बरसों बरस से नहीं हँसे जो लोग

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    जुलाई - 2017
श्रेणी बरसों बरस से नहीं हँसे जो लोग
संस्करण जुलाई - 2017
लेखक का नाम क्रिस्टोस इकोनोमोऊ, अनुवाद : यादवेन्द्र





देशांतर/ग्रीक कहानी 




पिछले वर्षों में ग्रीस के आर्थिक संकट को पूंजीवाद के गंदे खेल के मवाद की तरह बताया गया और पूरी दुनिया में ख़ास तौर पर यूरोप के बौद्धिक वर्ग में यह गंभीर विमर्श का मुद्दा बन कर छाया रहा। किसी समय आर्थिक तौर पर बेहद सक्रिय ग्रीक समाज 2004 में ओलम्पिक खेलों का आयोजन करने के बाद धीरे धीरे जिस आर्थिक संकट में धँसता चला गया है, उसने वहाँ के नागरिकों का अपने आप पर से भरोसा तोड़ा है - कोई आश्चर्य नहीं कि ग्रीस दुनिया के सबसे अधिक आत्महत्या वाले देशों में शुमार होने लगा। एकदम दिवालिया हो जाने की कगार पर खड़े देश को पड़ोसी संपन्न यूरोपी देशों की धौंस पट्टी कान में रुई डाल कर सुननी पड़ रही है। ऐसे में साहित्य कला के इलाके से जो प्रतिनिधि स्वर उभरे उनमें मुखर रूप में यह संदेश निहित है कि इस दीर्घकालीन संकट ने ग्रीक समाज की आतंरिक बुनावट को उधेड़ दिया है... मानव मन किस तरह के संक्रमणकालीन बदलावों से गुजऱ रहा है उस पर टिप्पणी करती इस अत्यंत चर्चित ग्रीक रचना को प्रतिनिधि स्वर माना जाता है, जिसका  विश्व की कई भाषाओँ में अनुवाद प्रकाशित / चर्चित है।
    1970 में एथेंस में जन्मे क्रिस्टोस इकोनोमोऊ पत्रकारिता ,कथा रचना और दूसरी भाषाओँ से ग्रीक में साहित्यिक अनुवाद में सामान रूप से सक्रिय हैं और उनके तीन कथा संकलन ग्रीस के संकट की आंतरिक पड़ताल करने वाले सबसे विश्वसनीय दस्तावेज के तौर पर देखे जाते हैं .... हाँलाकि ने स्वयं इस बात से इंकार करते हैं कि वे ग्रीक समाज के बदतर हाल के दस्तावेज़ लिख रहे थे। मुख्य रूप से औद्योगिक कामगारों के दु:ख दर्द और निरीह बदलाव को अपनी कहानियों का विषय बनाने वाले क्रिस्टोस ग्रीक साहित्य के सबसे ज्यादा चर्चित और समादृत रचनाकार हैं। उनकी रचनाओं के दुनिया की अनेक भाषाओँ में अनुवाद हुए हैं।

    नौकरी से छँटनी... इसमें भी उनका कुछ भला निहित है। आप लोगों को जानने पहचानने लगते हो... कमरे से बाहर निकलते हो ,चाहे बालकनी पर सिगरेट पीने के बहाने ही हो,और सामने देख कर कोई आपसे कह बैठे : ''ओ, तुमने खबर सुनी? कम्पनी ने लाइकोस को नौकरी से निकाल दिया।''
 ''लाइकोस? कौन लाइकोस ,वही जो आवारा किस्म का था?'' ऐसा कहते ही सब आपको घूर घूर कर ताकने लगते हैं कि तभी बीच से कोई आवाज़ फूटती है: ''अरे नहीं भाई ,लाइकोस जो इलेक्ट्रीशियन का काम करता था.... लम्बी छरहरी कद काठी, लम्बे झूलते हुए केश जिसके हैं.... और हाँ, वह थोड़ा लँगड़ाता भी है।''
