कैंसर

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    नवम्बर 2016
श्रेणी लंबी कहानी
संस्करण नवम्बर 2016
लेखक का नाम शेली खत्री





लंबी कहानी


गांव की हवा बदल गई है। हां, आए दिन कोई ना कोई घटना हो रही है। यह किसकी वजह से, कौन है जो जानवरों को मार रहा है। मुर्गी मरी, बैल मरा, बकरी मरी सोमरा ऊंगली पर गिनते हुए बोला। बगल मैं बैठा शिबू बोला, हां, तीन जानवर मरना अपशकुन हैं, पूरे गांव के लिए। इसी से कहते हैं सावधान, हमारे गांव में खतरा है, जमीन ज्वार को खतरा है, जंगल को खतरा है, हम सबको खतरा है उसने ठहरी हुई आवाज में ऊंगली से इशारे करते हुए कहा तो लगा जैसे गांव का खतरा प्राइमरी स्कूल के उसी प्रांगण में उतर आया, जहां ये चारों-सोमरा, शिबू, धनजा, मौकी बैठे थे। उस आवाज में कुछ ऐसा जादू था कि सबके रोंगटे खड़े हो गए।
शिबू गांव में बीमारी फैलने वाली है का या इस बार खेत सूख जाएक, कैसन खतरा, तनिक बताता क्यों नहीं। पाहन से भी पूछा था क्या। यह धनजा था, उसे तो यूं भी ग्राम देवकी और सिंगबोंगा से बहुत डर लगता था। मां ने जब पहली बार जाना था कि वह चोरी करकेे छाता, टार्च और चप्पल लाया है, उसे एक पल देखती रही थी और कहा था एक दिन सिंगबोगा तुझे सजा  देंगे। अपने बाप से नहीं सीखा? आज तक उसने कोई काम नहीं किया, कभी एक दो दिन कुछ किया भी तो एक रुपिया घर नहीं लाया, पर हमें हर दिन दोनों समय भोजन मिला ना, हमको काम की कमी नहीं हुई। रूखा सुखा पका ही लेती थी। हमने और तेरे बाप ने कभी चोरी नहीं कि तो सिंगबोंगा ने अशीष दिया है। तुने चोरी की तो पूरे घर और तेरे लिए बुरा होगा। धनजा ने कसमें खा-खाकर सिंगबोंगा से माफी मांगी। पर क्या करे, शिबू पक्का चोर और आलसी है। जब भी कुछ चुराता है, उसे अपने साथ मिला ही लेता है। दो पैसे, हडिय़ा आरै देशी शराब के लालच में उस समय वह उसका साथ देता है पर बाद में सिंगबोंगा से डरता रहता।
हमारे सपने में सिंगबोंगा आए थे, शिबू ने आगे कहा। वे बोले यह एक औरत का काम है, वह गांव का विनाश चाह रही है। हमने सपने में उस महिला को भी देखा, पहचानने की कोशिश की, तब तक सिंगबोगा बोले जब तक यह रहेगी, गांव में अशगुण चलता रहेगा। डर से मेरी आंख खुल गई थी। रात भर बिछौना से सटे रहे हम। उसकी बात खत्म होने तक तो बाकी तीनों खड़े हो चुके थे, सच कहता रे शिबू। कौन थी औरत। देख डर के मारे प्राण निकलने वाला है, धनजा ने शिबू के हाथ पर अपना थरथराता हाथ रखकर बताया। उसका चेहरा याद कर हम खुदे डर जाते हैं। लाल आंखें थी, बाल खोले थे, चिकिनी माटी जैसा चेहरा। वह जरूर खेला करती है। देख, उसका चेहरा हम पहचान लिये हैं वह यह बात भी जान गई है, तभी हम उसको पहचान भी रहे हैं लेकिन नाम मुंह में नहीं आ रहा है। शिबू की बात सुन, धनजा और मौकी ने एक दूसरे का हाथ पकड़ लिया। जाने दें, हमें नहीं जानना है और कुछ। देख, दोपहर है। स्कूल खाली है, बगल के खेत में भी कोई नहीं है। कहीं वह औरत हमारे पास ना जाए। चल यहां से मौकी बोला। तो सब चाहरदीवारी से बाहर आ गए। स्कूल खाली है, बगल के खेत में भी कोई नहीं है। कहीं वह औरत हमारे पास ना जाए। चल यहां से मौकी बोला। तो सब चाहरदीवारी से बाहर आ गए। स्कूल की चाहरदीवारी के बगल में दो कट्ठे का खेत था, उसमें धान बोया हुआ था। खेत खत्म होने पर दो तीन कच्चे खपरैल घर थे। आगे इमली का पेड़ जिसके कारण उस मोड़ को तेतर मोड़ कहते थे। स्कूल के सामने की सड़क गढ्ढे और सड़क का मिला जुला रूप थीं। चाहरदीवारी की दूसरी ओर छोटी-छोटी दुकाने थीं। बीच में एकाद घर भी था। इन मानसर  ब्लॉक में सब तरह की दुकानें थीं, जरूरत का सारा सामान यही मिल जाता था। इस आदिवासी बहुल गांव में पांच हजार लोग रहते थे। ब्लॉक के अगल बगल के गांव के लोग भी यहां खरीदारी के लिए आते। आदिवासी, मूलवासी की संख्या अधिक थी पर सभी जाति धर्म के लोगों का निवास था यहां। पंडित, ठाकुर, लाला, कुम्हार, चमार, डोम, सबने अपनी उपस्थिति दर्ज करा रखी थी। कुछ घर मुसलमानों के भी थे। दुकानें पर्याप्त थीं पर आर्थिक समानता देश के अन्य हिस्से की तरह यहां भी लागू नहीं था। ऐसे लोग भी थे जो एक शाम का खाना मिलने के बाद दूसरे शाम के लिए रोते थे, और ऐसे भी थे जो एक शाम में तीन शाम का खाना बना लेते और फेंक देते थे। पुरूष खेती दुकानदारी के अलावे रांची में नौकरी भी करते थे। मजदूर वर्ग के लोगों को मनरेगा के तहत काम मिलता था। कुछ लोग रोज ऑटो में बैठ कर रांची तक काम ती तलाश में निकलते थे। मेहनती और जुझारू लोग थे, दिन भर जान लगाते और रात को थोड़ा पीकर उत्पात मचाते। गांव की आबादी और रहन सहन को ठीक करने के लिए दो तीन एनजीओ भी लगे थे।
20 वर्ष पहले 13 साल की उम्र में ब्याह कर आयी सुकमी पूरी तरह से इसी गांव की हो गई थी, पर बुद्धि पूरी थी। उसकी बुद्धि और मेहनत की बदौलत पूरे घर का नक्शा बदल गया था। पहले सास घरों में चौका बासन करती थी, देवर और पति इधर उधर मारे फिरते थे। ससुर कभी-कभार मजदूरी कर लेते थे। उसने आते ही प्यार से सबको काम के प्रति जागरूक किया। पति को पढऩे के लिए प्रेरित करते हुए मैट्रिक पास कराया। बाद में वह यहीं के प्राइवेट स्कूल में चपरासी हो गया। देवर को पढ़ाने की कोशिश की तो आठवीं तक पढ़ा। अब कपड़े का ठेला लगाता है। वह खुद भी कमाती। खेतों में काम करती। घर को भी साफ सुथरा रखती। पूरे मुहल्ले में लोग उससे परिचित हो गए। वक्त जरूरत मदद करने में वह सबसे आगे रहती थी। सास का मानना था कि उसे ग्राम देवकी का आशीष प्राप्त है। उसने जब से घर संभाला कभी रुपए पैसे की दिक्कत नहीं हुई। सुकमी हंसती हुई कहती, हम हिसाब से चलना सीखें हैं माए। फिर घर में चार जनें कमाते हैं। सिंगबोंगा की किरपा से अपने घर में किसी को पीने की आदत नहीं है। यहां त्योहार के अलावे कभी कोई हडिय़ा भी तो नहीं छूता है। सास की पूरी ममता सुकमी के प्रति थी। आने के पांच साल के बाद ही उसने सास का काम छुड़ा कर घर में रखना शुरू किया। खाना-पीना बनाकर बच्चों को नहला कर स्कूल भेजकर ही वह काम पर निकलती। उसका काम को बस घर द्वार की रखवाली करना और बच्चों को दोपहर में खाना खिलाना ही था। रातू जाकर सुकमी ने महिला विकास केंद्र में स्वेटर बुनना, सिलाई करना और पापड़ बड़ी बनाना सीखा था। साल में दो बार पापड़ तैयार कर गांव के सभी बनिए दुकान में रखवा देती। ऐसे ही पैसे लेकर स्वेटर बुनती। एक बार विकास केंद्र में ही किसी प्रतियोगिता में सिलाई मशीन भी जीत लाई थी। अब मुहल्ले भर की औरतों के पेटीकोट, ब्लाउज सिलती, कभी फाल लगाती। हुनर था तो उससे कमाने का सऊर भी सीख लिया था। सास की दुलारी तो बनना ही था। देवरानी ज्योति को बहन की तरह रखती। वह आठवीं तक ही पढ़ी थी, पर सुकमी ने उसे महिला विकास केंद्र भेजकर काम सिखाना शुरू कर दिया था। अपने दोनों बच्चों के साथ-साथ उसके तीन बच्चों की देखभाल भी कर लेती।
