लाल्टू की कविताएँ

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    नवम्बर 2016
श्रेणी लाल्टू की कविताएँ
संस्करण नवम्बर 2016
लेखक का नाम लाल्टू





कविता


मैं

सदियों बाद लोग मेरे बारे में पढ़ेंगे

कि
मैंने परवाह नहीं की कि कुचली गई प्यार में बँधी हथेलियाँ
जब भी निकला मेरे होठों से कोई लफ़्ज़

मेरे होंठों से निकलता हर लफ़्ज़
इतिहास-भूगोल और कविता को भी
काली बर्फ से ढँकता
सोची-समझी कवायद था

मैंने शांत चित्त
बंदूक तलवार उठाए बिना
कत्ल करवाए

फौज पुलिस नहीं भी होती तो भी
मैं होता मूर्तिमान
प्रेम का विलोम
हर पल चुपचाप
अट्टहास करता शैतान।

तुम

तुम्हारी फितरत कि तुम परेशान रहते हो
कि मैंने कहाँ क्या कह दिया
तुम तिनका-तिनका इकट्ठा करते हो
मेरे खिलाफ साक्ष्य
सोचते हो कि एक ही मेंह में भीगा धरती पर
एक इंसान कैसे हो सकता है औरों पर इतना बेरहम

मैं खुल कर कहता हूँ
जैसे कोई वेश्या नहीं होती मुहताज
किसी की सहानुभूति की

मुझे क्या फिक्र की तुम जानते हो
कि मैंने कब किसके साथ क्या किया
तुम्हारे हर साक्ष्य को
हर साक्षी को
पैरों तले रौंदती गुजरेंगीं मेरी सेनाएं

वक्त मेरी मुट्ठियों में है
समझ लो जितनी जल्दी समझ सकते हो।

प्रतिनिधि सभा

रेंग रहे हैं जन-प्रतिनिधि
जो शातिर हैं और अधिकतर हैं
वे ढूंढ रहे मौके
कि मेरे फेंके कुछ टुकड़े चुन लें

जिनको गुमान है कि उनकी रीढ़ है
इंतज़ार करते रहे कि उनकी
आवाज़ें कैद हो जाएं तलघरों में।

खाली पन्ने

सदियों बाद भरे होंगे वे पन्ने
जो आज खाली हैं
मौत की वह गंध वहाँ होगी
मेरी नासिका में जो मौजूद है
वह शून्य होगा
जिसका दावा मैं अद्र्ध-पद्मासन करते हुए करता हूँ

इन खाली पन्नों को
जिनमें बहुत सारा खून बिखेरा जाना है
भरा जाना है मेरे सेनापति के खेलों, मेरे अमात्य की चालों से,
देखते हुए

एक बार खाली-खाली सा हो जाता है मेरा भी मन

करतब

मेरे वेश पर क्या नहीं कहा गया
पर मैंने परवाह ही कहाँ की
मेरा नंगा सिर तना रहा
मेरे नाम की हजारों प्रतियां ढोते इस महंगे भेष के ऊपर

बड़े सलीके से इसे सिला गया
मेरे पहले पहना इसे मेरे खैरखाहों ने
क्या खबर कि किसी ने मिला रखा हो ज़हर इसके धागों में

मुझे फिक्र हुई थी एक पल
कि ज़हर से बचे पर जिन्होंने मेरे पहले पहना उनके बदन से
आ गए हों कुछ जीव सूक्ष्म अगर

फिर आईने में देखा अपना वह सीना इसके अंदर
जिसकी चौड़ाई पर ही कितनी तो आ चुकी हैं खबर
खुश था मैं और भूल गया ज़हर वहर
वैसे भी मुझे तो मिला है शैतान का वर
कौन खुदा का बंदा मुझे गिरा सकता है!

आईने में दो-चार बालों को संवारा मैंने
दुनिया की सैर पर निकलना था
लोग भूल गए हैं इस देश की कहानी
मेरे करतब ही ऐसे हैं।

इतिहास

27 फरवरी
यह तारीख तुम्हें याद है
मैंने इस तारीख को साधा था गढ़ा था
यह तारीख मेरे लिए प्राणवायु थी
मेरे पखेरु को
जैसे इस दिन ने कछुए का खून पिलाया हो

तुमने इस पर कविता लिखी
बर्लिन को याद किया
मैं उस दिन शैतान की पूजा कर रहा था
मैंने तय कर लिया था कि मौसम मेरी मुट्ठी में बंद होने को है
मैंने सारा गोला बारुद सभी तलवार खंजर बाँट दिए थे
और पैने दांतों को निकाल सड़कों पर उतर आए थे मेरे रक्तबीज

मैं एक मकसद से धरती पर आया हूँ
इतिहास को गुलाम बनाने आया हूँ
इतिहास मेरा गुलाम है
मेरे नंगे सिर पर, तुम्हें सींग नहीं दिखते
यह इतिहास की गलती नहीं है






लाल्टू उच्चतर उद्देश्यों और सक्रियताओं के लिए समर्पित हैं। यहाँ उनकी कुछ बिलकुल ताज़ा कविताएं छापी गई हैं। लाल्टू हैदराबाद में रहते हैं। मीडिया में महत्वपूर्ण दखल है आपका।

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