वेटिंगरूम
कविता/दो हिस्से
ये दो कविताएं एक दूसरे की पूरक हैं। यह बात कविताओं को पढऩे के बाद साफ हो सकती है। वेटिंगरूम को मैंने वीरेनियत 3 नाम के आयोजन में काफी मनहूस तरीके से पढ़ा था जबकि दूसरी कविता को थोड़ा पहले मेरे युवा रचनाकार-संपादक साथी सिद्धांत मोहन ने अपने ब्लॉग पर लगाया था। दोनों कविताओं के मूल पाठ में कई परिवर्तन किए गए है।
वेटिंगरूम मैं नहीं जानता कि मैं रेलगाड़ी की प्रतीक्षा कर रहा हूँ या पुरानी विपत्तियों की या सुल्ताना डाकू की या मुंगेर कंपनी की या 5जी सिम की या जियो विश्वविद्यालय से निकले बदगुमान ग्रेजुएट की ओबामा की या ओसामा की या पंथप्रमुख की स्वीकारोक्ति की कि राजधर्म के पालन में हत्याएँ हुईं, हो रही हैं और भी होंगी या उन काव्यपाठों की जहाँ कविताएं शोकगीतों की तरह ही पढ़ी जा सकती थीं याकि हिंदी की आत्मा को कमज़ोर करने वाले लेकिन कवि की अमरता में मदद करने वाले कलाबत्तू और डिजायनदार फार्मूले की याकि फुले की
हिंदी कविता ब्राह्मण कविता है - प्रतीक्षालय में एक आदमी बुदबुदाया : कहाँ है उत्तर जाति उत्तर वर्ण और उत्तर नस्ल की ईश्वरोत्तर धर्मोंत्तर कविता की नितांतता। अनभिजातता। मैं संताप के इस अँधेरे में एक रेलगाड़ी की नहीं मंटो के मुकद्दमाग्रस्त निर्वासन की और अनाम अज्ञात काफ्काई मृत्यु की राह देखता हूँ और हिंदी कविता के अमरत्वाभासी मेडल को हिंडन के दूषित तेजाबी जल में फेंकता हूँ लौटता हूँ - अस्वीकार्य कविता का मजमून लेकर एक विफल और विषण्णकाव्य पाठ के बाद। यह जो प्रतीक्षालय है शायद अनाथालय है जिसमें हो सकता है कभी मकदूम ने विचारधारा का इंतज़ार किया हो बियाबान में वेटिंगरूम में किसी ने कहा कि नोटबंदी की लाइन में कारगिल युद्ध से कई हज़ार गुना ज्यादा हताहत हुए लेकिन उस दौरान भारतीय पूंजीवाद के लिए सबसे आश्वस्तकारी बात यह हुई कि मुकेश अंबानी के यहाँ से कालाधन नहीं निकला सचिन, अमिताभ, शाहरूख, प्रियंका, मनीष मल्होत्रा निकले
कि तुम हो लूट में शामिल हमीं को बरगलाते हो सचिन भाई हमारे जान ये छक्के से क्यों बहले हमाए तंत्र में गणतंत्र का कितना तो दम निकले बहुत कालिख भरी है आत्मा में चेहरे उजले कि फैशन से क्रिकेट से इस सनीमा इस सियासत से हमारो हाल ऐसो है कि अब हालात कुछ बदले
वेटिंग रूम में मेरी बगल में बैठे आदमी ने बहुत अवसाद से कहा कि मेरी दुनिया श्रीदेवी के सपनों ने बदल दी थी और वह वह रेलगाड़ी का नहीं श्रीदेवी के लौट आने का इंतज़ार कर रहा है उसने मुझसे धमकाने वाली शैली में पूछा कि श्रीदेवी तुमको कैसी लगती थी: मैंने उसे उसे बताने की कोशिश की कि टाइम पर प्रोटीन न मिलने से और बाद में यदा कदा यहाँ वहाँ मिल भी जाने की वजह से मेरी अपनी जांघ में इतना दर्द होता रहा है कि मैं पूँजी प्रायोजित जांघ के कैलेंडर का सपना नहीं देख पाता था लेकिन मैं दसियों सालों से इस खबर का इंतज़ार कर रहा हूँ कि दुबई के ग्यारह सितारा होटल में बालीवुड नाम की सांस्कृतिक निरर्थकता का नहाते हुए पैर फिसला और उसका लीपा पोता बोटॉक्स वाला चेहरा टब में बहुत थोड़े ही पानी में डूब गया।
