आज में पहुँचते-पहुँचते कई साल लगाउंगा
हर पल को ठीक उसके बीत जाने के पहले पहले सोचता हूँ उसे छू कर बीत जाने की ओर अपनी अंगुलियों से सरका दूँ जैसे अपने सबसे प्रिय चीजों को सरका कर एक ओर रख देता हूँ एक सुरक्षित स्थान पर हर पल को उसी तरह, जैसे पलट रहा हूँ एक पन्ना पढ़ते पढ़ते और जैसे एक साथ दो पन्ने पलट गए गलती से तो वापस पलट लूँ उस पन्ने को
एक दिन छूने में आ गया कोई पल और अंगुलियों में यह आ गई कला तो यकीन मानें सारे पलों को मैं ले जाउं पीछे ढकेल कर
एक चिडिय़ा आ बैठती मेरे सामने टुक-टुक देखती मुझे ज्यों कह रही लो यह पल और फुर्र से उड़ जाती अदृश्य कठिन बहुत कठिन पर यह तो हो सकता है कि सब के सब एक साथ लिख लें एक तारीख और दुहराएँ जो हुआ था तब
साथ जाने तैयार न हुआ कोई तो अकेले स्कूल जाकर क्लास रूम में अपनी बेंच पर दिन भर खड़ा रहूंगा
मोहम्मद रफी के गाने सुनूंगा पैदल पैदल चलूंगा बाज़ार बाज़ार अपनी साइकिल में हवा भरवाउंगा
गुल्लक में चिल्हर डालूंगा हिला हिला कर सुनूंगा खन-खन, झन-झन
अपने हाथों पौधे रोपूंगा बढते देखूंगा दिन-दिन रोज उसकी बढ़त को एक कागज में लिखूंगा आज में पहुँचते-पहुंचते कई साल लगाउंगा।
चुप का संगीत नाटक में चुप का संगीत था उसे देखने वाले सब झूम रहे थे एक पात्र झूम रहा था उसके झूमने में चुप्पी थी कुछ दर्शक उसके झूमने को सुन रहे थे व्वाह व्वाह कर रहे थे कुछ लोग इसे नाटक नहीं है यह कह रहे थे कुछ कह रहे थे यह नाटक में ही हो सकता है सचमुच तो यह पता नहीं क्या था क्यों कि सचमुच के चुप में संगीत था संगीत से याद करता हूँ उस्ताद कहा करते कि संगीत में बीच की चुप्पी का बड़ा आनंद होता है जिसने इस चुप्पी को साध ली तो समझो उस्ताद हो गया अभी जो नाटक में जो चुप चल रहा था यही नाटक का संगीत था और सब इस चुप को सुन कर आनंदित थे
नाटक कब शुरू हुआ था और कब तक चलेगा इस फिक्र में कोई नहीं था सब निश्चिंत थे कि चुप के संगीत में समय के शोर के लिए जगह नहीं थी और जो कुछ दिख रहा था उसमें किसी को जल्दी नहीं थी नाटक के किसी पात्र को कोई हड़बड़ी नहीं थी
संगीत की चुप्पी में धीरे धीरे तेजी आने लगी और चुप्पी बजने लगी।
एक गरीब बीमार के लिए जरूरी है एक गरीब चिकित्सक
एक गरीब बीमार के लिए जरूरी है एक गरीब चिकित्सक जो सस्ती दवाईयों के नाम जानता है नब्ज पर हाथ धर जान ले मर्ज पूछे न सुबह क्या खाया
चिकित्सक के लिए सोचते गरीब बीमार हम फीस देंगे तब तो उसका चलेगा घर क्या खाएगा सोच समझ कर देना चाहिए फीस मोहल्ले की बैठक में एक तरह से तय कर दी गई फीस और यह भी कि कोई चिकित्सक से न कहे यह तय फीस है कि उनको लगे यह है अपने आप
गरीब चिकित्सक ने देखा आखिर में रात को तो देखे सौ-सौ के नोट उसे याद आ गए चेहरे याद हो आया संभल-संभल कर रखे गए थे नोट और दिन की तरह किन्हीं चेहरों पर मासूमियत कम थी
वह चेहरों पर मासूमियत चाहता था फिर से वही होना चाहता था गरीब चिकित्सक
एक ईमानदार गरीब चिकित्सक के लिए जरूरी है गरीबों के चेहरे पर मासूमियत गरीब मोहल्ला के लिए जरूरी है पास एक गरीब चिकित्सक सच जानें इस चिकित्सक की समझ से अलग और इन चेहरों की मासूमियत के बरक्स
कोई अमीर नहीं होना चाहता
यहां मालकौंस का अलाप चल रहा था सब एक साथ गा रहे थे एक कवि मुग्ध सुन रहा था
जंगल का अंधकार
पेड़ पौधे सो गए हैं जंगल सो रहा है
यहां के पशु पक्षी सभी गहरी नींद सो रहे हैं
सबके अपने सपने सबकी अपनी सुबह
रात का अंधकार जंगल का अंधकार
इसे ओढ़ते हैं बिछाते हैं और सब सो जाते हैं
यहां का सुनसान एक लोरी है सब लोरी सुनते हैं जिस रास्ते आती हैं नींद उस पर चल देते हैं खेत ही खेत हैं सपनों के खेत हैं उसके पार जाते हैं आदिवासी कुछ और सपना बो आते हैं
जंगल का अंधकार इनकी रखवाली करता है आदिवासी अपने सपनों को भूल जाते हैं
सुनसान अपने पास रखता है संजो कर इन्हें इस अंधकार में इस सुनसान में सुरक्षित हैं आदिवासी सुरक्षित हैं इनके सपने जो इनके अंधेरे को नष्ट कर देना चाहते है इनके सुनसान को धमाकों की आवाज से खत्म कर देना चाहते हैं अपील है उनसे करबद्ध जंगल को उनकी नींद वापस कर दो सोने दो जंगल को पेड़ पौधों को पशु पक्षियों को उनके अंधकार में उजास है उनके सुनसान में संगीत है यह आदिम संगीत इसे नष्ट मत होने दो। |