रंग का एकांत
राग वसंत क्या उसे कहते हैं जो कोकिला के कंठ में है मैं पूछना चाहती हूँ कोयल से सवाल
सवाल तो फलटन की चिमनी चिडिय़ा से भी करना चाहती हूं कहाँ से ले आती हो तुम नन्हें सीने में हौसलों का फौलाद
बुलबुल से भी जानना चाहती हूं अब तक कितनी नाप ली है तुमने आसमान की हद
बताओ न मिट्ठू मियां कितने तारे तुम्हारे हाथ आए
कबूतर कैसे तुम पहुँचे हो सूर्य किरण को मुट्ठी में भरने
कौवे ने कैसे दे दी है चाँद की अटारी से धरती को आवाज़ आसमान की ओर देखते-देखते मैंने देखा धरती की ओर
किया नन्हीं चींटी से सवाल कहाँ से भर कर लायी हो तुम सीने में इस्पात...
मैं पूछना चाहती हूं अमरूद के पेड़ से साल में दो बार कहाँ से लाते हो पीठ पर ढोकर फल
मैं सहलाना चाहती हूँ पेड़ की पीठ दाबना चाहती हूँ चींटी के पाँव संजोना चाहती हूँ धरती के आँगन में गिरे चिडिय़ा के पंख
पूछना चाहती हूँ अनु प्रिया से भी कुछ सवाल - जो गढ़ती हो तुम नायिका अपने रेखाचित्रों में खोंसती हो उसके जूड़े में धरती का सबसे सुंदर फूल कहाँ देखा है तुमने वह फूल कैसे खिला लेती हो कलजुग में इतना भीना फूल कैसे भर देती हो रेखाचित्रों में जीवन
मैं जीवन से भरा वह फूल मधु को देना चाहती हूँ जो बैठी है एक सदी से उदास
फूलों की भरी टोकरी उसके हाथ में थमा देना चाहती हूँ
देखना चाहती हूँ उसे खिलखिलाते हुए एक और बार
जैसे देखा था एक दोपहर इलाहाबाद में उसकी फूलों की हँसी को पलाश सा खिलते हुए...
एक गंध जो बेचैन करें
एक अदद शरीफा भी आपको प्यार में पागल बना सकता है
सुमन बाई आजकल शरीफे के प्यार में पागल है
शरीफे को आप आदमी न समझिए पर आदमी से कम भी नहीं है शरीफा
कमबख्स पूरी ताकत रखता है मोहपाश की
मैंने देखा है सुमन बाई को उसके पीछे डोलते हुए
उसके पेड़ की छाँव में जाकर खड़े होते हुए
जब देखती है उसे एकटक उसके होठों पर आ जाता है निचुड़ कर शरीफे का रस
मुझे देखती है और सकपका जाती है जैसे उसके प्यार की चोरी पकड़ ली हो मैंने
आजकल उसका काम में मन नहीं लगता एक-आध कमरे की सफाई छूट जाती है उससे
पर एक भी शरीफा नहीं छूटता है उसकी आँखों से
उसने गिन रखा है एक-एक शरीफा जैसे कोई गिनता है तनख्वाह लेने के लिए महीने के दिन
उसे याद रहता है कौन सा शरीफा पक्का है कौन सा कच्चा शरीफे को हाथ में पकड़ कर दिखलाती है उसकी गुलाबी लकीरें
कि अब बस तैयार हो रहा है शरीफा जैसे पकड़ लेती हो शरीफे की नब्ज़
कभी उसे फिक्र रहती है कि कोई पंछी न उसे खा जाए
कभी तलाशती है पंछी का खाया हुआ शरीफा
बताती है पंछी के खाए फल को खाने से बच्चा जल्दी बोलना सीखता है
मैं शरीफे को नहीं सुमन को देखती हूँ
जब वह तोड़ती है शरीफा उसके बच्चों के भरे पेट की संतुष्टि उसके चेहरे में झलकती है
शरीफे सी मीठी हो आती है सुमन
अब यह बात अलग है कि शरीफे के ख्याल में उससे टूट जाता है काँच का प्याला
पर वह शरीफे को टूटता नहीं देख पाती
इससे पहले कि वह पक कर नीचे गिर जाए वह कच्चा ही तोड़ लेती है
ले जाती है अपने घर
मैं देखती हूँ उसके आँचल में बंधा हुआ शरीफा |