प्रभात की कविताएं

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    जनवरी - 2019
श्रेणी प्रभात की कविताएं
संस्करण जनवरी - 2019
लेखक का नाम प्रभात





कविता/ईदगाह से जनकपुरी श्रृंखला

 

 

जनकपुरी

 

एक कोई सोचने समझने वाला जिलाधीश आया था

उसने सिवाय चक की जमीन में

शरीर बेचने वालियों के नाम पट्टे काटे थे

कि वे सीले अँधियारे डेरों से निकल कर

रोशनी में कुछ काम काज करें

पर वे शहर-ए-खामोश के करीब

क्लिनिक चला रहे डॉक्टर आफाक को

जमीनें बेच कर कट ली

 

डॉक्टर आफाक ने वहाँ

ईदगाह कॉलोनी काट दी

एकाध प्लॉट रिश्तेदारों को बेचे

मगर ज्यादा नौकरीपेशा लोगों ने खरीदे

जो तरह-तरह की जात के थे

 

चुनाव आए हुए और गए

प्रदेश में ऐसी पार्टी की सरकार बनी

जिसकी शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार जैसी समस्याओं के हल में

गति शून्य ही थी

लिहाजा ईदगाह कॉलोनी का नाम बदलकर जनकपुरी कर दिया

 

क्रिकेट और साईकिल

 

जनकपुरी में बच्चे क्रिकेट खेल रहे हैं

मामिर साईकिल चला रहा है

 

गोलू बैटिंग कर रहा है

बिट्टू बॉलिंग कर रहा है

यक्ष नील नल गयंद फिल्डिंग कर रहे हैं

क्रिकेट में बड़ा मजा आ रहा है

मामिर साईकिल चला रहा है

 

निशा के भाई राकेश ने

साईकिल घुमाते मामिर से कहा

'अब्बू जी खेल ले यार

'खेलूँगा

साईकिल एक तरफ  खड़ी करते मामिर ने कहा

 

ओए बिट्टू तुझसे कब से गोलू के गिल्ले नहीं उड़ रहे

ये ओवर अब्बू जी को करने दे

(अब्बू जी यानी मामिर)

 

अब्बू जी की पहली ही बॉल पर छक्का पड़ा

दूसरी पर चौका

तीसरी पर दो रन

चौथी में गोलू क्लीन बोल्ड हो गया

क्रिकेट में रोमांच बढ़ गया

 

निशा, मामिर की साईकिल पर

हाथ आजमा रही है

'घुमा ले, घुमा लेमामिर ने कहा-

क्या चलानी नहीं आ रही है?

अब तो गोलू की मम्मी बुला रही है

बिट्टू की दीदी

यक्ष के पापा

गयंद की दादी

हर तरफ  से खेल बंद करने की आवाजें आ रही हैं

मामिर को भी आवाज लगी, 'माऽऽऽमिऽऽर

 

पायजामे के अंदर दबी बनियान में

लम्बी काली दाढी में चमकता गौरवर्ण चेहरा

गली के छोर पर खड़ा था

 

साईकिल लेकर मामिर

जनकपुरी में अपने अकेले आशियाने की तरफ  बढ़ रहा था

बाकी सब भी अपने-अपने घरों की तरफ

निशा भी

 

सुंदर काण्ड

 

लोग धर्म के नाम पर चंदा माँगने आते हैं

हमारे चंदे से एक चाकू खरीदा जाता है

ईदगाह कॉलोनी का नाम बदल कर

जनकपुरी रख दिया जाता है

एक इलाके में इसकी खामोश प्रतिक्रिया होती है

शाम में शहर में धारा एक सौ चवालीस लगती है

 

शहर के पुराने सिनेमा वाली गली में

फिरोज को युवा वाहिनी के एक सदस्य द्वारा

चाकू मार दिए जाने की खबर आती है

फिरोज को अस्पताल में खून की जरूरत पड़ती है

लोग पहचान लिए जाने के कारण से खून देने नहीं जा पाते हैं

दो-तीन घण्टे बाद फिरोज के

नहीं रहने की खबर आती है

 

दो-तीन महीने बाद

लोग फिर सुंदर काण्ड के नाम पर चंदा माँगने आते हैं

हम फिर सुंदर काण्ड के लिए चंदा देते हैं

 

लड़ाई

 

मेरी लड़ाई किसी धर्म से नहीं है

मेरी लड़ाई अपने अधर्म से है

मनुष्य मात्र का हिमायती नहीं रह पाने के अधर्म से

भगवा या हरे रंग से पुती कंक्रीट की दीवारों को

इंसान से बड़ी मानने को बाध्य होने के अधर्म से

 

जब गरीब गुरबों की हत्याएँ होते देखता हूँ

गाय का बहाना लेते हुए

धर्म के नाम पर होने वाली बातचीतों में देखता हूँ

मारो काटो का रंग चढ़ते हुए

दुख होता है

अचरज नहीं

 