नहीं आती नैतिक भूकंप की कोई खबर जी़न्यूज पर बगल के चैनल पर जावेद अ$ख्तर प्रतिष्ठान और प्रतिरोध दोनों की खाने वाले
एक आदमी यह बड़बड़ाते हुए कि प्रतीक्षालय का शौचालय तो रौरव है सामने की पटरी पर निपट कर आ गया इस परिघटना को संभालते हुए एक राष्ट्रभक्त ने लाल गमछा गले में लपेटते हुए वेटिंग रूम के बीच में एक कुर्सी पर खड़े होकर कहा कि हमारे पास सब कुछ है आज तक है और उसका सर्वेक्षण कि नेहरू से चार गुना बेहतर प्रधानमंत्री हैं जो स्वच्छता संग्राम चलाए हैं तो भाइयों, हम सबको राजनैतिक फैंटम मिल गया है, सांस्कृतिक आयरन मैन, और देश को किसी भी जगह ले जाकर कहीं भी टांग देने वाला स्पाइडरमैन- बस अब हर एक को शौचालय मिलने वाला है। जब कुछ खाएँगे तभी तो हगने जा पाएँगे यह कहता एक आदमी अंडरग्राउंड होने की धूल झाड़ता इंतज़ार करते लोगों के बीच धड़धड़ाता घुस आया और अवसाद के साथ बोला कि नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने मंटो का किरदार निभाने के बाद बाल ठाकरे का चरित्र निभा कर भारतीय कला में मध्यवर्गीय संतुलनवाद का वही पुराना रूपक गढ़ दिया कि थोड़ा बहुत प्रतिरोध तो ठीक है लेकिन ये थोड़े ही है कि जान दे देंगे। वह भूमिगत प्रतीक्षालय की भूमि पर आकर बोलता रहा हमारे पास सब कुछ है दुनिया की सबसे ऊँची प्रतिमा और दुनिया का सबसे बौना राजनीतिज्ञ और दुनिया की सबसे दूषित और सबसे पवित्र नदी और सबसे आलसी कम्युनिस्ट पार्टी और बेटी बचाने की सबसे बुरी नीयत और दुनिया की सबसे ऊँची जाति और दुनिया की सबसे नीची जाति और दुनिया का सबसे सुखी और सबसे दु:खी आदमी और दुनिया का सबसे तेजी के साथ धनवान होता पूँजीपति और दुनिया का सबसे ज्यादा सरकुलेशन वाला अख़बार और दुनिया की सबसे कम सरकुलेशन वाली समकालीन हिंदी कविता और संस्कार का सबसे खूँख्वार रक्तपात कविता की सतत टेढ़ी पीसा टावर की कमर तक पहुंचने के लिए।
फिर वह चेतावनी देने की शैली में चिल्लाया कि खेतिहरों के आत्महत्या करने वालों की संख्या का बढऩा मरने की कला में क्षरण का मसला है किसान क्रांति में ये लोग मरते तो युग परिवर्तन करते।
इसके बाद धरती फटी और वह सुरंग के रास्ते से कहीं और चला गया किसी और प्रतीक्षालय में।
किसी भी रेलगाड़ी के आने में जब बहुत देर होने लगी तो रिपब्लिक टीवी के ऐंकर ने राष्ट्रीय सत्य के प्रसारण वाली शैली में कहा कि आप लोग किसी भी गाड़ी में बैठ सकते हैं जो जाहिर है कहीं नहीं पहुँचेगी लेकिन अभी इतना बुरा हाल नहीं है कि उसे हिटलर के समय की यंत्रणा शिविर की तरफ जाने वाली रेलगाड़ी का दर्जा दिया जाय। थोड़ा रुका जाय सहारा, आज तक, एबीपीन्यूज के कारपोट काईदार बरामदों से होकर आते प्रतिकार के खून में लथपथ एक दाढ़ीदार पत्रकार के शहीद होने का तीन दिवसीय नैतिक वामोन्मुख सोशल मीडियाई बिगुल बजाया जाए।
