आज का दिन मेरे देश में मेरे रोने का दिन है

  • 160x120
    अक्टूबर-2017
श्रेणी देशांतर
संस्करण अक्टूबर-2017
लेखक का नाम मिगुएल (मिगेल) एर्नान्देज / अनुवाद : उदयप्रकाश





देशांतर

 

(1910 में दक्षिणी स्पेन के एक छोटे से गाँव में, एक गरीब गडरिया परिवार में जन्मे कवि, जिनके बारे में आक्तोवियो पाज़ ने कहा था, उनकी कविताएँ सुनते हुए ऐसा लगता है, जैसे संसार के सारे वृक्ष, किसी एक मनुष्य के कंठ से, एक साथ गा रहे हों। फासीवादियों ने इस महान कवि को जेल में बंद कर दिया था और महज 32 साल की उम्र में, जेल के भीतर ही उनकी 1942 में मृत्यु हो गयी थी।)

 

प्यार के बाद

हम न होते, यह पृथ्वी इतनी

पर्याप्त न होती,

हम उतना नहीं हंै, जितनी उतनी अगाध दूरी से

सूरज की इच्छा थी।

 

एक पैर उजाले की ओर जाना चाहता है

दूसरे की जिद है अंधकार की,

क्यों कि प्यार कभी अमर नहीं होता,

किसी के भी भीतर, मेरे समेत।

 

नफ़रत अपने लिए सही वक्त का इंतज़ार करती है।

 

नफ़रत का रंग लाल है और वह अपने आपको खा जाती है,

प्यार है पीला, और अकेला,

नफ़रत से मैं थक चुका हूं, मैं प्यार करता हूं तुम्हें

प्यार से मैं थक गया हूं, मैं तुमसे नफरत करता हूं

 

समय बरसता है, बरसता रहता है समय,

और तमाम संतप्त दिनों के बाद, एक और किसी संतप्त दिन,

समूची पृथ्वी के लिए संतप्त,

भेडिय़े से लेकर उस तलक तक संतप्त,

हम सो जाते हैं और

फिर जागते है

अपने आंखों में एक किसी बाघ के साथ...

 

चट्टानें,

मनुष्यों जैसी चट्टानें

सख्त और परस्पर शत्रुताओं से भरी हुईं,

हवाओं में टकराती हैं, वहां, जहां

चट्टानें अक्सर अचानक टकराया करती हैं

 

एकांत, जिसने आज उन्हें खींच कर अलग-अलग किया,

और अभी कल ही जिसने उनके चेहरों को एक दूसरे के विरुद्ध,

एकसाथ धकेला था।

वही अकेलापन, जो सिर्फ एक चुंबन के सहारे,

बहरा कर देने वाले शोर को रोक देता है, कहीं पीछे।

 

सदा सदा के लिए अकेलापन,

असहाय अकेलापन,

 

ज़िस्म जैसे कोई भूखा-प्यासा समुद्र,

उमड़ता हुआ, उन्मत्त, पागल

अकेला, एक-दूसरे के साथ बंधा हुआ

प्यार में, नफरत में

 

वे नसों में दौड़ते हैं,

वे बर्बरता के साथ शहरों के भीतर से गुज़रते हैं।

 

हृदय में,

हर चीज़ जो बिल्कुल अकेली है,

अपनी जड़ जमाती जाती है।

उन कदमों की आवाज़ें, जिनके नीचे ज़मीन नहीं,

पीछे रह जाती हैं

जैसे वे किसी गहरे पानी में हों, उनकी गहराइयों में, तल में।

 

बस एक, सिर्फ एक आवाज़, कहीं बहुत दूर,

मैं हमेशा इसे दूर से सुनता हूं,

तुम्हें विवश करती है, खींचती है अपने साथ

जैसे गर्दन कंधे से जुड़ी हुई...

 

सिर्फ अकेली वह एक आवाज़ मुझे

इन कंकालों के यथार्थ से खींच कर छुड़ाती है।

यहां से गायब हो जाने के लिए, भूमिगत,

मैं खुद को ढंक लेता हूं

 

कितनी भी सूखी हुई हवाएं हों

इस जलमग्न समुद्र को सुखा नहीं सकतीं

और एक हृदय धड़कता रहता है इस मौसमी कारागार में

क्योंकि यही इस लहर का

सबसे कोमल, सबसे नाज़ुक हथियार है :

 

''मिगुएल, मैंने तुम्हें याद किया है

सूरज और धूल के समय से,

यहां तक कि खुद चंद्रमा के होने से भी पहले से,

एक बहुत प्यारे ख्वाब का मक़बरा...

प्यार के स्वप्न का स्मारक।''

 

प्यार, मेरे अस्तित्व को

इसके पहले के खंडहर से अलग करता है,

और दुबारा मुझे रचते हुए,

फिर से गढ़ते-बनाते हुए कहता है :

 

''प्यार के बाद, पृथ्वी,

पृथ्वी के बाद, बाकी सब कुछ!''