सुकमी ने सोच विचार कर कभी गांव घर की मदद नहीं की। बस जब कोई जरूरत में पुकारता तो मदद कर देती बस इतना ही, उसे पता भी नहीं चला और उसके मुहल्ले के बगल के मुहल्लों में भी उसकी पूछ शुरू हो गई। वहां से दो बार सास बहू के झगड़े निबटाने के लिए उसे बुलाया गया था। आज भी टींगरा टोला से बुलावा आया है।
देखिए, दीदी जी, हमारी हर तरफ से हार हो रही है। ना तो पति बात सुन रहे हैं ना सास, गुप्ता घर की बहु ने उसके आते ही कहा। सास बोली आप तो आंगनबाड़ी केंद्र चलाती हैं समझाइए हमारी बहु को पति के बीच यह क्यों बार-बार बोलती है। अरे मर्द की जात हैं, कभी यार दोस्तों संग पी लिया तो यह लड़ बैठती है। सुकमी को पहली बार लगा उसका वजूद है, पूरे गांव के लिए है। वह तो समझती थी कि दो साल से वह आंगनबाड़ी सेविका के रूप में काम करती है यह बात सिर्फ मुहल्ले के लोग ही जानते होंगे पर तीन मुहल्ला पार टींगरा टोला को भी इसकी खबर है और शायद इस बात की भी खबर है कि उसने महिला विकास मंच के साथ मिलकर एक बार शराब बंदी के लिए पर्चे भी बांटे हैं। तभी झगड़े के लिए नहीं बल्कि शराब के झगड़े के लिए उसको बुलाया गया है। उसे यहां तक पहुंचाने आयी डंगरा टोली और उसके मुहल्ले अंजान टोली की महिलाएं भी सास के पक्ष में थी।
थोड़ी चुप्पी के बाद सुकमी बोली मांजी आप तो बड़ी हैं, हम लोगों से ज्यादा दुनिया देखी है पर कभी-कभी छोटे भी बड़ी और सच्ची बात बोल सकते हैं। आदमी और औरत मिलकर ही घर चलाते हैं। दोनों में से कोई एक भी उलटी राह पर चले तो उसे समझाना बताना दोनों का धर्म है। शराब पीने से आपके बेटे को ही नुकसान होगा। इससे फेफड़े, लीवर की जो बीमारियां होती हैं, उससे उसी का शरीर टूटेगा। इसलिए जब बहु मना करती है तो आपको भी बेटे का पक्ष ना लेकर शराब की बुराई देखनी चाहिए। अपने बेटे को समझाइए, धीरे-धीरे करके छुड़ाइए इसे। घर में शराब लाकर बच्चों के सामने पीना और उसके बाद पत्नी को गालियां देना गलत बात ही तो है। सोचिए आपके पोते-पोती पर क्या असर होगा। सुकमी ने समझाया तो वृद्धा बोल उठी कि यह सब तो ठीक है, पर बेटे तो अपने मन की ही करेंगे, इस पर घर की औरतें भले ही मां ही क्यों ना हो कैसे आवाज उठाएंगी।
अगर बेटा बीमार रहे और डॉक्टर के पास जाने या दवाई खाने से मना करें तो औरतों को क्या करना चाहिए। सुकमी ने जवाब देने की बजाय प्रश्न किया।
वृद्धा बोली बीमारी की बात और है। तब तो जिद करके, रूठ कर या मना कर दवाई देनी पड़ती है। शराब की लत भी एक बीमारी है, सुकमी ने विकास केंद्र में सीखे उपाय से समझाया। वृद्धा राजी हुई कि अब बेटे को शराब पीने के लिए मना करेगी और इस मामले में बहु का साथ देंगी। आस पास खड़ी दर्जन भर महिलाओं ने कहा कि अच्छा होगा कि उसके मर्द शराब ना पीएं।
सुकमी रविवार को जब विकास केंद्र की बैठक में गई तब दीपिका दीदी को सारी बात विस्तार से बताई। कितने मर्द शराब पीते होंगे मानसर में, कितनी दुकानें हैं। दीपिका ने पूछा।
दीदी, बहुत बुरा हाल है। शाम होते ही घर से निकलना मुश्किल होता है। जिधर देखो शराब पीकर लुढ़के लोग मिलते हैं। वहां तीन चार भट्टी हैं। आस-पास के गांव में भी जाती है। पान वाले तक बेचते हैं। हडिय़ा-ताड़ी तो हर मुहल्ले-टोले में सड़क के किनारे मिलती है। एक दो किराने वाले अंग्रेजी की बोतल बेचने लगे हैं। सुकमी ने अपनी जानकारी के हिसाब से बताया।
ठीक है इस सप्ताह समय निकालकर किसी और दिन भी आना तुम्हारे गांव में प्रोजेक्ट शुरु करेंगे। उन्होंने बात समाप्त की।
सुकमी ने कुछ समझा कुछ नहीं, पर तय कर ली कि बुधवार या गुरुवार को समय निकाल लेना है।
गुरुवार को वह पहुंची तो केन्द्र का माहौल हमेशा की तरह खुशनुमा था। काम-काज के साथ हंसी मजाक चल रहा था। दीपिका दी, तनमय, नीतिन पंकज और सुकमी ने मीटिंग की। इस बीच उसके गांव के बारे में अन्य जानकारियां केंद्र सदस्यों ने इकट्ठी कर लीं थीं। नीतिन ने बताया कि मानसर में 80 प्रतिशत विवाह बाल विवाह ही हो रहे हैं। शराब ने पूरी अर्थ व्यवस्था और सामाजिक ढांचे की कमर तोड़ रखी है। कुछ महिलाओं को यहां बुलाकर लघु उद्योग के बारे में बताने से कुछ नहीं होगा। हमें वहां जाकर काम करना चाहिए। कुपोषण बहुत है, मेरी जानकारी में एक और बात आयी है, आदिवासियों में भी दहेज शुरू हो गया।
देखो, अपने लिंक में सुकमी समेत दस पंद्रह महिलाएं हैं हीं, इन्हें ही ट्रेंड करना शुरू कर देते हैं। हमारे पास तो शराब और दहेज का ही प्रोजेक्ट है। बाल विवाह पर फिलहाल हम डायरेक्टली काम नहीं कर सकते। पर दहेज के लिए जागरूकता में उसका भी उल्लेख रहेगा ही। दीपिका दी ने अपनी बात समझायी।
सुकमी, तुम्हारे घर में कितनी जगह होगी। वे सुकमी से मुखातिब हुईं।
दीदी, वैसे तो मापी नहीं मालुम लेकिन तीन कोठरी हैं। दो कमरे बराबर आंगन है और पीछे खाली जमीन हैं, वहां सब्जी-भाजी उगाते हैं। दो कोठरी का छत है। आंगन के बाद वाला कोठरी खपरा का है। सुकमी ने बताया।
ठीक है, काम हो जाएगा। तुम्हारे गांव में औरते किस दिन फुर्सत में रहती हैं, इतवार को या किसी और दिन। उनका अगला प्रश्न था।
दीदी, इतबार को तो बच्चा सब घर में रहता है, कोई और दिन ठीक रहेगा।
ठीक है, तुम्हारे आंगन या छत पर ही सभा करूंगी, अभी मंगलवार का दिन रहने दो, कोई समस्या आएगी तो दिन बदल लेंगे। मैं और रजनी आएंगी। जितनी महिलाएं आ सकें, बुलाकर रखना, वे बोलीं। फिर ठहरकर पूछ लिया इसमें तुम्हारी आंगनबाड़ी को तो कोई नुकसान नहीं होगा।
जी, नहीं दीदी। बच्चों के लिए तो सहायिका भी है, फिर मेरी सास भी देखती हैं। 15 बच्चे ही हैं, नीचे सभा होगी तो उनका छत पर भेज देंगे। छत पर होगी तो नीचे। कोई दिक्कत नहीं। सुकमी ने सफाई दी।
ठीक है तो अगले मंगलवार को तैयार रहना, 11 बजे तक आएंगी हम, 11.30 से सभा शुरू होगी। लोगों को बताना कि महिला कल्याण के लिए यह कार्यक्रम आयोजित होगा। दीपिका दी ने बात समाप्त की।
सुकमी ने उसी दिन से जिस पर भी नजर पड़ती, आने का न्योता देना शुरू किया। मंगलवार को दीपिका दी, रजनी, मोहन, सुरेंद्र सब आए। नीचे आंगन में सभा जमी। दीपिका दी ने शराब की बुराईयों के बारे में बताया। हर माह औसतन एक आदमी कितने रुपए शराब में फूंक रहा है। उन पैसों से घर-परिवार का कितना काम हो सकता था। बच्चों की किताबें, खाने को पौष्टिक चीजें आ सकती थीं, आदि-आदि पर विस्तार से बताया गया। बीच में मोहन और सुरेंद्र ने सभी को चाय बिस्किट दिया। एक घंटे के वार्तालाप के बाद दीपिका दी ने सबसे पूछा कि कौन-कौन हैं जो शराब की बुराई को अपने घर से खत्म करना चाहती हैं। 45 की 45 महिलाओं ने हाथ उठाया। दी बोली की सबसे पहले तो आप लोग अपने घर के पुरुषों को समझाओ कि वे इस आदत को सुधारें। लेकिन आपस में झगड़ा मत करना, पहले पीने के लिए मना करो, बच्चों का वास्ता दो। ना तो बच्चों से भी कहलवा सकती हैं। बच्चे यदि कहें कि मत पियों हमें अच्छा नहीं लगता तो इसका असर होगा। सुनो सुरेंद्र प्रोजक्ट में नोट कर लो स्कूल में बच्चों के बीच अवेयरनेस का काम भी करना होगा, वे बीच में सुरेंद्र से बोलीं।