प्रतीक्षालय में चाय ले लो चाय गुहारते हुए जो चाय वाला आया उसे चाय के साथ क्रांति नहीं पकौड़ी दी और यह खबर कि एक बैग उठाकर भागते आदमी को पीट पीट कर मार डाला गया सामने टीवी पर यह खबर आ रही है कि अं अ: को सतत मुदित ने साठ हज़ार करोड़ रुपए दे दिए यह कहते हुए कि ओए गज्जू, तुझे संसार का सबसे अनैतिक बैग थमा रहा हूँ पूरे देश में हर किसी को यह खबर है कि चुनाव के समय इसका अधिकांश तू मुझे वापस दे देगा और यह भी कि यह पैसा मैं देश को गिरवी रखकर दे रहा हूँ और अंत:करण को जो मेरा ही नहीं एक और आदमखोर का भी है
मेरा असंतोष और मेरा पसीना और मेरी अकुलाहट और यह देखकर की रेलगाड़ी तो आने वाली नहीं एक आदमी ने एक लंबी दार्शनिक प्रतिक्रिया की उम्मीद में मुझसे पूछा कि आपको आखिर क्या चाहिए तो मैंने कहा दो बोरी बांगड़ सीमेंट जिससे मैं अपना अधूरा किचन बनवा लूँ हर एक को अपनी कविता से निराश करके मैं दरवाज़े की तरफ देखता हूँ और खुद को लगातार झुलसाने वाला लुआठा लिए पूछता हूँ कि साधो हमन कौन पथ जाएँ
साठ-आठ पुलिस वाले जिसमें यह पता नहीं चला कि कौन गृह मंत्री है और कौन गृह सचिव डंडा बजाते हुए हालनुमा कमरे में घुस आए कि सही सही बता दो इसमें कितने चूतियापंथी करने वाले नक्सलपंथी हैं तो एक आदमी ने चंपा सुर्ती घिसते हुए कह दिया एक अरब तीन करोड़। देश की किसी अदालत ने इस समझदारी के साथ कि ऐसा हो भी सकता है अगली सुनवाई तक सबको हाउस अरेस्ट का आदेश दे दिया
मैं प्रतीक्षालय में अचानक खड़ा हो गया तो मेरे बगल की लड़की ने कहा कि आपकी रेलगाड़ी अभी नहीं आई है। मैंने कहा कि मुझे लगा कि समकालीन अधमकालीन भारतीय राज्य और समाज के पराभव की कथा फिल्म और मॉक्यूमेंट्री खत्म हो गई और जनगणमन शुरू हो गया
तो मैं लिंच होने से बचने के लिए खड़ा हूँ वैसे बहुत पास आकर देखो तो दिल्ली से मुंबई जाने वाले राजधानी एक्सप्रेस की पटरी सा कीलित बेजान ठंडा निरुपाय ऊपर से घपघप गिरते राजनीति और सांस्कृतिक गू में पड़ा हूँ
नहीं आती दिखती रेलगाड़ी तो पैदल चल पड़ा हूँ
निकल पड़े कित्ते भिनसारे* फटा बैग चीकट बनियानी बाल बिखरते सारे कहीं कहीं कुछ ताप दिख रहा सुलग रहे अगिआरे पश्चाताप बहुत है मन में उमड़ समंदर खारे अगली बार जनम लूँगा तो मध्यवर्ग से न्यारे ईश्वर मुझको रोज बुलाता करता कुटिल इशारे मैं उस पार नहीं जाऊँगा जिधर भीड़ जयकारे बहुत ध्यान से ऐसे जैसे सुई में तागा डारे सोच रहा हूँ बार बार कि बिना लड़े क्यों हारे
* सुबह
भाई मैं भारतीय नागरिक के पात्र की भूमिका से हलकान हूँ
मैं लिखित कविता की किसी तरह आती जाती साँस हूँ
उदास हूँ
मैं साहित्य से बाहर की बदहवासी हूँ
