बर्टोल्ट ब्रेख़्त की प्रेम कविताएं

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    सितम्बर - 2018
श्रेणी बर्टोल्ट ब्रेख़्त की प्रेम कविताएं
संस्करण सितम्बर - 2018
लेखक का नाम अनुवाद : देवेन्द्र मोहन





देशांतर

जर्मन कविता

 

 

 

 

बर्टोल्ट ब्रेख़्त (1898-1956) महान नाटककार तो थे ही, महान कवि भी थे - उन्होंने विविध विषयों पर 2000 से अधिक कविताएं लिखीं। और सब की सब असंकीर्ण, वैविध्य पूर्ण जिनके संदर्भ दुनिया भर के साहित्य में लिए गए थे। वे पूर्णत: वामपंथी थे और उन्हें मालूम था कि कविता के ज़रिए किसी विचारधारा की बहस हो सकती थी लेकिन कविता किसी भी विचारधारा के बंधन में महदूद नहीं की जा सकती। उन्हें पता था कि कई तरह के स्रोतों की मदद से कविता लिखी तो जा सकती है लेकिन उसके तास्सुरात या प्रभाव बिल्कुल अलग होते हैं।

वे क्रांतिकारी लेखक थे मगर कई स्तरों की मुहब्बतों में मुब्तिला, अलग अलग परिवेश, हालात तथा सोचों से प्रभावित थे। मुहब्बतों की आवाज़ होती है जिसकी अनुगूंज दायरों से परे - कहीं परे सुनाई देती रहती है। उनके अपने देश जर्मनी में लोग इस अनुगूंज से लंर्बे अर्से के लिए अपरिचित रहे, कई सालों बाद जर्मन लोगों को एहसास होने लगा कि ब्रेख़्त के मानव प्रेम का क्या स्तर था, सब़ से प्रेम करो - खासकर सब तरह की नारियों से, और सब के प्रति वफादार रहो।

खुद ब्रेख्त की सुपुत्री, बारबरा ब्रेख़्त स्खॉल ने लिखा है : ''पापा स्त्रियों से प्रेम करते थे, और बहुत सारी स्त्रियों से... ठीक उसी तरह जैसा कि वे अपनी लेखन कला से प्रेम करते थे... नारी हो या लेखनी, उन्होंने सब से प्रेम निभाया और पूरी तरह...’’

अपनी दो हज़ार से अधिक कविताओं में प्रकृति, सौंदर्य और राजनीति के अलावा प्रेम और सेक्स पर बेशुमार अभिव्यक्तियाँ हैं, और यही ब्रेख़्त को अन्य समकालीन कवियों से अलग दर्जा देती है।

 

 

ऐब

 

तुम में एक भी नहीं था

मुझ में एक था:

मैं प्रेम करता था

 

बुरे समय का प्रणय गान

 

तब हम दोनों में मैत्री नहीं थी

फिर भी लगा नहीं प्रेम बहुत जल्द हो गया है

और हम एक दूसरें की बाहों में सिमटे रहे

चांद से ज़्यादा एक-दूसरे से अजनबी।

 

आज कहीं मिले होते बाज़ार में तो शायद

लड़ रहे होते मछली की कीमत को लेकर

उस समय हम दोनों में दोस्ती नहीं थी

फिर भी जकड़े होते एक दूसरे की बाहों को लेटे हुए।

 

प्रेम-प्रेमियों पर त्रिपद

 

वह देखो सारस किस तरह तीर जैसे

आसमान पर चले जा रहे हैं।

राह में बादलों को साथी बनाए हुए

जो पहले से ही थे वहां

 

एक ज़िंदगी से दूर दूसरी ज़िंदगी को जाते हुए।

सब साथ में एक सम ऊंचाई पर समान गति से

अपनी स्वाभाविकता लिए हुए।

 

सारस और बादल एक ही जगह साथ-साथ

विस्तृत आसमानों पर क्षण भर के लिए

गुज़रते बिना टिके एक ही जगह पर

 

देखते एक-दूसरे को सहमति देते साथ-साथ हौले

से झूमते हवाओं में

साथ-साथ उड़ते हल्के हल्के

 

हवा शायद उन्हें शून्य में ले जाए।

वे आपस में बने रहें मज़बूत एकजुटता के साथ

तो उनका अहित नहीं होने वाला

चाहे उन पर गोलियां दागी जाएं या सामना

करना पड़े तूफान का।

बेफ़िक्र सूरज या चांद की पीली रौशनी से

वे यात्रा पर हैं, एक दूसरे की मुहब्बतों में मुब्तिला।

तुम किससे भाग रहे हो? - दुनिया से।

- कहां चले हो?