फिर बताया गोंदा में तो स्वयं सेवी संगठन बनाकर महिलाओं ने शराब के सारे ठेके बंद कर दिए। जो भी पुरुष शराब पीता है पूरे गांव की औरतें मिलकर उसकी कुटाई करती हैं। छह महीने लगे वहां की महिलाओं को, अब कभी जाकर देखिए गांव का नक्सा बदल गया। दारू-ताड़ी वाले दूसरी दुकान खोलकर बैठे हैं। कभी कोई बाहर जाकर शराब पी लेता है तो गांव में उस रात लौटने की हिम्मत नहीं करता है। आपलोग अखबार नहीं पढ़ते हो तब भी टीवी तो कुछ लोगों के घर में होगा ही। जानते हैं गोंदा में पांच आदमी एक ही दिन शराब पीने से मर गए थे। उसके दो दिन बात तीन आदमी की मौत अस्पताल में लीवर खराब होने से हुई थी तब महिलाएं लाठी लेकर दुकान बंद कराने पहली बार निकलीं। जल्द ही हम लोग यहां भी शराब दुकान बंद कराएंगे। उन्होंने बताया और सभा समाप्ति की घोषणा कर दी।
सुकमी के घर में हुई सभा में शामिल तो सिर्फ महिलाएं ही हुई पर इसकी खबर पूरे गांव को लग चुकी थी। रात को मनेसर पान दुकान के पीछे लगी बेंच पर बैठे कपड़ा व्यवसायी अनिल गुप्ता, शराब के दो भट्ठे के मालिक नरेंद्र सिंह, आटा चक्की के रामरतन साहू, जमीन कारोबारी अमर सिंह आदिवासियों के नेता पंचम तिग्गा प्लास्टिक के टेबल पर रखी अंडा भुर्जी और देशी शराब गटक रहे थे। नरेंद्र सिंह ने कहा, आज गांव में विचित्र बात सुनी है। वो आंगनवाड़ी वाली सुकमी के घर पर किसी एनजीओ ने बैठक कर शराब बंदी के लिए महिलाओं को उकसाया है। सुनी तो हमने भी है, हमारी औरत भी गई थी। आते ही गरज रही थी कि अबकी शराब पिया तो गांव से सारा भट्ठा गायब करेंगे। सब महिलाएं जाकर भट्ठा तोड़ेंगे। बताइए ये सब क्या हो रहा है, रामरतन साहू बोले।
ऐसे कैसे कोई हमारा भट्ठा तोड़ डालेगा, हमारे लठैत किस दिन काम आएंगे, नरेंद्र सिंह गरजे।
ऐसे गरजों नहीं सोचो। जानते हो ये कुत्ती औरते जो हैं हमारे घर में आकर पहले ही आग लगा चुकी हैं। कितना बढिय़ा घर में आराम से सोफा पर यार दोस्तों संग बैठकर पी लेते थे। एक दिन जाकर हमरी मां और औरत को सिखा पढ़ा गई हैं कि घर में पीना हराम कर दिया। ना कोई चखना लाने को तैयार होता है, ना पीने देता है। उस दिन मनेसर साव और रामकिशनू आने वाले थे। हम बोतल खोले ही थे कि मां डंडा लेकर आ गई। इतना गाली दी कि बोतल हाथ में लेकर भागना पड़ा। घरे-घरे अब यहीं होगा। पीने के लिए सिर्फ बाहर का यही बेंच बचेगा। अनिल गुप्ता बोल उठे। और इनकी बात सच रही तो एकाद भट्ठा भी उलोग तोड़ देगा।
बात तो आपकी सही है - लेकिन क्या सच में इलोग भट्ठी तोडऩे को उतारू होंगे। पंचम तिग्गा ग्लास खाली करते हुए बोले।
लक्षण तो यही है। यह अलग बात है कि अभी शुरूआत है। पर पहले ही 50 महिला उनके साथ हो गई है। रामरतन ज्यादा ही चिंतित थे, बिना शराब पीए उनकी गुजर ही नहीं थी।
ई महिला विकास केंद्र है किसका, कुछ पता है, अनिल गुप्ता सोचते हुए बोले।
देखो हमारी समस्या महिला विकास केंद्र नहीं है। सुकमी और गांव की और दो चार महिलाएं जो अभियान में आगे-आगे नाच रही हैं, यहीं। ई नहीं रहेंगी विकास केंद्र का करेगा। वैसे भी विकास केंद्र मुख्यमंत्री के साला का एनजीओ है। डायरेक्ट उसको कुछ करते नहीं बनेगा। दुर की कौड़ी लानी पड़ेगी। पर पहिले इन नमकहराम हरामजादियों को सबक सिखाओ। अब चुप बैठे अमरसिंह चिंघाड़े। शराब महिमा को उनसे बेहतर कौन जान सकता था। कितनी ही आदिवासियों, दलितों की जमीन इन्होंने बस इसी माया की बदौलत हड़प कर बेची है। भवन बनाए हैं। यह तो सीधे-सीधे उनके कारोबार पर हमला है फिर उनकी नजर में पांव की जूती महिला और आदिवासी इनकी जागरूकता वे कैसे सह सकते थे।
सब महिला उसकी बात मानती है, आंगनबाड़ी केंद्र में भी बहुत बच्चे जाते हैं। अनिल गुप्ता बोले।
अरे रहने दो। उसका आदमी, उ एतवा मुंड साला गोविंद जी के स्कूल में दो आने का चपरासी है - चपरासी। चपरासी उस पर आदिवासी, उसकी औरत की इतनी मजाल। गांव घर में घूम-घूम कर ऐसा दुस्प्रचार कर रही है। इसे गांव से निकलवाना ही होगा। अमरसिंह मूछों पर हाथ फेरते हुए बोले।
आदिवासी ही है भाई, दिकू नहीं कैसे निकाल देंगे, हमरा नेतागिरी खत्में करेंगे का, पंचम तिग्गा डरते हुए बोले।
बेटा अमरसिंह नाम है। सांप ऐसे मारते हैं कि लाठी बची रहे दूसरे सांप के लिए। तुम्हारा नाम खराब नहीं होगा। बल्कि हमरी तरकीब से चमक जाओगे। अमरसिंह भौंहें नचाते हुए बोले।
तो फिर बोलो भाई - कैसे करना है, हम तैयार हैं। दामन चमकाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। पंचम दांत निपोरते हुए बोले।
अमर सिंह दोनों हाथ बढ़ाकर सबको अपने नजदीक लाए और फुसफुसाकर योजना समझायी।
बढिय़ा भइया, ठीक बाटे, अब ऐही करल जाऊं। ऐ सुनो सबसे पहले अपने घर की औरतों का वहां जाना रोको। पंचम अमरसिंह की भाषा बोलने लगे।
सुबह गांव में हर तरफ एक ही चर्चा थी। पान दुकान हो या किराने की दुकान, स्कूल हो या मुहल्ला, बस यही कि विकास केंद्र वालों को तो सरकार से जागृति लाने के लिए करोड़ों रुपए मिलते हैं। हमारे गांव में महिलाओं को सभा करके धोती साड़ी देने के लिए दस लाख रुपए मिले थे दस लाख। धोती तो किसी को मिली नहीं साड़ी भी नहीं और  सांझ को पंचम तिग्गा के घर उनका एक आदमी गया और बोला कि सभा करने में पांच हजार रुपए खर्च हुए हैं। महिलाओं को ज्ञान की बातें बताई गईं। खाना खिलवाया गया। तिग्गा जी ठहरे नेता आदमी। गांव की बात हो तो वे क्या पैसों का मुंह देखेंगे, उन्होंने तुरंत पैसे निकाल कर दिए। सुनते हैं उन्होंने पांच सौ रुपए भी खर्च नहीं किये थे सभा में।
चर्चा तो चर्चा हैं, तुरंत फैल गई पूरे गांव में। पंचम तिग्गा के समर्थक सुबह से यही रामायण वांचने लगे थे।
देख शीला यह झूठ है। एकदम झूठ। हमारे गांव में शराब और दूसरी बुराई के बारे में ही बताने आए थे, उलोग। हमारे ही सामने हम से ही पूछ कर पूरा प्लान बना था। सरकार कहीं धोती कहीं साड़ी बांटती है कि इनको बांटने के लिए पैसे देगी? जागरूक करने और सही - जानकारी देने का काम है इनका। इसी के लिए सरकार कुछ पैसा भी देती है, ऐही नौकरी है तो नौकर को काम कराके पैसा तो देगा ही सरकार। सुकमी अपनी पड़ोसन को समझा रही थी।
बात तो तुम्हारी ठीक है सुकमी दीदी, पर इलोग ऐसे काहे हल्ला फैला रहे हैं।
अरे पता नहीं, जाने दो। अगले मंगल को जब सभा होगी तब उनसे ही पूछेंगे। सुकमी बोली।