मैं हवा को हेलो कहता पेंटागन का नहीं बच्चों का बनाया कागज का हेलीकाप्टर हूँ कभी इस कभी उस अधनंघी सत्ता के सॉकेट में खोंस दिया जाता एडॉप्टर हूँ अंधड़ हूँ मैं ईश्वर के न होने के उल्लास में धरती के कांपने की प्रतीक्षा में दुर्भाग्य से भरे 13 वें तल पर स्थापत्य के ढहने की प्रत्याशा में उनींदा और जागता हुआ फिक्रमंद लद्धड़ हूँ चकबंदी, नसबंदी और नोटबंदी के गलियारों से गुज़रता मैं खुले जेल का बंदी मैं ढूंढ़ रहा हूँ चंदू बोर्डे की अपने समय की सबसे निर्भीकता से छक्के के लिए उड़ाई लाल गेंद की मर्फी रेडियो से छनकर आती मासूमियत
इस बदहवासी में मैं कौन सी फिल्म देखने जाऊं सिनेमा थियेटर स्टाक मार्केट में बदल गये हैं कि क्रिकेट कैसिनों में
मैं कितने ही चैनलो में ढूंढ़ता रहा सईद अख्तर मिर्जा की कोई फिल्म लेकिन बार बार गुजरात के गिर फॉरेस्ट में हिरण को दौड़ता व्याघ्र मिलता रहा और गुजरात दंगों का छुट्टा अभियुक्त और बुलेट ट्रेन के सपनों में मदमाता देशभक्त और अमिताभ बच्चन का गुजरात आने का निमंत्रण लेकिन उनके बुलाने के पहले ही मैं तो गुलबर्गा सोसायटी हो आया था और रो आया थापता नहीं यह रुलाई वैसी ही थी या नहीं कि जैसी भारतेंदु हरिश्चंद्र रोये होंगे बनारसी और वणिक नवजागरण की शैली में कि भारत दुर्दशा देखी न जाई
मतलब कि पर्यटन में आप पर यह मुमानियत तो हो नहीं सकती कि आप क्या न देखें और इतिहास की किस दौर की किस शैली में किस कोने में किस अंधेरे में किस उजाले के लिए रोएँ
कोई मेरे कान में कहता है कि कारपोरेट हमारे भ्रष्ट ऐस्थेटिक्स में निवेश करता है और हमारी राजनीतिक मनुष्यता से डरता है। वह कोई कौन है कि और मैं कौन हूँ जैसे सरकारी अस्पताल के कोने में बजती हुई खाँसी और लक्ष्मीबाई के गिरने के बाद रौंदी हुई झाँसी।
एक तरफ पूरे देश की हाय है जिसके बरक्स प्लास्टिक चबाती बाल्टी भर राजनीतिक और अमूल दूध देती गाय और स्मृति के तुलसीत्व की रामदेवीय दंदकांतीय महक। दहक। ... ता है दिल। निर्वासित है तो कहीं भी मिल। नवाज़ुद्दीन को उनके अपने ही नगर में शिवसैनिकों ने मारीचि तक नहीं बनने दिया राम बनने की ललक उन्होंने दिखायी होती तो क्या होता कहा नहीं जा सकता लेकिन हिंदी मनुष्य की हकलाहट और स्याह नाक नक्श वाले नवाज़ हिंदुस्तान के बड़े अभिनेता हैं इस बात से नवाज़ से पेशेवरी मीठी अदावत रखने वाले इरफान भी शायद इंकार न कर पाएँ और हो सकता है किसी रामलीला में रावण बनने के लिए तैयार हो जाएँ जिस पर हो सकता है शिव सैनिकों को आपत्ति भी न हो कि राक्षस ही तो बना है अहमक
मैं राम लीला में कुछ नहीं बनूंगा
मैं भारतीय नागरिक के पात्र की भूमिका से ही हलकान हूँ मुक्तिबोध की तरह सबको नंगा देखता और उसकी सज़ा पाता कंगले बनारसी बुनकर की कबीरी थकान हूँ
नरोदा में एक के बाद दूसरा जलाया गया मकान हूँ कह लीजिए अपने को कोसता हिंदुस्तान हूँ