 आप इसके बाद उस लाइकोस के बारे में सोच कर उसकी शक्ल ध्यान में लाने की कोशिश करने लगते हैं - पर आप चीन्ह नहीं पाते ,उसकी शक्ल ध्यान नहीं आ पा रही है। यहाँ तीन सौ लोग काम करते हैं ,भला  किस किस को पहचानेंगे। लोगबाग लाइकोस के बारे में ऐसे चर्चा कर रहे हैं जैसे उसकी मौत हो गयी हो पर आप हैं कि अपना मुँह बंद ही रखना मुनासिब समझते हैं - लाइकोस , बेहद नेक इंसान, खूब लगन  के साथ जुट कर काम करने वाला। उसके दो बच्चे हैं और बीवी की नौकरी गए अभी तीन महीने हुए ही हैं.... कर्ज के लिए गिरवी अलग। बीवी शायद किसी कपड़े या जूते की दूकान पर काम करती थी।
इस बीच किसी ने राय व्यक्त की कि लाइकोस अपने काम के प्रति बेहद लापरवाह था... बकबक बहुत करता था और दिनभर अड्डेबाजी में दूसरों की बाल की खाल निकाला करता था। शुरू में वह ऐसा नहीं था पर बाद में हालातों के बदलने के साथ उसका स्वभाव भी बदलता चला गया - इसी बर्ताव के कारण उसको चेतावनी भी दी गयी थी पर कुछ असर हुआ नहीं। अचानक लोगों ने बातचीत  करनी बंद कर दी, किसी ने गहरी साँस ली और बात बदलते हुए बोला:  ''साला अभी जून महीना आया है और देखो मौसम कैसा तप रहा है।''
''अभी सितंबर आने दो ,फिर देखना हममें से कितने जने यहाँ बचते हैं... यह धुँआ  उड़ाना, गप्पें मारना, कॉफी की चुस्की लेना - देखते हैं कितनों के नसीब में लिखा है।'' कहते कहते उन्होंने एक एक कर अपने कागज़ के कप कूड़ेदान में फेंके और सिगरेट सुलगाते हुए अपने अपने पिंजरों की ओर चल पड़े। उनके उठ जाने के बाद आप अकेले रह गए, दूसरी सिगरेट सुलगायी और सामने दौड़ती कारों को और तारों के इर्दगिर्द मँडराती चिडिय़ों को निहारने लगे। सामने के शहतूत के पेड़ के नीचे एक कुत्ता सो रहा था। एक औरत अपनी बालकनी में निकल कर आई और साथ में लाये अपने टेबल क्लॉथ के ऊपर का कूड़ा बाहर सड़क पर झाड़ गयी। सड़क किनारे की पगडण्डी पर एक लड़का अपनी मोटरबाइक पर निकला, उसके पीछे छड़ी टेकता हुआ एक बूढ़ा... उसके पीछे पीछे डेनिम की ऊँची शॉर्ट और खुली पीठ वाले टॉप पहने दो लड़कियाँ आयीं, उनकी पीठ पहले से ही धूप से भूरी पड़ चुकी हैं। आपको दुनिया अपनी धुरी पर अलमस्त घूमती दिखाई पड़ती है - अपने शोर शराबे में डूबी... हृदयहीन... किसी की फ्रिक्र न करने वाली... और आप खुद से कहते हो, भली चंगी तो है ये दुनिया। मन के कहीं गहरे अंदर आप इस बात से गदगद भी होते हैं कि गनीमत है आपका नाम लाइकोस* नहीं हुआ,आप लम्बे छरहरे भी नहीं हैं,न आपके केश लटकते हुए लम्बे हैं... और न आप लँगड़ा कर चलते  हैं... आपकी बीवी भी किसी कपडे या जूते बेचने वाली दूकान से हाल फ़िलहाल निकाली नहीं गयी है। आप इत्मीनान से लम्बी साँस खींचते हैं, सिगरेट सुलगाते हैं  और काम पर लौट पड़ते हैं। ...