टुंगड़ी टोला में सुबह से हलचल मची थी। विनय मुंडा के घर के बाहर उसके मुर्गा-मुर्गी पड़े थे। मुर्गी तो सामान्य सफेद थी। मुर्गा काले पंख वाला था। विनय मुंडा चुपचाप शव के पास बैठा था। बीच में मुर्गे के शरीर पर हाथ फेरकर कहता, बड़े जतन से पाला था ताकि सरहुल पर बलि देने के लिए पाहन को भेंट कर सकूं। देवता का प्रसाद किसने मार दिया। भीड़ आस-पास जमा थी। किसी के घर में जाकर चुपचाप मुर्गी को मार कर छोड़ देना किसी की समझ में नहीं आ रहा था। खाना था तो पकड़ कर ले जाता। मारा भी फिर छोड़ा काहे। सब यही सोच रहे थे। पंचम तिग्गा भी पहुंचे। पहले चुपचाप खड़े रहे फिर कहा, कौन है जो नहीं चाहता है कि हम बलि देकर अपने देवता को खुश करें। देवता खुश तो गांव में खुशहाली, देवता खुश तो गांव का विकास बरक्कत। यह जरूर कोई है जो नहीं चाह रहा है कि देवता विनय मुंडा से, सारे गांव से खुश रहे। उसी का काम है। उसी ने मुर्गे का प्राण ले लिया। किसी के आने की आहट मिली थी विनय, उसने बड़े अपनेपन से पूछा।
नहीं दादा, हम तो रात में उठे भी थे। मुर्गी सही सलामत थी। चार बजे के आस-पास हुआ है इ काम। लेकिन कोई आहट नहीं मिली। विनय हाथ जोड़कर बोला।
इसका मतलब किसी ने अपने घर में बैठे-बैठे ही मंतर किया है। मंतर फेरा और मुर्गी के गले पर छुरी चल गई। पंचम ने जैसे ही कहा भीड़ शंकित हो गई। चलो, इस मुर्गी को कोई खाएगा नहीं। देवता का प्रसाद गछा था फिर मंतर मारा हुआ है। मसना के पास ही इसे दफन कर आओ। पंचम ने निर्देश दिया और चले गए। विनय और उसके साथियों ने दोनों मुर्गी-मुर्गी को दफन कर दिया। दिन भर यही चर्चा गांव में आम रही।
मंगलवार के पहले सुकमी ने कई महिलाओं को सभा के लिए याद दिला दिया था। 12 बजे तक सिर्फ शीला, उसकी सास मानकी, उसके बगल में रहने वाली रीना और शांति ही आ सकी थीं।
अन्य महिलाएं क्यों नहीं आयी कुछ बता सकती हो, दीपिका दी ने पूछा।
पता नहीं दीदी। लेकिन पिछली बार सभा के दूसरे दिन गांव में बहुत हल्ला मचा था। कहकर सुकमी ने उन्हें सारी बात बता दी।
दीदी महिलाओं को उनके पति मना कर रहे हैं। इसलिए नहीं आ रही होंगी। मेरे पति ने भी मना किया था तो मैं छिपकर बिना किसी को बताए आ गई हूं, शांति बोली।
शराब बंद कराने से पुरुषों को बुरा लगेगा यह तो हम जानते ही थे, पर इस तरह करेंगे नहीं मालुम था।
चलो ऐसा करते हैं, गांव का दौरा करते हैं, तुममें से जिसे घरवालों का डर ना हो वो साथ में चलो। दीपिका दी बोली तो सब तैयार हो गईं।
सुरेंद्र, मनोहर दीपिका दी, शांति, रिना, मानकी, सुकमी और ज्योति, साथ-साथ चली। पूरे गांव का पैदल दौरा किया। रास्ते में जिस टोले में कोई महिला बाहर मिलती, सब रुककर उससे सभा में आने का अनुरोध करतीं। कुछ परिचित घरों में दरवाजा खुलवाकर भी सब अंदर गईं और बातचीत की।
हर जगह पहले की अपेक्षा ठंडा स्वागत हुआ। महिलाओं ने बताया कि जहां पैसे लेकर बातें की जाती हैं, वहां जाने का क्या फायदा और बिना घर की आज्ञा के वे कैसे आ जाएं।
दीपिका दी ने बात काटी, हमने तो तुमसे पैसे नहीं लिए।
हमारे नेता से तो लिए, वे क्या अच्छी बात हुई।
दीपिका दी ने जोर देकर कहा, किसी से एक पैसे नहीं लिए। यह आप सबको समझना चाहिए कि हम जो भी बात कर रहे थे, आपके पति, आपके घर और आपके भले के लिए। हमारा स्वार्थ नहीं है इसमें। इस बात को समझिए। पर बेकार, सिर्फ एक रामरतन साहू की पत्नी राधा साथ में आयी। अंत में सुकमी के घर में थोड़ी देर बैठकर वे लोग वापस लौट गईं।
गांव का जीवन पहले की तरह सामान्य हो चला था। मुर्गे की घटना को सबलोग ठीक से भुले भी नहीं थे कि शनिवार की सुबह-सुबह पंचम तिग्गा के घर हल्ला-गुल्ला की आवाज आने लगी। गांव के लोग जुटने लगे। पंचम का बैल गौशाला के बाहर चित्त पड़ा था। पंचम और उसके पूरे परिवार के लोग बैल के इर्द-गिर्द बैठे थे। रात को गौशाला में बैल और गाय ठीक ठाक थे, पंचम तिग्गा बोले। कल रात को 12 बजे लौटा हूं मैं रांची से। देर से आने के बाद भी पूरे घर का चक्कर लगा कर देख लिया था कि सब ठीक है। सुबह उठकर देखते हैं बैल बाहर पड़ा है, जबकि रात को इसे बांध कर रखा था। अब अविश्वास का प्रश्न नहीं है। हैं कोई तो मंतर मार रहा है, उसने भीड़ में खड़े सुकमी के पति एतवा मुंडा की ओर देखते हुए कहा। नहीं, कोई तो है जो गांव में मंतर मार कर जानवरों को खा रहा है। इससे पहले कि आदमियों को खाना शुरू करे, उसकी पहचान करो। सब मिलकर खोजो कि कौन है हमारे गांव का दुश्मन, उसने चीख कर कहा जिसे सबने सुना।
लोगों की जुबान पर अब बैल के मरने से ज्यादा मंतर मारने वाले का नाम आ गया। कई नाम सामने आए। जिसकी जिससे नहीं पटती थी, उसी का नाम लेकर कहता जरूर इसी का काम है। रात को बाहर घुमता रहता है।
इतवार इससे भी भयानक रही। सोमरा मुंडा का छोरा विकास अपनी दस बकरियों को चराने के लिए ले जा रहा था। बकरियां आगे-आगे उछलती कुदगी-फांदती अपने पहचाने रास्ते पर चली जा रही थीं। विकास पीछे लाठी थामे ठसक से गाता-गुनगुनाता चल रहा था। तेतर मोड़ के पास एक बकरी मिटी ट्रक की चपेट में आ गई। मोड़ पर ही सुकमी विकास केंद्र जाने के लिए ऑटो के इंतजार में खड़ी थी। जब विकास वहां पहुंच तो उसने बताया कि देखो बकरी मर गई। अपनी बकरी के पास आकर विकास ने रोना शुरु किया। उसे घर में पिटाई के नाम से और अपनी पाली बकरी के मोह के कारण रुलाई आ रही थी। लोग इकट्ठे हो गए। सड़क जाम होने लगी थी। कुछ लोगों ने बकरी को उठाकर सड़क के किनारे रख दिया। विकास अब वहीं खड़ा रहा चुपचाप। आवागमन सामान्य हो गया। ऑटो मिला तो सुकमी तो चली गई। इधर इनरा टोली से सोमरा मुंडा और अन्य लोग आ गए। विकास ने पूरी बात बताई। डर कर उसने यह भी कहा कि बकरी तो सीधी-सीधी जा रही थी। किनारे की ओर वह वहीं था। पर पता नहीं कैसे बकरी उछल कर ट्रक के नीचे पहुंच गई।
सुकमी को देखा था ना, वह अब कहा है, यह पंचम तिग्गा की आवाज थी, वह पता नहीं कब पहुंच चुके थे। उनकी योजना के लिए प्लेटफार्म अपने आप मिल रहा था जाने कैसे देते।
पता नहीं कहां गई, उस समय तो चुपचाप खड़ी थी। विकास ने उस तरफ देखते हुए कहा जहां सुकमी खड़ी थी।
सब पलटे, सुकमी तो थी नहीं। खुसुर फुसुर शुरू ही हुई थी कि पंचम तिग्गा बोले आज सबुत मिल गया। यह सुकमी ही है जो गांव का बुरा चाह रही है। गांव के जानवरों पर मंतर मार रही है। विष फेर रही है सब तरफ। अब इतना बल आ गया है इसको कि काम करके गायब होना सीख ली है। हमारा बैल को खा गई। उसका मुर्गा मार लिया। अब कौन बचाएगा गांव को। हताशा से आकाश की ओर देखा। फिर तो तुरंत कई लोगों ने कहा कि परसों रात को उसने सुकमी को पंचम तिग्गा के घर की ओर जाते देखा था। कुछ लोगों ने मुर्गा मरने के बाद सुकमी को वहां देखने की बात बताई।
पंचम तिग्गा ने कहा कि गांव सबका है और ऐसे कचरे को गांव से कैसे दूर करेंगे, सब लोग सोच लें। भई अपने-अपने बाल बच्चन की रक्षा करो। आज जानवर मर रहा है, कल गांव के आदमी मरेगा मंतर से। भीड़ छटी पर साथ में यह चर्चा लेकर चली की सुकमी जानवरों को मार रही है। उसके मंतर मारते ही जानवर मर जाते हैं। वह मरे जानवरों का कलेजा निकाल कर खा लेती है और जानवर साबुत पड़ा रहता है, मरा हुआ। किसी को भनक नहीं लगती आदि-आदि।