ईश्वर को धोखा देने की रणनीति से मैं काफी विह्वल हूँ इतना संशयालु हूँ कि सम्भल हूँ और इतना म्लान कि धूमिल हूँ
समकालीन साम्यवाद बौद्धिक सुखवाद का नमूना है होगा कोई विस्मृत आत्म- निर्वासित जिसे वैचारिक निमोनिया है
मगर देश को हिंदू राष्ट्र घोषित किया ही जाना था तो ठीक उसके पहले अखलाक की हत्या के अभियुक्त की मृत देह को तिरंगे में लपेटकर बर्फ में रखा गया जेल में वह चिकिनगुनिया से मरा या अपराधबोध से यह पोस्टमार्टम रिपोर्ट में निकलने से रहा फिर भी काबीना स्तर का मंत्री पूरे लाव लश्कर, राजनीतिक कार्यभार और सांस्कृतिक ज्वर के साथ पहुँचा। अफसोस यह कि आत्म सम्मान और सांप्रदायिकता के सात्विक क्रोध से कांपते हिंदुओं से यह वादा न कर सका कि जन्मजात अब कोई शूद्र न होगा।
अब भी काफी लोगों का मानना है कि जाति पर अगर सोच समझकर राजनीतिक नीरवता में सर्जिकल स्ट्राइक किया जाय तो वह खत्म हो सकती है लेकिन फिर इसके लिये कम से कम एक कैबिनेट मीटिंग तो बनती है जिसकी अध्यक्षता अगर पंतप्रमुख करेंगे तो जाति और घृणा और हिंदू मुसलमान वाला अगला चुनाव कैसे लड़ेंगे हिंदू सत्य इस समय लगभग हरेक की जेब में है स्मार्ट फोनों के ऐप में है जहाँ पड़े पड़े वह इतना कोसा हो गया है कि चार साल पुराना मीथेनमय ज़हरीली समोसा हो गया है उत्तर-सत्य की इस महावेला में स्वातंत्र्योत्तर भारत में आज़ादी का नारा सबसे सांगीतिक तरीके से लगाने वाले कन्हैया ने हमारे पराभव के कुछ दिनों को आशावाद में बदल दिया लेकिन काहे यार, लालू का पैर छू लिया फिर भी धन्यवाद पर डेढ़ पखवाड़े की झनझनाती टंगटडांग उम्मीदी के लिये लालू हमारे अंत:करण के लिये ज़रूरी पदार्थमयता है सेक्युलरिज्म के लिए यह अच्छी खबर है कि हम सब भूल गये हैं कि लालू पोषित शहाबुद्दीन पूर्व जेएनएयू अध्यक्ष चन्द्रशेखर का हत्यारा था मतलब कि लालू हमारे सेक्युलरीय गणित के लिए अनिवार्य अंक है। तो एक गल्प है कि हमारे पास विकल्प है
मैं खुले में शौचमुक्त राष्ट्र में घूम रहा हूँ लेकिन यार नवीन अधिनायक भारत तो काफी बीमार है जिसकी भी नब्ज़ थामो कमबख्त को 108 डिग्री का गेरुआ बुखार है इलाहाबाद पहुँचना था मुझे प्रयागराज पहुँच गया रातों रात मेरा शहर नक्शे से मिट गया
आइये एक सवाल पूछते हैं किसी पार्टी प्रवक्ता से नहीं खुद से कि राष्ट्र के तौर पर हम कौन हैं- यह द्विवेदीजी बताएंगे जो चैनलों में घूमता वैचारिक डॉन हैं एक खूंआलूदा पर्दे के सामने स्तब्ध बैठे हम स्साले निस्सार निरीह माशा छटांक आधा और पौन हैं
मेरे पास क्या है एक बेजुबानआं है
सामने ढहता जग है ठग है अपमान भूलने के लिए मेरे झोले में पंजाब से लायी ड्रग है और काव्यगुणों में न लिथड़ता रेटरिक और लाल सलाम वाला कटा हुआ हाथ और जो आदिवासी मार दिया गया खाते समय उसका न खाया भात
संपर्क - मो. 9250791030, गाज़ियाबाद
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