इतना ही नहीं लौटते क़दमों के साथ आप जी जान लगा कर वैसा सबकुछ कर लेने का संकल्प करते हैं जिस से लाइकोस जैसी स्थिति आपके सामने कभी न पेश आये। मन ही मन आप ठान लेते हो कि भेडिय़ों से भरी दुनिया में आपको एक अदद भेडिय़ा नहीं बनना, आप दुर्बल भेंड़ बने रह कर खुश हैं... बेचारी निरीह सी एक भेंड़।
अगले दिन... या शायद उसके भी अगले दिन लाइकोस अपने साजो सामान उठाने और सबको दुआ सलाम और अलविदा करने आया। इत्तेफ़ाक़ था आप उस दिन भी बालकनी में ही खड़े थे कि आवाज़ आयी : ''देखो... देखो लाइकोस आया है .... कल इसी शख्स की नौकरी से छँटनी कर दी गयी  थी।'' आप नज़र घुमा कर देखते हो - वह शख्स सामने की सीढिय़ों पर चढ़ रहा था ,सुस्त भारी कदम। आप जवाब देते हैं: ''यही है लाइकोस?... लाइकोस यही है?... मैं तो इसको जानता हूँ।''
तभी आपको पिछले साल जनवरी की वह बर्फीली रात याद आती है - हो सकता है जनवरी न हो फरवरी हो। आप काम निबटाने के चक्कर में पर देर तक रुके हुए थे और जब फ़ारिग होकर पार्किंग में पहुँचे तो देखा आपकी कार बर्फ़ से पूरी तरह ढँकी हुई थी - कार पर कम से कम आठ दस इंच बर्फ़ की मोटी परत। किंकर्तव्यमूढ़ होकर आप उस हाड कँपाती ठण्ड में कुछ देर तक चुपचाप असहाय से खड़े रहे , सामने चमकती अनछुई बर्फ़ को निहारते रहे... फिर सोचने लगे अफ़सोस कि इतनी सुंदर संरचना को तोडना फोडऩा पड़ेगा। कोई उपाय नहीं ,यह तो करना ही होगा आपको। बर्फ़ की परत हटानी ही पड़ेगी, कार का  गेट खोलना ही पड़ेगा, अंदर जाकर इंजिन स्टार्ट करना ही होगा तभी आप वहाँ से प्रस्थान कर पायेंगे। देर तक काम करने के कारण आपका शरीर टूट रहा था, लगता था जल्दी से घर पहुँचें, कुछ पेट में डालें, रजाई में घुसें, थोड़ी देर टीवी देखें, दिनभर की सारी फजीहतें भूल जायें और तसल्ली से सो रहें - गहरी, स्वप्नरहित नींद में। आपने सामने के शीशे से बर्फ़ हटाने का उपक्रम शुरू किया पर फौरन आपको पता चल गया कि नंगे हाथों बर्फ़ हटाने से हाथ जम कर पत्थर बन जाते हैं। आप लाचार होकर वहीँ खड़े होकर अपने हाथ रगडऩे लगते हो कि शायद इसी से कुछ ताप मिले और आपको निरंतर लगता रहता है कहीं आपका दिल भी हाथ की तरह जम कर पत्थर न बन जाये। इसी बीच उस मरघट जैसे सुनसान में कोई इंसान पास आता हुआ दिख जाता है - सिर पर टोपी लगाये लम्बा छरहरा इंसान, गले में मफलर लपेटे और हाथों में दस्ताना डाले हुए। पास आकर वह बोला : ''क्या बात है, दोस्त?''
