अभिनय की सबसे मासूम हँसी वाले चेहरों में शामिल हैं

फारुख शेख, दीप्ति नवल और अमोल पालेकर

 

सबसे अभिजात्य और कलापूर्ण मुस्कुराहटों पर यह लोग हमेशा

भारी पड़ेंगे

यह अनुमान है एक कवि का

जो बुनियादी तौरपर अपने नजदीकी लोगों में सबसे रूखा आदमी

है

जो अपने स्वप्न में कई बार चले आये चार्ली चैपलिन से पूछता है

कि अपने मूक अभिनय में वह आँखों से क्यों नहीं हँसता है

 

उसे जवाब नहीं मिलता है

 

स्वप्न टूटने पर उसकी आँखें चार्ली की आंखों में बदलती हैं बस!

 

अभिनय पर्दे पर गिरता हुआ एक छद्म है

 

सच के भग्नावशेषों को किसी तरह बचाती इस पृथ्वी पर

आप इसे जब भी देखेंगे।

यह सबसे मासूम हँसी वाले चेहरे

आपको इसके सच होने का यकीन दिलाएंगे।

 

सोलह

 

(जब कुछ टूटता हुआ देखो

अपनी जीर्णता पर कांपता देखो

उसके पक्ष में खड़े हो जाओ)

 

इस पृथ्वी पर जितना भी जनजीवन है वह भग्नावशेषों की आद्र्र

पुकार है इस पृथ्वी पर बाहर से कुछ नहीं आया। यह पृथ्वी

आसानी से कुछ भी बाहर जाने नहीं देती

 

उसके सब कुछ समेटे रहने की महानता के भीतर सुरक्षित है

भग्नावशेषों पर नवनिर्माण।

 

सत्रह

 

शुक्रिया अदा करो इस पृथ्वी पर तूतेन खामेन रहस्यों का एक

अधखिला फूल हैं उसे जितना जान गए हो तुम, उससे अधिक उसे

उतना नहीं जानने के लिए आभारी रहो। मर चुके तूतेन खामेन ने

बचा रखा है तुम्हारी जीवन पृथ्वी की तमाम सुंदरता।

 

उसे याद रहा सुंदरता का सबसे प्राचीन नियम की जान ली गयी

तमाम चीजो की मृत्यु तय है रहस्यों के पीछे भागते हुए ही ठीक

से सांस लेती है एक सभ्यता।

 

वह तुम्हें तीन हजार वर्षों से छका रहा है मूर्खों!

 

अट्ठारह

 

पृथ्वी पर सब कुछ मिटता था और फिर बन जाता था; सिवाए एक

भाषा के, प्रचलन से बाहर हुई भाषा के भाग्नावशेष अगली पीढिय़ों

से बात नहीं करते थे। उनकी मूक-लिपियों की स्मृति को सीने पर

सजाए कुछ पत्थर सभ्यता के आस-पास मंडराते रहते हैं।

 

पृथ्वी पर पत्थरों की खुली कचहरी में भाषा का कोई मुकदमा अब

बाकी नहीं है बस वह इतना चाहते हैं कि एक नजीर के तौर पर

मृत-भाषाओं को याद रखा जाए

* *

पृथ्वी पर दुखों के नवनिर्माण होते रहते हैं

सुख भग्नावशेषों में सुरक्षित हैं।

 

 

 

संपर्क- 7275302077, कानपुर

 

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