मैं अपनी जगह से हिला ही नहीं

खून खराबों से विचलित हुआ ही नहीं

शरीर है ब्राण्डेड कपड़े पहने हुए

शरीर में दिल ही नहीं

 

मेरी लड़ाई किसी और से नहीं

अपने आप से है

 

दाह की लकड़ी

 

मृत्यु तो आती ही है

उसे आना ही चाहिए

सारा जीवन उसी के स्वागत की तैयारी है

उसी के बारे में सोचते विचारते कटती है उम्र

पर कभी-कभी आती है जैसे वह

नहीं आना चाहिए उसे ऐसे

 

अभी-अभी जन्मे शिशु तक

आँखें मूँद लेते हैं बिना रोये

मानो जानते हों

मृत्यु है कितनी जरूरी

जीवन के मोह में पड़ चुके बच्चे तक

नहीं करते इंकार

सोते रह जाते हैं चारपाई का सिरहाना पकड़े

स्त्रियाँ तो खुद ही जाकर मिल लेती हैं मृत्यु से

पहुँचती हैं आग, पानी, फंदे या रेल से कटने के रास्ते से

किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता इन त्रासदियों से

 

ऐसी-ऐसी मृत्युओं की अभ्यस्त हो जाती है सभ्यता

वह आने लगती है लोगों की इज्जत से खेलती हुई

बच्चे, स्त्रियाँ और बुजुर्ग

गिड़गिड़ाते हैं घिनौने लोगों के सामने मौत के लिए

 

मृत्यु तो एक आशा है

ये आयोजन तो कुछ और ही हैं

और हम अफसोस का मंत्र बुदबुदाते लोग

मृतकों के दाह की लकड़ी हैं

 

धृतराष्ट्र

 

आधुनिक विचारों के पैरोकार एक आदमी ने

मोहल्ला स्तर के एक एनजीओ से

सामाजिक बदलाव के काम की शुरूआत की

दो दशक की कड़ी मेहनत से

एनजीओ की दो सौ शाखाएँ

राज्य और पड़ोसी राज्यों में फैल गई

सामाजिक काम करोड़ों के कारोबार में बदल गया

देखते-देखते एक साम्राज्य खड़ा हो गया

समाज सेवी आदमी अब बूढ़ा हो चला

साम्राज्य के लिए उत्ताराधिकारी की जरूरत महसूस हुई

होने को तो एक से एक कुशल और नीति निपुण

उसके दरबार में थे

जिन्होंने समय की हवाओं को चीरते हुए

अपने बौद्धिक भुजबल से साम्राज्य का विस्तार किया था

लेकिन साम्राज्य के स्वामी उस आधुनिक आदमी ने एक दिन

भाषा, गणित, पर्यावरण और खेल विशेषज्ञ सभी सभासदों के बीच

अपने राजा बेटे का राजतिलक कर दिया

 

कैंटीन में चाय बनाने वाले जमीनी कार्यकर्ता संजय ने कहा-

योग्यों की योग्यता और प्रतिबद्धता धरी ही रह गई

गद्दी तो जहाँ जानी थी वहीं गई

 

महाभारत में धृतराष्ट्र जैसा पात्र

मनुष्य की इसी प्रवृत्ति का कालजयी सूचक है मित्रो

चाहो तो आप अपने भीतर भी खँगाल कर देख लो

 

सपना

 

सपने में तुमने बुलाया

और मैं आ नहीं सका

 

कितना आसान था

खुद के सपने में तो कम से कम

तुम्हारे बुलाने पर

तुम्हारे पास आता

पर नहीं आ सका

तुमसे मिलने की चाह न होती

तो मुझे सपना ही क्यों आता

नींद में मिलना था

सच में तो मिल नहीं रहे थे

कि कोई डर सताता

समय भी किसी का

बर्बाद नहीं हो रहा था

न तुम्हारा न मेरा

 

कैसा जंजाल था जी का

मेरा ही दिमाग बुला रहा था

मेरा ही दिमाग मना कर रहा था

हड़बड़ा कर जागा

बस की चपेट से बचते

 

सोचने लगा

क्या सोचा होगा तुमने

क्यों नहीं आया मैं मिलने

 

सुदूर चली गई चेतना

जैसे जैसे लौटी

मैंने पाया

अरे तुम्हारा और मेरा तो

कोई लेना देना ही नहीं

 

प्रभात करौली राजस्थान के हैं। बच्चों के लिये विपुल और अनूठा लेखन किया। प्रभात ने जीवन के उन तत्वों से कविता बनाई है जो प्रत्यक्षत: स्वाभाविक रूप से काव्योचित नहीं लगते। उन्होंने प्राय: कविताओं में दु:ख और संताप की गाथा का गान किया है।

संपर्क - 205, ईदगाह कॉलोनी, जनकपुरी, नीमली रोड, सवाईमाधोपुर, राजस्थान 322001  मोबाइल- 09460113007

 

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