आपने अपनी मुश्किल बता दी। वह अपनी कार तक गया और उसको स्टार्ट कर के कुछ ऐसे खोल हटा दिए जिस से निकलती गर्म हवा सीधे आपके विंडस्क्रीन पर पड़े। देखते देखते उसने हाथ बढ़ा कर आपकी विंडस्क्रीन से मुलायम पड़ती बर्फ़ हटानी शुरू कर दी। सामने के शीशे के बाद उसने बाँये दाँये खिड़कियों के शीशे भी वैसे ही साफ़ किये और आप इत्मीनान से अपनी कार के अंदर बैठे बैठे पूरी खामोशी के साथ उसको काम करते देखते रहे। आप यह ज़रूर अचरज करते रहे कि इस इंसान को एक निहायत अजनबी की इस कदर मदद करने की आिखर क्या पड़ी है - कौन है यह आदमी ,देखने में तो आपकी ही तरह मरियल सा लग रहा है। वाइपर उठा कर जब उसने विंडस्क्रीन पूरी तरह साफ़ कर लिया तब लगभग रटी रटायी शैली में यह बोलते हुए कि  ''ऐसे मौसम में गाड़ी सावधानी से चलाना'', अचानक मुड़ा और हाथ हिला कर अभिवादन करता हुआ वहाँ से चलता बना। यह सब इतनी फुर्ती से हुआ कि आप उसको शुक्रिया भी नहीं कह पाये क्योंकि उसकी बिन माँगी मदद ने आपको इतना अभिभूत कर दिया था कि आपको समझ नहीं आ रहा था करें तो क्या करें। सामने भले ही कुछ न बोले हों पर घर के पूरे रास्ते आप उसके बारे में ही सोचते रहे... घर पहुँचे और कामों में इतने मसरूफ़ हो गये कि उसका $खयाल मन से धीरे धीरे निकल गया। विस्मृति का यह पहला या इकलौता मामला नहीं था, लोगों को और घटनाओं को अपने जीवन में आप अक्सर इसी तरह हमेशा भूलते आये हैं।
और अब आप उसी शख्स को एक एक सीढ़ी सुस्त चाल से चढ़ते देख रहे हो... टाँगें घसीटते हुए। उस बफऱ्ीली रात में आँखों के सामने इतनी देर रहने पर भी आपकी नज़र उसके लँगड़ाने पर नहीं गयी थी। आपको इतने दिनों बाद आज एहसास हो रहा है कि आपने एक भचकते हुए चलने वाले इंसान से मदद ली थी और शुक्रिया तक नहीं कहा था। आपके मन में धुकधुकी होती है, क्या अब आपको नीचे उतर कर उसके पास जाना चाहिए... कुछ बातचीत करनी चाहिए? उस समय भले ही रह गया हो पर अब उसके पास जाकर पुराने वाकये की याद दिला कर शुक्रिया अदा करने का फ़र्ज़ तो बनता ही है। देर आयद दुरुस्त आयद, क्या हुआ जो उसका नाम मालूम न हो।...
यन्निस.... कॉस्टस.... निकोस... तकिस .... कुछ भी हो सकता है उसका नाम।
ये बातें आप सोच रहे हो कि अब आपको करनी चाहिए... पर आप हैं कि करेंगे कुछ भी नहीं... यहाँ तक कि उसके पास तक जाकर कुछ बातचीत ही कर लें।
बात... आखिर क्या बात करें?
सो, आप बालकनी पर यथावत खड़े रहते हो... एक सिगरेट सुलगाते हो और टुकुर टुकुर सामने निहारते रहते हो। कुछ मिनटों बाद अंदर से एक बड़ा बक्सा थामे वह बाहर आता है। सीढिय़ों से नीचे उतर कर वह आसपास इस तरह देखता है जैसे उसको मालूम न हो किधर या कहाँ जाना है... सामने खड़ी ऊँची ऊँची इमारतों को ऊपर से नीचे तक निहारता है। इस बीच आपकी नज़रें अचानक उसके चेहरे पर पड़ जाती हैं।... और पलभर में आप को कँपकँपी छूट जाती है- उसका  चेहरा तो बर्फ़ जैसा एकदम झक सफ़ेद है। आजतक के जीवन में आपने कोई भी इंसान इस तरफ विवर्ण चेहरे वाला नहीं देखा था। आप दुबारा पाँव से सिर तक सिहर जाते हो। फ़ौरन आप अपनी सिगरेट परे फेंकते हो और नीचे सीढिय़ों की ओर बदहवासी में भागते हो- यहाँ तक कि लिफ्ट के पास तक जाने की जहमत भी नहीं उठाते। वह अपना बक्सा एक बड़े ट्रंक के अंदर रखने लगा है और वहाँ से वह कहीं दाँये बाँये निकल जाये उस से पहले आप उस तक पहुँच जाना चाहते हो। उखड़ती साँसों के बावज़ूद पास पहुँच कर आप उस से उस बर्फ़ीली रात की बावत बतियाने लगते हो।
''तुम्हें उस बर्फ़ीली रात का वाकया याद है?'', आप पूछ बैठते हो।...