सुकमी ने विकास केंद्र पहुंच कर दीपिका से कहा, दीदी शराब बंदी क्या हमारे गांव में नहीं होगी। जानती हैं मेरे ही मुहल्ले में कल पांच पुरुषों ने अपने घर की औरतों को शराब पीने के बाद पीटा और गालियां दी हैं। टुगड़ी टोली का एक आदमी मेडिकल अस्पताल में भर्ती है। डॉक्टर बोला है पूरा लीभर खराब है। शराब पीने से हुआ है इस सब। उसका पूरा परिवार दू दिन से वही अस्पताल में पड़ा है। बहुत मन घबराया इ सब सुनकर। जानते हैं दीदी, कल शाम को हमारे इनको भी कोई शराब पिलाया था। बोला कि ठंडा है। उसी में मिलाया हुआ था। जब डोलते हुए घर आए और मैंने पूछा तो पता चला। सुकमी बोली।
तुम्हारे पति को महक नहीं लगी तो इसका मतलब शैपेन या वोदका या कुछ और यानि अंग्रेजी दारू पिलाई होगी। दीपिका दी सोचते हुए बोली। किसने पिलाई? वैसे महंगी शराब कोई रोज-रोज नहीं पिलाएगा इसलिए परेशान मत हो और अपने पति को ऐसे लोगों से दूर रहने को कहो।
जी दीदी।
हम शराब बंद कराने वाला प्रोजेक्ट करेंगे वहां भी। चिंता मत करो। अगली बार जब हम लोग आएंगी तो पुलिस स्टेशन जाएंगे और उनसे सहयोग लेंगे। किसी भी भट्ठे का लाइसेंस नहीं होगा। समझाने के लिए भी दूसरी तरकीब निकालेंगे। हो जाएगा। पहले हम इसे आसान प्रोजेक्ट समझ रहे थे। अब युक्ति लगानी पड़ेगी पर काम होगा। दीपिका दी ने समझाया।
ठीक है दीदी। हमें तो आपपर पूरा भरोसा है। अब चलती हूं।
रास्तें में उसने खरीदारी की। अपने दोनों बेटियों के लिए कपड़े खरीदे। ज्योति के दोनों बेटों के लिए पेंसिल और तौलिया। घर का और सामान और लौट चली। इतवार की छुट्टी की वजह से सब घर में ही थे। साथ लायी पकौडिय़ां खाते हुए उसने आज हुई बातें बताईं।
सुकमी पर लगे लांछन की सूचना अभी घर में किसी को नहीं थी। इसलिए सब निश्ंिचत थे।
गांवों में खबरों को पंख लगे थे, तेजी से उड़ रही थीं। रोज चार-पांच लोगों को वह चाकू लिए, बड़े-बड़े दांत निकाले सपने में दिखाई देती। कई लोगों को हसुली लेकर जानवरों की ओर बढ़ते हुए दिखती। कुछ लोग उसे एक साथ कई स्थानों पर बताते। चर्चा का अंत नहीं। स्कूलों में भी यही चर्चा पहुंच चुकी थीं। लंच के समय बच्चों को इस प्रकार की बातें करते सुनकर एतवा मुंडा के होश उड़ गए। छुट्टी लेकर उसी समय घर आया।
आंगनबाड़ी के बच्चों को घर भेजकर सुकमी अपने लिए भोजन निकाल रही थी। पति को इस समय देखकर चौंक गई। इतनी जल्दी कैसे आना हुआ? उसने अचकचा कर पूछा।
अरे कुछ जानती भी है गांव में कौन सी हवा चल पड़ी है। लोग कह रहे हैं कि तुम डायन हो, सबके जानवरों को मार कर खा रही हो। उसने सुकमी का कंधा पकड़ कर रहा।
क्या कहा, कौन बोल रहा है ये सब। उसने हैरान होते हुए पूछा। उसे जरा भी विश्वास नहीं हुआ।
अरे पूरा गांव, बच्चन तक के जुबान पर यही बात है। अभी स्कूल के बच्चों के मुंह से ही सुना कि तुमने विकास के बकरी को मंतर से उछाल कर ट्रक के नीचे फेंक दिया। पंचम जी के बैल को एक हाथ से उठा कर हवा में उछला दिया। बैल सौ फिट उपर गया और फिर धड़ाम से नीचे गिरकर मर गया। तुम रात को बच्चों वाले घर में जाकर बच्चों का गला दबाने की कोशिश करती हो इसलिए सब की मां रात भर जाग रही हैं। बताओ ऐसी बातों का क्या करें।
अजीब हैं आप भी। अरे पूरा गांव हमको चाहता है, देखते नहीं किसी को कुछ होता है राय सलाह के लिए लोग मेरे पास आते हैं। बच्चा सब को कोई बहकाया होगा। आपको उनको समझाना चाहिए तो घर आ गए। सुकमी को लगा पति ने बच्चों के खेल को सच क्यों मान लिया।
सुकमी बैठ जरा। उसके हाथ से थाली लेकर उसे जमीन पर बैठाया और कहा, पूरे घर को संभालती हो। फिर क्यों नादान बन रही हो। देखों बच्चे इस प्रकार की बात कर रहे हैं इसका मतलब है पूरा गांव यही बोल रहा है। हर घर में इन्हीं विषय पर बात हो रही है। गांव की नजर में तुम दोषी हो। यह गंभीर समस्या है। इतना करती हो। टुकड़ी टोली के आंगनबाड़ी केंद्र में बच्चों की ना सार संभाल होती है ना खाना मिलता है। सारा पैसे का बंदरबांट होता है। तुम जी भर खटती भी हो, एक पैसे की बेइमानी नहीं करती, लोगों की बुरे में सहायता करती हो और ऐसी बातें हो रही हैं। बात बढ़ी तो तुम्हें जात से निकला देंगे। आंगनबाड़ी खत्म हो जाएगा। एतवा ने समझाया।
सुकमी गुम हो गई। निकालने के डर से नहीं बल्कि गांव वाले उसके स्नेह को कैसे भूल गए इस विचार से। ऐसा कैसे हो जाएगा। हमने डायन वाला कौन सा काम किया है। वह खुद से ही बोली।
अच्छा, ज्यादा चिंता मत करो, लेकिन सावधान रहो। हम भी पता लगाते हैं कि कौन से लोग क्या-क्या बातें कर रहे हैं तुम्हारे बारे में। एतवा ने कहा और घर से बाहर निकल गया। सुकमी से फिर खाना नहीं खाया गया। परोसी थाली ढंक कर छोड़ दी।
बच्चे स्कूल से आए तो मां को अन्यमनस्क बैठे देखकर पूछताछ की। सुकमी चुप रही क्या बताती बेटियों को। उसकी बड़ी बेटी दसवीं में है। अभी पढ़ाई पर ध्यान देना जरूरी है। छोटी भी आठवीं में पहुंच गई है। इनका भविष्य बनाने के लिए ही तो वह दिन रात एक करती आयी है। इनकी पढ़ाई-लिखाई में कोई कोताही नहीं करती। उसने खुद को संभाला और कहा, देख जल्दी से खाना-खा लें। कोचिंग के लिए देर हो जाएगी। मैं खाना निकालती हूं, तब तक कपड़े बदल ले। बच्चों को कोचिंग भेजकर वह शांत चित बैठ कर फिर से सोचने लगी।
रात नौ बजे मनेसर की दुकान के पीछे महफिल सजी। अमर सिंह ने विलायती मंगवाई थी। अनिल गुप्ता की ओर से अंडा और नरेंद्र सिंह ने भुना कलेजी। खाते-पीते बातें हो रही थी। अमरसिंह बोले, भाई तुम लोगों का जवाब नहीं। मेरी योजना को इतनी जल्दी सफल कर दोगे। साली सुकमी के नाम पर पूरा गांव थूक रहा है। सब समझ रहे हैं कि वह पक्का डायन है। हा-हा। साला मजा आ गया लेकिन। भगवान साथ दे रहा है देखो। कितनी जल्दी सब हो गया। नशे में बीच-बीच में बहक भी रहे थे।
अरे भइया, सचमुच समय हमारे साथ है। एक के बाद एक घटना नहीं होती तो हम लोग को दिक्कत होता। विनय मुंडा का मुर्गा तो मरवा दिए थे। उस दिन भी हमरा आदमी पकड़ा नहीं गया। बैला में बड़ी फायदा रहा। उ रामदयाल किराना वाला है ना उसका कचहरी में काम अटका था, करवा दिए थे। उपहार में बैल दे गया था। उतना दिन खेत जोता। उस दिन संजोग देखिए की रांची गए थे तो सांझ के अशोक जी के बैल को सांप काट लिया था। हॉस्पिटल ले जाने के पहले ही मर गया। उन्हीं से बोले कि हम गाड़ देंगे। टेंपु में ले आए। अपना बैल वो ही टेंपु से अपन दोस्त घरे भिजवा दिए। दूसरा दिन जाकर 20 हजार में रांचिए में बेच आएं। यहां का भी काम हो गया। पंचम तिग्गा अपना राज उगल रहे थे।
भाई ये सब तो ठीक है। पहले तो उसको डायन साबित करने का प्लान था, हो गया। अब भगावेंगे कैसे। अनिल गुप्ता बेचैन थे।
