कविता
कॉमरेड शर्मा
दरवाजे की दीवार पर आदमकद मधुबाला का पोस्टर सर पर आलोक धन्वा की गोली दागो पोस्टर बीच में कामरेड मिश्रा की खाट
वह कुछ ज़्यादा ही क्रांतिकारी था हम दोस्तों ने उसका नाम रख दिया था कामरेड रेड बड़ी बड़ी दाढ़ी लाल कुरते पर काली जींस और सफेद गमछे में मिलता कैम्पस में
कैम्पस भी कोई ऐसा वैसा नहीं राजधानी का सबसे बड़ा कैम्पस लाल सलाम लाल सलाम हल्ला बोल हल्ला बोल कैम्पस वो तो बहुत बाद में पता चला जब वो एम.ए.कर के एम.फिल. में आ गए थे यहाँ के शिक्षकों में जनप्रिय और कैम्पस की छात्र राजनीति में लोकप्रिय हो चुके थे तो कि यहां मजदूरों के लिए आंदोलन करनेवाले कामरेड मिश्रा का वहां आजमगढ़ में छ: ईंट भट्टा हैं वहां भी वे इसी सज धज में होते हैं बस सर पर लाल रंग का चटक टीका होता है पैरों में इनफिल्ड बुलेट होती है यहां हवाई चप्पल
पीएच.डी. करते करते वे देश में लोकप्रिय हो गए थे इस बार मानव संसाधन विकास मंत्रालय का घेराव करते हुए जेल जाकर
धीरे धीरे वे अपने पिता से भी बड़े हो गए उनके साये से विश्वविद्यालय ढक जाता जहाँ तक उनकी चप्पल की आवाज पहुंचती सब खड़े हो जाते वे या तो हम क्लास्मेटों से डरते खासकर के एक कवि से या एकांत से
भीड़ उन्हें प्रिय थी भीड़ में वे राहत की साँस लेते हुए अपने साम्राज्य में शेर की तरह टहलते
बीच बीच में वे दूसरे विश्वविद्यालयों में जाते उनके भाषण पर तालियाँ फूलों की तरह गिरती दिल तो ऐसे खुलते जैसे विदेशी बोतलों के ढक्कन
वे देशी-विदेशी दोनों संस्कृतियों से प्यार करते उनके लिए अपने दिल और कमरे के दरवाजे-खिड़कियाँ खोल कर रखते जैसे मोहनदास नौकरी को तुच्छ और शादी को हेय समझते थे लाल किताब दिल में जुबां पर भगत सिंह बसते थे
एक दिन अपने कमरे में एक कामरेड भौमिक से मिलाते हुए परिचय कराया कामरेड ये भौमिक है आलोक धन्वा के कविता पोस्टर के रचयिता और मधुबाला के पोस्टर की तरफ देखकर मुस्कुरा दिया माना जाता था कि जब कामरेड शर्मा मंच से मुस्कुराते थे तो बहुत से दिलों पर बिजलियाँ कहर बनकर टूटती थी उस दिन मेरा भी दिल टूटा था
एक दिन पता चला कामरेड मिश्रा एसिस्टेंट प्रोफेसर बनकर फला केंद्रीय विश्वविद्यालय में चले गए है ओबीसी कोटे में कैम्पस में इसकी चर्चा हैं
मैं गोली दागो पोस्टर उनके कमरे से उठा लाया हूँ मधुबाला को वे लेकर गए हैं।
हम उसकी नौकरी नहीं पचा पा रहे हैं
उसकी आँखे बदल गई है मैं वही हूँ वह बदल गया है
मैंने उसे क्रिकेट सिखाया था सिखाया था अथ्र्मेटीक्स अलजेब्रा अंग्रेजी में अटकता तो मैं होता उसकी डिक्सनरी छ: साल छोटा है मुझ से साल भर बाद आया है बैंगलोर से चाल भी बदल गई है
दोस्त तो है नहीं कि एक भद्दी सी गाली से स्वागत करूँ और कहूँ - चल आज पिला बहुत दिन बाद मिला है साले वो भी कहे - तू नहीं बदलेगा कमीने वास्तव में दोस्तों की नौकरियों उनकी बीवियों और उनके घरवालों से उसी बेतकल्लुफी से मिलता हूँ आज भी पर ट्यूसन पढ़ाये हुए लड़के मुहल्ले के किसी जूनियर क्रिकेटर कालेज यूनिवर्सिटी का कोई जूनियर साथी रिश्ते में लगते किसी, छोटे भाई की जब लग जाती है नौकरी तो सारे संबंध रेलवे स्टेशन के पेशाब खाने के दुर्गन्ध की तरह लगने लगते है जहाँ जाना तो मजबूरी होती है पर मुंह दबाकर भागने की कोशिश में लगे रहते हैं हम
आदित्य कहता है - तीस की उम्र तक सेट हो जाना चाहिए मैं जलेबी खाते हुए मुंडी हिलाता हूँ-हूँ वह फिर कहता है - अभिषेक के सामने बदल जाती है आपकी और मेरी आवाज मैं कहता हूँ- ना उसकी आँखे बदल गई है, इन दिनों
वो कहता है - नहीं दादा, भ्रम हैं हमारा हम उसकी नौकरी नहीं पचा पा रहे हैं।
जनरल डिब्बे में फौजियों से विचार-विमर्श
सबसे अच्छी फौज की नौकरी आप न माने तो क्या?
आओ कूदो फादो भागो नौकरी लेकर घर को जाओ ज्यादा पढऩे की नहीं जरूरत दस-बारह तक पढ़ ली भाई दौड़-दौड़ कर नौकरी पाई
एम.ए., बी.एड., पीएच.डी. की नहीं जरूरत वे घूमे साहब बनकर अपनी तो यहाँ मौज है भाई
समझ न पाए तो भाड़ में जाए हमने का समझाने का ठेका ले रखा है भाई
मैं कहता हूं राष्ट्रहित-देशहित से ऊपर है पेटहित कहो, इसे कैसे उनका समझाए मरे तो टेलीविजन पर आए फूल-मालाओं से लद-लद जाए बीवी बच्चों घरवालों का झटपट हित सध जाए जीते जी वे स्टार बन जाए बेच-बेच कर मेरा नाम साधे वे सारे काम
मैं चाहता हूँ रोज लड़ाई, पर कहाँ होती है भाई ईश्वर ने बस एक ही पाकिस्तान बनाया आप सहमत न हो तो क्या?
भला अब क्या चाहिए दोस्त सबसे अच्छी फौज की मौज
आप चुप रहिए भाई। लगता है जेएनयू से की है पढ़ाई छांट रहे हैं बहुतै ज्ञान चिल्ला रहे हैं संविधान-संविधान चुप रहिए, नहीं तो कर देंगे ठोकाई नहीं जानते फौज की मार चिल्लाएंगे त्राहिमाम-त्राहिमाम-त्राहिमाम...
निशांत बहुप्रकाशित, पुरस्कृत युवा कवि हैं। खास बात यह है कि जे.एन.यू. की पढ़ाई के बाद अपने घर चौबीस परगना लौट गये हैं। आपने बड़े शहर का चुनाव नहीं किया। |