''तुम्हारे पास अब भी वह डस्टपैन है?... ऐसा नहीं कि जून के महीने में अभी उसकी दरकार है पर पता नहीं किस घडी किसी छोटी और मामूली सी चीज़ की ज़रूरत पड़ जाये... क्यों,सही नहीं कह रहा?''
आप जो कुछ भी मुँह में आये बोलते जा रहे हो... वह सब कुछ सुन रहा है, जाने कितना पल्ले पड़ रहा है मालूम नहीं। उलझन में वह अपने दोनों हाथ आपस में रगडऩे लगता है.... वैसे भारी बोझ उठाने के कारण उसकी हथेलियाँ सूज गयी हैं, लाल पड़ गयी हैं। उसका चेहरा अब भी झक सफ़ेद बना हुआ है- किसी कोरे पन्ने जैसा सफ़ेद। उस सफ़ेद पन्ने पर उसका मुँह ऐसा दिख रहा है जैसे पेन्सिल से किसी ने खाँचे बना दिये हों।
''हाँ''... सिर हिला कर उसने अब हामी भरी... ''अब याद आ गया... नीले रंग का निसान।''
''काला... नीला नहीं काला।''
कुछ पलों तक वह आपको ऐसे घूरता है मानों आप जितने दिखते हैं उस से कहीं ज्यादा लल्लू हैं। फिर बोलता है : ''ओ के, फिर मिलते हैं।'' यह कहते हुए वह अपना ट्रंक लेकर सामने खड़ी कार में सवार हो जाता है।
उसके इस बर्ताव को देखने के बाद आपके मन में यह क्रेज़ी आइडिया आता है।
''सुनो, हम ऐसा क्यों न करें कि पिरेयस तक साथ साथ चलें...'' आप उचक कर प्रस्ताव करते हो, ''और हाँ ड्रिंक्स मेरी तरफ़ से रही... डस्टपैन और जो कुछ भी उस रात तुमने मेरे लिये किया, उसके एवज़ में।''
ज्यादा उम्मीद इस बात की है  कि वह आपका प्रस्ताव फ़ौरन ठुकरा देगा... आ$िखर अभी अभी उसको नौकरी से निकाल दिया गया है... और अपने भविष्य के बारे में सोचने को उसके मन में सैकड़ों विचार होंगे, उनमें से किसी पर फ़ैसला भी करना होगा। वह इन ज़रूरी उलझनों के बीच घिरा हुआ है,भला किसी ऐसे अजनबी के साथ मटरगश्ती करने भला क्यों जायेगा जिसको उसका नाम तक नहीं मालूम।
पर वह मेरे प्रस्ताव पर राजी भी हो सकता है ज् हाँ ,वह हाँ भी कर सकता है ...