आराम से रहो। अब तो रास्ता और खुल गया है। अमर सिंह निश्चिंत भाव से बोले। बहुत कुछ आने वाला है। पर एक बात समझ लो, मैं आज ही साफ कर दे रहा हू्ं। उस डायन के पास संपत्ति भी है। चार कट्ठा जमीन है उसका घर वाला। कंगलों को क्या पता चीज की साज सवांर कैसे की जाती है। बीच में आंगन बेकार पड़ा है। दो कट्ठा जमीन पीछे खाली छोड़ी है। सब्जी लगा कर रखा है। यह मैं लूंगा। अमर सिंह अपने बिजनेस में आ गया।
ले लीजिएगा, हम कुछ नहीं कहेंगे। पर लेंगे कैसे आदिवासी जमीन है ना। उस पर पूरा परिवार तो हईए ना है। अनिल गुप्ता बीणज बुद्धि के मुताबिक हिसाब किताब करने लगे।
यह हम पर छोड़ो। एक बात और जान लो पिछला साल उ चार कट्ठा जमीन भी खरीदी है। पझरा किनारे जो खेत है ना वहीं पर। अभी दाखिल खारिज नहीं हुआ है। उ जमीन में से हिस्सेदारी लेंगे। उस घर में सबके नाम है इसलिए दिक्कत होगा। लेकिन उपाय हम बतावेंगे। काम तुमलोग को करना पड़ेगा। एक हिस्सा हम लेंगे। एक बात और उसकर खाता भी है, उसमें कुछ पैसा होगा। केतना होगा देखने के बाद ही उसका बंटवारा के बारे में हम कुछ बोलेंगे। अमरसिंह ने सुकमी की पूरी संपत्ति का हिसाब रखा था।
सबके चेहरे पढ़कर बोले, देखों मौका ताको गांव में किसी मानुष जन के मरने का इंतजार करो। जिस दिन मरे उस दिन गांव वालों को ललकार दो। बताओ कि डायन का पाप मैला और मूत्र पीने से ही खत्म होता है। फिर तुमको कुछ नहीं करना है। गांव वाले लाकर पीलाएंगे। फिर कहो ऐसे पापी को मार डालना है। वे लोग ही मार डालेंगे। पूरा गांव मिलकर करेगा तो पुलिस बीच में नहीं आएगी। उसके संगी और हितैषी को भी मारो कोई फरियाद ही नहीं करेगा। मीडिया वालों से दूर रहना। तब तक गांव में गुस्सा और नफरत उफनने दो। अभी की तरह कहते रहो कि वह डायन है। किसी की तबियत भी खराब हो तो उस पर दोष लगाओ।
मंडली ने चियर्स करके सहमति और खुशी दोनों व्यक्त की।

अगले पांच दिन तक सिलसिला चला रहा। पांचों के आदमी इसी काम में लगे रहे कि किस घर में कोई बीमारी या परेशान है। जैसे ही पता चलता सुकमी का नाम उछाल देते। छठे रोज सुबह-सुबह अनिल गुप्ता की 90 वर्षीय दादी गुजर कई। औरतें सुबह का घरूआर कर रही थी। अनिल सोकर उठे और संयोग से उस कमरे की ओर गए जहां दादी सो रही थी। देखा बुढिय़ा चीर निंद्रा में चली गई। तुरंत उन्हें अमर सिंह की बात याद आयी। दो पल कुछ सोचा और चिल्लाने लगे। सुकमी छोड़ दे, छोड़ दे हमारी दादी को, अरे कहां ले जा रही है। फिर चिल्लाते हुए बाहर की ओर दौड़े, ले गई- हमारी दादी के प्राण ले गई। देखो डायन ले गई। हमारी दादी को ले गई। दरवाजे पर लोग जमा हो गए। अनिल गुप्ता सिर धुनने लगे। मेरी आंखों के सामने ले गई। सुकमी डायन हमारी दादी के प्राण ले गई। लोगों ने पूछा कैसे क्या हुआ तो बोले रोज की तरह उठकर दादी को प्रणाम करने गया तो देखा दादी के सिरहाने सुकमी खड़ी है। मैंने पूछा यहां कब आयी, क्या कर रही है तो बोली आज इसी का खून पियूंगी। कई दिन से प्यासी हूं। कितना रोका, पांव तक पकड़े पर टस से मस न हुई। उसने हाथ हिलाया और मैं स्थिर हो गया। दादी के करेजे पर चढ़े बैठी जाने झुक कर क्या किया और दौड़ कर बाहर भागी। मैंने देखा दादी मर चुकी थी। पीछे-पीछे दौड़ो तो कहीं दिख नहीं रही। वे आंखों को पोछने लगे।
हमने तो सुकमी को टुंगड़ी टोली की ओर जाते देखा है भीड़ में से उमंग बोला।
लगता है यहां निकल कर आगे वाले रास्ते से मुड़ गई डायन। अधिकतर लोगों ने विश्वास किया इस घटना पर। क्या करें, गांव में डायन बस गई है। इसी पर जिरह चल पड़ी अंदर से अनिल गुप्ता की मां आकर खड़ी ही हुई कि अनिल ने डांट कर अंदर भेज दिया - अंतिम समय में दो घड़ी दादी के पास जाकर बैठो मां, हम हैं बाहर करेंगे फैसला। बेचारी इतने लोगों के सामने बेटे को कुछ बोल नहीं सकी अंदर चली गई। अमर सिंह, रामरतन साहू, नरेंद्र सिंह, पंचम तिग्गा सब आ जुटे। गांव में कलंक को कैसे धोएं इस बात पर विचार होने लगा।
पंचम तिग्गा बोले, बहुत हो गया। अब बर्दाश्त नहीं होता। कल तो गांव घर की इज्जत की खातिर चुप रहा लेकिन अब आदमियों पर आफत आई तो उपाय करना पड़ेगा, बोलिए आप सबकी क्या राय है। गांव से डायन बिसाही का खात्मा चाहते हैं या रोज-रोज गांव में मौत।
खात्मा। कई आवाजें एक साथ आयी।
मैं आपका नेता हूं, लेकिन हूं तो आदमी ही कभी-कभी गलती हो जाती है। आप सब मेरी जनता है मैं सेवक आज गुनाह कबूल करता हूं। आदिवासी होने के नाते सुकमी की बड़ी मदद की मैंने। जब भी रुपए पैसे के लिए हाथ फैलाती दे दिया। रोती थी कि खाने को नहीं है, बच्चों को लेकर आती थी तो उनकी किताबों के लिए पैसे दिए। काफी दिन पहले ही जब सुनील मुंडा की मौत हुई थी उसी समय मुझे पता चला था कि इसमें सुकमी का हाथ है। पर चुप रहा, सोचा की सुधर जाएगी। घर पर बुलाकर समझाया भी। मुझसे बोली, गलती हो गई। अब किसी को कुछ नहीं करुंगी। फिर उसने जानवर खाना शुरू कर दिया। जब हल्ला हुआ तो फिर से आदमी खाने पर आमदा हो गई। उ ज्योतिया और शीलवा के साथ तीनों को एक बेर मसना में रात को दीया जलाकर नंगा नाचते पकड़े थे हम। उस दिन भी बड़ा समझाएं। अपना गाड़ी में बैठाकर घर तक पहुंचाए। उ दिन ओकरा लाने में कितना डरा रहा था हमर डरेबरा है कि नहीं राम खेलावन, कहकर उसकी ओर देखा। वह बेचारा जी मालिक कहकर चुप हो गया। अब पानी सिर से ऊपर चला गया है। डायन का मंतर खत्म करने का समय है। बात समाप्त कर एक एक कर लोगों के चेहरे पर निगाह दौड़ाई।
अमर सिंह बोले, बड़ा खराब लग रहा है इ सब सुनकर, बताओ पंचम लोग पूजते हैं तुमको और तुम एगो के बचावे के खातिर इतना दिन तक चुप रहे। अरे उ तो मंतर से सब करती थी। पहले एतवा मुंडा का मट्टी का घर था। अब दुगो कोठरी पक्का हुआ। सुंदर-सुंदर साड़ी पहनती है। लइकन को मंहगा कपड़ा पहनाती है कहां से मंतर से ना। गलत हुआ। प्राश्चित करो और डायन खतम करने का काम तुम ही करो, तब इ जनता तुमको सेवक मानेगी है कि नहीं। पंचम के समर्थकों ने हुंकार भरी तो साथ में अन्य लोग भी बोले ठीक है।
तब आजे हिसाब करते हैं, चलो पकड़ो कहां है छिनाल। पूरा हुजूम चल पड़ा। उमंग ने टुगड़ी टोली की ओर कहा था तो उधर ही दौड़े। सुकमी अपनी देवरानी के साथ नए खरीदे खेत को देखने आयी थी। पूरी फसल कट जाने के बाद दाखिल खारिज कराना था। आधी फसल कटी थी। खेती खुद करने, साथ में मजदूर लगाने की बातें करते हुए सुकमी लौट रही थी। खेत से मुहल्ले की ओर बढ़ी ही थी कि भीड़ को आते देखा। डायन को मार डालों सुनकर उसकी छाती का खून जम गया। ज्योति बोली भागो दीदी, लगता है हमलोगा को पकड़ेंगे। पलटकर दौडऩा शुरू ही किया कि अमर सिंह और अनिल गुप्ता ने दोनों को पकड़ लिया। लोगों ने उन्हें घेर लिया। काहे खायी रे हमारी दादी को अनिल सिंह आंचल खिंचते हुए बोले। सुकमी हाथ जोड़कर बोली बात करते हैं आप लोग, भला कोई आदमी को खाता है?