 

सिहरती हुई बरौनियां

 गन्ने के किसी खेत में

किसी मनुष्य की पलकों की सिहरती बरौनियां

उसकी थकान, पस्ती और उनींद पर झुकती हुईं

तब तक, जब तक उसका हृदय

नहीं हो जाता शांत

और दिमाग निश्चिंत

 

हथियारों की ये लगातार आवाज़ें चुप करो

इसके जबड़ों-दांतों के बीच से घृणा के खंजरों के

वहशी झरनों को

फूटने मत दो

 

देखो तुम खुद,

 

सोता हुआ,

एक आदमी

इस समूची पृथ्वी से

ज़्यादा मूल्यवान है।

 

प्यार जैसे चंद्रमा

प्यार उगा हम दोनों के बीच

जैसे ताड़ के दो पेड़ों के बीच कोई चंद्रमा

जिन्होंने एक दूसरे को बाहों में भरा नहीं कभी

 

दो शरीरों के बीच की गहरी निकटतम आत्मीय बुदबुदाहट

बदल गयी किसी लोरी में

लेकिन भर्राई कोमल कमज़ोर आवाज़ें टूट बिखर गयी

कांटों से

होठ हो गये

पत्थर

 

एक-दूसरे को भर लेने की आकांक्षा ने हिला डालीं

देह की सारी मांस-पेशियां,

स्पर्श के स्वप्न में जल उठी अस्थियां,

 

लेकिन एक-दूसरे को छूने की कोशिश में, बढ़ी हुईं हम दोनों की बाहें

मर गयीं....

एक दूसरे की बाहों में

 

प्यार, वह चंद्रमा,

गुज़रा हमारे बीच से

और उसने हमारे निपट अकेले शरीरों को निगल लिया

 

और अब हम जैसे दो प्रेत

खोज़ते हुए एक दूसरे को

 

और पाते हुए कि

एक दूसरे से दूर

बहुत दूर

बिखर चुके हैं हम।

 

मेरे पास ढेर सारा हृदय है

आज मैं, पता नहीं क्यों, मुझे नहीं मालूम कैसे,

आज यहाँ मैं सिर्फ यातनाओं के लिए हूँ,

आज यहाँ मेरे दोस्त नहीं हैं,

आज मेरे पास हैं सिर्फ मेरी इच्छाएं

मेरे हृदय को जड़ से उखाड़ कर

जूतों के नीचे कुचल देने के लिए।

 

आज वह सूख चुका काँटा फिर से फल-फूल रहा है।

आज का दिन मेरे देश में मेरे रोने का दिन है,

आज उदासी मेरी छाती पर

सीसे जैसी भारी अपनी सारी उदासियों का

सारा बोझ उतार रही है।

 

मैं अपनी किस्मत खुद नहीं संवार सकता।

और मैं अपने ही हाथों देख रहा हूँ अपनी मृत्यु,

मैं प्यार से और ललचाई हुई अपनी आँखों से

देख रहा हूँ रेज़र-ब्लेड,

और मैं याद करता हूँ किसी दोस्त जैसी भली वह कुल्हाड़ी,

और मैं सोचता हूँ उन सबसे ऊँची चोटियों के बारे में

चुपचाप, खामोशी के साथ, अपनी बिल्कुल आ$िखरी उड़ान के लिए,

 

अगर ऐसा इसलिए न हो तो... मैं नहीं जानता क्या,

मेरा हृदय लिखता शायद एक आ$िखरी टीप

एक टीप, जिसे मैं यहाँ-वहाँ छुपाये फिरता हूँ,

अपने दिल को मैं तब एक दवात बना डालूँगा शायद

तमाम वर्णमालाओं का एक झरना, विदाओं-अलविदाओं, उपहारों-तोहफों का

एक जल-प्रपात,

और मैं कहूँगा दुनिया से,

'यही तुम ठहरना, ठीक इसी जगह...'

 

एक असगुन चन्द्रमा की छांह तले जन्म हुआ था मेरा

मेरा दु:ख यह है कि मेरा बस एक ही दु:ख है

जो यहाँ की सारी खुशियों पर अधिक भारी पड़ता है।

प्यार के एक किस्से ने मेरी बाहों को नीचे झुका डाला है

और अब मैं उन्हें किसी भी तरह पसार नहीं सकता।

 

क्या तुम्हें मेरा हताश मुंह दिखाई नहीं देता?

सारी दिलासाओं तसल्लियों सांत्वनाओं के पार जा चुकीं मेरी आँखें?

 

जितना ही झांकता हूँ मैं अपने भीतर, और अधिक शोकाकुल होता हूँ मैं:

काट डालूँ यह पीड़ा? किस कैंची से?