इसी दुविधा के बीच आपके मन में एक और आइडिया जन्म लेता है ,पहले से ज्यादा क्रेज़ी।
''तुम यहीं ठहरो... मैं यूँ गया और यूँ आया ,बस दस मिनट में।''
आप अपनी कार स्टार्ट करते हो और छू मंतर हो जाते हो - ऑफिस में तमाम चीज़ें अस्त व्यस्त और खुली, कोई देखे तो अचरज करे कि सब कुछ इस तरह खुला छोड़ कर तुम कहाँ गायब हो गये।
घर पहुँच कर आपने अपना कूलर बॉक्स उठाया, शराब की दो बोतलें डालीं और बर्फ़ भर लिया... खाने को कुछ ब्रेड, चीज़ और टमाटर-जो कुछ भी सामने दिखा रख लिया। हवा की रफ़्तार से लौटते हुए आपके मन में निरंतर यह खटका बना रहा कि लाइकोस कहीं चला न गया हो। पर उसको कार के बोनट से टिक कर सिगरेट पीते हुए देख कर आपको तसल्ली हुई - पास पहुँच कर देखा तो उसका चेहरा झक सफ़ेद अब भी था। 
''चलो।... अब हम चलते हैं।''
पिरेयस के रास्ते में आपकी उसके साथ कुछ छिटपुट बातें होती रहीं - बोलते हुए आप कनखियों से उसके चेहरे के भाव पढऩे की कोशिश करते रहे... आप मन ही मन लगातार सोचते रहे कि कितना अच्छा होता उसके गालों को भी छू पाते जिस से उसके चेहरे पर कुछ तो लाली आती। वहाँ पहुँच कर आप नीचे उतर कर समुद्र तट तक पहुँच जाते हो... और धीरे धीरे कूलर बॉक्स का सामान एक एक कर के बाहर निकाल देते हो।
ड्रिंक के साथ कुछ कुछ खाते हुए आप देखते हो कि उसके विवर्ण चेहरे की रंगत लौटने लगी है... धीरे धीरे वह इतना सहज हो जाता है कि अपने बचपन की बातें बताने लगता है... कि कैसे लोगबाग उसके नाम को लेकर अक्सर उसको छेड़ते थे - उसको देखकर बोलते, ''देखो भेडिय़ा आया... भेडिय़ा आया।....'' और इधर उधर छुपने का नाटक करते।
''इसी छेड़छाड़ में मेरी अपनी पत्नी से मुलाकात हुई।'', उसने हँसते हुए बताया। एक हैलोवीन पार्टी में वह लिटल रेड राइडिंग हुड (पश्चिम में प्रचलित एक परीकथा की नायिका लड़की जो अपनी दादी की तलाश में जंगल में जाती है तो रास्ते में उसका सामना एक भारी भरकम भेडिय़े से हो जाता है) बनी थी - यह बताते हुए वह आपकी आँखों में झाँकते हुए अनायास ठहाका लगा कर हँस पड़ता है। आप भी हँस पड़ते हो... दोनों मिलकर देर तक ठहाके लगाते हो... आप तो ऐसे ठहाके लगते हो जैसे बरसों बरस से हँसे ही नहीं।
और जैसे ही आप दूसरी बोतल खोलते हो वह आपसे भी कुछ सुनाने को कहता है...
''कोई घटना तुम भी सुनाओ''  उसने कहा।... ''मुझे हँसी ख़ुशी पर जो खतम हो ऐसी कोई कहानी सुनाओ।''
आप नई सिगरेट सुलगाते हो, मुँह से धुँए का एक छल्ला बाहर फेंकते हो... हाथ में ग्लास थामे उसके अंदर तैर रही बर्फ़ के आपस में टकराने की आवाज़ सुनते हो। सोचते हो उसको कह दो कि कोई ऐसी कहानी नहीं होती जिसका कभी अंत होता हो - सुखद हो या दुखद। पर यह बात ज़ुबान तक आते आते रुक जाती है,जाने उसको यह जवाब कैसा लगे। उसको धक्का न लगे यह सोच कर आप चुप्पी साध लेते हो। समुद्र से आती बयार में एक गंध जज्ब है, और लहरें चट्टानों पर सिर पटक रही हैं। समुद्र का पानी काला दिख रहा है और उसमें तैरते जहाजों के अंदर से झाँकती रोशनी काले पानी पर फिसलती दिखाई देती है। एक गहरी साँस खींच कर आप बोलने लगते हो : ''छँटनी... इनमें भी कुछ अच्छाई  है।... आप लोगों को जानने पहचानने लगते हो। आप घर से बाहर कदम निकालते हो... और कहीं न भी हो तो सिगरेट फूँकने के बहाने से बालकनी पर ही सही... और सामने से कोई बोल पड़ता है : ''तुमने आज की  खबर सुनी?... लाइकोस को नौकरी से निकाल दिया गया ...''
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    * ग्रीक भाषा में लाइकोस भेडिय़े के लिए प्रयुक्त होता है। 
( http://fivedials.com से साभार / प्रस्तुति एवं अनुवाद : यादवेन्द्र )

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