तिरिया चरितर ना बताओ। हमरे सामने मारी। अनिल गुप्ता ने बाल नोचते हुए कहा। अरे लेकर आओ रे मैला और मूत्र। पीलाओ आज दोनों को।
अरे उ शीलवा भी तो नंगा नाचती है उनके साथ पंचम तिग्गा बोले।
उसको भी लाते हैं। चार पांच लोग उसे लेने दौड़े।
अरे तब तक मूत्र लेकर आओ।
बात की बात में पॉलीथीन में मानव मल लेकर दो चार लड़के लाए।
पिशाब नहीं मिला एक लड़का खाली मग लाकर बोला।
धत साले। इतने लोग खड़े है। देखने के लिए। कोई भरो रे मग।
तीन चार लोग दौड़े। मग भर गया।
भीड़ बढ़ती जा रही थी। अब तक तीन साढ़े तीन सौ औरत मर्द इकट्ठे हो चुके थे। अनिल गुप्ता और अमर सिंह के सुशासनी हाथ चलने लगे। दोनों के शरीर से चीर कर सारे कपड़े अलग कर दिए गए। तभी कुछ लड़के घसीटते हुए शीला को ले आए। उसके शरीर पर सिर्फ पेटीकोट बचा था। बाकी कपड़े नोच डाले गए थे। बीच में पटकते हुए उसकी पेटीकोट की डोरी खिंच दी गई। लोग पील पड़े। उनके मुंह में पहले मल डाला गया। निगलने से मना करने पर डंडे से पीटा गया। गालियां दी गई, नाजुक अंगों पर प्रहार किया गया। खा साली। जब तक नहीं खाएगी जीता नहीं छोड़ेंगे। फिर इसी प्रकार मूत्र पिलाया गया। अब तक तीनों बेदम हो चुकी थी। होश बाकी नहीं था।
अमर सिंह गरजे बोल कबूल करती है अपराध। कोई जवाब नहीं आया। पंचम तिग्गा के इशारे पर कब ढोल और मांदर आ गया पता ही नहीं चला। ढोल बजता रहा। कुछ लोग नाचते रहे। अमर सिंह ने जेब से कागज निकाला, साली कबूल कर अपराध-कर साइन। सुकमी की छाती पकड़ कर उठाया। कर साइन। बेचारी ने कंपकाते हाथों से दोनों कागज पर साइन किया। कागज पैंट के पॉकेट के हवाले कर अमर सिंह फिर गरजने लगे। इतने रात के अंधेरे में नंगा नाच करके हजारों मंतर सीख लिए ऐसे नहीं सुधरेगी ये। खत्म करो इनको। और मांदर के मद, अमर सिंह की गुर्राहट के बीच लोग टूट पड़े। लगा जैसे किसी वहशी दरिंदे को मार रहे हो। ऐसी नफरत से इतने सारे लोगों ने कभी राक्षसों को भी नहीं मारा होगा।
देह पर पड़ते लात, घुसों, डंडे की चोट को नाजुक मन कोमल शरीर कब तक सहता। दम तोड़ दिया, दीनों ने। पर वहशत कम नहीं हुई। कभी पेट के बल पटक देते कभी पीठ के और पीटते। एतवा मुंडा, उसकी दोनों बेटियों मां-बाप, शीला का पति राजेश लकड़ा, उसके बच्चे सबको खबर लग चुकी थी। पहले तो उन्हें कोई भीड़ के अंदर नहीं जाने दे रहा था। बच्चियां किसी तरह नीचे झुक कर अंदर आयी। मां का हाल देखकर डंडों की परवाह किए बिना दौड़ी। मर गई, मेरी मां को मार डाला। अब डंडे थमे, लात रुका। तीनों को सीधा करके देखा, ओह सचमुच मर गई। रोती बच्चियों को उठाकर किनारे की  ओर फेंक दिया। और सम्मिलित ठहाका, डायन मर गई। सब ओर से गूंज मर गई डायन। गांव सुरक्षित। बजाओ मंदार बजाओ। मर गई डायन। मांदर की थाप तेज हुई। अब उनकी देह पर नाच रहे थे सब। अरे किसी के मोबाइल में गाना है रे बजाओ तो। कुछ लड़के बोले।
हां रे, चल तो गोया रे बजाव।
और कई मोबाइल में नागपुरी गीत बज उठा। शव के ऊपर पांव उठाल कर कमर मटका कर नाचते रहे युवक। जब थक गए तो बोले रहे दे रहे। हो गेलका बजाओ ताली मर गई डायन।
अनिल गुप्ता बोले मेरी दादी की बलि सार्थक हो गई। उसके कारण डायन मारी गई। चलो अब संस्कार कर देते हैं। गाजा बजाता, जुलूस की शक्ल सब वापस अनिल गुप्ता के घर की ओर लौट चले।
रह गए उन तीनों के परिजन। ऐ बापू मां को अस्पताल ले चलो कहीं बची होगी। बड़ी बेटी पूनम रोती हुई बोली।
नहीं छोड़ा है रे किसी ने जिंदा। देख रही है कितना खून बहा है। सांस भी नहीं है।
बापू मइया के देह पर कपड़ा नहीं है लेके आते हैं, छोटी पुष्पा ने कहा और दौड़ पड़ी। दस मिनट में ही तीन साडिय़ां लेकर लौटी। तीनों को साड़ी लपेट कर ढंका।
रोते रोते एतवा मुंडा को ध्यान आया पुलिस को बुलाना चाहिए था। बोला, गलती हो गई रे, पुलिस के पास जाना चाहिए था ना। सब यहीं रूको। चल राजेश हम दोनों चलते हैं।
थाने पहुंचे तो बड़े बाबू बैठे पान खा रहे थे। बड़ा बाबू एतवा मुंडा ने बड़ी विनम्रता से कहा।
टुंगडी टोली के पास हमारी पत्नी, भाई की पत्नी और इ राजेश की पत्नी को गांव वालों ने पीट-पीटकर मार डाला। रिपोर्ट लिख लिजिए और चलकर देखिए। उन लोगों को पकडि़ए सब नाच रहे हैं। बोलते-बोलते एतवा की आंख छलक पड़ी। हम बर्बाद हो गए बाबू, पूरा घर बर्बाद हो गया।
बड़े बाबू ने ऐसे देखा जैसे एतवा ऐसी भाषा बोल रहा है जो इस दुनिया की है ही नहीं।
उसे चुप देखकर एतवा ने फिर अपनी बात दुहराई।
पान की पीक फेंक कर बड़ा बाबू बोले, आज केतना पीए हो।
जी, हम शराब नहीं पीते बड़ा बाबू और राजेश भी नहीं।
तब गांजा पिया होगा, मुस्कुराते हुए बड़ा बाबू बोले।
जी नहीं, तीन परिवार उजड़ गया बड़ा बाबू आप ऐसा काहे कहते हैं। हम कोई नशा नहीं करते। एक महीनो पहले जो अमरदीप स्कूल में विधायक जी आए तब आप भी आए थे ना, हम तो उसी स्कूल में चपरासी है। घंटी बजाते हैं और पानी पिलाते हैं, उस दिन आपको हम ही नाश्ता का पैकेट दिए थे। जब आप बोले थे कि दो पैकेट आउर दो। तब हम ही आपको अपना वाला हिस्सा का भी पैकेट दिए थे बड़ा बाबू। आप अइसन मत समझिए। आज भी हम स्कूल में ड्यूटी कर रहे थे। समाचार मिला तब दौड़कर गए थे, वहां। बोलिए लइकन के स्कूल में कोई नशा करके जा सकता है का। बड़ा बाबू को समझाने के लिए एतवा ने कई पुरानी सब बात बताई।
हो गया तोरा भाषण। अरे किस पर मुकदमा चलावें। का लिखोगे एफआईआर में कि गांव वाला मारा। एइसा नहीं होता है। पूरा गांव वाला किसी को थोड़े मारता है। और फिर सबूत का है। तुमरी औरत खेत के पास मरी है। खेत में का कर रही थी? ऐसा भी तो हो सकता है कि कउना यार संग खेत में होगी और देख कर तुम्ही मार दिए। बोल रहे हो उल्टा पुल्टा। बड़ा बाबू पान थूकते हुए बोले।
मानते हैं कि जोरू मर गई तो घर बर्बाद हो गया तुम लोगों का इसलिए पगला गए हो लेकिन किसी पर भी आरोप नहीं ना लगा सकते हो जब तक सबूत नहीं है। पगलाओ नहीं जाओ क्रिया करम करो। लहाश चील कउआ के खाएला काहे छोड़ आए हो। हाथ से बाहर जाने का इशारा करते हुए बड़ा बाबू बोले तो एतवा और राजेश दोनों बिलख कर रोने लगे।
बड़ा बाबू पुलिस तो दोषी को सजा देती है ना एतवा रोते-रोते बोला।
जाता है कि यहीं मेहरारू को मारने के जुर्म में बंद कर दें। सलाखों की ओर इशारा  करते हुए बड़ा बाबू बोले तो एतवा और राजेश रोते हुए बाहर निकल आए।
राजेश का करें। पुलिस तो नहीं सुनी, किससे शिकायत करें। एतवा ने पूछा।
चलो भइया पहले वहां पर चलते हैं। कुछ और गड़बड़ ना हो। पुलिस नहीं सुनी तो और कोई नहीं सुनेगा हमलोगों का।
राजेश की बात सही थी। शव के चारों ओर फिर से 50 से अधिक लोग खड़े थे। दोनों भीड़ चीर कर अंदर पहुंचे तो अमरसिंह डंडा लेकर बैठे थे। काहां गया थे रे, मंतर से जिंदा करने? दोनों को देखते ही पूछा।
चल जल्दी चिता में डाल कर भस्म कर तीनों पापिन को। जमीन पर डंडा पटकते हुए बोले।
हम तो आदिवासी है ना भइया, एतवा ने इतना ही कहा था कि फिर गरजे अमरसिंह,
आदिवासी नहीं, तोर बीबी डायन थी। जलाओगे नहीं और मंतर से जिंदा कर लोगे तो गांव को कौन बचावेगा। चलो रे सब, ले चलो तीनों को घसीट कर। अरे एतवा पइसा निकाल लकड़ी खरीदना होगा। जाओ लेकर आओ।
नहीं तुम रुको। अरे लड़की जा दुहजार रुपया ले आओ। वे बड़ी लड़की से बोले।
घर में एतना पैसा नहीं रहता है। उसने धीरे से कहा।
सुन रे एतवा गांव वाला मिलकर देगा लेकिन तुम दो दिन में चुका नहीं तो यही हाल होगा। चलो ले चलो। वे उठ कर शमशान की ओर चल दिए। शव घसीट कर लाकर संस्कार कर दिया गया। अब तक आस-पास के गांव में भी हल्ला मच गया था। देर शाम पत्रकार पहुंचे, पर गांव वालों ने कोई जानकारी नहीं दी। राजेश ने कुछ बातें बताई, पर डर कर किसी का नाम नहीं बता सके।