कल, आज और कल,

फ़क़त दर्द है वहां से यहाँ तक बिखरा हुआ

मेरा हृदय बस हताश मछलियों की कोई टोकरी है,

एक पिंजड़ा है मरती हुई बुलबुलों का।

 

मेरे पास ढेर सारा... बहुत सारा हृदय है।

 

आज मैं खुद को हृदय-विहीन करता हूँ।

मेरे पास तब भी किसी दूसरे से ज़्यादा हृदय है,

और इसी सब कारण, बहुत अधिक कड़वाहट भी, ज़ाहिर है।

 

नहीं पता, मुझको बिलकुल नहीं पता क्यों और कैसे

मैं अपनी ज़िंदगी हर रोज़

यूँ ही जाते देखता हूँ।

 

जैसे कि एक बैल

बैल की तरह मेरा जन्म शोक मनाने के लिए ही हुआ था

और पीड़ा के लिए,

बैल की तरह ही मेरी शिनाख्तगी के लिए

दहकते हुए लोहे से मेरी पीठ को दागा गया

और नर होने की वजह से मेरे यौनांग को भी

 

बैल की तरह ही मेरे विशाल इस हृदय को

हर चीज़ बहुत छोटी दिखाई देती है यहां

और प्यार में, बैल जैसे चेहरे और चुम्बन के साथ?

तुम्हारे प्यार के लिए मुझे हरबार जूझना पड़ता है

 

बैल की तरह अनगिनत सज़ाओं से मैं पक चुका हूँ

मेरी जीभ मेरे दिल के खून में नहा चुकी है

और मेरे गले को चीखते हुए किसी अंधड़ ने जकड़ लिया है

 

बैल जैसा मैं तुम्हारे पीछे-पीछे चलता हूँ

पीछा करता हूँ तुम्हारा

और तुम मेरी कामनाओं को खंजर पर चढ़ा देती हो

किसी दागी बदनाम बैल की ही तरह

बैल की तरह।

 

तुम्हारा हृदय एक 'फ्रोज़ेन' संतरा है

तुम्हारा हृदय एक 'फ्रोज़ेन' संतरा है

कोई रोशनी अंदर दािखल नहीं होती,

चिपचिपा, रसीला, रंध्रों-छिद्रों से भरा,

सुनहला, सोने जैसा: इसकी त्वचा आँखों के लिए

वायदा है एक सुन्दर उपहार का

 

मेरा दिल धीमे बुखार के गुनगुने ताप में सिहरता दाडि़म है ...अनार,

अपने भीतर छुपाये किरमिजों के गुच्छे, खुली-उघड़ी मोम की फांक,

यह मेरा दिल-दाडि़म दे सकता है तुम्हें

नन्हें-नन्हें कोमल नाजुक

जुगनुओं जैसे प्यारे रत्न,

बारहमासी... सदाबहार... झिलमिल

 

लेकिन कितना कठिन है जाना तुम्हारे हृदय के भीतर,

कितना दुर्गम असाध्य

और फिर जानना कि यह तो जमा हुआ है, एक ठोस,

भयावह, सफ़ेद बर्फ में

फ्रोज़ेन।

 

मेरे दुखों की छोर पर

एक प्यारा रूमाल मंडराता रहता है इस उम्मीद में

कि वह पी जाएगा कभी न कभी

मेरे सारे आंसू।

 

हर घर एक आंख है

असंख्य अनगिनत आंखों हैं ये सारे के सारे घर

आंखें, जो चमकती हैं और किसी इंतज़ार में सोती रहती हैं

ये सारे से सारे घर मुंह हैं

मुंह, जो थूकता है, भिंचका-चबाता रहता है और

मुंह, जो चूमता भी है

बाहें हैं भुजाएं हैं ये सारे के सारे मकान

बाहें, जो धकियाती हैं और जो आपस में जुड़ कर घरों को ढांक लेती हैं

 

हर एक घर से निकलती हैं

अंधेरे और बुरादे की सांसें

और गंध

 

इन सभी घरों के अंदर, कोलाहल है

व्याकुल-बेचैन लहू का

 

एक किसी रोज़, एक किसी चीख के साथ

एक-दूसरे पर हमले करते हैं ये अनगिनत-असंख्य घर

और भीतर के लोगों को बाहर कर देते हैं

 

एक किसी रोज़, एक किसी चीख के साथ

ये घर धीरे-धीरे शांत हो जाते हैं

और चुपचाप बढ़ते-फैलते जाते हैं

 

...और इंतज़ार करते रहते है।

 

मिगुएल (मिगेल) एर्नान्देज़ की कविता के डॉन शेयर द्वारा किये गए अंग्रेजी अनुवाद पर आधारित : उदय प्रकाश

 

 

Login