तीन कविताएं - बजरंग विश्नोई

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    पहल - 114
श्रेणी तीन कविताएं - बजरंग विश्नोई
संस्करण पहल - 114
लेखक का नाम बजरंग विश्नोई





कविता

 

 

बांगडूस के जूते

 

बांगडूस के जूते

बांगडूस को इधर उधर

लिये फिरते हैं

 

बांगडूस ने जब जूतों में पैर

डाल ही दिये

तो सब कुछ जूतों पर

छोड़ दिया था

 

लोग जूते देख कर जान जाते हैं

इंकलाब आ रहा है

लोग हट जाते हैं

इंकलाब को रास्ता देते हुये

और वह धूल उड़ाता जाता है

जितना ज्यादा धूल उड़ती है

उतना बड़ा इंकलाब होता है

 

बांगडूस के जूते चलते हैं

जैसे रथ चलता है और

कभी जैसे मेढ़क

इब्न बतूता

बांगडूस के जूतों की तलाश करता रहा

बांगडूस को पता चल गया

और वह जूते पहने

खजूर के पेड़ पर ही बैठा रहा

जब तक इब्नबतूता चला नहीं गया

 

आज बांगडूस नंगे पाँव था

उसके जूते राजा ने छीन कर

अपनी डुगडुगिया पीटने वाले को

पहना दिये हैं

बांगडूस उसके पीछे पीछे धूल

उड़ाता हुआ इंकलाब जिंदाबाद गाता

चला जा रहा है

 

बांगडूस के जूते अब

बांगडूस के आगे आगे चलते हैं

 

ढाका की मलमल किसने बुनी थी

 

तीस्ता से पद्मा तक तने थे

ढाका की मलमल के तन्तु

महीन इतने कि सांसें

फंस फंस जायें उनके भीतर से गुज़रने में

नर्म इतने कि भरम के छूते ही

शबनम टपकने लगे

 

बूढ़ी गंगा में धो निचोड़ कर

नीम वन में हरित द्युति

शस्य श्वेत आलोक में सुखाये हुये

थान पर थान

जिन पर छप गई थीं नीम की कोंपलें

और नीमवन के झोंकों से झिरी से

गिरते सुनहरी धूप की अंगडाईयाँ

नीम कन्या की युवागंध से

सुवासित

 

बाबा ने अपनी आखिरी सांसों को

ठहरा कर रखा

उसके आने तक

उसके आ जाने पर अपने लरजते हाथों

उसे सौंपते हुये ढाका की मलमल के

दसों थान जिनको

नवाब की अंगूठी से निकाल कर दिखाया था

कहा मैं चल रहा हूँ

 

एक थान मेरी कब्र की खुदाई से

चालीसवां होने तक खर्च हो जायेगा

बाकी नौ तुम्हारी मर्ज़ी के मुंतज़िर रहेंगे

 

बाबा चले गये

बच्चे के अनाड़ी हाथों में सौंप कर

वे मुंतज़िर हैं अब भी

कविता की मलमल के वे थान

काज़ी नज़ुरल इस्लाम

ने बुने थे

 

आत्मा के संगीत की कौन सी तान

चढ़ाई थी करघे पर

बिद्रोही ने

कि

काल मुद्रिका से लगातार पार

खींचते रहो

क्या मज़ाल एक रेशा फंस जाये

 

 

न्यूकिलयर बम कहाँ रखे हैं

 

नींद की रंग गाढ़ा था

गहरा नेपच्यून ब्लू

फिर उसमें थोड़ा बैंजनी मिल गया

होते होते वह लेवेंडर टोन लेने लगा

मिल्की लेवेंडर कब गुलाबी होते

सिंदूरी होकर दहकने लगा

दहकने लगा वह नींद में ही

अचानक नींद उसे

धक्का देकर भागी

और धधकती धमन भट्टी में

कूद गई

 

कमरे की दीवारें

अंधेरे में भी राख से पुती लग रहीं थीं

हाथ की उंगलियों से

चीटियों ने जो रेंगना शुरू किया

तो वे बिना देर किये

सारे शरीर में फैलती चली गयीं

उसके पास बर्फ का बरमा था

सीधे सीने में सूराख करके

सर्दी का सत उड़ेलते

वे अंदर दाखिल हो रही थीं

 

वह लडख़ड़ाते कदमो से उठा

खिड़की के पल्ले खोले

तो काँच से बर्फ की राख झरी

खिड़की के बाहर

पेड़ के नीचे

जमीन पर बिछी स्लेटी बर्फ

धुनी हुई बिछी थी

बिजली नहीं थी लेकिन

हल्की बैंजनी रोशनी की छाया

पेड़ की मुरझा कर लटकीं

स्लैटी पत्तियों पर और बिछी हुई

बर्फ पर पड़ रही थी

जिस पर सैकड़ों चिडिय़ाँ

छिले हुये खीरे की बीच से तराशी गई

लम्बी लम्बी फाँकों सी

दूध में निचोड़े गये दोचार बूंद क्लोरोफिल

की रंगत लिये मरी पड़ीं थीं

 

पेड़ के पीछे से उस नीम अंधेरे में

लम्बी लेटी हुई नागिन जैसी

क्षितिज रेखा ने एक करवट ली

जैसा वह अंड़े देकर लेती है

और वहाँ सैकड़ों जलते हुये

बैंजनी रंग के छोटे छोटे सूर्य जैसे

नागिन के अंड़े प्रकट हो गये

घबरा कर उसने खिड़की बंद कर दी

 

उसे लगा के उसके नथुने फड़क रहे हैं

उसने उन पर बर्फ से सुन्न हो रहीं

उंगलियां फेरीं

लगा नथुने फूल कर रबड़ की

गुब्बरियाँ बन गये हैं

आँखों के नीचे लगा कुछ है

हाथ फेरा तो महसूस हुआ

सेलोफिन की चम्मचों में द्रव भर कर

वहाँ चिपका दिया गया है

 

वह भागा वाशबेसिन पर लगे

आइने में देखने को

लेकिन बिजली नहीं थी

उसने जेब से निकाल कर

सिगरेट लाइटर जला कर देखा

आइने की जगह पर मटमैली काँच थी

उसके पारे और सिंदूर का रोगन

बह कर नीचे बेसिन की ऊपरी प्लेट पर

कबूतर के खून जैसा जम गया था

 

क्या हुआ है ये बताने वाला

कोई नहीं था

उसने आँखें मूँद लीं

और ज़ोर से अपने सर पर

दोनों हाथों को जोड़ कर

ठीक ऊपर सर के तालू पर दबाया

दबाया दबाता चला गया

और ब्रह्मरन्ध्र फूट गया

भल भल कर बह निकला

लावा

उसकी दोनों हथेलियाँ गर्म लावे

में सन कर जल गयीं

उसे पता ही नहीं था कि

वहाँ परमाणु विस्फोट हुआ था

और उसकी दुनिया का

विध्वंस हो चुका है

 

 

 

 

1944 में कालपी में जन्मे कवि पहल में इन कविताओं के साथ पहली बार प्रकाशित हो रहे हैं। मूलत: चित्रकार है।

संपर्क - मो. 9818288584, नई दिल्ली

 

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