अगले दिन शहर के हर छोटे बड़े अखबार में यही घटना थी। जिसने सुना स्तब्ध रह गया। ऐसी नृंश्स हत्या, शव के ऊपर नृत्य के जैसा पैचाशिक कृत। लोग छी-छी कर उठे। दिन भर में कई कैमरा वाले, माइक वाले आए। कुछ सूचना मिली कुछ नहीं। पत्रकारों ने थाना घेर लिया। बड़ा बाबू असमंजस में क्या बयान दें। बोले- हमें कुछ भी जानकारी नहीं है। हो सकता है आपको गलत जानकारी मिली हो। ऐसा होता तो हमें पता ही रहता।
इलेक्ट्रॉनिक चैनल में खबरें चलने लगी। पुलिस इतनी अंजान थाना के पौन किमी में इतनी बड़ी घटना हुई पुलिस दूसरे दिन भी अंजान है। लोगों को गलत जानकारी है तो वे तीनों महिलाएँ कहां गई, पुलिस के पास इसका भी जवाब नहीं।
प्रधान सचिव ने डीजीपी को फोन किया। ये क्या चल रहा है न्यूज में। क्या मामला है देख लो।
इसके बाद ग्रामीण एसपी का फोन बजा। अरे सिन्हा तुम्हारे इलाके में क्या चल रहा है।  थानेदार उटपटांग बयान क्यों दे रहा है। प्रधान सचिव को क्या जवाब दूं। पतो करो, क्या मामला है।
ग्रामीण एसपी ने मानसर थाने में फोन लगाया। अरे टीवी पर बयान देने का बहुत शौक चढ़ा है। क्या बात है। ये मामला है क्या।
बड़ा बाबू की जीभ तालू से चिपक गई। जी वो क्या बताएं। शायद ग्रामीणों ने चुपचाप डायन के आरोप में महिलाओं की हत्या की है, पर किसी ने थाने को सूचना नहीं दी अब तक। उन्होंने हकलाते हुए कहा।
यदि अखबार में खबर पढऩे के बाद भी आप एक बार जाकर दौरा कर लेते तो इज्जत कम हो जाती? कम से कम उट पटांग बयान तो टीवी पर नहीं देते। जाइए घूम कर आइए, माजरा क्या है। फिर फोन कर बताईए। सिन्हा जी ने कड़कती आवाज में कहा।
बड़ा बाबू जीप में बैठे ही थे कि दो तीन पत्रकार आ गए। कहां चले बड़ा बाबू, एक ने पूछा।
अरे उस हत्या के मामले की जांच करे जा रहा हूं।
चलिए, उनलोगों ने भी अपनी गाड़ी फिर से स्टार्ट कर ली।
पुलिस जब टुंगड़ी टोली पहुंची तो घरों के दरवाजे बंद थे, अजीब सा सन्नाटा पसरा था। एक घर का दरवाजा खटखटाया तो एक छोटे लड़के ने दरवाजा खोला।
घर में कौन-कौन है, मां है तुम्हारी, बड़ा बाबू ने पूछा।
है, मां... थाना वाला आया है, उसने वहीं से हांक लगाई। दो मिनट के बाद एक बुजुर्ग महिला बाहर आई। किसको खोजते हैं पुलिस जी, उसने कमर पर हाथ रखे-रखे पूछा।
कल यही आस-पास कुछ महिला को मारा गया था, आपने देखा था ना। बताईए क्या हुआ था। बड़ा बाबू दरवाजे पर डंडा बजाते हुए बोले।
मारा तो था, हम क्या। पूरा गांव देखा था। गांव का चिरई-जनावर तक शामिल था। सबने मिलकर मारा था। अपने बच्चन को मरने देते का। उ तीनों डायन थी इसलिए मारा गया।
घटना की पूरी जानकारी पूर्व में ही होने के बाद भी बड़ा बाबू इस सपाटबयानी से सिटपिटा गए। एक पल को तो पत्रकार भी भौंचक रह गए।
अम्मा, ये क्या कहती है, डायन क्या होता है। डायन बता कर किसी को मार डाला जाता है क्या, पत्रकार चुप नहीं रह सके।
दूर, अजीब बात करते हो, डायन के साथ यही किया जाता है। हम तो बुढे ठहरे। हम तो मारे नहीं लेकिन पूरा गांव मिलकर मारा। किसको फांसी दोगो बोलो। अब जाओ इहां से कमर दुख रहा है, कल बहुत देर खड़ा रहे हैं हम, और दो कदम पीछे हटकर सटाक से दरवाजा बंद कर लिया।
सबने कई घरों में पूछताछ की, यही जवाब, गांव ने कुछ गलत नहीं किया। डायन के साथ यही होगा। हमने मार कर पूरे गांव को बचाया है।
सब लौट चले। दरोगा जी ने फोन कर ग्रामीण एसपी को जानकारी दी। सर, पूरे गांव पर मुकदमा नहीं कर सकते ना, कहिए तो अननोन पर कर दें। उधर से कर दो जवाब दिया तो बड़ा बाबू मानो बरी हो गए। एक एफआईआर अज्ञात के नाम से कर दी और मुकदमें से छुट्टी।
ग्रामीणों के बयान और गांव का सन्नाटा अखबारों में छपा तो कुछ बुद्धिजीवी वर्ग छटपटाने लगे।
राजधानी के आदिवासी नेताओं से पूछा जाने लगा कि आठ दिन के बाद भी एक भी आदिवासी नेता क्यों नहीं गया गांव, हालात देखता तो सही। पर कोई जवाब नहीं सन्नाटा। आदिवासियों के बीच काम करने वाले आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ताओं की चुप्पी भी ऐसी ही रही।
इसी चुप्पी के कुछ दिन और गुजरे। गांव का हाल देख सुनकर आए एक पत्रकार ने पंचम तिग्गा को फोन किया, सर आज का बुलेटिन आपके नाम, लाइव दिखेगा आज, आपके लोग आपके बीच कार्यक्रम में। साढ़े तीन बजे स्टूडियों पहुंच जाइएगा।
पंचम खुश हो गया। क्या-क्या पूछेंगे भाई, कुछ तैयारी तो नहीं करना है।
नहीं सर, यहां मेकअप मैन रहता है और सवाल क्या विकास कैसे करेंगे आदि-आदि।
नियत समय पर दलबल सहित महाशय स्टूडियों पहुंचे। मेकअप मैन ने मेकअप कर, लाइव शो कुर्सी पर बैठा दिया।
सर आज तक आप क्षेत्रीय नेता थे आज राजकीय हो जाएंगे। पत्रकार बोला तो पंचम का मन बांसो उछल पड़ा। पूरे राज्य में लाइव दिखेगा ना, दिल्ली में भी।
सर, दिल्ली आपके राज्य में नहीं है। पर समझ लीजिए छा जाइएगा। कैमरा की तरफ देखकर जो मन में आए बोलते जाइए बस हो गया।
देखो भाई बढिय़ा-बढिय़ा सवाल पूछना। हम हिट हो गए तो आपकी भी झोली भर देंगे।
लाइव में सबको तुरंत तुरंत दिखता रहता है ना, पंचम खुशी से छक रहा था।
हां सर, तैयार ना। एक्शन, कैमरा रॉल। ओके।
नमस्कार मित्रो। हैलो न्यूज की संध्या बुलेटिन में आपका स्वागत है। आज आपके फेवरेट लाइव शो आपके लोग आपके बीच सचमुच एक उभरते लोकप्रिय नेता पंचम तिग्गा हैं। मैं इनसे पूछूंगा आपके दिल की बात और आप सुनेंगे इनकी दिल की बात। तो दोस्तों, आइए मुखातिब होते हैं पंचम जी से।
पंचम जी एकबार फिर से स्वागत है।
पत्रकार -आदिवासी विकास के लिए क्या करना चाहते हैं।
पंचम - देखिए आदिवासी इस राज्य की रीढ़ हैं। मैं इसके बीच का हूं और इनके लिए ही काम करता हूं। मैं नेता बना ही हूं इनके विकास के लिए। इन्हें पढ़ाई लिखाई में मदद करना। विकास की योजनाएं बनवाना। अज्ञानता, अंधविश्वास दूर करना इसी काम में लगा हूं। यही लक्ष्य है मेरा।
पत्रकार - अरे, वाह आपने बिल्कुल सही कहा। आपके रहते इस राज्य को सोचने की आवश्यकता नहीं है। चलिए आदिवासियों से जुड़ा एक और प्रश्न आदिवासी संस्कृति जीवित है या खत्म हो गई।
पंचम - एक दम जीवित है। हमारे जैसे लोग लगे हैं इसे बचाने में। हम आज भी प्रकृति के कण-कण के उपासक हैं। हर तीज त्योहार उसी राग उल्लास से मनाते हैं।
पत्रकार - सर आदिवासियों में जो कैंसर फैल रहा है उसे दूर करने के लिए क्या कर रहे हैं।
पंचम - कैंसर कब फैला कहां, हमने तो नहीं सुना।
पत्रकार - जो आदिवासी प्रकृति के कण-कण पूजते हो। जिनकी संस्कृति ही मातृ सत्तात्मक हो, वे औरतों को मारने और उसके शव पर नाचने लगे इसे क्या कहेंगे।
पंचम के मुंह से सिर्फ पानी-पानी का ही शब्द निकला।
खैर छोडि़ए शायद इस तरह की घटना से आप अनजान है तो बताइए सर, आपका नाम गगनभेदी रॉकेट की तरह पूरे राज्य में छा गया है। सबसे लोकप्रिय नेताओं में शुमार हैं आप। यह सब जादू कैसे हुआ।
नेता जी- अरे भइया जादू नहीं। हम तो जनता की सेवा करते हैं, किसी का दुख हमसे देखा नहीं जाता। कोई कष्ट में है सुनकर मदद करते हैं बस।
पत्रकार - नहीं सर सुना है आप काला जादू जानते। डायन का मंतर आपने सीखा है लोग कह रहे थे।
पंचम - खिसियाते हुए - क्या बात करते हैं। आप पढ़े लिखे होकर ऐसी बात कैसे कर सकते हैं। डायन-फायन क्या होता है। यह सब कोरा बकवास है। हम तो आधुनिक लोक है आप डायन जैसा बात कैसे सोंचे और डायन मतलब हम तो पुरुष हूं ना।
पत्रकार - सर, यदि डायन नहीं होती है तो आपके घर के पड़ोस में तीन औरतें डायन के आरोप में निर्वस्त्र करके मल मूत्र पिलाकर कैसे मार दी गई। सुना गया है आप भी उसमें शामिल थे। यदि नहीं भी थे तो उस वक्त कहां थे। लोग जब डायन का आरोप लगाए तब आपने क्यों नहीं कहा कि डायन फायन कोरा बकवास होता है। हम तो आधुनिक हैं। गांव तो पढ़ा-लिखा है। उसकी आवाज गुस्से से कड़क उठी थी।
पंचम ने दोनों हाथ से कैमरा हटाने का इशारा किया और हांफते हुए कुर्सी से गिर पड़ा।



शेली कम और यादगार लिखती हैं। वे झारखंड में पेशे से पत्रकार हैं।

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