कहीं भी।

तुम पूछते हो ये कब से साथ हैं?

बहुत समय से नहीं। - और ये कब जुदा होंगे?

- ओह, जल्द ही। तो प्रेम उन्हें सुरक्षित लगता है जिन्हें प्रेम है।

 

धुआं

 

सरोवर के किनारे पेड़ों के बीच एक छोटा मकान

चिमनी से ऊपर उठता धुआं

अगर वह न होता

कितने उदास लगेंगे

मकान, सरोवर और पेड़।

 

सात फूल गुलाब झाड़ी पर

 

सात फूल हैं गुलाब झाड़ी पर

छह हवाओं के नाम

एक बचा है गुलाब

जिसे मुझे पाना होगा।

सात बार मैं तुम्हें पुकारूंगा

छह बार मुझ से दूर रहना

वादे के साथ कि सातवीं बार

तुम फौरन चली आओगी।

 

तुम्हें छोडऩे के बाद, बाद में....

 

तुम्हें छोडऩे के बाद, बाद में

उस बड़े आज में

मुझे कुछ नहीं दिखा, लेकिन जब

देखना शुरू किया, सब कुछ उल्लसित था।

 

उस शाम से, उस पल से

जानती हो किस का ज़िक्र है

मेरी चाल में थिरकन है और ज़्यादा

खूबसूरत बन चुका है मेरा चेहरा।

 

बहार हैं, अब महसूस होता हैं,

चारागाह, झाडिय़ों और पेड़ों पर,

वह जल जिसे मैं अपने पर उड़ेलता हूं

है ठंडक प्यारापन लिए हुए।

 

प्रेम ने दी है एक छोटी टहनी

 

मेरे प्रेम ने मुझे एक टहनी पकड़ा दी है

पीली पत्तियों से लदी।

साल चला है अपने आख़िरी पड़ाव की ओर

प्यार की अभी शुरुआत हुई है।

 

अपनी नन्हीं शिक्षिका को याद करते हुए

 

याद करता हूं अपनी नन्हीं शिक्षिका को

उसकी यादें, नीली गुस्सायी आग

और उस का पुराना होता चौड़े हुड वाला लबादा

और चौड़ा गोटेदार किनारा, मैंने नाम दिया

आकाश पर आरोयन को स्टेफ़िन* तारा पुंज

ऊपर देख उसका मनन करते, सिर, हिलाते

मुझे लगा कि खांसने की हल्की सी आवाज़ सुनी।

* मार्गरेट स्टेफ़िन - कवियित्री और कामॅरेड, ब्रेख़्त की प्रेयसियों में एक, जिन की मॉस्को में टी.बी. से छोटी उम्र में मौत हो गई। कविता की अंतिम पंक्ति में खांसी का ज़िक्र उसी संदर्भ में है।

 

हिटलर से पलायन करते नौवें साल में

 

हिटलर से पलायन करते नौवें साल में

कमरतोड़ यात्राओं से थक कर

िफनलैंड की सर्दी में ठंड और भूख से त्रस्त्र

और दूसरे महादेश में भागने के लिए पासपोर्ट की प्रतीक्षा में

हमारी कॉमरेड स्टेफ़िन* मर गई

मॉस्को के लाल शहर में।

 

* स्टेफ़िन : ब्रेख़्त की दिवंगत कवयित्री प्रेमिका, जो मॉस्को में टीबी और ठंड के कारण मर गई

 

 

 

 

देवेन्द्र मोहन पहल से सुपरिचित रचनाकार हैं।

संपर्क- मो. 09702399344, मुम्बई

 

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